2/28/2021

एजेंसी किसे कहते हैं? परिभाषा, लक्षण

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एजेंसी किसे कहते है? (agency kya hai)

agency arth paribhasha lakshana;क्षतिपूर्ति, प्रत्याभूति और निक्षेप अनुबंधों की ही भांती एजेन्सी का अनुबंध भी विशेष व्यापारिक अनुबंधों के अंतर्गत आता है और इस प्रकार यह भी भारतीय अनुबंध का एक महत्वपूर्ण अंग है। इससे संबंधित भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धाराएं 182-238 है। 

1. एजेन्ट 

भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 182 के अनुसार," एक एजेण्ड अथवा अभिकर्ता वह व्यक्ति है जो किसी दूसरे की ओर से कोई कार्य करने के लिये अथवा तृतीय पक्ष के साथ व्यवहारों मे किसी दूसरे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त किया जाता है।" 

वह व्यक्ति जिसकी ओर से ऐसा कार्य किया जाता है अथवा जिसकी ओर से इस प्रकार का प्रतिनिधित्व किया जाता है "नियोक्ता अथवा प्रधान" कहलाता है।

2. एजेन्सी 

"एक नियोक्ता और एजेण्ड के बीच जो अनुबंध होता है उसे "एजेन्सी" अथवा अभिकरण कहते है।" 

एजेंसी की परिभाषा (agency ki paribhasha)

वारटन के अनुसार," एजेंसी एक ऐसा अनुबंध है जिसके द्वारा एक व्यक्ति कुछ निश्चित व्यावसायिक संबंधों मे अपनी विवेकशक्ति से दूसरे का प्रतिनिधित्व करने का दायित्व स्वीकार करता है। 

अंग्रेजी राजनियम के अनुसार," एजेंसी का एक ऐसा अनुबंध है जिसमे किसी एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति द्वारा इस उद्देश्य से नियुक्त किया जाता है ताकि नियोक्ता तथा तृतीय व्यक्ति के बीच वैधानिक संबंध स्थापित किये जा सके।

डाॅ. मिलिन्द कोठारी के अनुसार," नियोक्ता द्वारा अपना एजेण्ड नियुक्त करने के परिणामस्वरूप उनके मध्य एक वैधानिक संबंध स्थापित हो जाता है। इस संबंध को एजेंसी कहते है।"

वर्तमान मे औद्योगिक एवं व्यापारिक क्रियाओं का विस्तार तेजी से हो रहा है। इस कारण व्यापार एवं उद्योग से संबंधित सभी कार्य स्वयं मालिक के लिए करना संभव नही है। अतः इन कार्यों को संपन्न करने के लिए अन्य व्यक्तियों की सहायता लेना पड़ती है। सहायता के रूप मे जिन व्यक्तियों से काम लिया जाता है उनकी गतिविधियों को उचित ढंग से संचालित करने के लिए विशेष व्यापारिक अनुबंध किये जाते है जिसे एजेन्सी के अनुबंध कहा जाता है। यह अनुबंध भी भारतीय अनुबंध अधिनियम का एक अंग है।

एजेंसी के लक्षण (agency lakshana)

एजेंसी के लक्षण/विशेषताएं इस प्रकार है--

1. ठहराव का होना 

अन्य ठहरावों की तरह एजेंसी भी ठहराव से होती है। यह ठहराव स्पष्ट अथवा गर्भित हो सकता है, किन्तु ठहराव का अनुबंध बनाना जरूरी नही है, क्योंकि एक ऐसा व्यक्ति भी एजेन्ट बन सकता है जिसमे अनुबंध करने की क्षमता ही नही हो, जैसे, अवयस्क। 

2. नियोक्ता द्वारा अधिकृत होना 

पक्षकारों के बीच एजेंसी तभी हो सकती है जबकि नियोक्ता ने एजेन्ट को अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिकृत किया हो, अर्थात् उसे अधिकार प्रदान किये हो।

3. नियोक्ता की ओर से कार्य करने का अभिप्राय 

एक पक्षकार (एजेन्ट) का दूसरे पक्षकार (नियोक्ता) की ओर से काम करने का अभिप्राय अवश्य होना चाहिए।

4. प्रतिफल का होना आवश्यक नही 

एजेंसी की स्थापना के लिए प्रतिफल का होना जरूरी नही है।

5. ठहराव के पक्षकार 

एजेंसी ठहराव के निन्म दो पक्षकार होते है--

(अ) प्रधान तथा 

2. एजेन्ट।

6. प्रधान के प्रति उत्तरदायित्व 

नियोक्ता अथवा प्रधान के प्रति एजेन्ट तभी उत्तरदायी होता है जबकि उसमे अनुबंध करने की क्षमता हो। यदि एजेन्ट मे अनुबंध करने की क्षमता नही है अर्थात वह अवयस्क है तो उसके कार्यों के लिए तृतीय पक्षकार के प्रति प्रधान अथवा नियोक्ता स्वयं उत्तरदायी होगा, एजेन्ट नही।

7. विश्वासाश्रित संबंध 

एजेंसी का अनुबंध एजेंट एवं नियोक्ता के मध्य पारस्परिक विश्वास एवं सद् भावना पर आधारित होता है।

एजेंसी की स्थापना या निर्माण की रीतियां 

एजेंसी की स्थापना के लिये किसी विशेष प्रकार के ठहराव अथवा अनुबंध की आवश्यकता नही होती। प्रयाः एजेंसी की स्थापना मौखिक अथवा लिखित रूप से हो सकती है। एजेंसी की स्थापना या एजेंट की नियुक्ति निम्न प्रकार की जा सकती है--

1. अनुबंध द्वारा एजेंसी 

एजेंसी की स्थापना स्पष्ट या मौखिक अनुबंध द्वारा हो सकती है। इस प्रकार की एजेंसी तभी उदय होती है जबकि पक्षकारो मे इस आशय का कोई लिखित या मौखिक अनुबंध हो। एजेंसी का लिखित अनुबंध "प्रतिनिधि अधिकार" (पाॅवर ऑफ एटाॅर्नी) कहलाता है।

2. गर्भित अधिकार द्वारा 

पक्षकारों के आचरण अथवा प्रकरण की परिस्थितियों के कारण जब एजेंसी संबंधो की स्थापना होती है तो उसे गर्भित एजेंसी कहा जाता है। एजेंसी मे पक्षकारों के आचार-व्यवहार की परिस्थिति से यह ज्ञात होता है कि व्यक्ति एजेन्ट के रूप मे कार्य कर रहा है। पत्नि अपने पति के तथा नौकर मालिक के एजेंट माने जाते है। नौकर को मलिक की ओर से तथा पत्नी को पति की ओर से वस्तुयें खरीदने का अधिकार प्राप्त होता है। (धारा-187)।

3. आवश्यकता द्वारा 

यदि इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न हो जाये कि प्रधान को सूचित किये बिना ही उसकी वस्तुओं की सुरक्षा करने या अन्य आवश्यक कार्य करने की आवश्यकता प्रतीत हो और संबंधित व्यक्ति इस उद्देश्य से कोई कार्य करें तो उसे एजेंट माना जायेगा। 

उदाहरण के लिए, मोहन अपने परिवार सहित गर्मियों की छुट्टियां बिताने के लिए काश्मीर चला जाता है। बाद मे उसके मकान मे आग लग जाती है और उसके पड़ौसी आग पर काबू पाने के लिए आवश्यकतानुसार कार्यवाही करते है। यहां पर आवश्यकता द्वारा एजेंसी का होना माना जाएगा।

4. पुष्टीकरण द्वारा एजेंसी 

पुष्टीकरण द्वारा एजेंसी उस समय स्थापित होती है जबकि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के लिए अपनी स्वेच्छा से कोई कार्य कर लेता है और वह दूसरा व्यक्ति उस कार्य की पुष्टि कर देता है। पुष्टीकरण द्वारा एजेंसी तभी उत्पन्न हो सकती है जबकि एजेंट द्वारा किए जाने वाले कार्य की नियोक्ता को बिल्कुल भी जानकारी न हो। नियोक्ता को ऐसे कार्यों की जानकारी कार्य कर लेने के बाद ही होती है और बाद मे वह उन कार्यों की पुष्टि कर देता है। 

उदाहरण-- यदि एजेंट रमेश की जानकारी के बिना रमेश की कार सुरेश को 20,000 रूपये मे बेच देता है और रमेश कार की सुपुर्दगी दे देता है तो यहाँ पुष्टीकरण द्वारा एजेंसी मानी जाएगी।

5. प्रदर्शन द्वारा एजेंसी 

जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को अपने प्रदर्शन द्वारा यह विश्वास कर लेने देता है कि कोई अमुक व्यक्ति उसका एजेंट है, जबकि वह इस प्रकार एजेन्ट नही है और इस प्रकार वह अन्य व्यक्ति अमुक व्यक्ति के साथ उसे एजेंट समझते हुए व्यवहार कर लेता है तो ऐसा प्रदर्शन करने वाला व्यक्ति उस व्यवहार के संबंध मे उत्तरदायित्व को अस्वीकार करने से रोक दिया जाता है और इस प्रकार प्रदर्शन द्वारा एजेंसी स्थापित मानी जाती है।

उदाहरण-- रमेश, सुरेश के सामने महेश से कहता है कि वह सुरेश का अभिकर्ता है। सुरेश चुप रहता है और रमेश की झुठी बात को किसी प्रकार की कोई चुनौती नही देता है। महेश, रमेश के कथन पर विश्वास करके कि सुरेश का रमेश अभिकर्ता है उसे 10,000 रूपये का माल उधार बेच देता है। उधार बेचे गए माल के मूल्य के भुगतान के लिए महेश, सुरेश को उत्तरदायी ठहरा सकता है।

एजेंसी की स्थापना के लिए प्रतिफल की आवश्यकता 

एजेंसी की स्थापना के लिये प्रतिफल की आवश्यकता नही होती अर्थात् एजेंसी अनुबंध इस बात का अपवाद है कि सभी अनुबंधों के लिये प्रतिफल आवश्यक है। एक नियोक्ता बिना प्रतिफल के भी एजेन्ट को नियुक्त कर सकता है। प्रतिफल रहित एजेंसी की स्थापना मे नियुक्त किया एजेन्ट अपने स्वामी द्वारा सौंपे गये प्रत्येक कार्य को करने के लिये बाध्य नही है, परन्तु यदि वह किसी कार्य करने के दायित्व को अपने ऊपर ले लेता है तो उसका यह कर्तव्य है कि वह उस कार्य को अपूर्ण न छोड़े।

एजेंसी की समाप्ति 

एजेंसी अनुबंध की समाप्ति निम्न दशाओं मे से किसी भी दशा मे हो सकती है--

1. एजेन्सी का कार्य पूरा होने पर 

जिस कार्य के लिए एजेन्ट को प्रधान ने नियुक्त किया था उस कार्य के पूरा हो जाने पर एजेंसी का अनुबंध समाप्त माना जावेगा।

2. ठहराव द्वारा 

प्रधान एवं एजेन्ट ठहराव या समझौता करके कभी भी अनुबंध की समाप्ति कर सकते है।

3. अवधि समाप्त होने पर 

यदि एजेन्सी का अनुबंध एक निश्चित अवधि के लिए किया गया हो तो वह अवधि बीत जाने के बाद एजेंसी समाप्त हो जावेगी चाहे कार्य पूरा नही हुआ हो। 

4. विषय वस्तु के नष्ट होने पर 

जब किसी वस्तु के लिये एजेंसी स्थापित की गई हो और वह विषय-वस्तु ही नष्ट हो जाय तो ऐसी दशा मे एजेंसी समाप्त हो जाएगी।

5. नियोक्ता या एजेंट की मृत्यु होने पर 

नियोक्ता या एजेंट मे से किसी की भी मृत्यु की दशा मे एजेंसी अनुबंध समाप्त हो जाता है।

6. पागल होने पर 

जब नियोक्ता या एजेंट दोनों मे से कोई भी पागल हो जाय तो एजेंसी समाप्त हो जाती है।

7. नियोक्ता के दिवालिया हो जाने पर 

जब नियोक्ता दिवालिया घोषित हो जाता है तो उसमें अनुबंध करने की योग्यता नही रहती है। ऐसी दशा मे एजेंसी समाप्त हो जाती है।

इस पकार एजेंसी के समाप्त होने के तरीक़ों के साथ ही साथ धारा 202 मे यह भी कहा गया है कि जहां एजेंसी की विषयवस्तु या संपत्ति मे एजेंट का स्वयं का भी हित होता है तो, जब तक एजेंसी के संविदा मे इस संबंध मे कोई अन्य स्पष्ट विपरीत संविदा न हो, एजेंसी की समाप्ति इस प्रकार से नही की जा सकती कि ऐसा करने से एजेन्ट के हित को क्षति पहुंचे।

शायद यह आपके लिए काफी उपयोगी जानकारी सिद्ध होगी

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