2/07/2021

प्रबंधकीय लेखांकन का क्षेत्र, कार्य या उद्देश्य

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प्रबंधकीय लेखांकन का क्षेत्र (prabandhkiya lekhankan ka kshetra)

prabandhkiya lekhankan kshera karya uddeshya;वर्तमान समय मे प्रबन्धकीय लेखांकन या लेखाविधि का क्षेत्र काफी व्यापक हो गया है। इसके अंतर्गत व्यावसायिक क्रियाओं के सभी पहलुओं की भूत व वर्तमान की गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है। यह प्रबन्धकों को अनेक तरह की सूचनाएं उपलब्ध कराती है, ताकि प्रबन्धकीय समस्याओं का सुलझाया जा सके। साथ ही भविष्य के संबंध मे पूर्वानुमान किया जा सके। प्रबन्धकीय लेखांकन मे लेखांकन सूचनाओं को इस प्रकार संकलित व व्यवस्थित किया जाता है कि प्रबंधकों को नीतियां निर्धारित करने या महत्वपूर्ण निर्णय लेने तथा दिन-प्रतिदिन के कार्यों को अधिकतम कुशलतापूर्वक संचालित करने मे आवश्यक सहायता एवं मार्गदर्शन प्राप्त हो सके। 

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सामान्यतः प्रबंधकीय लेखांकन मे प्रयोग की जाने वाली तकनीकों एवं विधियों को प्रबन्धकीय लेखांकन के क्षेत्र मे सम्मिलित किया जाता है। प्रबन्धकीय लेखांकन के क्षेत्र के अंतर्गत निम्म विषयों का समावेश किया जाता है--

1. दैनिक लेखांकन 

इसे वित्तीय लेखांकन भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत दिन-प्रतिदिन के किये जाने वाले लेखांकन व्यवहार आते है जिनकी सहायता से अंतिम खाते तैयार किये जाते है। इन लेखों से प्रबंधक तब तक व्यावहारिक लाभ नही उठा सकते, जब तक कि इन लेखों द्वारा मासिक, त्रैमासिक या अर्द्धवार्षिक प्रतिवेदन तैयार न किये जायें जिससे व्यय, लाभ आदि पर नियंत्रण रखा जा सके।

2. उत्तरदायित्व लेखांकन 

उत्तरदायित्व लेखांकन मे लागत सूचनाओं को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है ताकि सम्बंधित कर्मचारियों को उनके कार्य हेतु उत्तरदायी ठहराया जा सके, ताकि उन सूचनाओं तथा प्रतिवेदनों की सहायता से प्रबन्धक उत्पादन के सभी स्तरों पर नियंत्रण रखने मे सफल हो सके।

3. आंतरिक अंकेक्षण 

आंतरिक अंकेक्षण के द्वारा विभिन्न विभागों तथा अधिकारियों के क्रियाकलापों की आंतरिक जांच की जाती है जो अंतिम अंकेक्षण के पूर्व ही कर ली जाती है ताकि व्यवसाय से संबंधित लक्ष्य एवं अप्राप्त लक्ष्य की जानकारी प्राप्त हो सके और अप्राप्त लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये आवश्यक कदम उठाये जा सकें।

4. विकास लेखांकन 

विकास लेखांकन के अंतर्गत व्ययों को नियंत्रित किया जाता है तथा उनभे यथासंभव कमी करने का प्रयत्न किया जाता है ताकि लाभ अधिकतम हो सके। 

5. निर्णय लेखांकन 

निर्णय लेखांकन, लेखांकन की कोई अगल प्रमाली नही है बव

बल्कि एक प्रक्रिया है जिसमे किसी संस्था के प्रबन्धक लाभों को अधिकतम व हानियों को न्यूनतम करने के लिए लेखांकन सूचना का प्रयोग करते है।

6. लागत लेखाविधि 

लागत लेखाविधि से विभिन्न उत्पादों की लागत ज्ञात की जाती है। इसमे विभिन्न उपकार्यों, विधियों की लागत ज्ञात करने के लिए वित्तीय आँकड़ों का प्रयोग किया जाता है।

7. नियंत्रण लेखांकन 

नियंत्रण लेखांकन से व्यावसायिक गतिविधियों पर नियंत्रण रखने मे काफी सहायता मिलती है।

8. पूनर्मूल्यांकन लेखांकन 

इस लेखांकन के अंतर्गत स्थायी संपत्तियों का लेखा प्रतिस्थापन मूल्य पर किया जाता है, लागत मूल्य पर नही। इस लेखांकन विधि से प्रबन्ध को निर्णय लेने मे काफी मदद मिलती है।

9. कर लेखाविधि 

वर्तमान जटिल कर प्रणाली मे कर नियोजन प्रबन्धकीय लेखांकन का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है। कर दायित्व की गणना करने के लिए आय विवरण-पत्र तैयार किये जाते है।

10. समंकों का अनुविन्यास

प्रबन्धकीय लेखांकन का मुख्य उद्देश्य वित्तीय सूचनाओं को प्रबंध के समक्ष इस प्रकार प्रस्तुत करना है ताकि उन्हें आसानी से समझा जा सके। प्रबन्धकीय लेखापाल विभिन्न वित्तीय विवरणों का अनुविन्यास करता है जिससे संस्था की उपार्जन क्षमता की जानकारी होती है। समंकों का अनुविन्यास एक महत्वपूर्ण कार्य है। यदि अनुविन्यास का कार्य सही नही हो सका तो लेखापाल द्वारा निकाले गये निष्कर्ष ही गलत हो जायेंगे।

प्रबंधकीय लेखांकन के कार्य या उद्देश्य (prabandhkiya lekhankan ke uddeshya)

prabandhkiya lekhankan karya uddeshya; प्रबन्धकीय लेखांकन, प्रबंध के कार्यों को कुशलतापूर्वक संचालित करने मे सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से ही अस्तित्व मे आया था। इसके अंतर्गत वित्तीय तथा लागत लेखांकन से प्राप्त विभिन्न सूचनाओं को प्रबंध की आवश्यकता के अनुरूप विश्लेषित एवं निर्वाचित करके इस तरह प्रस्तुत करना होता है, ताकि प्रबंध उसे आसानी से समझ सके तथा उनके आधार पर नीति-निर्धारण, नियोजन, निर्णयन, नियंत्रण व अभिप्रेरणा का कार्य कुशलतापूर्वक कर सके। प्रबन्ध लेखांकन के प्रमुख कार्य या उद्देश्य इस प्रकार से है--

1. निर्णय लेने मे सहायता करना 

निर्णय से तात्पर्य है विभिन्न विकल्पों मे विकल्प का चुनाव करना। एक व्यावसायिक संस्थान मे प्रबन्धकों को अनेक प्रकार के निर्यण लेने पड़ते है। यह निर्णय क्रय, विक्रय, वित्त, उत्पादन आदि से संबंधित होते है। प्रबन्धकीय लेखांकन की युक्तियों द्वारा विभिन्न प्रबंधकीय निर्णयों के विकल्प तैयार किये जाते है तथा उनमे सर्वोत्तम लाभप्रद विकल्प का चुनाव किया जाता है।

2. संगठन मे सहायता करना 

प्रत्येक प्रबंधक अपनी संस्था को सर्वोत्तम ढंग से संगठित करने का प्रयत्न करता है। योजनाओं के क्रिर्यान्वयन के लिए व्यक्तियों के मध्य दायित्वों का बँटवारा तथा अधिकार-रेखांकन ये दोनो कार्य संगठन के अंतर्गत सम्मिलित किए जाते है। प्रबंध लेखांकन संगठन के इन दोनों कार्यों मे प्रबंध की सहायता करता है। किसी व्यावसायिक संस्था के उपलब्ध विभिन्न साधनों के सर्वोत्तम प्रयोग के लिए कार्य-विधि तैयार करना प्रबंधकीय लेखाविधि का महत्वपूर्ण कार्य है। इसके लिए प्रबंध लेखापाल विभिन्न कर्मचारियों को संगठित करता है एवं उनका दायित्व निर्धारण तथा अधिकार रेखांकन करता है। 

प्रबंध लेखांकन मे कार्य-प्रणाली तथा विधियों की निरन्तर जाँच होने से संस्था के कर्मचारियों निरन्तर सजग रहते है जिससे संगठन प्रभावशाली रहता है। इस तरह प्रबंध लेखांकन सुव्यवस्थित एवं सुदृढ़ संगठन की स्थापना मे सहायता करता है।

3. समन्वय मे सहायता 

प्रत्येक व्यवसाय मे विभिन्न प्रक्रियायें प्रयुक्त होती है जिनके बीच सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक समायोजन किया जाता है। प्रबन्धकीय लेखांकन से इन प्रक्रियाओं मे समन्वय स्थापित करना अत्यन्त सरल हो गया है। बजटिंग के माध्यम से प्रत्येक प्रक्रिया के लिए पृथक-पृथक लक्ष्य निर्धारित कर लिए जाते है तथा इसके बाद उन्ही लक्ष्यों को ध्यान मे रखते हुए वास्तविक उत्पादन किए जाते है। उदाहरणार्थ-- क्रय बजट उत्पादन बजट के आधार पर तैयार किया जाता है। संस्था मे उत्पादन की मात्रा के अनुसार ही क्रय की मात्रा निर्धारित की जाती है। यदि ये बजट तैयार न किए जांए तब दोनों की मात्राएं पृथक-पृथक होगी, जिससे अनावश्यक व्ययों मे वृद्धि होगी और दोनों प्रक्रियाओं मे समन्वय स्थापित नही हो सकेगा।

4. निर्णय लेने मे सहायता

व्यवसाय मे कदम-कदम पर निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ती है। निर्णय प्रक्रिया को प्रभावी बनाने मे प्रबन्धकीय लेखांकन का महत्वपूर्ण योगदान है। इसमे विभिन्न विकल्पों का चुनाव करके पूंजीगत बजटिंग की सहायता से सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव किया जाता है। 

5. नियंत्रण मे सहायता प्रदान करना 

व्यवसाय से संबंधित गतिविधियों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये प्रबंध लेखांकन एक उपयोगी पद्धति है। प्रबंध लेखांकन के अंतर्गत ऐसी व्यवस्था की जाती है, जिससे वास्तविकता की तुलना पूर्व निर्धारित परिणामों के करके विचरणों को ज्ञात किया जाता है। प्रबंध लेखांकन प्रबंधकों को प्रत्येक व्यक्ति एवं विभाग पर आवश्यक नियंत्रण स्थापित करने मे सहायक होता है। विभिन्न तकनीकों जैसे-- बजटरी नियंत्रण विधि एवं प्रभाव लागत विधि की सहायता से नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। 

6. सम्प्रेषण मे सहायता करना 

प्रबंध लेखांकन का महत्वपूर्ण उद्देश्य उचित समय पर उचित सूचना उचित व्यक्ति तक पहुंचाना होता है। यदि सूचना संप्रेषण का उचित प्रकार से नही हो तो व्यवसाय की समस्त क्रियायें जैसे-- संगठन, समन्वय, नियंत्रण, नियोजन, नीति निर्धारण आदि समय पर सम्पन्न नही हो सकती। प्रबंध लेखांकन के माध्यम से विभिन्न लेखांकन सूचनाओं को उचित रूप से संचालित किया जाता है, जिससे इसका उपयोग प्रबंधक समय पर कर सकें।

7. नियंत्रण मे सहायता करना 

प्रबंधकीय लेखांकन का उद्देश्य नियंत्रण मे सहायता करना भी होता है। इसमे विभिन्न नियंत्रण युक्तियों द्वारा वास्तविक परिणामों की तुलना पूर्व निर्धारित आँकड़ों से की जाती है। अंतर आने पर कारणों पर विचार किया जाता है। इसके बाद सुधारात्मक कदम उठाये जाते है। प्रबन्धकीय लेखा-विधि क्रियाओं एवं लागत के नियंत्रण पर विशेष जोर देती है। 

8. वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना 

आजकल अनेक व्यावसायिक प्रतिवेदन एवं विवरण निश्चित समय पर सरकार को भेजने पड़ते है। प्रबन्धकीय लेखांकन मे लक्ष्यों, प्रतिवेदनों आदि के प्रारूप इस प्रकार तैयार किये जाते है, ताकि किसी भी समय वैधानिक आवश्यकता की पूर्ति की जा सके।

9. वित्तीय विश्लेषण 

प्रबन्धकीय समस्याओं से संबंधित तथ्यों का विश्लेषण कर उन्हें स्पष्ट एवं सरलतम रूप मे प्रबंध के समक्ष प्रस्तुत करना प्रबंध लेखांकन का कार्य है। जब तक तथ्यों का विश्लेषण कर समानता एवं असमानता तथा हितकर एवं अहितकर मे भेद न किया जाए तथा सम्भावित परिणामों पर प्रकाश न डाला जाए, तब तक इन तथ्यों के आधार पर प्रबंध कोई प्रभावी कदम नही उठा सकता। तथ्यों का विश्लेषण एक तकनीकी कार्य है, जिसके लिए लेखाकर्म का व्यावहारिक ज्ञान आवश्यक है। प्रबन्धकों मे सामान्यतया इस ज्ञान का अभाव पाया जाता है। अतः इस कमी की पूर्ति प्रबंध लेखाकर करता है। प्रबंध लेखाकार विभिन्न प्रस्तावित परियोजनाओं, विकल्पों तथा विधियों का वित्तीय शब्दों मे विश्लेषण करता है तथा उनकी सही व्याख्या एवं उनसे संबंधित निर्णयन मे प्रबंध की सहायता करता है।

10. अभिप्रेरणा मे सहायता प्रदान करना 

संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु यह आवश्यक है कि संस्था मे कार्यरत् प्रत्येक व्यक्ति अपनी अधिकतम क्षमता का प्रयोग संस्था के हित मे करें। प्रबंध इस कार्य हेतु अभिकरण प्रदान करता है। इस हेतु प्रबन्धकीय लेखांकन सतत् रूप से प्रबंध को आवश्यक सूचनाएं उपलब्ध कराता है, जिससे प्रबंध को समस्त कर्मचारियों की कार्य पद्धति की जानकारी प्राप्त होती रहती है। यदि कार्य की प्रगति संतोषजनक नही होती है, तो प्रबंध द्वारा कर्मचारियों को प्रोत्साहित किया जाता है। साथ ही अच्छा कार्य करने वाले कर्मचारियों को पुरस्कृत कर अभिप्रेरित किया जाता है।

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