12/26/2020

पूर्ण प्रतियोगिता क्या है? विशेषताएं

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पूर्ण प्रतियोगिता क्या है? पूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ 

purn pratiyogita kya hai? purn pratiyogita ki visheshta;पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति होती है जिसमे एक वस्तु के बहुत अधिक क्रेता तथा विक्रेता होते है व वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए उनमे परस्पर इतनी प्रतिस्पर्धा होती है कि संपूर्ण बाजार मे वस्तु का एक ही मूल्य प्रचलित रहता है। 

दूसरे शब्दों में," पूर्ण प्रतियोगिता से आश्य वस्तु के क्रेताओं एवं विक्रेताओं के मध्य पूर्ण प्रतियोगिता का होना है। इस प्रतियोगिता के कारण इस प्रकार के बाजार मे वस्तु के मूल्य सभी स्थानो पर एक समान होते है।

श्रीमती जाॅन राबिन्सन के अनुसार," पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति उस समय पायी जाती है, जब प्रत्येक उत्पादक का उत्पादकता के लिए मांग पूर्णतया लोचदार होती है। अर्थात् पूर्ण प्रतियोगिता मे-- 1. विक्रेताओं की संख्या पर्याप्त अधिक होती है, जिससे किसी एक विक्रेता की उत्पादकता उस वस्तु की कुल उपज का एक बहुत ही थोड़ा भाग होती है 2. सभी क्रेता, प्रतियोगी विक्रेताओं के मध्य चुनाव करने की दृष्टि से समान होते है फलतः बाजार पूर्ण हो जाता है।"

पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएं (purn pratiyogita ki visheshta)

पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएं इस प्रकार है--

1. क्रेताओं की अत्यधिक संख्या का होना 

पूर्ण प्रतियोगिता मे बेचने वालों की संख्याओं के साथ-साथ खरीदने वालो की संख्या भी अधिक होती है। जिसके कारण प्रत्येक क्रेता उद्योग के कुल उत्पादन का एक छोटा ही भाग खरीद पाता है अर्थात् वह अपनी सीमित खरीद के कारण ही वस्तु की कीमत प्रभावित करने की स्थिति मे नही होता।

2. समरूप वस्तु 

पूर्ण प्रतियोगिता मे उद्योग मे लगी सभी फर्में जो वस्तु बना रही है वे बिल्कुल समान तथा एक जैसी होती है, अर्थात् वस्तु विभेद अनुपस्थित रहता है। वस्तुओं मे भौतिक दृष्टि से ही समानता नही होती बल्कि वस्तुओं मे व्यापारिक चिन्ह, ब्राण्ड, नाम आदि का भी अंतर नही होता। इतना ही नही, क्रेताओं के मन मे किसी विक्रेता विशेष की वस्तु के लिए लगाव भी नही होता। 

3. क्रेताओं तथा विक्रेताओं को वस्तु की मांग तथा पूंर्ति का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए 

क्रेताओं को इस बात की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए कि कहाँ कौन सी वस्तु किस मूल्य मे मिल रही है। इसी प्रकार विक्रेताओं को भी इस बात की पूरी जानकारी होनी चाहिए कि कौन-सा विक्रेता किसी वस्तु को किस मूल्य मे बेच रहा है। ऐसी दशा मे वस्तु का मूल्य प्रभावित नही होता है।

5. उत्पत्ति के साधनों मे पूर्ण गतिशीलता

पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत उत्पत्ति के किसी साधन को बेरोक-टोक एक उद्योग से दूसरे उद्योग मे लाया और ले जाया जा सकता है। यदि किसी उद्योग मे उत्पत्ति के अकुशल साधन कार्य कर रहे हों, तो उनके स्थान पर उत्पत्ति के कुशल साधनों को लगाया जा सकता है।

6. यातायात लागतों की अनुपस्थिति 

पूर्ण प्रतियोगिता मे सभी उत्पादक एक-दूसरे के समीप होते है, जिससे यातायात लागतें महत्वहीन मान ली जाती है। इससे बाजार मे वस्तु की कीमत समान होती है। इस संदर्भ मे स्टोनियर और हेग का कहना है कि " पूर्ण प्रतियोगिता की विवेचना करते समय यह मान लेना सुविधापूर्ण होगा कि सभी उत्पादक एक दूसरे के बहुत समीप कार्य करते है, जिसके कारण यातायात लागतें नही के बराबर हो जाती है।

7. समान मूल्य 

समस्त बाजार मे उस वस्तु की एक ही मूल्य प्रचलित रहती है, यदि कोई विक्रेता अधिक मूल्य रखेगा तो उसकी विक्री शुन्य हो जायेगी।

8. फर्मों को प्रवेश व छोड़ने की स्वतंत्रता 

इस बाजार मे कोई भी नई फर्म उद्योग मे प्रवेश कर सकती है तथा काम मे लगी कोई भी फर्म उत्पादन बंद कर उद्योग छोड़ सकती है।

9. कोई प्रतिबंध नही 

पूर्ण प्रतियोगी बाजार मे वस्तु के क्रेताओं व विक्रेताओं पर सरकार व अन्य किसी भी संस्था की ओर से कोई भी प्रतिबंध नही रहता। प्रत्येक बात का निर्णय बाजार की शक्तियों पर आधारित होता है।

10. विक्रय लागत का अभाव 

इस स्थिति मे विक्रेता विज्ञापन, प्रचार आदि पर खर्च नही करता। सभी फर्मों का उत्पादन समान होता है।

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