6/24/2021

नगरीय जीवन की विशेषताएं

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नगरीय जीवन की विशेषताएं

नगरीय जीवन की निम्न विशेषताएं है--

1. घनी जनसंख्या 

गांवों में जहां कम मात्रा में जनसंख्या रहती है। वही नगरों में बहुत बड़ी मात्रा में जनसंख्या निवास करती है। नगरों में जनसंख्या का ज्यादा होना उस नगर विशेष के औद्योगिक विकास पर निर्भर करता है। संक्षेप में इतना कहा जा सकता है कि जिस नगर पर जितना ज्यादा औद्योगिक विकास हुआ होगा उतनी ही ज्यादा जनसंख्या वहां रहती होगी। नगरों में जनसंख्या ज्यादा होने का एक कारण यह भी है कि नगर राजनीति के केंद्र होते हैं एवं उच्च शिक्षा की यहां सुविधा रहती है। लेकिन जब कभी जनसंख्या ज्यादा हो जाती है तो आवास समस्या का जन्म होने लगता है।  गंदी बस्तियों का निर्माण होने लगता है एवं जनसंख्या का घनत्व बढ़ जाता है।

2. वैयक्तिकता 

नगरों में विभिन्न जातियों तथा संप्रदायों के लोग आकर एकत्रित हो जाते हैं। जिनमें हम की भावना का अभाव पाया जाता है। वे सामूहिक रूप में किसी भी स्थाई संगठन का निर्माण नहीं कर पाते। अतः हर व्यक्ति सामाजिक संबंध स्थापित करने में भी स्वतंत्र रहता है। वह अपनी इच्छानुसार दूसरे लोगों से ऐसे संबंध स्थापित करता है जो स्थाई नहीं होते हैं। अतः नगरों में वैयक्तिकता की भावना मौलिक रूप से पाई जाती है।

2. द्वितीयक समूह

नगर एक द्वितीयक समूह कहलाता है। जिसके सदस्यों की संख्या ज्यादा होती है तथा सदस्यों के मध्य आमने-सामने के संबंध नहीं होते। वे सदस्य जरूरत पड़ने पर कुछ आस्थाई समितियां अथवा समूह या कोई दल बना लेते हैं।  इन समितियों या दलों के सदस्यों के मध्य पत्र व्यवहार अथवा परिचय पत्रों द्वारा संबंध स्थापित होते हैं।

4. सामाजिक गतिशीलता 

नगरों का व्यक्ति किसी तरह के बंधनों से प्रतिबंधित नहीं है। वह स्वेच्छा से कहीं भी आ जा सकता है। जिन नगरों में सामाजिक गतिशीलता अधिक पाई जाती है, वहां के निवासियों में स्थाई संबंधों का अभाव पाया जाता है। इस संबंध में एक समाजशास्त्री जिमरनैन एवं सोरोकिन का मत है," ग्रामीण समुदाय घड़े में शांत जल के समान है तथा नगरीय समुदाय पतीले में उबलते हुए पानी के समान है। एक का लक्षण है स्थिरता तथा दूसरे का अस्थिरता हैं।"

5. जनसंख्या का पृथक्करण अथवा विशेषीकरण

नगरों में जनसंख्या कार्यालय अथवा बड़े-बड़े  उद्योग-धंधों में काम करती है। छोटे छोटे लोग गंदी बस्तियों में, तथा धन-धान्य से संपन्न लोग विशाल भवनों में निवास करते हैं। अतः नगरों की जनसंख्या बिखरी हुई रहती है।

5. श्रम विभाजन 

नगरीय जनसंख्या में विभिन्न पेशों के लोग निवास करते हैं। जो व्यक्ति जिस कार्य में प्रवीण होता है वह उसी को अपने व्यवसाय का साधन बना लेता है। अतः नागरिक समाज के लोगों में श्रम विभाजन पाया जाता है। साथ-ही-साथ नगरों में यह बात भी देखने को मिलती है कि व्यक्ति कई कार्यों को ना करके एक ही कार्य करता है। इस प्रवृत्ति को विशेषीकरण की प्रकृति कहते हैं। अतः कहा जाता है कि नगरों में श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण दोनों ही होते हैं।

6. सामाजिक एकता का अभाव

नगरीय समाज में विभिन्न संस्कृतियों से संबंधित लोग निवास करते हैं। जिनमें वेशभूषा खानपान रहन-सहन तथा धार्मिक परंपराओं में अनेक तरह की विभिन्नता पाई जाती है। अतः कहा जाता है कि नगरीय समाज में सामाजिक एकता का अभाव देखने को मिलता है।

8. पारस्परिक संघर्ष का अभाव

नगरीय समाज में लोग अपने-अपने कार्यों में लगे रहते हैं। उन्हें यह सोचने का ऑप्शन नहीं मिलता कि उनका पड़ोसी क्या करता है? वह पड़ोसी से किसी तरह की व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा नहीं रखते। अतः नागरिक समाज में पारस्परिक संगत का अभाव पाया जाता है। इस दृष्टि से हम यह भी कह सकते हैं कि नगरीय समाज में सदस्यों के मध्य सामाजिक सहिष्णुता  पाई जाती है।

9. सामाजिक नियंत्रण के द्वैतीयक साधन

नगरीय जीवन में परिवार तथा पड़ोस जैसे प्राथमिक समूह का ज्यादा महत्व नहीं होता है। अतः नगरों में सामाजिक नियंत्रण के प्राथमिक साधन रीति-रिवाजों, रूढ़ियों तथा परंपराओं का कोई महत्व नहीं होता। वहां पर समितियों संघों के नियमों एवं कानूनों द्वारा सामाजिक नियंत्रण की स्थापना की जाती है। अतः कहा जाता है कि नगरों में सामाजिक नियंत्रण के द्वैतीयक  साधन प्रभावशाली रहते हैं।

10. औपचारिक संबंध 

नगरों में सभी व्यक्ति अपने-अपने कार्यों में रक्त रहते हैं। उनके पारस्परिक संबंधों का कानूनों से नियमन होता है। अतः नगरीय समुदाय में संबंधों में घनिष्ठता नहीं पाई जाती बेवफा रिक होते हैं जिनमें "छूओ तथा जाओ" का सिद्धांत लागू होता है

11. अंधविश्वासों का अभाव 

नगरीय समुदाय में धार्मिक अंधविश्वास देखने को नहीं मिलते है। नगर के लोग रोगो को दैविक आपत्ति नहीं मानते है। देवियों की पूजा अथवा मंत्रों द्वारा रोगों का उपचार नहीं करते हैं वरन् तुरंत डॉक्टर की सलाह पर काम करते हैं। वे हर सिद्धांत को तर्क की कसौटी पर उतारते हैं।

12. स्त्रियों को स्वतंत्रता 

नगरीय जीवन समाज में स्त्रियों को भी कुछ स्वतंत्रता होती है। वे धार्मिक सत्संग तथा राजनीतिक दलों या समाज सेवा कार्यक्रमों में स्वतंत्र रूप से भाग ले सकती हैं। अतः कहा जा सकता है कि ग्रामीण समाज की स्त्रियों की बजाए नगरी समाज की स्त्रियों को ज्यादा स्वतंत्रता मिलती है, एवं उनकी स्थिति भी ज्यादा ऊंची है।

13. सामाजिक सामंजस्य 

नगर में विभिन्न संस्कृतियों तथा व्यवसाय के व्यक्ति निवास करते हैं। इन व्यक्तियों को अपने-अपने विचारों के अनुसार धार्मिक अधिकार मिले होते हैं। जिनका वे स्वतंत्रता पूर्वक उपयोग करते हैं। सभी व्यक्ति एक-दूसरे के विचारों में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं। अतः नगरीय समुदाय के लोगों में सामाजिक सहनशीलता का गुण पाया जाता है।

14. सामाजिक समस्याओं का केन्द्र 

नगर सामाजिक समस्याओं का केंद्र है। महामारी, बेरोजगारी, वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति, निर्धनता, अपराध, बाल अपराध इत्यादि सभी समस्याओं का केंद्र नगरीय समुदाय ही होता है।

15. गंदी बस्तियों का जन्म

नगरों में कारखाने स्थापित किए जाते हैं। इन कारखानों के कारण नगरों में श्रमिकों की संख्या इतनी बढ़ जाती है कि उनको रहने हेतु उपयुक्त स्थान नहीं मिलता। अतः गंदी बस्तियों का पाया जाना भी नगरीय समुदाय के जीवन एक विशेषता है।

यह भी पढ़ें; ग्रामीण और नगरीय समाज में अंतर

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