12/26/2020

बाजार का वर्गीकरण

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बाजार का वर्गीकरण (bazar ka vargikaran)

विभिन्न तत्वों के आधार पर बाजारों का वर्गीकरण किया जाता है। इसके मुख्य आधार निम्म है-- 

1. क्षेत्र के आधार पर बाजार का वर्गीकरण 

क्षेत्र के आधार पर वर्गीकरण 4 प्रकार के होते, जो इस प्रकार है--

(अ) स्थानीय बाजार 

स्थानीय बाजार से अभिप्राय उस बाजार से है जो किसी गांव अथवा छोटे क्षेत्र मे सीमित होता है। स्थानीय बाजार उन वस्तुओं के लिये सहयोगी होता है जिनकी मांग व्यापक नही होती अथवा उन वस्तुओं को एक स्थान के आस-पास ही क्रय अथवा बेजा जा सकता है। स्थानीय बाजार की वस्तुओं मे दूध, दही, सब्जी इत्यादि के साथ-साथ रेत, पत्थर, ईंट आदि को शामिल किया जाता है।

(ब) क्षेत्रीय बाजार 

क्षेत्त्रीय बाजार का क्षेत्र स्थानीय बाजार से व्यापक होता है। यहां वस्तु की मांग एवं पूर्ति एक खास क्षेत्र अथवा प्रांत की सीमा तक विस्तृत रहती है। इन प्रातीय सीमाओं के अंतर्गत वस्तु की मांग और प्रतिपूर्ति क्षेत्रीय बाजार माना जाता है जैसे राजस्थान मे लंहगा चुनरी का व्यापार,  जम्मू-कश्मीर मे टोपी का व्यापार आदि।

(स) राष्ट्रीय बाजार 

राष्ट्रीय बाजार का क्षेत्र पूरे देश तक फैला होता है। अर्थात् जिन वस्तुओं की मांग देश की सीमाओं को छूती है उन वस्तुओं का बाजार राष्ट्रीय बाजार कहलाता है। उदाहरणार्थ भारत की सिल्क की साड़ियां, भारत की बनी चूड़ियां इत्यादि।

(द) अंतर्राष्ट्रीय बाजार 

जिन वस्तुओं के क्रेता और विक्रेता विश्व के विभिन्न क्षेत्रों मे फैले होते है उसे हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार कहते है। उदाहरणार्थ सोने चांदी एवं जवाहरात आदि का व्यापार।

2. समय के आधार पर बाजार का वर्गीकरण 

समय के आधार पर बाजार का वर्गीकरण इस प्रकार है-- 

(अ) दीर्घकालीन बाजार 

दीर्घकालीन बाजार वह बाजार है जिसमे विक्रेता के पास पूर्ति मे वृद्धि करने के लिए पर्याप्त लम्बा समय होता है। इस बाजार मे मांग और पूर्ति की शक्तियों मे पूर्ण समायोजन हो जाता है। फलतः मूल्य के निर्धारण मे मांग और पूर्ति दोनों का समान प्रभाव पड़ता है।

(ब) अति दीर्घकालीन बाजार 

इस बाजार मे विक्रेता के पास इतना अधिक समय होता है कि वह उपभोक्ता के स्वभाव, रूचि और फैशन के अनुसार उत्पादन कर सकता है। 

(स) अल्पकालीन बाजार 

अल्पकालीन बाजार वह बाजार है जिसकी पूर्ति कुछ सीमा तक बढ़ाई जा सकती है, किन्तु यह वृद्धि मांग के अनुपात मे नही होती है।

(द) अति अल्पकालीन बाजार 

जब वस्तु के विक्रेता के पास पूर्ति मे वृद्धि करने का समय बिल्कुल भी उपलब्ध नही होता, तब इस प्रकार के बाजार को अति अल्पकालीन बाजार कहते है। जैसे-- हरी सब्जियां, दूध, दही आदि।

3. प्रतियोगिता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण 

प्रतियोगिता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण इस प्रकार से है-- 

(अ) पूर्ण प्रतियोगिता बाजार 

जब बाज़ार मे किसी वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच प्रतियोगिता होती है तब बाजार को पूर्ण प्रतियोगिता बाजार कहा जाता है। इस प्रकार के बाजार मे क्रेता और विक्रेता को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है।

(ब) अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार 

अपूर्ण बाजार की व्याख्या करते हुए बेन्हम ने लिखा है," अपूर्ण बाजार उस दशा मे कहा जायेगा जब क्रेताओं और विक्रेताओं को या कुछ क्रेताओं और कुछ विक्रेताओं को एक दूसरे के द्वारा दिया हुआ या मांग हुआ मूल्य का ज्ञान नही होता है।" 

इस बाजार मे क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या कम होती है तथा उन्हे बाजार का भी पूर्ण ज्ञान नही होता है। प्रमुख रूप से इस बाजार मे वस्तु विभेद किया जाता है।

(स) एकाधिकार 

एकाधिकार बाजार उस उस दशा को कहा जायेगा जिसमे वस्तु का अकेला उत्पादन होता है और उसकी स्थानापन्न वस्तु का भी कोई और उत्पादन नही होता है।

4. कार्य के आधार पर बाजार का वर्गीकरण 

कार्य के आधार पर बाजार का वर्गीकरण इस प्रकार से है-- 

(अ) विशिष्ट बाजार 

कभी कभी कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण कुछ वस्तुओं का बाजार एक साथ कुछ क्षेत्रों मे या स्थानों मे क्रेन्द्रित हो जाता है। उसे विशिष्ट बाजार कहा जाता है। 

(ब) मिश्रित बाजार 

जब एक ही बाजार मे एक से अधिक वस्तुओं या मिली-जुली वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है, तब उस बाजार को मिश्रित बाजार या सामान्य बाजार कहा जाता है।

(स) नमूनों द्वारा बाजार 

वर्तमान समय मे बड़े पैमाने का क्रय विक्रय नमूनों के आधार पर किया जाने लगा है। माल बेचने वाली मिलों व फर्मों के द्वारा अपने प्रतिनिधियों को वस्तुओं के नमूने दे दिये जाते है, और वे उन नमूनों को दिखाकर माल का आर्डर बुक कर लेते है। इस प्रकार की व्यवस्था कपड़े, ऊन तथा रंग-पेण्ट, आदि मे अधिकाधिक लोकप्रिय होती जा रही है।

(द) श्रेणियों के आधार पर बाजार 

वर्तमान मे ग्रेज के द्वारा वस्तुओं के क्रय-विक्रय को बहुत अधिक महत्व दिया जा रहा है। इस व्यवस्था मे वस्तु को कई ग्रेडों मे बांट दिया जाता है और इन्हीं ग्रेडों के आधार पर वस्तुओं का सौदा किया जाता है।

5. वैधानिकता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण 

वैधानिकता के आधार पर बाजार का वर्गीकरण इस प्रकार है--

(अ) वैध बाजार 

जिस बाजार मे ग्राहकों को सरकार द्वारा निर्यात किये गये मूल्यों पर वस्तुएं मिलती है, उसे वैध बाजार कहा जाता है। जैसे, राशन की दुकान आदि।

(ब) अवैध बाजार 

जब किसी वस्तु का क्रय विक्रय सरकार द्वारा निर्धारित कीमत से कम या अधिक होता है, तब उस बाजार को अवैध बाजार कहा जाता है।

6. वस्तु की प्रकृति के आधार पर बाजार का वर्गीकरण 

वस्तु की प्रकृति के आधार पर बाजार का वर्गीकरण इस प्रकार है--

(अ) उपज बाजार 

जिस बाज़ार मे उत्पादित वस्तुओं के क्रय-विक्रय के सौदे होते है, उसे उपज बाजार कहा जाता है।

(ब) स्कन्ध बाजार 

जिस बाज़ार मे अंश, प्रतिभूतियों तथा स्टाॅक, आदि के सौदे होते है, उसे उपज बाजार कहते है।

(स) धातु बाजार 

जिस बाज़ार मे सोने-चांदी के क्रय-विक्रय के सौदे होते है, उसे धातु बाजार कहा जाता है।

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