2/27/2021

प्रतिभूति/गारंटी क्या है? लक्षण, प्रकार

By:   Last Updated: in: ,

प्रतिभूति या गारंटी अनुबंध क्या है? (pratibhuti kise kahte hai)

pratibhuti arth paribhasha lekhankan prakar;प्रतिभूति अनुबंध का ऐसा अनुबंध होता है जिसमे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा त्रुटी अथवा व्यक्तिक्रम (default) किये जाने पर उसके दायित्व की पूर्ति या वचन के निष्पादन का अनुबंध करता है।" 

भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 126 के अनुसार," प्रतिभूति अनुबंध एक ऐसा अनुबंध है जिसमे एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति को किसी तीसरे व्यक्ति की त्रुटी की दशा मे उसके (तीसरे व्यक्ति) वचन का निष्पादन करने तथा उसके दायित्वों को पूरा करने का वचन देता है। 

प्रतिभूति देने वाला व्यक्ति प्रतिभू कहलाता है और वह व्यक्ति जिसकी त्रुटि के लिए प्रतिभूति दी जाती है, मूल ऋणी कहलाता है। वह व्यक्ति जिसे प्रतिभू दी जाती है, ऋणदाता कहलाता है।

प्रतिभूति अनुबंध के तीन अनुबंध होते है--

1. मूल ऋणी और ऋणदाता के बीच, 

2. प्रतिभू और ऋणदाता के बीच

3. प्रतिभू और मूलॠणी के बीच।

अंग्रेजी राजनियम के अनुसार, प्रतिभूति का अनुबंध केवल लिखित ही हो सकता है मौखिक नही। लेकिन भारतीय राजनियम मे यह लिखित और मौखिक दोनों ही प्रकार का हो सकता है।

प्रतिभूति अथवा गारंटी के लक्षण (pratibhuti ke lakshana)

प्रतिभूति के लक्षण इस प्रकार है--

1. पक्षकारों की संख्या 

(अ) मूल ऋणी

(ब) मुख्य ऋणदाता 

(स) प्रतिभू।

2. एक साथ तीन अनुबंधों का होना 

1. मुख्य ऋणी तथा ऋणदाता के बीच अनुबंध।

2. मुख्य ऋणदाता तथा प्रतिभा के बीच अनुबंध तथा 

3. प्रतिभू तथा मुख्य ऋणी के बीच अनुबंध।

3. लिखित अथवा मौखिक अनुबंध

4. प्रतिभू का गौण दायित्व 

प्रत्याभूति के अनुबंध मे प्रमुख दायित्व ऋणी का होता है और प्रतिभू का दायित्व गौण होता है।

5. प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष अनुबंध।

6. मूल ऋणी का दायित्व प्रवर्तनीय होना 

प्रत्याभूति अनुबंध मे प्रतिभू का दायित्व तभी उत्पन्न होता है जबकि मूल ऋणी का दायित्व प्रवर्तनीय हो। अवधि वर्जित ऋण के लिये दी गई गारंटी प्रभावहीन होती है। अतएव ऐसे ऋण के लिए प्रतिभू का दायित्व नही होता।

7. प्रतिफल 

अन्य अनुबंधों की तरह गारंटी के अनुबंध मे प्रतिफल का होना आवश्यक है, किन्तु यह जरूरी नही कि प्रतिभू तथा ऋणी के मध्य भी प्रतिफल हो। मुख्य ऋणी के लिए जो भी कार्य किया है, वह प्रतिभू द्वारा दी जाने वाली गारंटी के लिए पर्याप्त प्रतिफल है।

8. ऋण या दायित्व वैधानिक होना 

इस अनुबंध मे ऋण अथवा दायित्व का वैधानिक होना भी जरूरी है। 

9.  वैध अनुबंध के सभी लक्षण होना।

10. ऋणदाता द्वारा तथ्यों को प्रकट किया जाना जरूरी है।

प्रतिभूति/गारंटी के प्रकार (pratibhuti ke prakar)

प्रतिभूति या गारंटी के दो निम्न प्रकार है--

1. विद्यमान प्रतिभूति 

जब प्रतिभूति या गारंटी पहले से विद्यमान किसी ऋण के संबंध मे दी जाती है, तो उसे विद्यमान प्रतिभूति कहा जाता है। 

उदाहरणार्थ, रमेश दिनेश से 6 महिने के लिए 2 लाख रूपये उधार लेता है। रमेश एक निश्चित दिन ऋण चुकाने को कहता है। रमेश ऋण चुकाने मे असमर्थता जताता है और एक महिने का मांगता है। दिनेश कहता कि अगर सुरेश तुम्हारी गारंटी दे तो मै एक माहिने का समय दे दूंगा। सुरेश गारंटी दे देता है। यदि रमेश भुगतान करने मे त्रुटी करता है तो सुरेश को राकेश का ऋण चुकाना पड़ेगा।

2. भावी गारंटी या प्रतिभूति 

जब किसी भावी ऋण के संबंध मे गारंटी दी जाती है तो इसे भावी गारंटी कहा जाता है। इसके दो भेद होते है--

(अ) विशिष्ट गारंटी 

विशिष्ट ऋण के लिए दी गई गारंटी। यह ऋण चुकाते ही समाप्त हो जाती है।

(ब) चालू गारंटी 

वह गारंटी जो व्यवहारों की एक श्रृंखला तक व्यापक हो, चालू गारंटी कहलाती है।

यह भी पढ़ें; क्षतिपूर्ति और गारंटी अनुबंध के बीच अंतर

शायद यह आपके लिए काफी उपयोगी जानकारी सिद्ध होगी

1 टिप्पणी:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।