3/26/2023

हाॅब्स के राजनीतिक विचार

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प्रश्न; हाॅब्स के प्रमुख राजनीतिक विचार लिखिए। 

अथवा" हाॅब्स के राजनीतिक चिंतन का विवेचन कीजिए। 

उत्तर-- 

हाॅब्स के राजनीतिक विचार 

हाॅब्स का प्राकृतिक मानव के विषय में विचार 

हाॅब्स के अनुसार राज्य की स्थापना से पहले मानव प्राकृतिक अवस्था में रहता था। प्राकृतिक अवस्था युद्ध की दशा थी, हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का सूत्र होता था। ऐसे समय में मनुष्य को हमेशा भय तथा मृत्यु की आशंका बनी रहती थी। इस दशा में किसी तरह की संस्कृति, सभ्यता, भवन-निर्माण, ज्ञान-विज्ञान, कला, साहित्य का विकास नहीं हो सकता था। इस अंधकार पूर्ण अवस्था में मनुष्य के विवेक ने उसको इस बात का बोध कराया कि कुछ ऐसे प्राकृतिक नियम है जिनके पालन करने से सामाजिक कठिनाइयों का अंत हो सकता है। हाॅब्स ने इस प्राकृतिक कानून को "शांति की धाराओं" से संबोधित किया है। उसने प्राकृतिक कानून की परिभाषा इस तरह की है," यह वह कानून है जिसको विवेक से खोजा जाता हैं।" इसके अनुसार," मनुष्य के वे कार्य निषिद्ध है जो उसके जीवन के लिए हानिप्रद है अथवा जिससे जीवन-रक्षा के साधनों का हरण होता है एवं जिनके द्वारा उसके लिए उन कार्यों को करना संभव होता है जिनसे जीवन की रक्षा होती हैं।" 

हाॅब्स की प्राकृतिक विधियों की सूची इस तरह हैं-- 

समाज के हर व्यक्ति को शांति स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। व्यक्ति को समाज की शांति के लिए अपने अधिकारों को त्याग करके समझौते के सिद्धान्त का पालन करना चाहिए। हाॅब्स ने इन प्राकृतिक नियमों को व्यक्ति के स्वयं के विरुद्ध बतलाया है, इस कारण उसके मतानुसार नियमों को पालन कराने हेतु स्वीकृति अर्थात नियमों के पीछे नियमों को बाध्य कराने की शक्ति का होना अनिवार्य है। प्राकृतिक अवस्था में इस तरह की कोई शक्ति नहीं थी इस कारण नियमों का पालन नहीं होता था। 

हाॅब्स का सामाजिक समझौते का सिद्धांत 

प्राकृतिक अवस्था की कठिनाइयों को दूर करने हेतु मनुष्य ने एक समझौता किया तथा इस प्रकार की शपथ ग्रहण की," मैं अपने ऊपर शासन करने का अधिकार त्यागता हूँ तथा यह अधिकार एक विशिष्ट मनुष्य या उसके प्रतिनिधियों को इस शर्त पर देता हूँ कि तुम भी अपना अधिकार त्यागो तथा इस शासन सत्ता को उचित मानों।" हाॅब्स आगे कहता है कि," इस मृत्यु प्रभु रीति का इसी रीति से जन्म होता है। यह वही मृत्यु प्रभु है जिसकी कृपा पर अनश्वर ईश्वर की छत्रछाया में हमारी शक्ति एवं सुरक्षा निर्भर हैं।" 

हाॅब्स का सिद्धांत दो निष्कर्षों पर पहुंचता हैं-- 

1. एक तो निरंकुश संप्रभु की स्थापना और

2. दूसरी तरह सुव्यवस्थित सभ्य समाज में संप्रभु के हाथ को मृत्युशील ईश्वर बनाना। 

इस तरह व्यक्तियों ने एक ऐसे संप्रभु को बनाया जिसको शक्ति में कोई साझेदार नहीं था। हाॅब्स के अनुसार समझौता जीवन रक्षा के लिए किया गया था। यह समझौतावादी सिद्धांत समझौते का दूसरा सिद्धांत कहलाता है। इस समझौते के द्वारा राजा को उत्तरदायित्व निभाने हेतु बाध्य नहीं किया जा सकता, वह सर्वोच्च एवं अंतिम प्रतीक है। व्यक्ति उसका विरोध तभी कर सकता है जबकि विरोध आत्मरक्षा हेतु जरूरी हो।

हाॅब्स के राज्य संबंधी विचार 

हाॅब्स का समझौता सिद्धांत एक निरपेक्ष राज्य की स्थापना का सिद्धांत था। उसके राज्यों के दो ग्रुप थे--

1. आंतरिक निरपेक्षता जिसके द्वारा राज्य को आंतरिक क्षेत्र में सर्वोच्चता प्राप्त थी। कोई व्यक्ति अथवा व्यक्ति-समूह राजसत्ता के विरुद्ध विद्रोह करने का अधिकारी नहीं था। व्यक्ति की स्वतंत्रता खत्म हो गई थी। 

2. बाह्य निरपेक्षता जिसका आधार व्यक्ति की प्राकृतिक अवस्था में मानव आपस में द्वेष, ईर्ष्या एवं स्पर्धा रखता था, उसी प्रकार राज्य-राज्य में भी द्वेष, ईर्ष्या एवं स्पर्धा का ही संबंध होता था। 

हाॅब्स अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध के विरुद्ध था। राज्य का संबंध चाहे आंतरिक हों अथवा बाह्य पूर्ण स्वतन्त्रता का था। हाॅब्स संप्रभु को जिसके हाथों में समस्त व्यक्तियों ने सत्ता सौंपी थी, निरंकुश समझौता था। उसका कहना था कि," राजतंत्र न सिर्फ एक वैध शासन प्रणाली है बल्कि यह अत्यधिक उचित तथा उत्तम प्रणाली है एवं शेष समस्त प्रणालियों से अधिक उपयोगी हैं।" हाॅब्स के अनुसार शासक हर क्षेत्र का अधिकारी होता है। वह न्याय के क्षेत्र में भी अंतिम शक्ति रखता हैं। 

राज्य तथा नागरिक का संबंध 

समझौता सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति ने अपने समस्त अधिकारों को शासक को सौंप दिया था। नागरिकों का सिर्फ आत्मरक्षा के अलावा कोई अधिकार शेष नहीं रह गया था। संप्रभु इसी तरह की शक्ति का केन्द्र बन गया था। नागरिकों का कर्तव्य सिर्फ आज्ञा का पालन करना था। प्राकृतिक अवस्था को रोकने हेतु मानव ने समझौते का सिद्धांत अपनाया, लेकिन इससे उसकी कठिनाइयाँ दूर नहीं हुई, बल्कि वह दास अवस्था में आ गया, क्योंकि वह शासक विरोध नहीं कर सकता था।

हाॅब्स के विचारों की आलोचना 

हाॅब्स के विचारों की कटु आलोचना हुई। अधिकतर लोग इसकी आलोचना करने वाले थे समर्थक बहुत कम ही थे। लेवियाथन ग्रंथ से पहले उसके काफी मात्रा में समर्थक थे लेकिन इसके बाद उसके समर्थक बहुत कम रह गये थे। उसके मित्र भी हाॅब्स विरोधी हो गये थे। 

बेंटली ने हाॅब्स को नैतिक पतन हेतु उत्तरदायी ठहराया है। क्लेरेण्डन ने लिखा हैं," हाॅब्स की पुस्तक जला देनी चाहिए। मैंने कभी कोई ऐसी पुस्तक नहीं पढ़ी जिसमें राजद्रोह, गद्दारी तथा अधार्मिकता इतनी अधिक मात्रा में हों।" 

ह्राइटहाल के मतानुसार," लेवियाथन वैसी ही निंदनीय सम्मतियों से भरी पड़ी है जैसे भेक विष से परिपूर्ण होता हैं।" 

न सिर्फ धार्मिक बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी हाॅब्स के विचारों की कटु आलोचना की गई है। रूसों ने लिखा है कि हाॅब्स का सिद्धांत आत्म-विरोधी एवं उद्वेगजनक है। उसके सामाजिक समझौते से पैदा होने वाला समाज इससे पहले की अराजकता की दशा से गया बीता है। लेवियाथन का राज्य दासता पर आधारित है। इस तरह हम देखते हैं कि हाॅब्स के लेवियाथन ग्रंथ को प्रत्येक क्षेत्र में कटु-आलोचना का शिकार होना पड़ा। 

हाॅब्स का महत्व 

उपरोक्त आलोचना के रहते हुए भी हाॅब्स कई दृष्टियों से असाधारण महत्व रखता हैं। वह राजनीति शास्त्र की विस्तृत तथा व्यवस्थित पद्वति का निर्माण करने वाला पहला अंग्रेज विचारक था। 

डनिंग के शब्दों में," उसके मनुष्य ने उसको एकदम प्रथम कोटि के विचारकों में स्थान दिया है। उसने राजनीति शास्त्र में भौतिकवाद का दृष्टिकोण अपनाकर नई परंपरा स्थापति की हैं। 

हाॅब्स का सार्वभौमिकता संबंधी विचार बहुत महत्व का हैं। हाॅब्स का नाम राजनीतिक इतिहास में अमर हो गया हैं।

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