5/02/2021

मृदा/भूमि प्रदूषण क्या है? कारण/स्त्रोत, प्रभाव, रोकने के उपाय

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मृदा अथवा भूमि प्रदूषण क्या है? (mrida pradushan kise kahte hai)

mrida pradushan arth karan prabhav rokne ke upay;जब मिट्टी मे भौतिक और रासायनिक तत्व मिलकर मिट्टी को कृषि के दृष्टिकोण से अनुपयुक्त बना देता है अथवा उसका समुचित उपयोग नही हो पाता है तो वह मिट्टी प्रदूषित मानी जाती है। मिट्टी के प्रदूषित होते ही वृक्षों की जीवन शक्ति भी घट जाती है अथवा भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों मे ऐसा कोई भी अवांछित परिवर्तन जिसका प्रभाव मनुष्य तथा अन्य जीवों पर पड़े या जिससे भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो, भू-प्रदूषण कहलाता है।

भू-प्रदूषण मानव का भूमि के प्रति अविवेकपूर्ण व्यवहार का एक उदाहरण है। औद्योगिक इकाइयों द्वारा भारी मात्रा मे कच्चा माल उपयोग मे लाया जाता है तथा इनके द्वारा मानव उपयोग के अनेकानेक प्रकार के उत्पाद निर्मित किये जाते है, ये उत्पाद मानव द्वारा उपयोग के बाद अवशिष्ट के रूप मे भूमि पर फेंक दिये जाते है। अवशिष्ट के रूप मे फेंके गए ये पदार्थ शीघ्र नष्ट नही होते और इनका ढेर पृथ्वी पर बढ़ता ही जाता है। इस प्रकार अधिकांश औद्योगिक अपशिष्ट भू-प्रदूषण का कारण बनते है।

मृदा अथवा भूमि प्रदूषण के कारण अथवा स्त्रोत (mrida pradushan ke karan)

मृदा या भूमि प्रदूषण के निम्न कारण है--

1. औद्योगिक अपशिष्ट 

औद्योगिक अपशिष्ट किसी न किसी रूप मे भू-प्रदूषण का कारण बनते है। इन अपशिष्टों मे कुछ जैव अपघटनशील, कुछ ज्वलनशील कुछ दुर्गन्धयुक्त, कुछ विषैले और कुछ निष्क्रिय होते है, परन्तु सभी स्थान घेरते है। औद्योगिक अपशिष्टों के निक्षेपण की समस्या आर्थिक कारकों मे और जटिल हो जाती है। उद्योगों द्वारा अपशिष्ट या तो भूमि पर यों ही फेंक दिये जाते है या गड्ढ़े खोदकर गाड़ दिये जाते है। इसमे कम खर्च आता है, यही कारण है कि औद्योगिक कारखानों के आस-पास अपशिष्टों का ढ़ेर बढ़ता जा रहा है।

2. कृषीय अपशिष्ट 

खेतों की कटाई के बाद बचे हुए डण्टल, पत्तियां, घास-फूस, बीज इत्यादि अपशिष्ट कहे जा सकते है। सामान्यतया इनसे कोई प्रदूषण नही होता परन्तु जब खेतों पर इनका अनावश्यक ढेर लग जाता है तो वर्षा के जल के साथ जब ये सड़ने लगते है, तो प्रदूषण का कारण बनते है। मुख्य रूप से भू-प्रदूषण के कृषीय स्त्रोत निम्न है--

(अ) अधिक समय तक भूमि मे अवशेष रूप मे रहने वाले कीटनाशी, शाकनाशी, कवकनाशी इत्यादि का प्रयोग।

(ब) रासायनिक उर्वरकों का लगातार और आवश्यकता से अधिक उपयोग।

(स) कृषि संबंधी अपशिष्ट।

(द) खेतों की प्रदूषित जल द्वारा लगातार सिंचाई।

3. घरेलू कचरा 

घरों मे विभिन्न वस्तुएं प्रयोग मे लायी जाती है जिनसे अनावश्यक कचरा उत्पन्न होता है। धूल, सूखी टहनियों, पत्तियों, राख, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी, रद्दी कागज व गत्ता, टिन व लोहा के अनुपयोगी कलपुर्जे, टायर-ट्यूब, केबिल्स, फलों के छिलकों, आदि सूखे कचरे के रूप मे जाने जाते है। रसोईघर मे प्रयुक्त सब्जियों, फलों के छिलकों, डण्ठलों, गुठलियों, चाय पत्ती, बची हुई जूठन तथा माँस आदि के अपशिष्ट आदि को गीले कचरे मे सम्मिलित किया जाता है। यह समस्त पदार्थ नालियों के माध्यम से या बाहर फेंके गये अवशिष्ट के माध्यम से मिट्टी मे मिलकर उसे प्रदूषित करता है। घरों  मे प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के डिटर्जेंट पानी के साथ बहाये जाते है जो जल स्त्रोतों मे मिलकर उसे प्रदूषित करते है। जब यह प्रदूषित जल सिंचाई के काम मे लाया जाता है तो वह मिट्ठी मे मिलकर उसे प्रदूषित करता है।

4. नगरपालिका कचरा 

नगरपालिका या महापालिका के कचरे मे घरेलू कचरा, मानव मलमूत्र, सब्जी के सड़े-गले पदार्थ, औद्योगिक केंद्रों का कूड़ा, पशुओं का चारा, मिश्रित उत्सर्जित पदार्थ, नालियों की गंदगी आदि सम्मिलित है। इनके अतिरिक्त मरे हुये जानवार भी इसमे सम्मिलित होते है। जब ये कचरा बाहर डाला जाता है तो इसमे बहुत से रासायनिक तत्व मृदा को प्रदूषित करने मे सहयोगी होते है।

5. पाॅलीथीन अपशिष्ट 

वर्तमान समय मे हर छोटी बड़ी चीज पाॅलीथीन मे मिलने लगी है। चाहे सब्जी लाना हो, चाहे फल, चाहे कपड़ा लाना हो या अन्य कोई वस्तु, सभी पाॅलीथीन पैक मे मिलती है। उपयोग के बाद लोग पाॅलीथीन बैग सड़क पर, घरों के बाहर, कूड़ा करकट भरकर सड़क पर फेंक देते है। इससे भू-प्रदूषण तो होता ही है साथ-साथ पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 

पाॅलीथीन के बारे मे कुछ उल्लेखनीय बातें इस प्रकार है-- 

1. पाॅलीथीन का वैज्ञानिक नाम पाली-इथीलीन है जो कि छोटे-छोटे अणुयों या कड़ियों से बनी एक विशाल संरचना है। इसके अणुयों या कड़ियों के बीच के जोड़ या बाण्ड इतने जटिल है जो बड़ी मुश्किल से टूटते है।

2. पाॅलीथीन रोजमर्रा के विभिन्न कार्यों, जैसे सब्जी से लेकर कपड़ों तक हर वस्तु खरीदने, रखने तथा फेंकने मे प्रयुक्त की जाती है।

3. पाॅलीथीन हिमाचल प्रदेश, केरल जैसे प्रदेशों और नैनीताल, बंगलौर जैसे शहरों मे पूर्णतया बंद करा दी गई है। 

4. पाॅलीथीन एक ऐसा तत्व है जिसका विघटन सैकड़ों वर्षों तक नही हो सकता। ये जमीन मे अपने मूल रूप मे ही बना रहता है तथा इससे रिसने वाली (Leaching) रसायन मिट्टी तथा जल को प्रदूषित करते है।

5. पाॅलीथीन बैग जानवरों द्वारा खा लिये जाने पर, ये उनकी आंतों मे फंस जाता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है।

6. पाॅलीथीन को जलाने से जहरीली गैस विकसित होती है जो कि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिये बेहद हानिकारक है इससे विभिन्न प्रकार की बीमारियां उत्पन्न होती है।

7. रंग-बिरंगी पाॅलीथीन पर सरकार द्वारा तुरन्त रोक लगाई जानी चाहिए।

8. प्रत्येक कालोनियों मे तीन प्रकार के कूड़ेदान बनायें जायें-- 

(अ) कचरा संबंधित

(ब) बेकार कागज संबंधी

(स) पाॅलीथीन संबंधी।

9. सभी नागरिकों को अपने दैनिक कार्यों मे पाॅलीथीन का कम से कम प्रयोग करना चाहिए अथवा पाॅलीथीन के प्रयोग से बचना चाहिए।

भूमि अथवा मृदा प्रदूषण के दुष्प्रभाव (mrida pradushan ke prabhav)

भूमि/मृदा प्रदूषण के प्रभाव निम्न है-- 

1. कूड़े-करकट से जहाँ ओर दृष्यभूमि अस्वच्छ होती है तथा दुर्गंध फैलती है, वहीं दूसरी ओर मच्छर, मक्खी, कीड़े-मकोड़े तथा चूहों का उत्पात भी बढ़ता है। यही नही, गंदगी मे विभिन्न प्रकार की बीमारियों के कीटाणु भी तेजी से पनपते है। पेचिश, प्रवाहिका, आंत्रशोथ, हैजा, मोतीझरा, आँखों के रोग विशेषकर नेत्र श्लेष्मा शोथ (Conjuctivitis), तपेदिक इत्यादि रोगों के कीटाणुओं के प्रसार की गंदगी को बढ़ावा मिलता है। 

2. मानवमल का निष्कासन तथा निक्षेपण यदि समुचित ढंग से न हो तो इससे जन स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट पैदा हो जाता है। मानव मल से जहाँ एक ओर वातावरण दूषित होता है वहीं दूसरी ओर अनेक प्रकार के रोगों का प्रसार भी होता है। टाइफाइड, पैराटाफाइड, आंत्रशोथ, पेशिच, हैजा, संक्रामक यकृत शोथ, पोलियों आदि बीमारियां अपर्याप्त मलव्यवस्था के फलस्वरूप फैलती है।

3. घरो से निकलने वाले व्यर्थ जल की समुचित व्यवस्था न होने पर यह जल घरों के बाहर सड़कों तथा गलियों मे यों ही बहा दिया जाता है। इससे कीचड़ तथा दलदल बन जाते है जिनमें मक्खी, मच्छर व अन्य कीड़े-मकोड़े पनपते है।

4. आजकल कहीं-कहीं खेती मे मल-जल द्वारा सिंचाई की जाती है। मल-जल के लगातार प्रयोग से मृदा के छिद्रों की संख्या लगातार घटती चली जाती है। एक अवस्था ऐसी आती है जब मल-जल के ठोस कणों के जम जाने के कारण मृदा पूर्णरूप से रूद्ध (Clog) हो जाती है। इस अवस्था तक पहुंचने के बाद वायु मृदा के छिद्रों से परिसंचरित (Circulate)  नही हो पाती है। मृदा मे उपस्थित सूक्ष्म जीवो की वायुश्वसन क्रियाये जारी नही रह पाती है। इन अवायु परिस्थितियों मे अवायुश्वसक-विघटन के फलस्वरूप हाइड्रोजन सल्फाइड गैस पैदा होती है। इससे आसपास के क्षेत्र मे दुर्गंध फैलती है। इस अवस्था मे भूमि की प्राकृतिक मल-जल उपचार क्षमता पूर्णतः नष्ट हो जाती है। भूमि मल-जल की और अधिक मात्रा स्वीकार नही कर पाती है। जब कोई भूमि इस अवस्था मे पहुँच जाती है तो उसे रोगी (Sick) भूमि की संज्ञा देते है।

5. विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट के निक्षेपण मे विभिन्न सफाई व्यवस्थाओं के रख-रखाव पर बहुत खर्च आता है। इसके अतिरिक्त निकास नालों के अवरूद्ध होने या सफाई कर्मचारियों द्वारा हड़ताल किये जाने पर स्थित बहुत गंभीर हो जाती है।

6. दुर्घटना या असावधानी विभिन्न औद्योगिक अपशिष्टों द्वारा जल स्त्रोतों या भूमि के संदूषण से विभिन्न जानवरों तथा स्वयं मानव के स्वास्थ्य को हानि होने की संभावना रहती है। 

7. बहुधा ठोस अपशिष्ट को निक्षेपण हेतु भूमि मे निमज्जित कर दिया जाता है। इससे एक तो अनवीकरणीय (Non-Renwal) धातुओं विशेषकर तांबा, जिंक, लेड इत्यादि की प्रभावकारी हानि होती है तथा दूसरे विजातीय तत्वों के समावेश से मृदा की प्रकृति मे परिवर्तन आता है।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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