6/24/2021

नगरीय समाजशास्त्र का क्षेत्र, विषय-वस्तु

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नगरीय समाजशास्त्र का क्षेत्र (nagariya samajshastra ka kshera)

नगरीय समाजशास्त्र, आधुनिक अध्ययन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण विज्ञान है जो नगरीय जीवन के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करता है। यह नगरीय आर्थिक-सामाजिक जीवन से जुड़ी असंख्य चीजों का अध्ययन करता है वहीं यह नगर सभ्यता और संस्कृति के प्राचीन तथ्यों की भी उपेक्षा नही करता है। यह भूत और वर्तमान नगरीय जीवन का तुलनात्मक अध्ययन भी करता है। उदाहरण के लिए विभिन्न युगों मे नगरीय जीवन किन चीजों से प्रभावित था और मशीनी और वैज्ञानिक युग मे नगरीय जीवन में जो बदलाव आ रहा है वह किन तथ्यों के कारण घटित हो रहे है। इस प्रकार के नगरीय अध्ययन का भी संकेत करता है कि भविष्य मे किस प्रकार का समाज बनेगा और मानवीय मूल्य और मान्यताएं किस प्रकार की होगीं। इस दृष्टि से हम यह  कह सकते है कि आधुनिक नगरीय जीवन को समझने के लिए यह विज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

नगरीय समाजशास्त्र के क्षेत्र का जहां तक प्रश्न है यह विवादास्पद है। नगरीय समाजशास्त्र की विभिन्न परिभाषाओं से इस तथ्य की पुष्टि हो जाती है। विकासोन्मुख विज्ञान होने के नाते इसके क्षेत्र को लेकर निम्न तीन प्रकार के दृष्टिकोण प्रस्तुत किए जाते है--

1. नगरीय विज्ञान 

इस दृष्टिकोण के समर्थकों का विचार है कि इस शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र मूलतः नगर है। इस दृष्टिकोण को अपनाने वाले तीन वर्गों मे विभाजित है--

(अ) नगर का अध्ययन करने वाले विचारक 

इस मत के समर्थकों मे मुख्य है, ग्रान्ट, मेयर, विलकापस, एण्डरसन और बर्गल। इनका मत है कि यह शास्त्र कस्बों और नगरों का अध्ययन करता है।

(ब) महानगरों और राजधानी के अध्ययन करने वाले विचारक 

इस वर्ग के विद्वान अपने अध्ययन क्षेत्र को महानगरों और राजधानी तक ही सीमित रखते है। इनमें चार्ल्स, ई. मेरियम, अलबर्ट, मेकेन्जी, टायलर तथा हार्ट मुख्य है।

(स) मोनोग्राफिक अध्ययन करने वाले विचारक 

इस श्रेणी मे वे विचारक आते है जिनका यह मत है कि यह शास्त्र नगरीय घटनाओं का अध्ययन करता है। इसमें महत्वपूर्ण है सिमर और मैक्सवेबर।

2. नगरीय परिस्थिति विज्ञान 

इस मत के पक्षधर विद्वानों का विचार है कि यह शास्त्र नगरीय परिस्तिथियों का अध्ययन करता है। एण्डरसन इस दृष्टिकोण के मुख्य समर्थक है। हारवे, रेक्सलेस, फेरिस और डनहम भी इस दृष्टिकोण का समर्थन करते है। पार्क और बर्जेस भी इसका समर्थन करते है। उन्होंने परिस्थितिशास्त्र को निम्न दो वर्गों मे विभाजित किया है--

(अ) मानव परिस्थितिशास्त्र (Human Ecology)

(ब) सामाजिक परिस्थितिशास्त्र (Social Ecology) 

इस तरह परिस्थितिशास्त्र मे नगर की भौगोलिक एवं प्राकृतिक परिस्थितियों का भी अध्ययन किया जाता है।

3. नगरीयता 

इस श्रेणी के पक्षधरों का मत है कि यह शास्त्र नगरीय सामाजिक संबंध, व्यवहार, क्रियाओं और संस्थाओं का अध्ययन करता है। इस दृष्टिकोण के समर्थक है, पार्कं, बर्जेस जिम्मरमैन, लिण्डमैन।

पार्क और बर्जेस ने इस विज्ञान के क्षेत्र को निम्न तीन श्रेणियों मे विभाजित किया है--

(अ) परिस्थितिशास्त्र 

इसमें उन भौगोलिक और प्राकृतिक परिस्थितियों का अध्ययन किया जाता है जो नगरों मे पायी जाती है।

(ब) सामाजिक संगठन

इसके अंतर्गत वर्ग, सामाजिक संस्थाएं, परिवार, आर्थिक संस्थाएं, राजनैतिक सस्थाएं तथा मनोरजनात्मक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है।

3. सामाजिक विघटन 

इसके अंतर्गत उन समस्याओं का अध्ययन किया जाता है जो विघटन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। जैसे-- बाल अपराध, अपराध, वेश्यावृत्ति आदि।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि नगरीय समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र जहां नगर की अनेक समस्याओं से जुड़ा है वहीं नगर की अनेक प्राथमिक व द्वितीयक समूह से जन्मी समस्याओं का भी अध्ययन करता है। इसके साथ ही साथ आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक संगठनों का भी अध्ययन इस दृष्टि से करता है कि यह किस प्रकार मानव जीवन को प्रभावित करते है। इस तरह नगरीय समाजशास्त्र एक संकीर्ण समाजशास्त्र न होकर एक व्यापक शास्त्र है जो नगर की विभिन्न समस्याओं और तथ्यों का अध्ययन करता है।

नगरीय समाजशास्त्र की विषय-वस्तु (nagariya samajshastra ki vishay vastu)

उपरोक्त विवेचन नगरीय समाजशास्त्र के विभिन्न पक्षों की व्याख्या करता है। इस व्याख्या में इसकी विशेष सामग्री का स्पष्ट ज्ञान होता है। सामान्यता नगरीय समाजशास्त्र की विषय सामग्री के अंतर्गत निम्न विषयों और तथ्यों का समावेश होता है--

1. परिचयात्मक विषय वस्तु 

इस वर्ग के अंतर्गत निम्न चीजें आती हैं--

(अ) नगरीय परिस्थितिशास्त्र 

इसके अंतर्गत नगरीय समुदाय की रचना स्वरूप सामाजिक और सांस्कृतिक व्याख्या इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।

(ब) नगरीय स्वरूपशास्त्र 

इसमें नगरी जीवन के सामाजिक और स्वरूपात्मक पहलुओं पर विचार किया जाता है।

(स) नगरीय मनोविज्ञान 

इसके अंतर्गत नगरीय जीवन पद्धति का जहां मनोवैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया जाता है वही नगरी व्यक्ति के व्यवहार का भी विश्लेषण किया जाता है। इसका आधार मनोविज्ञान है होता है।

2. विश्लेषणात्मक विषय-वस्तु 

नगर के विभिन्न पक्षों के अध्ययन के आधार पर अनेक अवधारणाओं की स्थापना की गई है। यह अवधारणा निम्न विषयों से जुड़ी हुई है--

(अ) नगर

नगर क्या है? इसकी उत्पत्ति और विकास किस प्रकार हुआ? नगर का पर्यावरण, नगर की अनोखी विशेषताएं, जैसे संस्कृति व्यवसाय, जनसंख्या में विविधता आदि के आधार पर नगर की अवधारणा को स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।

(ब) समुदाय

नगरीय समुदाय की अपनी विशेषताएं हैं। नगरीय समुदाय के विश्लेषण और विवेचना ने इसकी अवधारणा को एक नया और वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया है।

(स) नागरीकरण 

नागरीकरण के अध्ययन में नगर और ग्रामीण समाज के व्यक्तियों के व्यवहारों, आदतों, रहन-सहन के ढूंढो, सोच और मानसिकता आदि के अध्ययन में नए आयाम को स्थापित किया है। नागरीकरण में नगरवाद की अवधारणाओं को जन्म दिया जो नगरीय जीवन पद्धति की व्याख्या करती है।

3. सुधार 

सुधारात्मक कार्यों मे निम्न बातों को सम्मिलित किया जाता है--

(अ) नगरीय व्याधिकी

इसमें नगर की अनेक समस्याओं का जो सामाजिक रोग बन गई है का अध्ययन किया जाता है। जैसे बाल अपराध, अपराध, वेश्यावृत्ति, मद्यपान, व्यक्तिगत और सामाजिक विघटन इत्यादि।

(ब) नगरीय योजनाएं

समाज का पुनर्निर्माण किस रूप में किया जाए और कैसे किया जाए इस पर विचार किया जाता है।

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