12/21/2020

निगमन विधि का अर्थ, गुण और दोष

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निगमन या अनुमान विधि का अर्थ (nigman vidhi kise kahte hai)

निगमन विधि को प्रथम बार प्रयोग मे लाने का श्रेय ब्रिटेन के परम्परावादी अर्थशास्त्रियों को है। 

nigman vidhi kya hai;निगमन विधि आर्थिक विश्लेषण की सबसे पुरानी विधि है, इस रीति को काल्पनिक रीति, विश्लेषण रीति, अमूर्त रीति आदि अनेक नामों से जाना जाता है। इस रीति अथवा विधि मे सामान्य से विशिष्ट की ओर बढ़ा जाता है, अर्थात् सामान्य सत्य के आधार पर विशिष्ट सत्य की खोज की जाती है। निगमन विधि मे मानव व्यवहार के कुछ स्वयं-सिद्ध तत्वों तथा निर्विवाद बातों को ले लिया जाता है और फिर तर्क के द्वारा व्यक्तिगत परिस्थितियों के बारे मे अनुमान लगाए जाते है। 

प्रो.  जे. के. मेहता के शब्दों मे," निगमन तर्क वह तर्क है जिसमे हम दो तथ्यों के बीच के कारण और परिणाम सम्बन्धी संबंध से प्रारंभ करते है और उसकी सहायता से उस कारण का परिणाम जानने का प्रयत्न करते है, जबकि यह कारण अपना परिणाम व्यक्त करने मे अन्य बहुत से कारणों से मिला रहता है।" 

निगमन विधि को जेवन्स ने "ज्ञान से ज्ञान प्राप्त करना" कहा है जबकि बोल्डिंग ने निगमन विधि को " मानसिक प्रयोग की विधि" कहा है। 

निगमन विधि के गुण (nigman vidhi ke gun)

निगमन प्रणाली के गुण इस प्रकार से हैं--

1. सरलता 

निगमन या अनुमान विधि का पहला गुण इसकी सरलता है। अन्य प्रणाली अन्य प्रणालियों की तुलना मे अधिक सरल है। थोड़ी सी सावधानी अपनाने पर प्रत्येक व्यक्ति इस विधि को प्रयोग मे ला सकता है। क्योंकि इस विधि मे आंकड़े एकत्रित करने एवं उनके विश्लेषण करने का जलिट कार्य नही करना पड़ता। इस विधि मे सामान्य सत्य के आधार पर तर्क की सहायता से विशिष्ट निष्कर्ष निकाले जाते है जिसे एक सामान्य योग्यता वाला व्यक्ति भी आसानी से कर सकता है। 

2. निश्चितता 

निगमन प्रणाली की सत्यता व निश्चितता का मुख्य कारण यह है कि इस विधि मे निर्विवाद, स्वयंसिद्ध तथा सर्वमान्य बातों को ही आधार बनाया जाता। जब प्रणाली का आधार ठोस हो, तब अनिश्चितता का प्रश्न ही नही उठता है। तर्क करके गलतियों को सुधार लिया जाता है, और गलतियाँ कम रह जाती है। इस प्रकार से आधार के ठोस एवं सत्य होने पर सिद्धांत भी सत्य होते है। 

3. भविष्यवाणी की संभावना 

निगमन प्रणाली, निगमनों के आधार पर भविष्यवाणी करने की क्षमता रखती है। निगमन विधि के आधार पर आर्थिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगा कर भविष्यवाणी की जा सकती है।

4. निष्पक्षता 

निगमन प्रणाली मे अन्वेषक मनमाने ढंग से इनका प्रयोग नही कर सकता है। जब समान्य सत्यों को आधार मान लिया जाता है, तो तर्क की सहायता से स्वाभाविक निष्कर्ष ही निकलेंगे। इस विधि स्वयंसिद्ध मान्यताओं को मानकर तर्क के आधार पर निष्कर्ष  निकाले जाते है। जहाँ पक्षपात-रहित सही निष्कर्षों की अधिक आवश्यकता होती है, वहां निगमन विधि का अधिक महत्व होता है। 

5. आंकड़ों के संकलन की आवश्यकता नही 

निगमन प्रणाली का सभी लेखा-जोखा अनुमानों पर आधारित होता है। इसलिए इस प्रणाली मे आंकड़ों को संग्रह करने तथा आंकड़ों की विवेचना करने की आवश्यकता नही पड़ती। 

6. सर्वव्यापकता 

निगमन विधि सर्वव्यापक प्रणाली है। इसके द्वारा निकाले गये निष्कर्ष सभी समयों व स्थानों पर लागू होते है, क्योंकि उनका आधार मानवीय स्वभाव पर आधारित होते है। निगमन विधि के निष्कर्षों को सभी प्रकार की आर्थिक प्रणालियों मे लागू किया जा सकता है। 

7. आगमन विधि की पूरक 

निगमन विधि का प्रयोग आगमन विधि द्वारा निकाले गए निष्कर्षों की जांच करने के लिए किया जा सकता है। इस विधि का प्रयोग उन क्षेत्रों मे भी किया जा सकता है जहाँ आगमन विधि का प्रयोग संभव नही होता।

निगमन प्रणाली के दोष (nigman vidhi ke dosh)

निगमन विधि के दोष इस प्रकार से है-- 

1. निष्कर्ष वास्तविक से परे होते है 

निगमन विधि का प्रमुख दोष यह है कि इससे निकाले निष्कर्ष सही या वास्तविक नही होते है। इस प्रणाली के अंतर्गत नियमों को बनाते समय हम कुछ मान्यताओं को लेकर चलते है। ये मान्ततायें असत्य एवं अपूर्ण हो सकती है और ऐसी मान्यताओं के आधार पर निकाले गये निष्कर्ष भी अवास्तविक य् दोषपूर्ण हो सकते है। 

2. निष्कर्ष अव्यावहारिक 

इस प्रणाली के निष्कर्ष तर्क के आधार पर तो सही हो सकते है, लेकिन व्यवहार मे उनकी सत्यता संदिग्ध होती है, क्योंकि इस प्रणाली के आधार पर जब सामान्य सत्य से विशिष्ट सत्य की ओर बढ़ा जाता है, तब सामाजिक वातावरण के परिवर्तनों को ध्यान मे नही रखा जाता, जबकि व्यवहार मे सामाजिक वातावरण का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है, अतः इस प्रणाली के निष्कर्ष व्यावहारिकता से दूर होते है। 

3. अर्थशास्त्र के पूर्ण विकास का असंभव होना 

अगर निगमन विधि का अधिक प्रयोग होता है, तो अर्थशास्त्र का पूर्ण विकास संभव नही है, क्योंकि इस विधि की सहायता से अर्थशास्त्र के सभी पहलुओं का अध्ययन नही किया जा सकता है। 

4. सार्वभौमिकता अभाव 

जो लोग इस विधि की सार्वभौमिकता का दावा करते है वह सही नही है। क्योंकि आर्थिक परिस्थितियां समय तथा स्थान के साथ निरंतर बदलती रहती है, अतः निष्कर्षों का सभी स्थान पर परिस्थितियों का प्रयोग नही किया जा सकता। 

5. स्थिर दृष्टिकोण 

निगमन प्रणाली मे निष्कर्ष कुछ स्वयंसिद्ध बातों को स्थिर मानकर निकाले जाते है, अतः यह स्थैतिक विश्लेषण है और इसमे प्रावैगिक दृष्टिकोण का अभाव पाया जाता है। विश्व की अधिकांश आर्थिक समस्याएं प्रावैगिक अथवा परिवर्तनशील है।

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