कृषक तनाव/असंतोष क्या है? (krishak tanav ka arth)
भूमि संबंधी तनाव का अर्थ भूमि से जुड़े हुए विभिन्न वर्गों के सम्बन्धों मे अथवा कृषकों की समस्याओं के परिणामस्वरूप विकसित तनाव है।दूसरे शब्दों मे भूमि या कृषि से जुड़ी समस्याओं से सम्बंधित उत्पन्न तनाव को ही कृषक तनाव कहा जाता है।
आर. बी. पाण्डेय के अनुसार " कोई भी आन्दोलन कृषक आन्दोलन हो सकता है बर्शेंत उसका मूल उद्देश्य कृषकों के अधिकार की लड़ाई हो, चाहे वह कृषकों द्वारा गठित हो अथवा अन्य समूहों द्वारा।
डाॅ. राधाकमल मुखर्जी के अनुसार " कृषि अर्थव्यवस्था मे सामूहिक कार्यों का दुरूपयोग, लगान वसूल करने वालों की संख्या मे वृद्धि, भूमि का बिना रोक-टोक गिरवी रखा जाना, भूमि का हस्तांतरण तथा कुटीर उद्योगों का पतन इन सब कारणों से भूमिहीन श्रमिकों की संख्या मे निरंतर वृद्धि हो रही है।
कृषक असंतोष के कारण (krishak asantosh ke karan)
भारत मे कृषक असंतोष/कृषक आंदोलन या कृषक तनाव के निम्न कारण है--
1. ग्रामीण क्षेत्रों मे आय के असमान वितरण
ग्रामीण स्त्रोतों के असमान वितरण का सीधा संबंध आय की असमानता और जीवन की भौतिक दवाओं से है। जिन लोगों के पास भूमि नही है और जो दूसरों की भूमि को जोतते है या जो भूमिहीन श्रमिकों के रूप में कार्य करते है। कृषि श्रमिकों के लिये अपनी कार्यक्षमता या कुशलता बढ़ाने के लिये कोई प्रेरणा नही पाई जाती है। अतः स्त्रोतों के असमान वितरण के कारण मालिक या भू-स्वामी तथा किसान और भूमिहीन श्रमिक की आय और जीवन की भौतिक दशाओं या रहन-सहन के स्तर में बहुत अधिक अंतर पाया जाता है। यह परिस्थिति कृषक असन्तोष के लिये उत्तरदायी है।
2. बेकारी या अर्द्ध-बेकारी
ग्रामीण क्षेत्रों मे कृषि असन्तोष का अन्य कारण काम करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिये काम का नही पाया जाना या बेकारी एवं अर्द्ध-बेकारी है। यहां कृषि श्रमिकों को कठिनता से पूरे वर्ष काम मिल पाता है। अतः वर्ष मे कई दिनों तक इन्हें बेकार रहना पड़ता है। इसलिए ग्रामों मे जनसंख्या के एक बहुत बड़े भाग के लिये कार्य की सुविधाएं या नौकरी के अवसर प्राप्त करने की प्रमुख समस्या है।
3. कृषकों में जागरूकता
कृषि क्षेत्र मे फैले हुये असंतोष का एक अन्य प्रमुख कारण निम्न, दलित या शोषित वर्ग के लोगों मे अपने जीवन की भौतिक दशाओं और सामाजिक क्षेत्र मे फैली निर्योग्यताओं के प्रति जागरूकता है। इनमें मे बहुत अधिक लोग हरिजन जातियों के सदस्य है। ग्रामीण क्षेत्रों मे जो लोग आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से निम्नतम स्थिति मे है, उनमें असन्तोष बढ़ा है।
4. असुसंगत सामाजिक व्यवस्था
प्रो. आन्द्रे बिताई ने कृषक असंतोष के लिये भारतीय ग्रामों मे पाई जाने वाली असुसंगत सामाजिक व्यवस्था को उत्तरदायी माना है। प्रो. आंद्रे बिताई ने दो प्रकार की सामाजिक व्यवस्थाओं का उल्लेख किया है। जिनमें से एक को सुसंगत सामाजिक व्यवस्था और दूसरी को असुसंगत सामाजिक व्यवस्था के नाम से पुकारा गया है।
1. सुसंगत सामाजिक व्यवस्था वह है जिसमें प्रतिमानात्मक या आदर्शात्मक व्यवस्था के बीच सामंजस्य पाया जाता है। इनमें असमानतायें न केवल वास्तव मे पाई जाती है बल्कि उन्हें उचित माना गया है।
2. असुसंगत सामाजिक व्यवस्था वह है जिसमें आदर्शात्मक व्यवस्था असामंजस्य की स्थिति मे होती है। इनमें वास्तव मे असमानतायें पाई जाती है लेकिन उन्हें उचित नही माना जाता है। इस तरह असमानता असंतोष और संघर्ष के पीछे प्रमुख शक्ति है।
5. राजनीतिक कारक
लोगों के दृष्टिकोण को बदलने मे शिक्षा के व्यापक प्रसार, विभिन्न चुनावों तथा आन्दोलनात्मक राजनीति ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हालांकि देश मे भूमि-सुधार के प्रयत्न बहुत हुये लेकिन इनमें संबंधित अधिनियमों का उल्लंघन भी अधिक हुआ है। लेकिन आज वर्तमान मे भूमि हड़पो आंदोलन की ओर लोगों का झुकाव बढ़ गया है। इसने लोगों की अपेक्षाओं को और बढ़ा दिया है जिसका पूर्ण होना भविष्य में संभव नहीं है।
6. हरित क्रांति
हरित क्रांति के द्वारा कृषि में उत्पादन के परम्परागत साधनों एवं यंत्रों के स्थान पर नये साधनों जैसे-- ट्रेक्टर, थ्रीरेसर, हारवेस्टर इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। नई खादों एवं बीजों तथा कीटनाशक औषधियों का उपयोग किया जाता है। इससे उत्पादन में वृद्धि होती है। इससे गाँवों में बड़े भू-स्वामियों एवं किसानों को लाभ हुआ है, जबकि छोटे किसानों एवं भूमिहर मजदूरों को इससे लाभ नही मिला है।
इन कारणों के अलावा कुछ अन्य कारण भी कृषक असंतोष के लिये उत्तरदायी है, जो निम्नलिखित है--
1. ग्रामों मे व्यवसायों का अभाव होना।
2. श्रमिकों एवं कृषकों में संगठन का अभाव होना।
3. गाँवों मे फैली गरीबी एवं आय का बहुत कम होना तथा निम्न जीवन-स्तर।
4. श्रमिकों की कार्य दशाओं का असुविधाजनक होना।
5. ऋणग्रस्तता का पाया जाना इत्यादि।
ए.आर. देसाई के अनुसार " किसान आन्दोलन के प्रमुख कारण इस प्रकार है--
1. किसानों मे राजनीतिक चेतना का उदय,2. ॠणग्रस्तता,
3. सूदखोरी,
4. जमींदारी के खिलाफ संघर्ष,
5. भूख और गरीबी जैसी आदि समस्याएं कृषक आन्दोलन की पृष्ठभूमि मे रही है।
कृषक असंतोष के उक्त कारणों के आधार पर हम यह कह सकते है कि एक कृषक असंतोष किसानों के द्वारा अपने अधिकारों की मांग, अत्याचार और शोषण के खिलाफ संघर्ष एवं सत्तारूढ़ शक्तियों द्वारा अपनाया गया अत्याचारी रवैया कृषक असंतोष को आन्दोलन मे बदलने का आधार रहे है।
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