इल्तुतमिश कौन था? (iltutmish kon tha)
इल्तुतमिश का पूरा नाम शमसुद्दीन इल्तुतमिश था। वह इल्बारी तुर्क जाति का था। वह ऐबक का गुलाम व दामाद था, इसलिए उसे गुलाम का गुलाम के नाम से भी सम्बोधित किया जाता था। इल्तुतमिश अपनी योग्यता के बल पर दिल्ली का सुल्तान बन गया। 1210 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के सरदारों ने अरामशाह को ऐबक का पुत्र घोषित करके दिल्ली का सुल्तान बना दिया, किन्तु वह अयोग्य तथा कमजोर था। अतः दिल्ली के सरदारों ने कुतुबुद्दीन के दामाद तथा बदायूं के सूबेदार इल्तुतमिश को सुल्तान का पद सम्भालने के लिये आमंत्रित किया। इल्तुतमिश की सेना ने आरामशाह को बूरी तरह से पराजित कर दिया और अंत मे सन् 1211ई. को दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना। इसी कारण उसे गुलाम वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है। उसने अपनी योग्यता से 25 वर्षो तक शासन किया।
इल्तुतमिश के कार्य एंव उपलब्धियां (iltutmish ke karya)
तुर्की अमीरों का दमन
इल्तुतमिश की पहली सफलता उसके राज्यारोहण का विरोध करने वाले तुर्की अमीरों को दिल्ली निकट युमना नदी के मैदान मे पराजित करना था। अधिकांश विरोधी अमीरों का वध कर दिया गया।
यल्दूज की पराजय, गजली से अंतिम रूप से सम्बन्ध विच्छेद
गजनी के यल्दूज को दमन में इल्तुतमिश एक सफल सैनिक तथा कुलनीतिज्ञ के रूप के सामने आता हैं। 1215 में ख्वारिज्म के शाह से प्रताड़ित होकर यल्दूज पंजाब आ गया। उसने लाहौर पर अधिकार कर लिया तथा कुबाचा को वहां से रफुचक्कर कर दिया। उसने दिल्ली के सिहांसन पर भी अपना दावा किया। इल्तुतमिश ने पूरी तैयारी कर मौके का फायदा उठाया और उसे 1215-1216 ई. में तराईन के युद्ध में उसने यल्दूज को बूरी तरह से पराजित किया। बाद में बदायूं में ले जाकर उसका वध कर दिया गया। इल्तुतमिश के लिए यह तिसरी विजय थी। उसकी सत्ता को चुनौती देने वाला मुख्य शत्रु समाप्त हो गया। गज़नी से अतिंम रूप से संबंध विच्छेद हो गया तथा दिल्ली का स्वतंत्र अस्तित्व कायम हुआ।
संभावित मंगोल आक्रमण से सल्तनत की रक्षा
1221 से 1224 के बीच उत्तर पश्चिम सीमा पर अचानक ही एक बड़ा संकट खड़ा हो गया। महान मंगोल नेता चंगेज खां ख्वारिज्म के पराजित राजकुमार जलालुद्दीन मंगबरनी का पीछा करते हुए सिंधु घाटी तक आ पहुंचा। मंगबरनी के कुबाचा को काफी नुकसान पहुंचाया और पंजाब पर अधिकार कर लिया मंगबरनी ने इल्तुतमिश से शरण मांगी। इल्तुतमिश मंगोलो से उल्झकर सल्तनम को खतरे में नही डालना चाहता था। काफी सोच-विचार के बाद इल्तुतमिश ने मंगबरनी की कोई भी मदद करने से इंकार कर दिया था। इस प्रकार उसने दिल्ली पर मड़रा रहे खतरे से रक्षा करने मे कामयाब रहा।
बंगाल की पुनर्विजय
1211 ई. में बंगाल में अलीमर्दन खलजी की हत्या के पश्चात् हुसामउद्दीन एवज खलजी गयासुद्दीन के नाम से सुल्तान बन गया। उसने बिहार पर अधिकार कर लिया तथा आसपास के क्षेत्रों पर भी धाक जमा ली। मंगोल तथा मंगबरनी की समस्या मे व्यस्त होने से इल्तुतमिश बंगाल की ओर ध्यान नही दे पाया। 1225 और 1229 में बीच तीन आक्रमणों के बाद उसने बंगाल और बिहार पर विजय का पाता की लहराई तथा 1225 में स्वयं इल्तुतमिश बंगाल गया। एवज खलजी ने इल्तुतमिश के पीठ फेरते ही एवज ने मलिक जानी का मार भगाया और दिल्ली की अधीनता अस्वीकार कर दी। 1226 मे इल्तुतमिश के सबसे बड़े पुत्र नासिरूद्दीन महमूद पर अधिकार कर लिया। 1230 में पुनः इल्तुतमिश ने स्वंय बंगाल जाकर विद्रोह को कुचला; और बल्का खलजी को मार डाला। बंगाल और बिहार को दो अक्ताओं के बांट दिया गया।
राजस्थान, मालवा और दोआब की गतिविधियां
राजपुतों के विरूद्ध संघर्ष करते हुए इल्तुतमिश की पहली महत्वपूर्ण सफलता 1226 में रणथम्भोर पर अधिकार था। 1227 में उसने मन्दोर दुर्ग पर विजय का पाताका लहराया तथा 1228-29 में जलोर, अजमेर, नागोर तथा बयाना आदि ने भी उसके आगे घुटने टेक दिये। कठिन संघर्ष के बाद 1232 ई. में ग्वालियर पर भी इल्तुतमिश का अधिकार हो गया।
सल्तनत का वास्तविक संस्थापक
कुछ विद्वान-इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक मानते है। वास्तव में जब इल्तुतमिश ने शासन पाया तब गजनी का शासक यल्दूज ,मुल्तान का शासक कुबाचा और बंगाल के खिलजी विद्रोही थे। दूसरी ओर राजपूतों का संघर्ष के लिए लड़ रहे था। मंगोल आक्रमण की भी पूरी संभावना थी। स्वयं सल्तनत के अमीर षड़यंत्रकारी, शराबी और बिलासी थे जो अपने स्वार्थों के लिए कुछ भी करने और इल्तुतमिश की हत्या करने को तैयार थे। इस सबके कारण दिल्ली सल्तनत को बचाना ही बहुत कठिन कार्य था। परंतु इल्तुतमिश ने अपनी विजयों से इसकी रक्षा की और अपने शासन से इसे मजबुत बनाया।
इल्तुतमिश का शासन और चरित्र
इल्तुतमिश ने दिल्ली में तुर्की सल्तनत को दीर्घ आयु प्रदान की। इस सबके पीछे उसके शासन और गुणों की भूमिका थी।
1. कुशल राजनीतिज्ञ
इल्तुतमिश एक कुशल राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ था। इन गुणों के कारण विद्राही, राजपूतों के संघर्षे षड़यत्रों और पुराने अमीरों को समाप्त करने में सफलता पाई।
2. खलीफा से उपाधि लेना
इल्तुतमिश के इस्लामी चरित्र, राज्य विस्तार, हिन्दूओ पर अत्याचार, मंदिर मूर्तियों के विनाश आदि के कारण बगदाद के खलीफा ने ‘सुल्तान-ए-हिन्द‘ की उपाधि प्रदान कर उसके पद और शासन को वैध करार दिया।
3. शासन
इल्तुतमिश का शासन सूबेदारो की बुद्धि पर निर्भर करता था। क्योंकि उसका शासन पूर्णतः सैनिक शासन था। केन्द्र, प्रांत में शासन की कोई प्रणाली नहीं थी। न्याय, शासन, सेना आदि पूर्णतः से सुल्तान और सूबेदारों की इच्छा और उनकी धर्मान्धता पर निर्भर थी। अतः शासन में तुर्की मुस्लिमों के साथ उदारता तथा शिया मुसलमानों और हिन्दूओं के साथ निर्दयता का व्यवहार किया जाता था। इल्तुतमिश अन्य शासको की तुलना में अधिक न्यायप्रिय कहा जाता है। उसने महल के द्वारा पर पत्थर के शेरों के गले में रस्सी बंधवा रखी थी जिससे कोई भी मुसलमान फरियादी उसे खींचकर न्याय करने की मांग सीधे सुल्तान से कर सकता था।
4. चालीस गुलामों का दल
अपने वफादर व्यक्तियों को राज्य का भार सौंपने के लिए उसने 40 गुलामेां का विशेष दल बनाया। जिसे ‘तुर्क-ए-चहलगानी‘ कहा जाता था जिसने पुराने अमीरों की शक्ति को कम कर दिया। इस प्रकार वह सल्तनत को पुराने अमीरों के षड़यंत्रों से बचा सका। इल्तुतमिश इस नीति को खिलजियों और तुगलकों ने भी अपनाया।
5. साहित्य कला और संस्कृति
इल्तुतमिश का काल इनके विकास के लिए कोई महत्व का काल नही हैं। परन्तु फिर भी उसके दरबार में कुछ कलाकारों, लेखकों और अरबी भाषा के विद्वानों को सरंक्षण प्राप्त था।
निष्कर्ष
इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक कहा जा सकता है क्योकि कुतुबुद्दीन और उसके उत्तराधिकारियों में इसके जैसी योग्यता नहीं थी। इसकी विजय, शासन और चरित्र संबंधी उपलब्धियां भी कम नही हैं जिनसे उसने सल्तनत की कठिन समस्याओं का समाधान किया।
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