सार्वजनिक उपक्रमों के उद्देश्य (sarvajanik upkram ke uddeshya)
सरकार द्वारा औद्योगिक क्षेत्र मे सार्वजनिक उद्योगों की स्थापना का उद्देश्य, राजनैतिक, नैतिक, सामाजिक और आर्थिक हो सकता है। इफाफे (Economic Commission for Asia and Foreast) के अधीन आयोजित सेमिनार मे सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना के उद्देश्य इस प्रकार से बतलाये है--
1. आधारभूत सेवाएं प्रदान करना
सार्वजनिक हित मे उस समुदाय को मूलभूत सेवाएं जैसे-- जल, विद्युत, परिवहन, चिकित्सा आदि सेवाएं प्रदान करना राजकीय कार्य है। इन सेवाओं की पूर्ति के लिए सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना की जानी चाहिए।
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2. आधारभूत उद्योगों की स्थापना
इस्पात, इंजीनियरिंग, बिजली का भारी सामान बनाने वाले उद्योगों की स्थापना मे भारी मात्रा मे पूंजी की आवश्यकता होती है और शीघ्र लाभ मिलने की संभावनाएं कम रहती है। इसलिए निजी उद्योगपति इन आधारभूत उद्योगों की स्थापना के लिए ज्यादा उत्सुक नही रहते है, जबकि देश का औद्योगिक विकास आधारभूत उद्योगों पर ही बहुत सीमा तक निर्भर रहता है। इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र मे ऐसे उद्योगों की स्थापना पर ध्यान दिया जाता है।
3. एकाधिकार पर नियंत्रण
कुछ पूंजीपतियों का सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर एकाधिकार न रहे, इन उद्देश्य से भी सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना की जाती है। सम्पूर्ण उत्पादन एवं वितरण पर निजी क्षेत्र का अधिकार रहने मे मुनाफाखोरी एवं कृत्रिम अभाव की स्थिति निर्मित होती है।
4. सार्वजनिक आय मे वृद्धि
सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना का उद्देश्य सार्वजनिक आय मे वृद्धि करना भी होता है। बहुत से उपक्रमों की स्थापना सरकार आय प्राप्त करने के लिए भी करती है। जैसे-- रेलवे, डाक-तार आदि सार्वजनिक उपक्रम जनसामान्य की सेवा के साथ राजस्व मे भी महत्वपूर्ण योगदान देते है।
5. पूंजी एवं धन का पूनर्वितरण
समाजवादी समाज की स्थापना और अधिकतम राष्ट्रीय कल्याण की दृष्टि से धन के पुनर्वितरण की आवश्यकता होती है। पर्याप्त राष्ट्रीय आय के बावजूद यदि वह कुछ व्यक्तियों के हाथों मे रहे और छोटे स्तर के व्यक्ति अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करते रहे तो इससे असमानता मे तथा जन-अंसतोष मे वृद्धि होती है। उक्त समस्याएं सरलता से सार्वजनिक उपक्रम की स्थापना करके दूर की जा सकती है।
6. अधिक विनियोग
कुछ उद्योगों ऐसे होते है जिनमे पूंजी विनियोग की अधिक आवश्यकता होती है लेकिन उनसे लाभ कम प्राप्त होता है। जैसे-- वायुयान, उद्योग, बाँघ, आयुध (रक्षा) रक्षा व सुरक्षा सामग्री आदि। इन उद्योगों की स्थापना के लिए सरकार को सहायता करनी पड़ती है।
7. आर्थिक विकास
देश मे तीव्र गति से औद्योगिक विकास करने के लिए भी सरकार द्वारा सार्वजनिक उपक्रम स्थापित किये जाते है। भारत मे सार्वजनिक उपक्रमों की उत्तरोत्तर बढ़ती हुई संख्या इसका प्रमाण है।
8. रोजगार के अवसरों मे वृद्धि
बेरोजगारी की समस्या के निवारण के लिए भी सरकारी क्षेत्र मे उद्योगों की स्थापना की जाती है। इन उद्योगों से लाखों लोगों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध होते है। सरकारी उद्योगों की स्थापना प्रायः पिछड़े क्षेत्रों मे की जाती है, परिणामस्वरूप ऐसे क्षेत्रों के लोगों को कार्य के नये अवसर प्राप्त होते है।
9. आर्थिक विषमता मे कमी
औद्योगिक क्षेत्र पर केवल निजी क्षेत्र का अधिकार रहने से देश मे आर्थिक विषमता मे वृद्धि होती है। इस आर्थिक विषमता मे कमी करने के उद्देश्य से सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना की जाती है। ये उपक्रम अपना उत्पादन उचित मूल्य पर बेचते है एवं श्रमिकों के हितों की भी पूरी रक्षा की जाती है। इसके साथ ही उनके द्वारा कमाया गया लाभ जनता के कल्याण मे ही प्रयोग किया जाता है। परिणामस्वरूप जनता के जीवन स्तर मे वृद्धि होती है और कुछ लोगों के हाथों मे धन का केन्दीयकरण नही हो पाता।
सार्वजनिक उपक्रमों के लाभ (गुण) या उपयोगिता
सार्वजनिक उपक्रम के लाभ या गुण इस प्रकार है--
1. आधारभूत उद्योगों के लिए आवश्यक
किसी भी देश मे जनहित को ध्यान मे रखते हुए सरकार द्वारा आधारभूत उद्योगों की स्थापना व विकास किया जाता है, जैसे-- जल व विद्युत की पूर्ति, यातायात उद्योग इत्यादि।
2. एकाधिकारी प्रवृत्ति पर नियंत्रण
सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना द्वारा निजि क्षेत्र के एकाधिकार को समाप्त किया जा सकता है और इस प्रकार जन-साधारण को शुद्ध, सस्ती व अच्छी वस्तुएं सुलभ करायी जा सकती है।
3. संतुलित औद्योगिक विकास
निजी क्षेत्र उन्ही स्थानों पर अपने उपक्रम स्थापित करते है, जहां प्राकृतिक साधन प्रचुर मात्रा मे उप्लब्ध होते है तथा लाभ की संभावनाएं भी अधिक होती है। इस प्रकार आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है।
4. समाजवादी समाज की स्थापना
भारत सरकार की आर्थिक नीति का लक्ष्य समाजवादी समाज की स्थापना करना है। नि:संदेश सरकार द्वारा राजकीय उपक्रमों की स्थापना व विकास किया जाना समाजवादी समाज की स्थापना की दिशा मे काफी महत्वपूर्ण है। देश के सामाजिक व आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति मे राजकीय उपक्रम काफी सहायक होते है।
5. पूंजीवादी व्यवस्था के दोषों से मुक्ति दिलाना
निजी उपक्रमों की स्थापना व विकास होने से पूंजीवादी व्यवस्था को बल मिलता है, जिससे जन-साधारण का शोषण हो सकता है। राजकीय उपक्रमों की स्थापना व विकास होने से पूंजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन होता जाता है। इस प्रकार राजकीय उपक्रम पूंजीवादी व्यवस्था के दोषों से मुक्ति दिलाकर श्रमिक व उपभोक्ताओं को उनके उचित अधिकार प्राप्त कराते है।
सार्वजनिक या राजकीय उपक्रमों के दोष
सार्वजनिक उपक्रम के दोष इस प्रकार है--
1. हानि मे संचालन
अधिकांश राजकीय उपक्रम घाटे पर चलते है। इससे राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी होते है तथा जनसाधारण मे इनके प्रति अविश्वास रहता है।
2. लालफीताशाही
राजकीय उपक्रमों का एक प्रमुख दोष लालफीताशाही है, व्यक्तिगत हित के अभाव मे जो कार्य कुछ ही घण्टों मे हो सकता है वह महीनों तक फाइलों मे ही बंद पड़ा रहता है।
3. राजनीतिक हस्तक्षेप
राजकीय उपक्रमों का उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किया जाता है। इससे आर्थिक क्षेत्र मे राजनीतिक हस्तक्षेप की वृद्धि होती है जो सन्तुलित आर्थिक विकास के मार्ग मे एक बाधा है।
4. प्रबन्धकीय कुशलता निम्म स्तरीय
सार्वजनिक उपक्रमों मे प्रायः निजी उपक्रमों की अपेक्षा प्रबन्धकीय कुशलता का स्तर बड़ा ही निम्म कोटि का रहता है।
शायद यह आपके लिए काफी उपयोगी जानकारी सिद्ध होगी
अच्छी जानकारी मिली
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