9/04/2019

सहकारिता का अर्थ, विशेषताएं और महत्व (भूमिका)

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नमस्कार दोस्तो स्वागत है आप सभी का https://www.kailasheducation.com में,  भारत में सहकारिता आन्दोलन की शुरूआत बीसवीं सदी के प्रारंभिक वर्षो में हुई थी। उस समय देश में अकाल पड़ा था। जिसके परिणामस्वरूप किसान गरीब ॠण के दुष्चक्र में फँस थे। भारत जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े हुए देश में सहकारिता का महत्व अत्यधिक है। आज के इस लेख में हम सहकारिता पर निबंध की तरह सहकारिता का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और महत्व के बारें में विस्तार से जानेंगे।

सहकारिता का अर्थ (sahkarita ka arth)

सहकारिता से अभिप्राय सह+कार्य अर्थात मिलकर कार्य करने से है। शाब्दिक दृष्टि से सहकारिता का अर्थ मिलजुलकर काम करना है। सहकारिता के अन्तर्गत दो या दो से अधिक साथ मिलकर काम करने वाले व्यक्ति आते है। कोई भी मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति अकेले नहीं कर सकता। उसे अन्य लोगों के सहयोग की आवश्यकता जरूर होती है एक-दूसरे को सहयोग करने से ही सहकारिता का जन्म होता है।
सहकारिता का आशय निर्बल, अशक्त और निर्धन लोगों का परस्पर सहयोग है ताकि वे उन लाभों को प्राप्त कर सकें जो शक्तिशाली एवं धनी लोगों को उपलब्ध है। सहकारी समिति एक ऐसी स्वैच्छिक संस्था होती है जिसमें कोई भी सम्मिलित हो सकता है। समिति के सभी सदस्यों के समान अधिकार और समान उत्तरदायित्व होते है। 

सहकारिता के संस्थागत आधार को जानने के लिए सहकारिता की परिभाषा को जान लेना जरूर है।

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार; " एक सहकारी समिति समान आर्थिक कठिनाइयों का सामाना करने वाले ऐसे व्यक्तियों का संगठन है जो समान अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों के आधार पर स्वेच्छापूर्वक मिलकर उन कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास करते है।"

एम. प्लंकेट के शब्दों मे; "सहकारिता संगठन द्वारा प्रभावशाली बनाई गई आत्म सहायता है।"
सहकारी समिति व्यक्तियों की ऐसी स्वायत्त संस्था है जो संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक आधार पर नियंत्रित उद्यम के जरिए अपनी सामाजिक, आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वेच्छा से एकजुट होते है।

जे.पी. सिंह " सहकारिता एक ऐसी स्वैच्छिक व्यवस्था है जिसमे संपत्ति और पूँजी पर किसी व्यक्ति का अधिकार नही बल्कि सभी चीजों पर सभी का समान अधिकार होता है।

प्रो. एम. टी. हेरिक के शब्दों मे " सहकारिता स्वेच्छा से संगठित हुए उन व्यक्तियों का कार्य है जो अपनी सम्मिलित शक्ति व प्रसाधनों का उपयोग अपने परस्पर प्रबन्ध के अन्तर्गत सामान्य लाभ या हानि के लिए करते है।

एच. कलबर्ट के अनुसार " सहकारिता संगठन एक ऐसा प्रारूप है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति अपने आर्थिक हितों को प्रगति के लिए समानता के आदर पर ऐच्छिक रूप से परस्पर संयुक्त होते है।"

भारत में सहकारी प्रयासों की औपचारिक शुरूआत सन् 1904 में ही हो गई थी। राष्ट्रीय सहकारिता संघ (NCUI) की स्थापना सन् 1929 में सहकारी आन्दोलन के शीर्ष संस्थान के रूप मे की गई थी।

सहकारिता की विशेषताएं (sahkarita ki visheshta)

भारत जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े हुए देश में सहकारिता एवं सहकारी समितियाँ अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है क्योंकि छोटी-मोटी आवश्यकताओं की पूर्ति सहकारी समितियों से जितनी सरलतापूर्वक होती है उतनी सरकारी मशीनरी के द्वारा नहीं होती है।
सहकारिता की विशेषताएं निम्न प्रकार है--- 
 1. सहकारिता लाभ के स्थान पर सेवा को अधिक महत्व देता है।
2. सहकारिता के संगठन का आधार प्रतिस्पर्द्धा नही बल्कि पारस्परिक सहयोग है। सहकारी समितियों की पूंजी सामूहिक होती है।
3. सहकारिता एक सबके लिए और सब एक लिए के सिध्दांत पर लागू है।
4. प्रत्येक सहकारी संगठन का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय चलाना होता है। यह व्यवसाय किसी भी रूप में हो सकता है।
5. सहकारिता के संगठन की सदस्यता ऐच्छिक होती है। इस संगठन का सदस्य व्यक्ति अपनी इच्छा से बनता है और अपनी इच्छा से उसे छोड़ सकता है।

6. सहकारिता के सदस्य समानता व पारस्परिक सहयोग के आधार पर कार्य करते है।
7. सहकारिता न्याय और समानता के सिध्दांतों पर आधारित है।
8. सहकारिता एक स्वचालित सामाजिक-आर्थिक आन्दोलन है।
9. सहकारी संस्थाएं अपने सदस्यों को शोषण से बचाने तथा उनके अधिकतम कल्याण के लिए बनाई जाती है।
10. सहकारिता नैतिक एकता के बंधन को सुदृढ़ बनाती है।
11. सहकारिता उत्पादन और वितरण में प्रतियोगिता, शोषण और बिचौलियों को समाप्त करने का एक साधन है।
12. सहकारी आन्दोलन कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों को संयुक्त रूप से कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करता है।
13. सहकारी संगठन प्रजातांत्रिक पद्धति पर आधारित होता है। इसमे संगठन के सदस्यों द्वारा निर्मित प्रबंध समिति होती है। जो प्रबंध का कार्य करती है। इसमे एक व्यक्ति एक मत का सिद्धांत लागू होता है।

सहकारिता का महत्व (भूमिका)

सहकारी आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य कृषकों, ग्रामीण कारीगरों, भूमिहीन मजदूरों एवं समुदाय के कमजोर तथा पिछड़े वर्गों के कम आय वाले और बेरोजगार लोगों को रोजगार, साख तथा उपयुक्त तकनीकी प्रदान कर अच्छा उत्पादक बनाना है। सहकारिता के लाभ को स्पष्ट करने हेतु अब हम सहकारिता के महत्व को जानेंगे।
सहकारिता का महत्व इस प्रकार है--
1. आर्थिक विकास में सहायक 
सामूहिक रूप में किए उत्पादन वृध्दि की संभावनाएं अधिक होती है। सहकारी संस्थाएं कृषकों को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराती है। सहकारिता के कारण कृषि लागत में कमी आई है तथा बेरोजगारी पर अंकुश भी लगा है।
2. धन का सदुपयोग 
सहकारिता समितियां कृषकों को कृषि कार्यों हेतु ही ॠण देती है। किसान साहूकारों और महाजनों से विवाह उत्सव और मृत्यु भोज आदि कार्यों के लिए अधिक ब्याज दर पर ऋण लेते थे लेकिन सहकारी सहमितियां किसान को कृषि कार्यों हेतु ही ऋण देती है इस तरह धन का सदुपयोग होता है।
3. सामाजिक विकास में सहायक
सहकारिता से लोगों में सहयोग की भावना संचार हुआ है। वे मताधिकार तथा पदों एवं अधिकारों-कर्तव्यों के महत्व को समझने लगे है। सहकारिता से सामाजिक चेतना मे वृध्दि हुई है।
4. सामाजिक बुराईयों को दूर करने में सहायक
सहकारिता आन्दोलन ने अशिक्षा, अज्ञानता, अंधविश्वास तथा बेरोजगारी की समस्याओं को दूर करने में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है।
5. शिक्षा और प्रशिक्षण
सहकारिता ने औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ सहकारी नियमों की जानकारी, संगठन की कला और सामुदायिक शिक्षा जैसी अनौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था सहकारिता आन्दोलन ने की है। इन सब के अतिरिक्त सहकारिता का प्रजातांत्रिक मूल्यों के विकास, नैतिक गुणों का विकास,  मध्यस्थों के शोषण से मुक्ति, राजनीतिक चेतना के विकास मे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्पष्ट होता है की सहकारी समितियां ग्रामीण पुनर्निर्माण एवं विकास का आधार रही है।
6. नकद विक्रय 
सहकारी समितियां नकद व्यवहार करती है। इससे रकम डूबने का भय नही रहता और अनेक ग्राहकों के विस्तृत हिसाब-किताब रखने की आवश्यकता नही रहती। 
दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं की इस लेख को पढ़ने के बाद आपको सहकारिता का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और महत्व शीघ्र ही समझ आ गया होगा। अगर आपका सहकारिता से सम्बन्धित या इस लेख से सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विचार है तो नीचे comment कर जरूर बताएं। मैं आपके comment  का इंतजार कर रहा हूं।
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1 टिप्पणी:
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  1. प्राथमिक कृषि साख समितियां धरातल पर सहकारिता के सिद्धांत को चरितार्थ नहीं कर रहा है क्योंकि इसमें लगे हुए कार्मिक किसानों के नाम से फर्जी लोन ले लेते हैं और फसल बीमा के नाम से जो प्रीमियम आता है उस खाते की रिकवरी हो जाती है और किसान को पता ही नहीं लगता 2015 के बाद सरकार ने किसानों को खूब लोन दिया लेकिन जिसका ज्यादातर फायदा सहकारी समिति स्तर पर लगे हुए मैनेजरों ने उठाया इसलिए सरकार को पूरी पारदर्शिता के साथ लोन का वितरण होना चाहिए और किसान द्वारा जब ऐसा मुद्दा उठाया जाता है तो उस भ्रष्टाचारी लोगों पर शिकंजा कसना चाहिए|

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