विजयनगर साम्राज्य
vijaynagar samrajya uday prashaasnik vyavastha;मुस्लिम आक्रमणकारी धर्मान्ध के कारण आठवीं शताब्दी के आरम्भ से उत्तर भारत में निरंतर आक्रमण करे चले जा रहे थे। इतना ही नहीं दिल्ली में दास वंश, खिलजी वंश और तुगलक वंशो के सुल्तान रहे। यह भी हिन्दूओं को मुसलमान बनाते रहे। उन्हें दास बनाते रहे। उनकी संस्कृति, धर्म, साहित्य और विज्ञान, मूर्तियों और कलाओं का निरंतर अपमान और विनाश किया गया। इससे विचारशील और कर्मशील हिन्दूओं ने इसकी रक्षा और विकास का प्रयत्न किया। विजयनगर साम्राज्य इन्ही प्रयत्नों का प्रत्यक्ष उदाहरण था।
विजयनगर साम्राज्य का उदय
विजयनगर साम्राज्य का उदय मुहम्मद तुगलक के काल से आरम्भ हुआ। मुहम्मद तुगलक के सेनापतियों ने बंगाल पर आक्रमण कर हरिहर और बुक्का को बंदी बना दिल्ली ले आया तथा मुसलमान बनाकर दक्षिण में विद्रोह दमन के लियें भेजा। इन्हें इसमें सफलता भी मिली अतः मुहम्मद तुगलक ने प्रसन्न होकर उसे सेनापति बनाया।
हरिहर-बुक्का दोनों भाई मुसलमान बनाये जाने तथा अपनी मातृभूमि पर मुस्लिम आक्रमणो और अत्याचारों से पीडि़त थे। जब उन्हें मुहम्मद तुगलक के सेनापति के रूप में सफलता मिली तो उससे प्रोत्साहित होकर सन् 1336 मे उन्होने अपने स्वतंत्र हिन्दू राज्य की नीव ‘हस्तिनावति‘ में रखी। उन्होनें इस्लाम का त्याग कर पुनः हिन्दूत्व को ग्रहण किया।
विजयनगर साम्राज्य के विस्तार मे हरिहर और बुक्का का योगदान
हरिहर प्रथम
विजयनगर साम्राज्य तथा संगम वंश का संस्थापक और प्रथम शासक हरिहर प्रथम स्वंय था। हरिहर के काल में साम्राज्य विस्तार में काफी सफलता मिली। मदुरा की सल्तनत तथा होयसल राज्य के बीच चल रहे संघर्ष में अन्तिम होयसल राजा वीर बल्लाल चतुर्थ की मृत्यु हो गयी। इस स्थिति का लाभ उठाकर हरिहर ने अपने भाइयों की सहायता से 1346 में सारे होयसल-साम्राज्य को विजयनगर में मिला लिया। हरिहर ने मदुरा में सुल्तान को पराजित कियाः और कदम्ब राज्य पर अधिकार कर लिया।
इसी बीच 1346 में दक्षिण के दूसरें शक्तिशाली साम्राज्य-बहमनी साम्राज्य की स्थापना भी हो चुकी थी। बहमनी वंश के संस्थापक अलाउद्दीन हसन बहमन शाह ने उत्तर की ओर विजयनगर का विस्तार रोकने के लिए दोआब (कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच का क्षेत्र) के महत्वपूर्ण किलें रायचूर पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार हरिहर के काल से ही बहमनी और विजयनगर साम्राज्यों में संघर्ष का प्रारम्भ हो गया जो रूक-रूक कर अगले दो सौ वर्षो तक चलता रहा।
बुक्का
हरिहर प्रथम के मौत के बाद उसका भाई बुक्का सिहांसन पर बैठा। बुक्का की एक बड़ी सफलता मदूरा की सल्तनत पर विजय प्राप्त करना था। इस विजय के फलस्वरूप विजयनगर राज्य सुदूर दक्षिण में रामेश्वरम् तक विस्तृत हो गया। मदूरा विजय में बुक्का के पुत्र का विशेष योगदान था। अब विजयनगर राज्य की सीमा उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक तथा पूर्व और पश्चिम में एक समुद्र तट से दूसरे समुद्र तट तक हो गयी। इसीलिए हरिहर का दो समुद्रों तथा बुक्का को तीन समुद्रों का अधिपति कहा गया है। बुक्का को भी बहमनी राज्य से संघर्ष करना पड़ा। उसने चीन से कुटनीतिक सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश भी की। बुक्का एक वीर योद्धा और कुटनीतिज्ञ होने के साथ विद्या और साहित्य का प्रेमी भी था। उसके काल में तेलुगु साहित्य की उन्नति हुई। 1377 ई. में बुक्का की मृत्यु हो गयी।
सुलव वंश
बुक्का की मृत्यु के बाद कई शासक संगमवंश में आयें इसके पश्चात् विजय नगर कि भूमि पर एक और वंश का उत्भव हुआ जिसे सुलव वंश के नाम से जाना गया इस वंश के संस्थापक नृसिंह सुलव था इसने बहमनी राज्य के आक्रमणों का सामना किया तथा साम्राज्य की रक्षा की।
तुलव वंश
इसमें सबसे अधिक वीर, पराक्रमी, नीतिज्ञ, विद्वान, विजेता और शासक कृष्ण देवराय प्रथम (सन् 1509 से 1526) था। इसके काल में कृषि, उघोग, यातायात, धर्म, संस्कृति, कला एंव साहित्य का बहुत अधिक विकास हुआ।
कृष्ण देवराय के काल में सभ्यता और संस्कृति
कृष्ण देवराय एक ओर बहमनी राज्य के आक्रमणों का मुकाबना कर रहा था तों दूसरी ओर सुन्दर शासन व्यवस्था का निर्माण और संचालन कर रहा था। इसके साथ ही उसने और अन्य तुलव राजाओं ने रायपुर, उड़ीसा और बीजापुर के सुल्तान अहमदशाह को पराजित कर प्रतिष्ठा और विजय पाई।
विजयनगर साम्राज्य का शासन प्रबंध
विजयनगर के शासन प्रबंध के विषय में विदेशी यात्रियो, ईरान के अब्दुर्रजाक, इटली के निकोलो कोंटी, पुर्तगाल के पायस तथा अनेक समकालीन एंव परवर्ती इतिहासकारो के ग्रंथों से विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इन विवरणों के अनुसार विजयनगर के शासकों ने शासन प्रबंध की व्यवस्था बड़ी कुशलतापूर्वक की थी।
विजयनगर साम्राज्य का केन्द्रीय शासन
विजयनगर की शासन व्यवस्था में राजा की संपूर्ण सत्ता का सर्वेसर्वा होता था। राजा निरंकुश होता था, परंतु राज्य में शांति एंव समृद्धि रखना तथा जनता के कल्याण की दृष्टि से कार्य करना उसके प्रमुख कर्तव्य थे।
(अ) धर्म सापेक्ष शासन
विजयनगर की शासन धर्म सापेक्ष था। यह शासन मुसलमानों के विरूद्ध हिन्दू संस्कृति तथा धर्म की रक्षा हेतु बना था। धर्म सापेक्ष होने पर भी विदेशियों पर अत्याचार नहीं किया जाता था। मुस्लिम प्रजा को भी सुविधाएं प्राप्त थीं।
(ब) सैनिक संगठन
विजयनगर साम्राज्य का मुसलमानों के साथ संघर्ष सदेव जारी रहा। अतः शासको ने सैन्य शक्ति की ओर अधिक ध्यान दिया। राजा धर्म के अनुसार शासन करता था। विजयनगर के सबसे प्रसिद्ध शासक कृष्णदेव राय ने अपनी पुस्तक ‘अमुक्त माल्याद‘ में राजा के कर्तव्यों का विस्तृत वर्णन किया है।
(स) दरबार की शोभा
विजयनगर शासक मुसलमान शासको की भांति दरवारो की शोभा पर विशेष ध्यान देते थे। विभिन्न प्रकार के उत्सव भी दरबार में होते थे।
प्रांतीय शासन
शासन व्यवस्था को सुविधा के अनुरूप चलने के लिए विजयनगर साम्राज्य कई प्रांतो में विकेन्द्रीकृत था। पायस के अनुसार विजय नगर दो सौ प्रांतों में विभक्त था। प्रत्येक प्रांत एक नायक के अधीन था। प्रत्येक प्रांतपति को अपने प्रांत में सैनिक-असैनिक तथा न्याय के पूर्ण अधिकार प्राप्त थे। उन्हें अपनी आय-व्यय का विवरण केन्द्र को प्रस्तुत करना पड़ता था। शेष 2/3 भाग वह प्रांतीय शासन पर व्यय करता था।
स्थानीय शासन
शासन प्रंबध हेतु प्रांत, मंडल तथा कोट्टम विभक्त थे। ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई थी। ग्राम का प्रबंध ग्राम सभा द्वारा किया जाता था। राजा एक अधिकारी महानायकाचार्य द्वारा ग्राम पर नियंत्रण रखता था।
विजयनगर साम्राज्य के आय के साधन
साम्राज्य की आय का सबसे प्रमुख साधन भू-राजस्व था। नूनीज के अनुसार भू-राजस्व की मात्रा उपज का 9/10 भाग थी, परंतु यह उचित प्रतीत नहीं होता। हिन्दू-विधि के अनुसार उपज का 1/6 भाग था , परंतु संभवतः इससे अधिक भू-राजस्व लिया जाता था। भू-राजस्व के अतिरिक्त चराई, विवाह कर, चुंगी, व्यापार कर, उद्यान कर, धोबियों व्यापारियो, सौदागरों, कलाकारों, भिक्षुकों, नाइयों, चमारों वैश्याओं आदि पर कर लगाए जाते थे।
विजयनगर साम्राज्य की न्याय व्यवस्था
न्याय के क्षेत्र में राजा ही सर्वेसर्वा होता था। न्यायालयों में मुकदमों का निर्णय हिन्दू प्रथाओं के अनुसार किया जाता था। दीवानी तथा फैाजदारी कानूनों को कठोरता से लागू किया जाता था। न्याय में विलंब नहीं किया जाता था। दंड कठोर थे। नूनीज लिखता है ‘‘चोरी का अपराध सिद्ध होने पर एक हाथ और एक पैर काट दिया जाता था और बड़ी चोरी सिद्ध होने पर प्राण दंड दिया जाता था।
विजयनगर साम्राज्य की सैन्य व्यवस्था
विजयनगर साम्राज्य की सैनिक व्यवस्था का उत्तरदायित्व कंडाचर नामक विभाग के पास था। इसका अध्यक्ष सेनापति या दंडनायक होता था। राजा के पास अपनी सेना होती थी। आवश्यकता पड़ने पर वह प्रांतीय सेनाओं को बुलाता था। सेना पैदल, घुड़सवार, तोपखाना तथा ऊंट चार प्रकार की थी। विजयनगर की सेना में सामंती सेना के सभी दुर्गुण थे। विजयनगर राज्य की पुलिस व्यवस्था अच्छी थी। चोरियां बहुत कम होती थीं।
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