3/03/2021

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत एवं सर्वेक्षण

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madhyakalin bhartiya itihas ke srot;मध्यकालीन भारतीय इतिहास को सरल तरीके से समझने के लिए हम इसे अध्ययन की दृष्टि साधारणतः दो भागों विभाजित कर सकते है। अर्थात् सल्तनत काल और मुगल काल। दोनो कालों के इतिहास के स्त्रोतों का भी अपना-अपना अलग महत्व है। इसलिए इस को हम दो भागों में लेकर इसका अध्ययन करेगें। पहले भाग में हम सल्तनत काल के स्त्रोतो पर प्रकाश डालेगें और दूसेर भाग में हम मुगल काल के स्त्रोतो पर प्रकाश डालेगें।

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत एंव सर्वेक्षण 

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत इस प्रकार है--

1. सल्तनत काल के इतिहास के स्त्रोत

सल्तनत काल के स्त्रोत से हमे कुतुबुद्दीन ऐबक (1206) से लेकर इब्राहिम लोदी (1526) तक के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। जिसे सामान्यतः दिल्ली सल्तनत के नाम से जाना गाया है। इस काल में 1206 से 1290 तक दिल्ली सल्तनत की स्थापना करने वाले प्रारंभिक तुर्क सुल्तानो को तथाकथित ‘गुलाम वंश के नाम से जाना गया था। और फिर 1290 से 1320 तक ‘खिलजी वंश‘ ने शासन किया। 1320 से 1414 तक ‘तुगलक वंश‘ ने शासन चलाया। 1414 से 1451 तक ‘सैयद वंश‘ का शासन रहा। 1451 से 1526 तक ‘लोदी वंश‘ ने शासन किया। 1526 ई. में बाबर ने अंतिम लोदी वंश के शासक केा पराजित कर मुगल साम्राज्य की नींव भारत में रखी। ‘दिल्ली सल्तनत‘ के इतिहास को जानने के साधनों का संक्षिप्त सर्वेक्षण इसी क्रम में करेंगे।

गुलाम वंश 

इस काल के शासकों बारे में जानकारी का मुख्य स्त्रोत हैः फखरुद्दीन मुबारक शाह द्वारा लिखित ‘‘तारीख-ए-फखरुद्दीन मुबारकशाहं‘‘,मिराज-उल-सिराज की तबकात-ए-नासेरी ,जियाउद्दीन की ‘तारीख-ए-फिरोजशाही‘ तथा अमीरों खुसरों की कुछ रचनांए ,‘तारीख-ए-फखरुद्दीन‘ मुबारक शाह से कुतुबद्दीन ऐबक के जीवन कार्यो पर प्रकाश डा़ला गया है। फखरुद्दीन कुतुबउद्दीन ऐब का समकालीन था। दिल्ली और लाहौर के राजनैतिक इलकों में उनका आना-जाना था। दरबारियों और अमीरों से उनके निकट सम्पर्क थे। ऐबक के शासन की जानकारी अर्जित करने के हेतु यह बहुत ही उपयोगी पुस्तक है।

गुलाम वंश का इतिहास जानने का सबसे अधिक महत्वपूर्ण पुस्तक हैः मिनहाज-उल-सिराज द्वारा लिखित ‘तबकात-ए-नासिरी। मिनहाज भारत में बाहर से आया था। वह इधर-उधर काफी भटकता रहा। सभौग्यवश उसे सुल्तान इल्तुतमिश ने आश्रण दिया। जो कि कुतुबुद्दीन का दामाद था। इसी प्रकार उसे रज़िया के काल में भी राजदरबार की सद्भावना प्राप्त रही। ‘तबकात-ए-नासिरी‘ में 1206 से लेकर इल्तुतमिश और उसके उत्तराधिकारी के शासनकाल की जानकारी मिलती है।

बलबन और उसके उत्तराधिकारी के बारे में जानकारी के लिए महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैः ‘तारीख-ए-फिरोजशाही‘। इसका लेखक हैः जियाउद्दीन बरनी। अमीर खुसरो की काव्यरचना ‘किरान-उस साइदेन‘ बलबन और उसके पुत्र कैकुबाद के सम्बन्धों पर  प्रकाश डालती है।

खलजी वंश 

इस वंश के शासकों में विषय में जानकारी का महत्वपूर्ण स्त्रोतों हैः जियाउद्दीन बरनी का ग्रन्थ ‘तारीख-ए-फिरोजशाही‘ पूरें खलजी वंश तथा तुगलक वंश के काफी बड़े हिस्से का इतिहास हमें इस ग्रन्थ में मिलता है।

बरनी मूल्यतः बुलंदशहर का रहने वाला था। अपने समय का वह अच्छा विद्वान और लेखक माना जाता था। यह अमीरखुसरों तथा अमीर हसन देहलवी जैसे विद्वानों की संगत में रह चुका था। प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया का वह शिष्य था। इतिहास में बरनी की गहरी रूचि थी। अलाउद्दीन खलजी के शासन प्रबन्ध एंव बाजार व्यवस्था पर बरनी हमें विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराता है। कभी-कभी सूत्र वाक्य में वह बड़ी-बड़ी बातें कह देता है। जैसे,उसने लिखा ‘‘आप आधे दाम में एक ऊँट खरीद सकते है, परन्तु दाम कहाँ से आए‘‘। अर्थात् अलाउद्दीन में जमाने में चीजें सस्ती थीं, परन्तु लोग इतने गरीब थे कि सस्तें दामों में भी खरीदने की क्रय शक्ति उकनी नहीं थी। उलेमा की संगत में रहने के कारण बरनी के लेखन में कहीं-कहीं धार्मिक पक्षपात देखने में मिलता था। इस दोष के बावजूद यह खलजी और तुगलक वंश का इतिहास जानने का सबसे मूल्यवान साधन है। उसे इस बात का लाभ मिला था कि उसकी पिता और चाचा राजदरबार की सेवा में थे।

खलजी वंश के बारें में कुछ जानकारी हमें अमीर खुसरों की कुछ कृतियां में भी मिलती है।

‘मिफता-उल-फतुह‘ से हमे जलालुद्दीन खलजी की विजयों का पता चलता है। ‘खजाइन-उल-फतुह‘ से अलाउद्दीन खलजी की कुछ महत्वपूर्ण विजयेां के बारें मे जानकारी मिलती हैं। ‘नूह-ए-सिपिह‘ में मुबारक शाह खलजी के बारें में काफी सूचनाएं मिलती है। अमीर खुसरों की कुछ अन्य रचनाएं उस काल की राजनीतिक एंव सामाजिक स्थितियों तथा लोगों के रहन-सहन और रीति-रिवाजों पर काफी प्रकाश डालती है। अमीर खुसरों मध्यकालीन भारत का महान कवि, लेखक,संगीतकार और सांस्कृतिक प्रतिनिधि था।

तुगलक वंश 

तुगलक वंश बरनी ‘तारीख-ए-फिरोजशाही‘ से हमें फिरोज तुगलक के प्रथम 6 वर्षो का इतिहास प्राप्त हेाता है। लेकिन उसमें तिथि क्रम अव्यवस्थित है तथा उसकी धार्मिक कट्टरता प्रवेश कर गई है। शम्से सिराज अफीक ने अपनी ‘तारीखे-फिरोजशाही‘ में फिरोज तथा मुहम्मद तुगलक के बारें में लिखा है। ‘फूतूहात-फिरोजशाही‘ स्वयं फिरोजशाह तुगलक के द्वारा रचित है। जिसमें फिरोज की उदारता की चर्चा की है। अमीर खुसरों ने ‘तुगलकनामा‘ में गयासुद्दीन तुगलक के उत्कर्ष के बारे में लिखा है। 

इब्नेबतुता का यात्रा विवरण तुगलक वंश के लिए जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। इस काल में भारत आने वाले यात्रियों मे इब्नेबतुता का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इब्नेबतुता अफ्रीका महाद्वीप में मोरक्कों का रहने वाला था। उसने अपने यात्रा वृतान्त ‘‘सफरनामा‘‘ में हमे बताया है कि अनेक देशों की यात्रा करते हुए अफगानिस्तान के बाद उसने 1333 ई. में सिन्ध में प्रवेश किया। जब 1334 में वह दिल्ली पहुँचा तब वहाँ सुल्तान मुहम्मद तुगलक का शासन था। दिल्ली में इब्नेबतुता को पूरा सम्मान दिया गया। उसे राज्य की ओर से जागीर भी मिली। मुहम्मद तुगलक ने न केवल उसे आश्रय दिया बल्कि उसे दिल्ली का काजी भी नियुक्त किया।

सैयद और लोदी वंश 

सैयद वंश (1414-1451) के शुरू के कुछ वर्षाे का इतिहास जानने के लिए याहिया बिन अहमद सरहिन्दी द्वारा लिखित ‘‘तारीखे मुबारक शाही‘‘ एक उपयोगी ग्रन्थ है। दिल्ली सन्लत की स्थापना से लेकर 1434 तक की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन हमे याहिया बिन अहमद ने दिया है। लोदी अफगान शासको के बारे मे जानकारी देने वाले समकालीन ग्रन्थों का अभाव है। बाबर के ‘बाबरनामा‘ से लेकर 16वीं सदी में लिखे गए कुछ ग्रन्थों से लोदी वंश के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। 

मुद्रा अभिलेख एंव स्मारक

किसी भी अन्य युग की तरह दिल्ली सल्तनक के इतिहास को जानने साधनों के रूप में इस काल की मुद्राएं अभिलेखों की महत्वपूर्ण भूमिका मिलती है। विभिन्न शासकों द्वारा जारी सिक्कों से उनके शासन व्यवस्था ,राजनीतिक तथा स्मारकों से बड़ी मदद मिलती है। इसी प्रकार विभिन्न ऐतिहासिक स्मारकों तथा उन पर मिले अभिलेखेां से उन स्मारको के निर्माताओं के व्यक्तित्व एंव रूचियों के साथ ही कभी-कभी उस युग की आर्थिक स्थिति तथा सामाजिक -सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के अनुमान भी होते हैं। 

निष्कर्ष

दिल्ली सल्तनत काल के इतिहास जानने के साधनों के बारें में जो संक्षिप्त अध्ययन हमनें किया ,उसमें कुछ खास बातें भी सामने आती है। एक तथ्य यह सामने आता है कि इस काल के समकालीन या निकट समकालीन इतिहास ग्रन्थ लेखकों  में गैर मुस्लिम लेखकों का नितांत अभाव है। मुस्लिम इतिहास ग्रन्थ लेखकों की अधिकता है। उन्हीं की लेखनी तथा दृष्टिकोण पर सारी सुचनांए आधिरित है। इन लेखकों केा आमतौर पर राजदरबार की शरण प्राप्त रही है। इसलिए शासकों की साधारण रूप से प्रंशसा की गई है। उनकी कमजोरियां या फिर उनकी असफलताओं का जिक्र कम ही हुआ। इसी प्रकार इन लेखकों का सारा ध्यान राजदरबार, सुल्तानों की गतिविधियों तथा युद्धों के विवरणों पर केन्द्रित रहा। आम लोगों की जिन्दगी के बारे मे यदा-कदा ही लिखा गया है। एक और उल्लेखनीय बिन्दू यह है कि इन इतिहास लेखकों या रचनाकारों में कुछ प्रमुख लेखक या तो उलेमा वर्ग से थे या उनसे उनके नजदिकी सम्बन्ध थे। ऐसे में उनकी लेखनी और दृष्टिकोण में धार्मिक दृष्टि से वर्गगत पक्षपात साफ समझ में आता है।

2. मुगल काल के इतिहास के स्त्रोत 

मुगल काल में बाबर से लेकर औरंगजेब और उसके बाद उत्तर मुगल के पतन बारे में जानने के लिए बहुत से स्त्रोत उपलब्ध है। इनमे दरबारी तथा गैर दरबारी फारसी लेखक, मुगल सम्राटो की आत्म कथाएं ,विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरण,राजपूत शासकों की वीर गाथांए तथा मराठा शासकों की बखरें हिन्दी साहित्य की ऐतिहासिक रचनांए तथा सिक्के ,अभिलेख और स्मारक आदि शामिल हैंै। इन स्त्रोतों का संक्षिप्त उल्लेख एंव विवरण सम्राटों के कालक्रमानुसार करना उचित होगा। 

बाबर 

भारत में मुगल वंश की स्थापना करना का श्रेय बाबर को ही जाता है। जिसने दिल्ली सल्तनत के शासक इब्राहित लोदी को पानीपत के प्रथम युद्ध में परास्त कर भारत में मुगल वंश की नींव रखी। इसकी जानकारी हमें बाबर की आत्माकथा से मिलती है। इस आत्मकथा को ‘तुजकें बाबरी‘ के नाम से जाना जाता है। बाबर की आत्मकथा, उसकी मातृभाषा तुर्की में लिखी गई है। बाबर नामा से बाबर के व्यक्तित्व ,विजयों ,भारत आने से पहले उसकी गतिविधियों तथा उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक रुचियों पर प्रकाश पड़ता है। गुणों के अलावा बाबर के दोषों पर भी इस ग्रन्थ से प्रकाश पड़ता है। बाबर नामा की लेखन शैली सरल और सुबोध है। अंग्रेजी और हिन्दी सहित कई भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है।

हुमाँयू

हुमाँयू के काल का इतिहास जानने का महत्वपूर्ण स्त्रोत उनकी बहन द्वारा लिखित ‘‘हुमांयू नामा‘‘ है। एक बहन जब अपने भाई की जिन्दगी के बारें में लिखेगी तो उसमें थोडा पक्षपात होना स्वाभाविक माना जा सकता है। फिर भी हूमांयू के जीवन से जुड़ी घटनाओं तथा उनकी तिथियों ,हुमांयू का अपने भाइयों से सम्बन्ध, भगोड़ेपन के दिनों में मध्य एशिया और अफगानिस्तान में उसके कष्ट और संघर्ष तथा मुगल हरम की आन्तरिक झाँकी एंव हमीदा बानू से हूमांयू की शादी आदि के विस्तृत और रोचक विवरण गुलबदन के ‘हुमांयू नामा‘ से मिलते है।

अकबर 

जो की मुगल शासक में सबसे प्रतापी शासक था। इस के बारे में जानकारी हमे समकालीन लेखकों में अबुल फज़ल का नाम सर्वोपरि है। वह एक विद्वान तथा फारसी का महान ज्ञाता और चिन्तक था। इतिहास लेखन में उसकी विशेष रुचि थी अबुल फज़ल द्वारा रचित दो ऐतिहासिक ग्रन्थों ‘‘आइने-अकबरी‘‘ तथा अकबर नामा के बगैर , अकबर कालीन इतिहास जानने की कल्पना ही नही कि जा सकती है। इसके अलावा अकबर के विषय में जानकारी हमे अब्दूल कादिर बदायूंनी का ग्रन्थ ‘‘मुन्तखब-उत-तवारीख‘‘ से भी मिलती है। यह ग्रन्थ अकबर की उदार और समन्वयकारी नीतियों की खिलाफत या विरोध करने वाले कट्टार तबके का प्रतिनिधित्व करता है।

जहाँगीर 

जहाँगीर के विषय में जानकारी हमें उसके द्वारा लिखित आत्मकथा ‘‘तुजूके जहाँगीरी‘‘ से मिलती है। जिसमें हमें उसके कालीन इतिहास जानने का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत है। जहांगीर के शासनकाल के 19वें वर्ष तक का इतिहास इस आत्मकथा से मिलता है। इसमें युद्धों ,शासन सम्बन्धी आदेशो , अजमेर ,मालवा ,गुजरात तथा कश्मीर आदि की यात्राओं का वर्णन विस्तार से मिलता है। अपने व्यक्तित्व की कई दुर्बलताओं को भी जहांगीर ने ईमानदारी स्वीकार किया है। 

शाहजहां 

शाहजंहा के शासन के प्रथम दस वर्षेा की जानकारी हमें ‘पादशाह नामा‘ से मिलती है। जिसके लेखक मुहम्मद अमीन कज़वीनी था  इसके बाद के इतिहासकारों ने इस ग्रन्थ का पूरा-पूरा उपयोग किया है। सरकारी इतिहास लेखन की परम्परा को आगे बढ़ातें  हुए अब्दूल हमीद लाहौरी ने ‘बादशाहनामा‘ की रचना की। इसमें शाहजहां के काल के पहले बीस साल का इतिहास है। राजनीतिक घटनाओं के अतिरिक्त विद्वानों ओर साहित्यकारों के बारें में भी बादशाहनामा  से महत्वपूर्ण विवरण प्राप्त होते है। कज़वीनी तथा लाहौरी के कार्य केा आगे बढा़ते हुए मुहम्मद वारिस ने तीसवें वर्ष तक का इतिहास ‘पादशाहनामा‘ शीर्षक से लिखा।

औरंगजेब 

सरकारी इतिहासकार काज़िम शीराजी द्वारा लिखित ‘आलमगीरनामा‘ में औरंगजेब़ के पहले दस वर्षाे के शासनकाल का इतिहास है। इसे बादशाह के आदेश पर लिखा गया था। सरकारी इतिहास लेखन कैसा हेाता है, यह ग्रन्थ उसका सबूत है। इसमें औरंगजेब की अतिप्रशंसा तथा शाहजहां की निन्दा मिलती है। मुहम्मद सकी मुस्तइद खां ‘मासिर-ए-आलमगीरी‘ भी इस काल के लिए बहुत उपयोगी इतिहास ग्रन्थ है। इसमें औरंगजेब के शासन के ग्यारहवें वर्ष में बीसवें वर्ष तक की घटनाओं तथा प्रशासनिक हलचल को लेखक ने अपने अनुभव के आधार पर लिखा है। आकिंल खां का ‘वाकयात-ए-आलमगीरी‘ तथा मीर मुहम्मद मासूम की ‘तारीख-ए-शाहसुजा‘ भी उपयोगी जानकारियां देते है।

ईश्वर नागर तथा भीम सेन सक्सेना वैसे तो सरकारी कर्मचारी थे, परन्तु दोनों ने अपने -अपने अनुभव पर आधारित अलग-अलग महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे।

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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