6/25/2022

लोक प्रशासन और निजी प्रशासन मे समानता, अंतर/असमानता

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लोक प्रशासन और निजी प्रशासन

प्रशासन दो प्रकार के होते है-- 

1. लोक प्रशासन जिसका संबंध सरकारी विभागों और सरकारी निगम व सरकारी लेकिन स्वतंत्र निकायों व आयोगों से होता है। 

2. दूसरे प्रकार का प्रशासन निजी (व्यक्तिगत) प्रशासन जो निजी (व्यक्तिगत संस्थाओं) का प्रशासन होता है। 

लोक प्रशासन और निजी प्रशासन की तुलना 

प्रशासन को दो भागों मे विभक्त किया जा सकता है- लोक प्रशासन तथा निजी या व्यक्तिगत प्रशासन। दोनों प्रकार के प्रशासन मे कुछ समानताएं और कुछ असमानताएं देखने को मिलती है। यहाँ हम लोक प्रशासन और निजी प्रशासन मे समानताएं तथा लोक प्रशासन और निजी प्रशासन मे अंतर (असमानताएं) जानेंगे।

लोक प्रशासन और निजी प्रशासन मे समानताएं 

लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में निम्नलिखित समानताएं पाई जाती हैं--

1. तकनीकी समानता 

दोनों ही प्रशासन लोक और निजी प्रशासन मे बहुत सी प्रबन्धात्मक तकनीकी समानताएं देखने को मिलती है। हिसाब-किताब रखने की पद्धति, फाइलिंग, रिपोर्टिंग, कार्यालय प्रबंध इत्यादि बातों दोनों ही प्रशासन मे समान होती है। 

2.  कौशल का महत्व 

दोनों ही प्रशासन मे कौशल का महत्व होता है। व्यक्तिगत प्रशासन तथा लोक प्रशासन मे जिस कौशल की आवश्यकता होती है वह बहुत कुछ समान होती है। भारत मे अवकाश प्राप्त अधिकारी निजी प्रशासन मे आसानी से समायोजित कर लिए जाते है तथा उसी प्रकार निजी प्रबंध के योग्य व्यक्तियों को शासन भी चाहता है। कौशल एक ऐसा आवश्यक तत्व है जो सभी प्रशासन के आवश्यक है, चाहे वह निजी प्रशासन हो या (लोक) सरकारी प्रशासन।

3. कर्मचारी वर्ग की समानता 

दोनों ही प्रकार के प्रशासन मे प्रशासकीय व्यवस्था को गति देने का दायित्व मूलतः कर्मचारी वर्ग पर होता है। दोनों ही प्रकार के प्रशासन के लिए निष्ठावान, योग्य, अनुभवी और प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। कोई भी यह नही कह सकता कि बिना कर्मचारियों के सहयोग के वह कोई बहुत अच्छा प्रबन्धक बन जायेंगा।

4. वित्तीय व्यवस्था 

निजी तथा सार्वजनिक प्रशासन दोनो मे ही धन की आवश्यकता पड़ती है। वित्तीय आवश्यकता के साथ-साथ वित्त के व्यय की विस्तृत व्यवस्था करनी होती है। दोनों के आय व्यय का बजट, उसका लेखा-जोखा तथा उसका लेखा परीक्षण करना होता है। 

5. उत्तरदायित्व 

लोकतंत्र देशों के प्रशासन जनता के प्रति उत्तरदायी होते है। फिर वह चाहे लोक प्रशासन हो या निजी प्रशासन उन्हें जन-संपर्क करना ही होता है।

6. अन्वेषण और शोध की आवश्यकता 

दोनों ही प्रशासनों मे नये-नये अन्वेषण व शोध की आवश्यकता पड़ती है। नई-नई तकनीकी अपनाकर इसे और अधिक प्रगतिशील बनाया जाता है।

7. दोनों की सफलता का मापदंड प्रगति है 

इसके बिना किसी भी प्रशासन का लक्ष्य पूरा नही होता है। विकास एवं प्रगति के बिना लोक प्रशासन अर्थहीन हो जाता है। इसी प्रकार निजी प्रशासन की सफलता भी विकास और प्रगति पर ही निर्भर है। व्यक्तिगत प्रशासन मे यदि विकास एवं प्रगति का अभाव रहा तो प्रबंधकों के आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति नही हो सकती।

8. समान संगठन व्यवसाय 

लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन दोनो मे ही संगठन का आधार समान होता है। उदाहरणार्थ दोनों मे ही कर्मचारी, अधिकारी, नीति-निर्माता आदि का क्रम होता है तथा पद सोपान की पद्धति के द्वारा सभी अपने से वरिष्ठ के प्रति उत्तरदायी होता है व कनिष्ठ को आज्ञा देता है। दोनों ही प्रशासनों मे वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा प्रशासनिक नियमों व कानूनों को बनाया जाता है तथा प्रत्येक कर्मचारी का यह कर्तव्य है कि वह इन नियमों का पालन करे।

उपरोक्त विवरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन के बीच अंतर नही के बराबर है। दोनों की प्रकृति एक जैसी है, दोनों मे काम करने का दृष्टिकोण एवं साधन एक जैसी ही होते है। लेकिन हाँ, दोनों मे अंतर केवल मात्रा का तथा एकाधिकार का होता है। इसीलिए तो यह कहा जाता है कि वास्तव मे दोनो की समानताएं इन दोनो के आधारभूत स्वरूप को एक समान बनाए है।

लोक प्रशासन और निजी प्रशासन मे अंतर या असमानताएं

प्रो.  साइमन का विचार है, " सामान्य नागरिक की दृष्टि मे लोक प्रशासन राजनीति से परिपूर्ण और नौकरशाही तथा लालफीताशाही से युक्त होता है जबकि निजी प्रशासन लालफीताशाही से शुन्य होता है।" एल. वी. मिसेज का मत है कि ," लोगों की यह सोच है कि व्यक्तिगत प्रशासन लाभ के उद्देश्य से चलता है, लोक प्रशासन नही। नौकरशाही अकुशलता, लालफीताशाही और आलस्य की प्रतीक है।" पाल एच. एपेलवी के अनुसार," शासन का प्रशासन अन्य सभी प्रशासन के कार्यों से एक सीमा तक भिन्न होता है और बाहर से उसका आभास तक नही होता।" उपरोक्त विद्वानों के कथन से यह स्पष्ट है कि दोनों मे प्रशासन मे भेद या असमानताएं होती है। लोक प्रशासन और निजी प्रशासन मे निम्नलिखित अंतर हैं--

1. कानूनी समानता मे अंतर 

लोक प्रशासन मे कानून सभी के लिए समान रूप से लागू किया जाता है किन्तु व्यक्तियों प्रशासन मे प्रबंधकों को पूर्ण स्वतंत्रता होती है कि वे किसी भी व्यक्ति को अपनी कृपा का पात्र बना सकते है अतः यह प्रशासन पक्षपात पर आधारित होता है। 

2. सत्ता संबंधी भेद 

लोक प्रशासन मे सत्ता जनता के पास होती है, जबकि निजी प्रशासन मे सत्ता मालिकों के हाथों मे होती है।

3. वित्तीय क्षेत्र मे भिन्नता 

लोक प्रशासन और निजी प्रशासन के वित्तीय क्षेत्र मे अंतर होता है। लोक प्रशासन मे कार्यकारिणी द्वारा योजनाओं को संपन्न किया जाता है, किन्तु व्यवस्थापिका की स्वीकृति के बिना वह कोई भी पैसा खर्च नही कर सकती। इसके विपरीत निजी प्रशासन मे धन पर कोई बाहरी प्रभाव नही होता है। 

4. लक्ष्य संबंधी अंतर 

लोक प्रशासन का लक्ष्य लाभ कमाना नही होता बल्कि जनहित करना होता है। जबकि निजी प्रशासन का लक्ष्य अधिक-अधिक से लाभ कमाना होता है। 

5. उद्देश्यों मे विभिन्नता 

दोनों के उद्देश्यो मे विभिन्नता होती है, लोक प्रशासन का एकमात्र उद्देश्य "लोकहित" होता है, जबकि निजी प्रशासन का उद्देश्य व्यक्तिगत लाभ होता है।

6. सेवा का दायित्व 

लोक प्रशासन मे सेवा स्थाई होती है जबकि निजी प्रशासन मे कर्मचारियों की सेवा स्थाई नही होती।

7. दोष 

लोक प्रशासन मे नौकरशाही लालफीताशाही के दोष पाये जाते है, जबकि निजी प्रशासन मे नौकरशाही और लालफीताशाही के दोष नही होते। 

8. भेदभाव संबंधी अंतर 

लोक प्रशासन किसी के प्रति भेदभाव नही सकता, निजी प्रशासन किसी के प्रति भेदभाव कर सकता है।

9.  कुशलता संबंधी अंतर 

व्यक्तिगत प्रशासन मे जितनी कुशलता पाई जाती है, उतनी सार्वजनिक (लोक प्रशासन) मे नही। इसका कारण यह है कि व्यक्तिगत प्रशासन मे कर्मचारियों के कार्यों पर कड़ी नजर रखी जाती है। कार्य मे लापरवाही या उदासीनता दिखाई देने पर उस कर्मचारी को मालिक निकाल देता है तो दूसरी ओर अच्छा कार्य करने पर कर्मचारी को अतिरिक्त लाभ या पदोन्नति दी जाती है। लोक प्रशासन मे बहुत अच्छा कार्य करने का कोई पुरस्कार नही तथा कार्य नही करने वाले को दण्ड नही होने के कारण प्रायः कर्मचारी उदासीन हो जाते है तथा उसकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। 

10. गोपनीयता संबंधी अंतर 

लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन मे एक बड़ा अंतर यह भी है कि लोक प्रशासन मे कोई भी बात गुप्त नही रहती। निर्णय लेते समय विधानसभा को विश्वास मे लिया जाता है तथा जनता एवं प्रेस के सामने शासन की सारी बातें विभिन्न माध्यमों से आती है। एक बार निर्णय ले लिए जाने के बाद शासन के निर्णयों को, आदेशों को छुपाया नही जाता; वह जनता के लिए उपलब्ध रहते है। इसके विपरीत निजी प्रशासन मे पग-पग गोपनीयता बनी रहती है। वहां कौन अधिकारी क्या काम कर रहा है, यह भी दूसरा व्यक्ति नही जानता। हम खुद ही निजी जीवन मे यह अनुभव करते है कि सरकारी कार्यालय मे जाना तथा अपनी बात कहना जितना सरल है, निजी कार्यालयों मे प्रायः नही।

11. क्षेत्रीय विभिन्नता 

व्यक्तिगत प्रशासन मे योजना केवल थोड़े से व्यक्तियों के हित के लिए ही होती है, जबकि लोक प्रशासन मे योजना की दृष्टि सारी जनता का हित होता है। इस दृष्टि से व्यक्तिगत प्रशासन तथा लोक प्रशासन के क्षेत्र मे अंतर है। व्यक्तिगत प्रशासन का क्षेत्र सीमित तथा लोक प्रशासन का क्षेत्र व्यापक होता है। 

12. नियम कानूनों के पालन मे विभिन्नता 

लोक प्रशासन मे कर्मचारियों को सभी काम नियम कानून से करने होते है, चाहे इसमे देर कितनी भी क्यों न लग जाये। यदि कार्यालय मे कोई सामान खरीदना है तो इसके लिए अधिकारी की स्वीकृति, टेण्डर, तुलनात्मक चार्ट आदि प्रक्रियाओं से गुजरना होता है, तब कही कोई सामान खरीदा जा सकता है। इसके विपरीत निजी प्रशासन मे लाभ का दृष्टिकोण होने के कारण प्रक्रिया का महत्व नही वरन् शीघ्र एवं सस्ती वस्तु खरीदना महत्वपूर्ण है।

13. आलोचना संबंधी अंतर 

लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन मे अंतर का एक मुख्य कारण यह भी है।  सामान्यतः प्रशासन मे भूल-चूक या गलतियां सभी से होती है, लेकिन जब किसी सार्वजनिक उद्यम या लोक प्रशासन मे कोई गलती हो जाती है तो प्रेस एवं मीडिया के द्वारा उसकी बहुत आलोचना की जाती है। यदि राज्य परिवहन की बस मार्ग मे खराब हो जाती है तो वह बहुत आलोचना का विषय बन जाता है जबकि प्रायवेट बस मालिक टेक्स नही भरने पर भी निन्दा का पात्र नही बनता।

सर जोशिया लोक-प्रशासन और निजी-प्रशासन में अंतर चार बातों के आधार पर मानते हैं-- 

1. लोक-प्रशासन एकरूपता के सिद्धांत पर काम करता है जिसका अभिप्राय यह है कि सभी प्रशासनिक कार्य तथा निर्णय स्थिर होने चाहिए, अर्थात वे नियमों तथा पूर्वोदाहरण के अनुकूल हों। सभी व्यक्तियों तथा वर्गों पर लोक-प्रशासन एक समान लागू होना चाहिए, न यह किसी को प्राथमिकता दे और न ही किसी से भेदभाव करे। यदि ऐसा होगा तो उससे असंतोष फैलता है और उसकी कटू आलोचना होती है। व्यापार में एक-समानता जैसे विचारों की कोई रूकावट नहीं, और बिना किसी आलोचना अथवा आरोपों के यह अपने विशेष श्रेणी के ग्राहकों को सुविधाएँ या रियायतें दे सकता हैं और देता भी हैं। 

2. लोक-प्रशासन में बाहरी वित्तीय नियंत्रण का नियम लागू हैं, अर्थात कार्यकारिणी का वित्त पर नियंत्रण नहीं होता, यह नियंत्रण विधान-मंडल के हाथ में होता हैं। निजी प्रशासन में इस प्रकार की वित्त और प्रशासन में पूर्ण पृथकता नहीं होती। 

3. लोक-प्रशासन पर जनता के प्रति उत्तरदायित्व का नियम लागू होता है जो संसदीय शासन-प्रणाली में विशेषतया निरन्तर और विस्तृत होता है। यहाँ तक कि छोटी-सी-छोटी घटना या निर्णय संसद में प्रश्न का विषय बन सकता हैं, ताकि मंत्री इस प्रश्न का उत्तर दे सके। हर निर्णय व घटना का पूरा रिकार्ड रखना पड़ता है और यह सावधानी बरतनी होती हैं कि पूर्वोदाहरण का उल्लंघन न हो। यही लाल-फीताशाही का कारण है जिसका आरोप प्रायः लोक-प्रशासन पर लगाया जाता है। विस्तार अथवा कार्य-रीतियों के संबंध में इस प्रकार का कोई उत्तरदायित्व निजी प्रशासन में नहीं हैं।

4. व्यापार का ध्येय लाभ या मुनाफा होता है, किन्तु यह नियम लोक-प्रशासन पर लागू नही होता। यह प्रश्न कि 'क्या लाभ होगा?' व्यापारी के लिए सर्वोच्च महत्व का है और सम्भवतः नया उपक्रम आरंभ किया जाये अथवा नही, उसके निर्णय का एकमात्र आधार इस प्रश्न का उत्तर ही हैं। किन्तु किसी को शुरू करने से पहले लोक-प्रशासन के सम्मुख ऐसा कोई सरल मापदंड नहीं होता। प्रशासन की नीतियों का मूल्‍यांकन लोक-कल्याण के बहुत जटिल ध्येयों के सन्दर्भ में करना होता है। वह थोड़े से मुनाफे के लिए क्रिया का जोखिम नहीं उठा सकता। उसे यह लगभग निश्चय होना चाहिए कि जो कार्य वह करना चाहता हैं, उसके परिणाम जन-कल्याण की दृष्टि से उचित होंगे। 

संक्षेप में, लोक-प्रशासन का उद्देश्य पैसे का लाभ नहीं, अपितु उन सेवाओं को प्रदान करना है जो जनता की सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा सुविधा के लिए अनिवार्य हैं, भले ही धन की दृष्टि से उसमें लाभ हो या हानि।

क्या निजी प्रशासन लोक प्रशासन से अधिक समक्ष या कार्यकुशल हैं? 

यह एक आम धारणा है कि लोक प्रशासन की उपेक्षा निजी प्रशासन अधिक सक्षम और कार्यकुशल होता है। क्या यह धारणा सत्य हैं? यह प्रश्न विचारणीय हैं। 

असल में यह कथन पूरी तरह से सच नही हैं क्योंकि अब तक का रवैया तो यह था कि अधिक योग्य, अनुभवी और प्रतिभावान लोग लोक प्रशासन में जाना चाहते थे। जब वे रिटायर होते थे तो उन्हें निजी प्रशासन अपने यहाँ नियुक्त कर लेता था। यदि वे अधिक योग्‍य व क्षमतावान नहीं होते तो उन्हें निजी कंपनियाँ व निजी प्रशासन वाले क्यों अपने यहाँ नियुक्त करते? अब तक तो यही देखा जाता रहा है कि निजी प्रशासन में द्वितीय श्रेणी के लोग जाते थे। अब कुछ लोग प्राइवेट नौकरियों में अधिक वेतन व सुविधाएं होने से इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। लेकिन सम्मान सरकारी सेवा में ही ज्यादा हैं। अतः अभी भी योग्य व्यक्तियों का प्रतिशत सरकारी नौकरियों में यानी लोक प्रशासन में ज्यादा हैं। 

क्या लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में अंतर कम हो रहा हैं? 

असल में लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन में अंतर समाप्त होता जा रहा है क्योंकि लोक प्रशासन ने वे सब बातें अपने में समायोजित करना प्रारंभ कर दिया है जिनके कारण निजी प्रशासन अच्छा माना जाता है। जैसे आजकल व्यवसायिकता तथा प्रबंधकीय कुशलता से परिपूर्ण लोक प्रशासन में निगम व स्वतंत्र नियामिकीय आयोगों की स्थापना हो रही है। इसमें लाभ का दृष्टिकोण लिया जाने लगा है तथा out put oriented अथवा फलदायक प्रशासन का संगठन हो रहा हैं। आज सरकारी विभागों में कर्मचारियों से उम्मीद होती है कि वह निश्चित समयावधि में काम का निश्चित कोटा निपटाएं। मजिस्ट्रेटों तक से आशा होती है कि वे एक महीने में अपने कोटे के अनुसार मुकदमों का फैसला करें। प्रत्‍येक काम की समय सीमा निश्चित करके सरकारी कर्मचारी से उस सीमा में काम निबटाने की उम्मीद की जाती हैं। इसी तरह निजी प्रशासन में भी नौकरी की सुरक्षा की गारंटी, पेंशन व कर्मचारियों के कल्याण की योजनाएं लागू कर उसमें भी वे सारे गुण लाए जा रहे हैं जो लोक प्रशासन में पाए जाते हैं। निजी प्रशासन भी जनहित का दावा की दुहाई देता हैं। सरकारी निगमों व निजी प्रशासन में हस्तक्षेप बढ़ने से उनमें बहुत से गुणों का समावेश हुआ हैं, जो लोक प्रशासन के कारण ही संभव हुआ हैं। 

इस तरह लोक प्रशासन और निजी प्रशासन आपस में एक दूसरे के पास आ रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब निजी और लोक प्रशासन में कोई विशेष अंतर नहीं रहेगा।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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