जल प्रदूषण को रोकने के उपाय अथवा सुझाव
पिछेले लेख मे बताई गई जल की कमी तथा प्रदूषित जल के दुष्प्रभावों के परिप्रेक्ष्य मे जलस्त्रोतों के प्रदूषण को रोकने की आवश्यकता स्वयं सिद्ध है। जल प्रदूषण को रोकने के उपाय तथा सुझाव निम्न प्रकार है--
1. जहाँ तक संभव हो किसी भी प्रकार के अपशिष्ट या अपशिष्टयुक्त बहि:स्त्राव को जलाशयों मे मिलने नही दिया जाना चाहिए।
यह भी पढ़ें; जल प्रदूषण क्या है? कारण/स्त्रोत, प्रभाव
2. घरों से निकलने वाले मलिन जल तथा वाहितमल को एकत्रित एक शोधन संयंत्रो से पूर्ण उपचार के उपरान्त ही नदी या तालाबों मे विसर्जित किया जाना चाहिए। संभव हो तो इस प्रकार से उपचारित जल का प्रयोग खेतो मे सिंचाई के लिए किया जाना चाहिए।
3. पेय जल स्त्रोतों जैसे तालाब, नदी इत्यादि के चारो ओर दीवार बनाकर विभिन्न प्रकार की गंदगी के प्रवेश को रोका जाना चाहिए।
4. जलाशयों के आस-पास गंदगी करने, उनमे नहाने, कपड़े धोने इत्यादि को रोका जाना चाहिए जिससे गंदगी, साबुन तथा अन्य प्रक्षालक पदार्थ जल मे न मिलने पायें।
5. नदी तथा तालाबो मे पशुओं को नहलाने पर भी पाबंदी होना चाहिए क्योंकि इससे अनेक प्रकार के रोगाणुओं के जल मे फैलने की संभावना रहती है तथा जल भी प्रदूषित होता है।
6. जल की आवश्यकता की सुगम पूर्ति के उद्देश्य से अधिकतर उद्योगों को नदियो या तालाबों के किनारे स्थापित किया जाता है। ये उद्योग अपने अ-उपचारित बहि:स्त्राव को निकटस्थ उपलब्ध जलाशय मे विसर्जित करना आर्थिक तथा अन्य कारणों से सुविधाजनक मानते है तथा इस प्रकार जल प्रदूषण का कारण बनते है। इस दृष्टि से रासायनिक उद्योग सबसे अधिक हानिकारक होते है। इन उद्योगों से निकला विभिन्न विषैले रासायनिक पदार्थों से युक्त बहिःस्त्राव नदी के जल को ही प्रभावित नही करता अपितु मछलियों व अन्य उपयोगी जलीय जीवो के नाश का कारण भी बनता है। अतः प्रथमतः उद्योगो को, सैद्धान्तिक रूप से जलाशयों के निकट स्थापित उद्योगो को अपने अपशिष्ट जल का बिना उपचार किये जलाशयों मे विसर्जित करने से रोका जाना चाहिए।
7. कस्बों, नगरो तथा महानगरों मे शौचालयों की स्थापना की जानी चाहिए।
8. विद्युत शवदाह-गृहों की स्थापना की जाये जिससे बिना जले, अधजले शव व कार्बनिक पदार्थ नदियों मे प्रवाहित न हों।
9. मृतक पशुओं के जलाशयो मे विसर्जिन पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए।
10. नगर पालिकाओं को सीवर-शोधन संयन्त्रो की व्यवस्था करनी चाहिए।
11. सरकार को जल प्रदूषण के नियंत्रण से संबंधित उपयोगी एवं कारगर नियम एवं कानून भी बनाने चाहिए। व्यक्तियों, समुदायों, सामाजिक संगठनों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों, सरकारी अधिकारियों तथा मिल-मालिको को इन नियमों एवं कानूनो का सख्ती से पालन करना होगा। इन नियमों एवं कानूनों का उल्लंघन करने वालों को सख्त सजा मिलनी चाहिए एवं उनसे भारी आर्थिक दण्ड वसूल किया जाना चाहिए।
12. उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग आवश्यकतानुसार ही किया जाये। डी. डी. टी. तथा इसी प्रकार के स्थाई प्रकृति के कीटनाशियों एवं पेस्टनाशियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
13. जल प्रदूषण के कारणों, दुष्प्रभावों एवं रोकथाम की विधियों की जानकारी जनसाधारण को दी जाये। इसके लिए रेडियो, दूरदर्शन, समाचार-पत्र, गैर सरकारी संस्थाएं महत्वपूर्ण योगदान कर सकती है।
14. जल प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। अधिनियम की समीक्षा के लिए पर्यावरणविदों एवं विधि विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जाये। समिति की संस्तुतियों एवं सुझावो के आधार पर आवश्यकतानुसार अधिनियम को संशोधित किया जाये।
15. पशुओं को जल मे नहलाने से रोगाणुओं के फैलने की संभावना रहती है जिससे जल प्रदूषित हो जाता है इसलिए पशुओं को नदियो, तालाबों मे नहलाने पर प्रतिबंध लगाया जाये।
कोई टिप्पणी नहीं:
Write commentआपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।