1/02/2021

बहुराष्ट्रीय कंपनी के गुण और दोष

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बहुराष्ट्रीय कंपनियों के गुण या लाभ (bahurashtriya company ke gun)

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अपने कुछ गुण है जिनका उल्लेख विश्व अर्थव्यवस्था अथवा अल्पविकसित अर्थव्यवस्था के संदर्भ मे इन निगमों की भूमिका का मूल्यांकन करने मे किया जाना चाहिए। भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध मे इन कंपनियों की भूमिका को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। जो इस प्रकार है-- 

1. पूंजी और तकनीक 

औद्योगिकरण के आरम्भ मे विशेषतया अल्प विकसित देशों के औद्योगीकरण की आरम्भिक अवस्थाओं मे जब विदेशी पूंजी प्राप्त करने के लिये कुछ गिने-चुने विकल्प थे, पूंजी की पूर्ति का पहलू अधिक महत्वपूर्ण था। ये विकासशील देशों के निर्यातों मे सुविधा प्रदान करते है और इस प्रकार एक परम्परागत क्रम उत्पादन क्षेत्र को उच्च उत्पादन क्षेत्र मे रूपान्तरित करने मे सहायता पहुँचाते है।

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2. विपणन 

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश विपणन वित्तीय एवं तकनीकी सेवाओं से सम्बंधित कौशल लाता है। संयुक्त उद्यमों के माध्यम से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश स्थानीय प्रबंधकों को प्रशिक्षित करने मे सहायता करता है। व्युत्पादक प्रभावों के माध्यम से रोजगार के अवसरों मे वृद्धि करता है।

3. ये निगम दो या अधिक देशों मे अपना व्यवसाय करते है।

4. ये निगम विदेशों मे शोध, विकास, खनन, निर्माण आदि का कार्य करते है।

5. इन निगमों का विश्वव्यापी दृष्टिकोण से प्रबंध किया जाता है।

6. ये निगम महज निर्यातक, लाइसेन्सदार के रूप मे ही कार्य नही करते बल्कि ये पर्याप्त संख्या मे विदेशों मे कार्य करते है जिनकी मानवीय एवं भौतिक साधनो के सामान्य संघ तक पहुँच होती है, तथा जो अपनी बिखरी हुई व्यापक क्रियाओं का प्रबंध करते है।

7. बहुराष्ट्रीय निगमों का लक्ष्य विश्वव्यापी बाजार का विस्तार करना होता है ताकि उत्पादन लागत को न्यूनतम किया जा सके।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दोष (bahurashtriya company ke dosh)

बहुराष्ट्रीय कंपनी के दोष इस प्रकार है--

1. बहुराष्ट्रीय निगमों की प्ररचना विश्वव्यापी लाभ को अधिकतम करने के लिये की गई है न कि गरीब देशों की विकास आवश्यकताओं के लिये।

2. बहुराष्ट्रीय निगमों की शक्ति एवं लोचशीलता अधिक होती है अतः ये राष्ट्रीय आर्थिक स्वायत्तता एवं नियंत्रण पर अधिकार कर सकती है या उसको बर्बाद कर सकती है। ऐसे निगमों की क्रियाये देश-विदेश के हितों के प्रतिकूल भी हो सकती है।

3. बहुराष्ट्रीय निगमों का एक देश के भुगतान सन्तुलन पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है। अपने देशों को लाभ वापिस भेजने की क्रिया द्वारा यह निगम एक देश के विदेशी विनिमय साधनों को खाली कर सकते है। उदाहरण के लिये कोका कोला सन् 1978 तक लगभग 6 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष विदेश (अमेरिका) भेजती रहती थी जबकि भारत मे इसका प्रारंभिक विनियोग मात्र 1.6 लाख रूपये प्रतिवर्ष था। 

4. बहुराष्ट्रीय निगम प्रतिस्पर्धा का विनाश कर सकती है तथा आर्थिक सत्ता का अधिग्रहण कर सकती है।

5. बहुराष्ट्रीय निगम किसी भी देश मे रोजगार की वृद्धि मे रूकालट उत्पन्न करती है।

6. हस्तान्तरण कीमत बहुराष्ट्रीय निगमों को अंतर कंपनी लेन-देन की हस्तकला के द्वारा करने की अपेक्षा मे समर्थ बनाते है।

7. बहुराष्ट्रीय निगमों की विश्वव्यापी एवं व्यापक भयंकर शक्ति होती है। अतः ये निगम किसी भी देश की संप्रभुता के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकते है, जहाँ ये व्यवसाय करते है।

8. बहुराष्ट्रीय कंपनियां सरकार की रोजगार वहन क्षमता, मुद्रा आपूर्ति को हर जगह विनियमित करने, कर आधार का अपक्षरण रोकने और इस प्रकार अपने अधिकांश नागरिकों की आवश्यक सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने की सरकारी क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। 

9. बहुराष्ट्रीय निगम विकास के ऐसे माॅडल और विश्व मे ऐसी वितरण प्रणाली को बढ़ावा दे रहे है जो अमीरों और गरीबों के बीच की गहरी खाई की असमानताओं मे और अधिक वृद्धि कर रही है।

10. कुशलता की संकुचित, तुलन पत्र परिभाषा और विकास करो अथवा मरो के दर्शन का आश्रय लेकर बहुराष्ट्रीय निगम संसाधनों का दुरूपयोग और गलत आवंटन कर रहे है।

शायद यह आपके लिए काफी उपयोगी जानकारी सिद्ध होगी

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