12/22/2020

मांग का अर्थ, परिभाषा, प्रकार

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mang ka arth paribhasha prakar;अर्थशास्त्र मे मांग को एक धुरी की संज्ञा दी जा सकती है जिसके चारों ओर सम्पूर्ण क्रियाएं चक्कर लगाती है। मांग के अभाव मे उपभोग तथा बाजार का अध्ययन संभव नही हो सकता है। उत्पादन, उपभोग, विनिमय तथा वितरण के हर क्षेत्र का मूल मांग एवं पूर्ति मे ही निहित है।  उपभोक्ताओं की मांग को ध्यान मे रखकर ही उत्पादक उत्पादन की मात्रा तथा किस्म का निर्धारण करता है। उत्पादक का लक्ष्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है और कोई उत्पादक अधिकतम लाभ तभी प्राप्त कर सकता है जब वह ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करें जिनकी मांग बाजार मे बहुत अधिक है। उपभोक्ता की मांग मे परिवर्तन आने का मतलब है सम्पूर्ण उत्पादन तन्त्र मे परिवर्तन होना। 

मांग का अर्थ (mang kise kahte hai)

Mang meaning in hindi;आम बोलचाल मे मांग का अर्थ या तात्पर्य किसी वस्तु के लिए इच्छा से लगाया जाता है, किन्तु अर्थशास्त्र मे मांग का तात्पर्य इससे अधिक है। अर्थशास्त्र मे मांग शब्द का अभिप्राय किसी वस्तु के लिये उस " इच्छा " से है जिसके पीछे उसके लिए रकम देने की योग्यता और तत्परता हो। किसी वस्तु के लिये इच्छामात्र को उसकी मांग का दर्जा नही दिया जा सकता। उदाहरणार्थ कोई व्यक्ति यदि कार खरीदना तो चाहता है किन्तु उनकी कीमत चुकाने के लिए उसके पास पर्याप्त धनराशि नही है-- तब उसकी चाहत को कार के लिये उसकी मांग नही कहा जा सकता। और यदि कोई अमीर या कंजूस व्यक्ति कार को खरीदना चाहता है किन्तु उसकी कीमत चुकाने को वह तत्पर (तैयार) नही है, इसलिए कार के लिये उसकी इच्छा भी उसकी मांज नही है। किन्तु किसी व्यक्ति के पास पर्याप्त धनराशि हो और वह उस चीज की कीमत चुकाने के लिए तैयार है तो उसकी कार खरीदने की इच्छा को एक प्रभावी मांग का दर्जा दिया जा सकता है। 

मांग की परिभाषा (mang ki paribhasha)

मेयर्स के अनुसार," वस्तु की मांग उन मात्राओं का एक कार्यक्रम है जिन्हें क्रेता सभी संभव कीमतों पर किसी एक समय मे तत्काल खदीदने के इच्छुक होते है।" 

बेन्हम के शब्दों मे," एक दिये गये मूल्य पर किसी भी वस्तु की मांग वस्तु की वह मात्रा है जो उस कीमत पर समय की हर इकाई मे खरीदी जाएगी।

मांग का एक विशेष अर्थ है। सिर्फ किसी वस्तु को खरीदने की इच्छा को ही मांग नही कहा जाता। इच्छा के साथ-साथ सहमति एवं उसे खरीदने की क्षमता का होना जरूरी है। उदाहरण के एक व्यक्ति है जो कार खरीदना चाहता है, वह कार खरीदने के लिए तैयार तो पर, कार खरीदने मे असमर्थ है, क्योंकि उसके पास कार खरीदने के पैंसे नही है, अतः कार उस गरीब व्यक्ति मांग नही है। ठीक इस प्रकार से एक अमीर व्यक्ति है जिसके पास बहुत पैंसा है लेकिन वह कंजूस है वह कार को खरीदना चाहता है, वह कार को आसानी से खरीद सकता है क्योंकि उसके पास बहुत पैसा है लेकिन वह कंजूस है इसलिए वह पैसा खर्च नही करना चाहता, और कार तो पैसों से ही खरीदी जा सकती है। कार यहां भी मांग नही है। संक्षेप मे मांग तब पैदा होती है जहां पर इच्छा के साथ-साथ सहमति और क्षमता भी हो। 

मांग के लक्षण या विशेषताएं 

मांग के लक्षण या विशेषताएं इस प्रकार से है--

1. इच्छा तथा मांग मे अंतर होता है। एक व्यक्ति सैकड़ों वस्तुओं की इच्छा रख सकता है पर उनमे से कुछ ही उसकी मांग होती है। 

2. मांग एक प्रभावी इच्छा है, जो एक वस्तु खरीदने हेतु सहमति तथा क्षमता पर निर्भर होती है।

3. मांग निकटता से मूल्य से सम्बंधित है। मूल्य के बिना मांग का अर्थ नही है।

4. मांग समय विशेष से सम्बंधित होती है।

मांग के प्रकार (mang ke prakar)

मांग के प्रकार इस प्रकार से है-- 

1. उपभोक्ता वस्तुओं और उत्पादन वस्तुओं की मांग 

उपभोक्ता वस्तुएं वे अंतिम वस्तुएं होती है जो उपभोक्ता की आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करती हो। ऐसी वस्तुएं है-- रोटी, दूध, कपड़े, फर्नीचर आदि। पूंजी या उत्पादन वस्तुएं वे वस्तुएं होती है जो अन्य वस्तुओं के उत्पादन मे मदद पहुँचाती है और जो उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को अप्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करती है; जैसे मशीन, प्लांट, कृषिगत एवं औधोगिक  कच्चे पदार्थ आदि। उपभोक्ता वस्तुओं की मांग प्रत्यक या स्वायत्त मांग कहलाती है। उत्पादन वस्तुओं की मांग व्युत्पन्न मांग होती है क्योंकि इन वस्तुओं की अंतिम उपभोग के लिए नही बल्कि अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए मांग की जाती है। 

जे. डीन. ने अर्थव्यवस्था के उत्पादन वस्तुओं की मांग के संदर्भ मे निम्म बातें बताई है-- 

1. उत्पादक वस्तुओं के क्रेता व्यवसायी होते है और वे प्रायः कुशल होते है। अतः बिक्री बढ़ाने की क्रियाओं का उन पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। 

2.उपभोक्ता वस्तुओं के क्रेताओं का उद्देश्य पूर्णतः आर्थिक होता है। वे पूंजीगत वस्तुओं को लाभ के उद्देश्य से ही खरीदते है। 

3. उनकी मांग उपभोग मांग से व्यत्पन्न होने कारण उसमे निरन्तर और तीव्र उतार-चढ़ाव होते रहते है

कोई वस्तु उपभोक्ता वस्तु है या उत्पादन वस्तु, यह उसके उपयोग पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ, जब फर्नीचर का उपयोग घर मे किया जाता है तो वह उपभोक्ता वस्तु है जबकि वही फर्नीचर जब व्यावसायिक गृह के लिए उपयोग किया जाता है तो वह उत्पादन वस्तु है। फिर भी, यह विभेद उपयुक्त मांग विश्लेषण के लिए लाभप्रद है।

2. नाशवान और टिकाऊ वस्तुओं की मांग 

आगे उपभोक्ता और उत्पादन वस्तुओं को नाशवान और टिकाऊ वस्तुओं मे वर्गीकृत किया गया है। अर्थशास्त्र मे, नाशवान वस्तुएं वे होती है जिनका उपभोग सिर्फ एक बार किया जा सकता है, जबकि टिकाऊ वस्तुएं वे है जो एक समय अवधि के बाद एक से अधिक या दुबारा उपयोग की जा सकती है। अर्थात् नाशवान वस्तुएं अपने-आप उपभोग की जाती है जबकि टिकाऊ वस्तुओं की सिर्फ सेवाएं उपभोग की जाती है। इस प्रकार, नाशवान वस्तुओं के अंतर्गत सभी प्रकार की सेवाएं, भोज्य पदार्थ, कच्चे माल आदि आते है तथा दूसरी ओर टिकाऊ वस्तुओं के अंतर्गत मकान, मशीन, फर्नीचर आदि आते है। इस विभेद का इसलिए और भी महत्व है क्योंकि मांग विश्लेषण मे टिकाऊ वस्तुएं, गैर-टिकाऊ वस्तुओं की उपेक्षा अधिक जटिल समस्याएँ पैदा करती है। गैर-टिकाऊ वस्तुओं की बिक्री प्रायः वर्तमान मांग को पूरा करने के लिए की जाती है जो वर्तमान दशाओं पर निर्भर करती है। दूसरी ओर, टिकाऊ वस्तुओं की बिक्री वर्तमान वस्तुओं के भंडार मे वृद्धि करती है, जिनक सेवाएं एक समय अवधि के उपरांत उफभोग की जाती है। नाशवान वस्तुओं की मांग अधिक लोचशील होती है जबकि नाशवान टिकाऊ वस्तुओं की मांग अल्पकाल मे कम लोचशील होती है और दीर्घकाल मे उनकी मांग मे अधिक लोचशील होने की प्रवृत्ति होती है। जे. डीन ने कहा है कि टिकाऊ वस्तुओं की मांग व्यावसायिक दशाओं के सापेक्ष मे आर्थिक अस्थिर होती है। स्थगनता, स्थानापन्नता, भंडारण और विस्तार परस्पर सम्बन्धित समस्याएं है जो टिकाऊ वस्तुओं की मांग निर्धारित करने मे शामिल रहती है।

3. व्युत्पन्न और स्वायत्त मांग 

जब किसी वस्तु की मांग, कुछ मूल वस्तुओं की खरीद से जुड़ी होती है तो उसकी मांग व्युत्पन्न मांग कहलाती है।

दूसरी ओर, उन वस्तुओं की, जिनकी मांग कुछ अन्य वस्तुओं की मांग से नही जुड़ी होती है, स्वायत्त मांग कहलाती है, जैसे भोजन, वस्त्र, आवास आदि। उपभोक्ता वस्तुओं की मांग स्वायत्त मांग होती है।

4. फर्म (या कंपनी) मांग और उद्योग मांग

फर्म-मांग से आश्य किसी विशेष फर्म कि किसी विशेष वस्तु की मांग से है। दूसरी ओर, उद्योग मांग किसी विशेष उद्योग की वस्तु की कुल मांग होती है।

5. अल्पकालीन मांग और दीर्घकालीन मांग 

नाशावान वस्तुओं जैसे सब्जी, फल, दूध आदि के लिए कीमत मे परिवर्तन से मांगी गई मात्रा मे परिवर्तन शीघ्रता से होता है। ऐसी वस्तुओं के लिए एक अकेला ॠणात्मक ढलान वाला सामान्य मांग वक्र होता है। लेकिन टिकाऊ वस्तुओं जैसे उपकरण, मशीनें, कपड़े और अन्य ऐसी वस्तुओं के लिए कीमत मे परिवर्तन का मांगी गई मात्रा पर अंतिम प्रभाव नही होगा जब तक कि वस्तु का वर्तमान स्टाॅक समायोजित नही होता जो लम्बी अवधि ले सकता है। एक अल्पकालीन मांग वक्र कीमत मे परिवर्तन से मांगी गई मात्रा मे परिवर्तन को दर्शाता है, जब टिकाऊ वस्तु का वर्तमान स्टाॅक और स्थानापन्नों की पूर्तियां दी हुई हो। दूसरी ओर, एक दीर्घकालीन मांग वक्र कीमत मे परिवर्तन से मांगी गई मात्रा मे परिवर्तन को दर्शाता है, जब दीर्घकाल मे सभी समायोजन कर दिए गए हों।

जोल डीन के अनुसार," अल्पकालीन मांग से अभिप्राय चालू मांग से है जिसमे कीमत मे परिवर्तन, आय मे उतार-चढ़ाव आदि की तात्कालिक प्रतिक्रिया होती है जबकि दीर्घकालीन मांग अन्ततः कीमत-निर्धारण मे परिवर्तनों, संवर्द्धन या वस्तु सुधार के परिणामस्वरूप होती है। इसके अंतर्गत बाजार को नये अवसर के मुताबिक अपने को समायोजित करने का पर्याप्त समय मिलता है।" 

6. संयुक्त मांग और सम्मिश्र मांग 

जब दो वस्तुएं एक ही समय मे एकल आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए एक साथ मांगी जाती है तो उसे संयुक्त या पूरक मांग कहते है। संयुक्त मांग किन्ही ऐसी दो या अधिक वस्तुओं अथवा सेवाओं के सम्बन्ध को बताती है जो एक साथ (इकट्ठी) मांगी जाती है। कार तथा पेट्रोल की, पैन तथा स्याही की और चाय तथा चीनी की मांग, संयुक्त मांग है। जिन वस्तुओं की संयुक्त मांग होती है वे वस्तुएं पूरक कहलाती है। एक वस्तु की कीमत बढ़ जाने से दूसरी वस्तु की मांग गिर जाती है, और विलोमशः भी। उदाहरण के लिए कार की कीमतों मे वृद्धि कार की मांग को और साथ ही पेट्रोल की मांग को गिरा देगी और पेट्रोल की किमत घटा देगी, बशर्ते कि पेट्रोल की पूर्ति अपरिवर्तित रहे। दूसरी ओर, यदि कारों के उत्पादन की लागत गिरने से कारो की कीमत गिर जाती है तो उनकी मांग बढ़ जाएगी और इसलिए पेट्रोल की मांग और कीमत बढ़ जाएगी बशर्ते कि पेट्रोल की उपलब्ध पर्तियां अपरिवर्तित रहे। दूसरी ओर, जिस वस्तु के अनेक वैकल्पिक प्रयोग किए जा सकें, उसकी मांग सम्मिश्र मांग कहलाती है। यह चमकड़ा, इस्पात, कोयला, कागज आदि वस्तुओं की ही नही अपितु भूमि, श्रम तथा पूंजी जैसे उत्पादन के साधनों की भी विशिष्टता है। उदाहरण के तौर पर, रेल, फैक्ट्री, घरेलू उपयोग आदि के लिए कोयले की मांग रहती है। सम्मिश्र मांग मे एक वस्तु के विभिन्न प्रयोगों मे स्पर्धा रहती है। अतः उस वस्तु का प्रत्येक प्रयोग उसके अन्य प्रयोगों से स्पर्धा रखता है। इसलिए इसे स्पर्धी मांग (प्रतियोगी मांग) भी कहते है। किसी वस्तु के लिए एक उपयोगकर्ता द्वारा मांग मे परिवर्तन से अन्य उपयोगकर्ताओं को इसकी पूर्ति पर प्रभाव पड़ेगा जिससे उसकी कीमत मे परिवर्तन होगा।

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