उत्पाद विकास का क्षेत्र (utpad vikas ka kshetra)
उत्पाद विकास का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। इनके क्षेत्र के अंतर्गत निम्न क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है--
1. उत्पाद-निर्णय
किसी उत्पाद का निर्माण करने से पूर्व निर्माता को यह निर्णय करना पड़ता है कि वह किस उत्पाद का निर्माण करना चाहता है, जिससे कि उसके अनुसार ही साधनों एवं तथ्यों को एकत्रित किया जा सके।
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2. उत्पाद का आकार डिजाइन
उत्पाद निर्णय के बाद उत्पाद के आकार, जैसे छोटा, बड़ा और मध्यम आदि के संबंध मे निर्णय लिया जाता है तथा आकार का निर्धारण हो जाने के बाद उसके डिजाइन का निर्धारण किया जाता है। डिजाइन के अंतर्गत उत्पाद का ढाँचा, शक्ल, रंग-रूप आदि को सम्मिलित किया जाता है।
3. उत्पाद का नाम
उत्पाद नियोजन एवं उत्पाद विकास के अंतर्गत उत्पाद के नाम को निर्धारित करना भी आता है। उत्पाद के नाम को निर्धारित करते समय यह ध्यान रखना चाहिये की नाम साधारण संक्षिप्त याद रहने एवं उत्पाद विशेषता एवं निर्माता के नाम का भली-भांती स्पष्टीकरण कर सके।
4. उत्पाद का मूल्य
उत्पाद का मूल्य निर्धारित करते समय उत्पाद की मांग व उसकी चलनशीलता प्रतियोगिता, उपभोक्ता की क्रय-शक्ति, वितरण वाहिका, सरकारी प्रतिबंध आदि को विशेष रूप से ध्यान मे रखना चाहिए, क्योंकि मूल्य निर्धारण मे किसी भी प्रकार की कोई भूल अथवा गलती निर्माता के समस्त प्रयासों को असफल कर सकती है।
5. उत्पाद का ब्राण्ड, पैकेजिंग एवं लेबिल
उत्पाद का मूल्य निर्धारण करने के बाद उस उत्पाद को बाजार मे अच्छी तरह पहिचाना जा सके तथा अन्य उत्पादों से भिन्नता प्रदान की जा सके, इसके लिये उत्पाद के ब्राण्ड, पैकेजिंग एवं लेबिल पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
6. उत्पाद के नये प्रयोग
उत्पाद के नये-नये प्रयोगों की खोज करना भी उत्पाद-नियोजन एवं उत्पाद विकास के क्षेत्र के अंतर्गत सम्मिलित किया जाता है। नये-नये प्रयोगों का अर्थ है कि उत्पाद किन-किन नये फर्मों मे प्रयोग की जा सकती है? इस कार्य के लिये अनुसंधान किया जाता है जो कि उपभोक्ता एवं उत्पाद दोनों से संबंधित होता है।
7. उत्पाद की गारंटी एवं सेवा
वर्तमान समय मे किसी भी उत्पाद की विक्रय मात्रा मे वृद्धि करने एवं उपयुक्त लाभ प्राप्त करने के दृष्टिकोण से यह अत्यंत जरूरी हो गया है कि निर्माता द्वारा उपभोक्ताओं को दिये गये आश्वासनों एवं शर्तों का पूर्ण रूप से पालन किया जाये तथा उपभोक्ताओं को पूर्ण रूप से सन्तुष्टि प्रदान करने के लिये विक्रयोपरान्त सेवाओं की उपयुक्त व्यवस्था भी की जाये।
उत्पाद विकास का महत्व (utpad vikas ka mahatva)
उत्पाद विकास किसी भी व्यावसायिक फर्म, राष्ट्र तथा सामाजिक दृष्टि से एक आवश्यक क्रिया है। जिसे हम निम्न बिन्दुओं द्वारा समझ सकते है--
1. कंपनी की ख्याति मे वृद्धि
कंपीन द्वारा उत्पाद विकास कार्यक्रम पर निरन्तर ध्यान दिये जाने के कारण उसके उत्पाद बाजार मे दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होते जाते है। उत्पादों के लोकप्रिय होने से उनके निर्माता अथवि कंपनी की ख्याति मे वृद्धि होती है। कंपनी का नाम उत्पाद के साथ जुड़ जाता है, जैसे-- टाटा टी, बाटा शूज, फिलिप्स बल्य, गोदरेज फर्नीचर, डालडा वनस्पति घी इत्यादि।
2. औद्योगिक स्थिरता को प्रोत्साहन
व्यावसायिक संस्थाओ के उत्पाद विकास कार्यक्रम उत्पाद रेखाओं का विस्तार एवं संकुचन करते है जिससे अर्थव्यवस्था मे मांग एवं पूर्ति का संतुलन बना रहता है, रोजगार के अवसरों मे कमी नही होती जिसके फलस्वरूप आर्थिक प्रगति मे स्थायित्व आता है। इसके अतिरिक्त जो कंपनी विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करती है उसको वस्तु अप्रचलन का भय नही रहता है। इससे कंपनी के अस्तित्व को अतिरिक्त सुरक्षा प्राप्त होती है। इसके साथ ही व्यावसायिक संस्थाओं के उत्पाद विविधीकरण एवं उत्पाद सुधार कार्यक्रम औद्योगिक प्रगति को गति प्रदान करते है।
3. संस्था के लाभों मे वृद्धि
उत्पाद विकास कार्यक्रम संस्था के लाभों मे वृद्धि करते है क्योंकि निरंतर उत्पाद विकास की ओर समुचित ध्यान देने से तकनीकी आविष्कारों का लाभ उठाया जा सकता है, व्यावसायिक प्रतियोगिता का सफलतापूर्वक सामना किया जा सकता है, बाजार मे एवं उपभोक्ताओं की रूचियों मे आनेवाले परिवर्तनों के अनुरूप वस्तुओं को बनाया जा सकता है।
4. उपभोक्ताओं के संतोष मे वृद्धि
उत्पाद विकास के जरिए व्यावसायिक संस्था उपभोक्ताओं की अच्छी सेवा करने मे समर्थ होती है। वस्तु विकास पर निरन्तर ध्यान देने वाली व्यावसायिक संस्थाओं की बाजार मे ख्याति बढ़ जाती है एवं इनके द्वारा बनायी जा रही वस्तुओं का बाजार विस्तृत हो जाता है तथा उपभोक्ताओं को श्रेष्ठ स्तर की वस्तुएं प्राप्त होती है। उत्पाद विकास के अंतर्गत फर्म की तकनीकी एवं विपणन क्षमताओं को बाजार मांग के साथ इस प्रकार संयोजित किया जाता है जिससे फर्म की उत्पाद रेखाएं विविध ग्राहक आवश्यकताओं की पूर्ति अधिकतम संतुष्टि उपलब्ध कराते हुए कर सके। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि उत्पाद विकास उपभोक्ताओं के संतोष मे वृद्धि करता है, उन्हे स्थायी बनाता है और नये बाजारों का विकास करता है।
5. विक्रय मात्रा मे वृद्धि
प्रारम्भिक विक्रय सरल है परन्तु दीर्घ अवधि तक लाभ कमाने के लिए वस्तुओं का पुनर्विक्रय आवश्यक है। पुनर्विक्रय तब ही संभव है जब वस्तु की उपयोगिता एवं गुणों मे निरंतर वृद्धि होती रहे। उत्पाद विकास कार्यक्रमों द्वारा उत्पाद की किस्म मे सुधार किया जाता है। इस प्रकार उत्पाद विकास विक्रय की मात्रा मे वृद्धि करता है।
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