संप्रेषण/संचार की प्रकृति (sampreshan ki prakriti)
1. प्रबंधकीय कार्यों के लिए आवश्यक
प्रबन्धकीय कार्यों जैसे निर्देशन के लिए संप्रेषण अत्यंत जरूरी है। संप्रेषण के बिना निर्देशन कार्य किया नही किया जा सकता।
2. संप्रेषण दोहरी क्रिया है
संप्रेषण के अंतर्गत केवल निर्देश ही नही दिए जाते, वरन् अधीन कर्मचारियों मे विचार-विमर्श भी किया जाता है, उनके सुझाव तथा कठिनाइयों को सूना जाता है। इस तरह यह दोहरी क्रिया है।
3. संप्रेषण एक सतत् क्रिया है
संप्रेषण की क्रिया लगातार चलती रहती है- विचारों का आदान-प्रदान सदैव चलता रहता है।
4. अभिप्रेरणा का आधार
संप्रेषण को अभिप्रेरणा का आधार कहा जा सकता है, क्योंकि इस क्रिया के द्वारा कर्मचारियों को कार्य करने हेतु प्रेरित किया जाता है।
5. संप्रेषण प्रवाह
संदेश तीन दिशाओं मे प्रवाहित होते है- अधोमुखी, उध्र्वमुखी एवं क्षैतिज।
6. संप्रेषण एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है
संप्रेषण के सिद्धांत सार्वभौमिक प्रकृति के होते। संप्रेषण की सार्वभौमिकता या सर्वव्यापकता का सिद्धांत संप्रेषण की एक विशेषता है। वास्तव मे, प्रभावी संप्रेषण की समस्या हर जगह व्याप्त है, जैसे-- व्यक्तिगत, सामूहिक, संस्थावार, पारिवारिक, राज्यीय, ट्रेड यूनियनों आदि।
7. संप्रेषण विज्ञान एवं कला दोनों ही है
यह विज्ञान इसलिए है क्योंकि संप्रेषण प्रक्रिया को संपूर्ण एवं प्रभावी बनाने के लिए क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित ज्ञान की जरूरत होती है और संप्रेषण कला इसलिए है कि कलात्मक अभिव्यक्ति से ही संप्रेषण को प्रभावी बनाया जा सकता है। इस प्रकार कला एवं विज्ञान दोनों के उचित मिश्रण से ही संप्रेषण प्रभावी बनता है।
7. संप्रेषण एक सामाजिक प्रक्रिया है
संप्रेषण सिर्फ व्यावसायिक संस्थाओं मे ही नही होता वरन् समाज के हर व्यक्ति द्वारा यह प्रक्रिया अपनाई जाती है, इसलिए इसे एक सामाजिक प्रक्रिया कहा गया है।
संप्रेषण का क्षेत्र (sampreshan ka kshetra)
संप्रेषण का क्षेत्र इतना व्यापक है कि वह कहाँ-कहाँ नही है यह बता पाना बहुत मुश्किल कार्य हो जाएगा। संप्रेषण सम्पूर्ण जगत मे व्याप्त है और इसका प्रयोग प्रत्येक मनुष्य द्वारा किया जाता है। संप्रेषण अन्तर्विषयक भी है जिसमे एक विषय व्यवसाय ही नही गणित, मनोविज्ञान, भौगोलिक, लेखांकन, अंकेक्षण, भाषा, दर्शन, प्रक्रिया, विश्लेषण, कार्य विश्लेषण एवं परिणाम के साथ-साथ चिकित्सा, इंजीनियरिंग, वास्तुशास्त्र, नवीन शोध एवं अनुसंधान, आधारशिला, नवीनतम संदेशों तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान भी शामिल है। संप्रेषण सामाजिक, आर्थिक, व्यावसायिक, राजनैतिक, वैयक्तिक अर्थात् जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे समाहित है। अन्ततः संप्रेषण का क्षेत्र सम्पूर्ण जगत है, यह कहना भी अतिशयोक्ति पूर्ण नही होगा।
संप्रेषण/संचार का महत्व (sampreshan ka mahatva)
संप्रेषण किसी भी व्यवसाय की जीवन धारा है। कोई भी व्यवसाय संप्रेषण के बिना संभव नही है। कीथ डेविस के शब्दों मे," संगठनो का संप्रेषण के बिना कोई अस्तित्व नही है।" संप्रेषण के बिना एक संगठन के कर्मचारी या प्रबन्धक यह नही जानते कि उनके संगठन मे क्या हो रहा है? प्रबन्धन न तो कोई सूचना प्राप्त कर पाता है और न ही कोई दिशा-निर्दश दे पाता है और न ही विभिन्न कार्यों के मध्य समन्वय स्थापित कर पाता है।संप्रेषण की अल्पता एक संगठन को असफल कर देती है। संगठन मे सहकारिता का अभाव हो जाता है क्योंकि कार्यरत् व्यक्ति आपस मे अपनी आवश्यकताओं व भावनाओं को अन्य के पास संप्रेषित कर पाने मे असफल होते है। साथ ही साथ संप्रेषण बगैर प्रश्नोत्तर प्रक्रिया, समस्याओं का समाधान, प्रतिपुष्टि व प्राप्त परिणामों का अवलोकन असंभव होता है। स्पष्ट है कि संप्रेषण एक संगठन का मूलभूत तत्व होता है और यह भी सत्य है कि यह एक गतिशील पक्ष है।
संप्रेषण निम्म कारणों से महत्वपूर्ण है--
1. व्यवसाय के सुचारू व कुशल संचालन हेतु आवश्यक
संप्रेषण किसी संगठन की सुचारू व कुशल रूप से क्रियाशीलता हेतु आवश्यक है। यह एक व्यवसाय को प्रभावी व गतिशील बनाता है। क्योंकि उपक्रम को विभिन्न विभागों मे समन्वय व उत्पादन के सतत् विक्रय को प्रत्येक स्तर पर प्रभावी संप्रेषण की आवश्यकता होती है, अतः बिना संप्रेषण के व्यवसाय सदैव असफल होगा।
2. प्रभावपूर्ण नेतृत्व हेतु आवश्यक
संप्रेषण कुशलता किसी नेतृत्व की पूर्व अनिर्वाय शर्त है। यह प्रभाव उत्पन्न करने वाली प्रक्रिया है। एक संप्रेषण मे दक्ष प्रबन्धक अपने कर्मचारियों का असली नेता होता है। एक अच्छे संप्रेषण निकाय मे व्यक्ति एक-दूसरे के अत्यन्त निकट होता है और उनकी आपसी गलतफहमियां दूर हो जाती है। संप्रेषण जितना अधिक प्रभावपूर्ण व शीघ्र होगा नेता उतना ही प्रभावशाली व अच्छे तरीके से अपने निर्णयों, भावनाओं व विचारों तथा सुझावों को अपने कर्मचारियों तक पहुंचाने मे सफल होता है।
3. प्रबन्धकीय कुशलता मे वृद्धि
प्रबन्धकीय कुशलता मे वृद्धि संप्रेषण से ही होती है। जब प्रबन्धक विभिन्न कर्मचारियों व अधीनस्थों से जानकारी, योजना, कार्यक्रम आदि प्राप्त करता है तो इनकी सूचना व जानकारी को समझकर उनकी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता है और आदेश व निर्देश भी देता है एवं अधीनस्थ, प्रबन्धक से प्रेरित होकर कार्य निष्पादन करते है, इस प्रकार संप्रेषण से ही प्रबन्धन कुशलता मे वृद्धि हो सकती है।
4. समन्वय क्षमता का विकास
संप्रेषण व्यक्तियों मे सहयोग व समन्वय क्षमता का विकास करता है, आपस मे सूचनाओं व विचारों का आदान-प्रदान करता है व उनकी एकता व क्रियाशीलता को बढ़ाता है क्योंकि एक उपक्रम मे विभिन्न विभाग होते है जो अपनी-अपनी विशिष्ट क्रियाएं अपने विभाग मे संचालित करते है। प्रत्येक विभाग अपने सभी विभागीय कार्य के लिए स्वतंत्र होता है व उच्च प्रबंध के निर्देश मे समस्त विभागों के मध्य समन्वय स्थापित करता है। संप्रेषण के बिना एकता व क्रियाशीलता का होना असंभव है।
5. न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पाद
उपक्रम के आन्तरिक क्षेत्र मे प्रभावी संप्रेषण व्यवस्था, संस्था की भौतिक एवं मानवीय शक्ति के बीच समन्वय स्थापित करती है और पुरानी प्रचलित गलत धारणाओं को दूर करके अच्छे मानवीय संबंधों की स्थापना करके तथा बाह्रा क्षेत्र मे संप्रेषण द्वारा बैंकर, बीमा, क्रेता, ग्राहकों, अन्य संस्थाओं आदि से अच्छे सम्बन्धों को स्थापित करके, मितव्ययिता से उत्पादन-क्रायाओं का संचालन कराके, न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन की उपलब्धि के लक्ष्य को संभव बनाती है।
6. योजना मे सहायक
एक प्रभावपूर्ण संप्रेषण सदैव एक संगठन की योजना व क्रियाशीलता मे सहायक होता है। किसी योजना को क्रियाशील करने व योजना के निर्धारित लक्ष्यों व उद्देश्यों को प्राप्त करने मे संप्रेषण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
7. जनसंपर्क मे सहायक
आज प्रत्येक व्यावसायिक संगठन के लिए यह आवश्यक है कि वह समाज मे अपना स्थान बनाये। समय के बदलाव के साथ-साथ जनसंपर्क के अर्थों मे भी बदलाव आया है। निगम, अर्द्धशासी संस्थान या उपक्रम, उद्योग मे जनसंपर्क के महत्व को समझा जा रहा है। आज जनसंपर्क कार्यकर्ता प्रत्येक विभागों मे देखे जा सकते है। स्पष्ट है कि संप्रेषण इस हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
8. शीघ्र निर्णय एवं क्रियान्वयन
प्रबन्धकों को व्यवसाय मे अनेक निर्णय लेने होते है, जिनके लिए अनेक प्रकार की सूचनाओं व तथ्यगत जानकरियों की जरूरत होती है जो एक प्रभावी संप्रेषण द्वारा ही उपलब्ध हो पाती है। प्रबन्धक द्वारा लिये गये निर्णयों को उनसे सम्बन्धित व्यक्तियों तथा विभागों तक पहुँचाने का कार्य भी संप्रेषण द्वारा शीघ्रता एवं सुगमतापूर्वक हो सकता है। अतः संप्रेषण द्वारा ही संस्था व्यवसाय मे शीघ्र निर्णय एवं क्रियान्वयन का लाभ उठा सकती है।
9. व्यवसाय का विस्तार
आधुनिक सूचना क्रांति के युग मे व्यवसाय द्वारा मात्र एक ही स्थान पर बड़े पैमाने के उत्पादन करने से व्यवसाय का विस्तार संभव नही इस हेतु व्यवसाय होना अत्यन्त आवश्यक है। संप्रेषण का महत्व बैंकिंग, बीमा, परिवाहन, विपणन आदि व्यवसायों मे अत्यधिक है क्योंकि संप्रेषण के अभाव मे इस प्रकार के व्यवसाय एक क्षण भी नही चल सकते है।
10. भारार्पण व विकेन्द्रीकरण
वृहद-व्यापक संगठन मे उच्च प्रबन्धक समस्त कार्यों की देखरेख स्वयं नही कर सकते इसलिए उन्हें भारार्पण व विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है तथा प्रभावी संप्रेषण की सहायता से ही भारार्पण व विकेन्द्रीकरण सफल हो सकता है।
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