व्यावसायिक पूर्वानुमान का अर्थ (vyavsayik purvanuman kya hai)
वर्तमान युग पूर्वानुमान का युग है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के पूर्वानुमान में रूचि रखता है। पूर्वानुमान नियोजन का आधार होता है। पूर्वानुमान में भविष्य की परिस्थितियों का अनुमान लगाया जाता है। व्यावसायिक क्षेत्र में वर्तमान तथा भूतकालीन दशाओं का विश्लेषण कर भविष्य की घटनाओं का अनुमान लगाना पड़ता है। पूर्वानुमान के द्वारा भविष्य की संभावनाओं का अनुमान लगाकर नियोजन की जोखिमों को कम किया जाता है।
व्यावसायिक पूर्वानुमान की परिभाषा (vyavsayik purvanuman ki paribhasha)
व्यावसायिक पूर्वानुमान की कुछ परिभाषायें निम्नानुसार है--
सी.ई. सुल्टन के अनुसार, ‘‘पूर्वानुमान भविष्य की अनिश्चितताओं से बचने के लिये सम्भावित घटनाओं की गणना करना है। अतः व्यवसायों में इसका तात्पर्य भविष्य की घटनाओं का पूर्व निश्चय करने से तथा इनके वित्तीय प्रभावों की जांच से है।"
प्रो. नेटर तथा वासरमैन के अनुसार," व्यावसायिक पूर्वानुमान किसी काल-श्रेणी के भूत एवं वर्तमान घटनाओं की गति के उस संख्यात्मक विश्लेषण को कहते है जिसके द्वारा उस श्रेणी के भविष्य की प्रकृति को जाना जा सके।"
ऐलन के अनुसार, ‘‘ज्ञात तथ्यों से निष्कर्ष निकालकर भविष्य के बारे में अनुमान लगाने के लिये किये गये व्यवस्थित प्रयासों को पूर्वानुमान लगाना कहते है।"
व्हैलडन के अनुसार," विक्रय, उत्पादन, लाभ आदि के निश्चित समको को अनुमानित करने की प्रक्रिया ही व्यावसायिक पूर्वानुमान नही कहलाती है वरन् उसका सही अर्थ आन्तरित तथा बाह्य समंको के इस प्रकार के विश्लेषण से है जिससे सर्वोत्तम लाभप्रद विधि से सम्भाव्य भावी परिस्थितियों का सामना करने हेतु नीति निर्धारित की जा सके।"
हेनरी फेयोल के अनुसार, ‘‘व्यवसाय में समस्त नियोजन अनेक छोटी-छोटी व पृथक योजनाओं के द्वारा किया जाता है जिन्हें पूर्वानुमान या भविष्यवाणी कहते है।"
लुईस तथा फाक्स के अनुसार," जो ज्ञान एक समय हमारे पास है, उसका प्रयोग करके यह अनुमान लगाना कि भविष्य के किस समय क्या गुजरेगा, पूर्वानुमान होता हैं।"
एण्डरसन के अनुसार," पूर्वानुमान भविष्य की परिस्थितियों के अनुमान से अधिक कुछ नही हैं।"
सरल शब्दों में, ‘‘व्यावसियक पूर्वानुमान भूतकालीन व्यापारिक दशाओं का विश्लेषण करके भावी दशाओं में अनुमान का प्रयास करने की क्रिया है।‘‘ दूसरे शब्दों में, ‘‘पूर्वानुमान सांख्यिकीय एवं गणितीय पद्धतियों पर आधारित वर्तमान परिवर्तनों से समायोजित भूतकालिक व्यावसायि प्रवृत्तियों के आधार पर भावी प्रवृत्तियों का अनुमान है।‘‘
व्यावसायिक पूर्वानुमानों की विभिन्न विधियां अथवा तरीके
1. विभागाध्यक्षों की राय
इस विधि में प्रत्येक विभाग का अध्यक्ष अपने विभाग से सम्बन्धित समस्याओं के पूर्वानुमान तैयार करता है क्योंकि उसे अपने विभाग की समस्याओं की पूर्ण जानकारी होती है। वह भूतकालीन समंकों व वर्तमान परिस्थितियों का विश्लेषण करके अपने अनुभव, ज्ञान, योग्यता तथा दूरदर्शिता के द्वारा अपने विभाग के अनुमान तैयार करता है।
लाभ
1.यह विधि सरल और मितव्ययी है। इसमें समय कम लगता है और शीघ्र पूर्वानुमान तैयार किये जा सकते है।
2.इसमें पूर्वानुमान का कार्य योग्य, अनुभवी एवं कुशल अधिकारियों द्वारा किया जाता है।
दोष
1.इसमें निम्नस्तरीय कर्मचारियों के ज्ञान, अनुभव तथा व्यावहारिक योग्यता का लाभ पर निर्भर करती है।
2.इसमें पूर्वानुमान की शुद्धता केवल विभिन्न अधिकारियों की योग्यता, ज्ञान एवं अनुभव पर निर्भर करती है।
2. कार्यकर्ताओं की राय
इस विधि में पूर्वानुमान उन कर्मचारियों द्वारा लगाए जाते है जिनका उस कार्य या समस्या से निकट का सम्बन्ध होता है। प्रत्येक विभाग के कर्मचारी अपने विभाग से सम्बन्धित पूर्वानुमान तैयार करते है तथा उनकी जॉच एवं विश्लेषण विभागाध्यक्ष द्वारा की जाती है।
लाभ
1. यह विधि पर्याप्त सरल एवं मितव्ययी है।
2. इसमें शुद्धता की मात्रा अधिक होती है क्योंकि अनुमान कार्य के निकटस्थ सम्बन्धित व्यक्तियों द्वारा तैयार किये जाते है।
3. सभी कर्मचारियों की कुशलता, योग्यता एवं अनुभव का लाभ मिलता है।
4. इसमें उत्तरदायित्व निश्चित करना सरल रहता है।
दोष
1. नई वस्तु में पूर्वानुमान के लिये यह पद्धति अनुपयुक्त रहती है।
2. यह विधि दीर्घकालीन पूर्वानुसार के लिये उपयुक्त नहीं रहती।
3. कर्मचारियों के ज्ञान, योग्यता, अनुभव में कमी के कारण पूर्वानुमान अशुद्ध हो सकते है।
4. बाजार अनुसन्धान
इसमें पूर्वानुमान के कार्य के लिये एक आर्थिक शोध विभाग रहता है जो कि वर्तमान बाजार प्रवृत्तियों के ऑकड़े व तथ्य एकत्रित करता है। यह विभाग ग्राहकों के स्वभाव, रूचि, फैशन, वस्तु उपभोग के प्रमुख केन्द्रों, सरकार की कर नीति आदि के आधार पर पूर्वानुमान तैयार करता है।
लाभ
1. यह विधि वैज्ञानिक है तथा इससे प्राप्त परिणाम शुद्ध होते है।
2. इसमें प्राप्त परिणामों की शुद्धता की जॉच की जा सकती है।
दोष
1. यह बहुत व्ययपूर्ण पद्धति है।
2. इसमें समय एवं श्रम भी अधिक लगता है।
4. सांख्यिकीय विधियां
5. सांख्यिकीय विधियाँ
इनमें भूतकालीन ऑकड़ों को आधार मानकर तथा वर्तमान परिस्थितियों का समायोजन करके पूर्वानुमान लगाए जाते है। प्रमुख सांख्यिकीय विधियाँ है--
1. काल श्रेणी विश्लेषण,
2. सहसम्बन्ध,
3. प्रतीपगमन,
4. चल माध्य,
5. निर्देशांक,
6. आन्तरगणन एवं बाहृा गणन।
6. अर्थमितीय पद्धति
पूर्वानुमान की आधुनिक विधि है। इस पद्धति में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित चर मूल्यों के आधार पर अनेक द्विपद समीकरणों की रचना की जाती है और इन समीकरणों की सहायता से अर्थव्यवस्था विकास मॉडल तैयार किया जाता है।
7.संयुक्त मत पद्धति
इस पद्धति में परिस्थितियों से सम्बन्धित सभी व्यक्तियों के मतों को पहले ज्ञात कर लिया जाता है। मत ज्ञात हो जाने पर इनके संयुक्त मतों के आधार पर भविष्य के सम्बंध में पूर्वानुमान लगायें जाते है। इस पद्धति के लाभ हैं-
1.अन्य व्यक्तियों के अनुभवों का पूरा-पूरा लाभ प्राप्त होता है।
2.व्यक्तिगत अतिशयोक्तियों दूर हो जाती हैं।
3.व्यक्तिगत रूचियों को प्रोत्साहन मिलता है।
4.पूर्वानुमान अधिक व्यावहारिक बन जाते हैं।
इस पद्धति का यह एक दोष हैं कि सम्बन्धित व्यक्ति परामर्श देने में विशेष रूचि नहीं रखते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि व्यक्तिगत राय को नहीं वरन् औसत राय को महत्व दिया जाता है।
8. निगमन पद्धति
पूर्वानुमान की निगमन पद्धति इस बात पर आधारित होती है कि भूतकाल की घटनायें भविष्य को निर्धारित नहीं कर सकतीं। इसका कारण यह है कि कुछ पुराने तथ्यों में परिवर्तन हो जाता है। अतः वर्तमान घटनाओं के आधार पर भविष्य का अनुमान लगाया जाता है, परन्तु इसका यह दोष भी है कि इसमें केवल वर्तमान को ही महत्व दिया जाता है, भूतकालीन घटनाओं को नहीं, जबकि पूर्वानुमान में भूत और वर्तमान की घटनाओं के सन्दर्भ में भविष्य के सम्बन्ध में अनुमान लगाया जाता है।
9. वैज्ञानिक विश्लेषण पद्धति
वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर पूर्वानुमान लगाने का आशय ऐसे सैद्धान्तिक माडल्स का प्रयोग करने से है जो किसी आर्थिक समस्या के विभिन्न तत्वों में एक स्थायी सम्बन्ध व्यक्त करने में समर्थ होते हैं तथा जिनका प्रयोग भूत-वर्तमान व भविष्य की किसी भी परिस्थिति में करने से उस परिस्थिति के अनुरूप सर्वोत्तम हलों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इस पद्धति में, अर्थ शास्त्री भिन्न-भिन्न आर्थिक घटकों के बीच कारण और परिणाम के सम्बन्ध को खोजते हैं और इन्हें भविष्य के अनुमान बनाने में प्रयोग करते हैं। अर्थशास्त्रियों द्वारा सुझाई गई ये पद्धतियों गणित एवं सांख्यिकी के सिद्धान्तों पर आधारित होती हैं। आजकल अर्थमापकी भिन्न-भिन्न माडल्स का विकास करके इन पूर्वानुमानों को और भी अधिक वैज्ञानिक बना देता है। यह पद्धति बहुत खर्चींली है तथा पेचीदा व कठिन भी है और इसके लिये विशिष्ट योग्यता वाले विद्वानों की सहायता लेनी पड़ती है।
10. गुप्त ज्ञान पद्धति
व्यावसायिक क्षेत्र में अनेक घटनायें घटती रहती हैं। इन घटनाओं के विषय में सभी को ज्ञान नहीं रहता है। यदि इन घटनाओं की जानकारी अन्य लोगों से पूर्व कर ली जाती है और इन्ही के आधार पर व्यावसायिक पूर्वानुमान किये जाते हैं तो इसे गुप्त ज्ञान पद्धति कहते है। इस पद्धति का प्रमुख उद्देश्य सूचनाओं का सर्वप्रथम पता लगाकर उनसे सर्वप्रथम लाभान्वित होना है। इस पद्धति की सफलता के लिये सरकारी या निजी संस्थाओं के विभिन्न विभागों की आन्तरिक बातों तक पहुंचना आवश्यक है तथा सूचना प्राप्त होने में शीघ्रता व शुद्धता भी होना आवश्यक है। इस पद्धति का अनुकरण कर पूर्वानुमान करना अत्यन्त कठिन होता है।
11. ऐतिहासिक पद्धति
इस पद्धति में भूतकाल की घटनाओं का विश्लेषण कर वर्तमान समस्याओं का समझने का प्रयत्न किया जाता है। इसके पश्चात् भूत और वर्तमान की घटनाओं के सन्दर्भ में भविष्य के सम्बन्ध में अनुमान लगाया जाता है। इस पद्धति का आधार यह है कि इतिहास अपने आपको दुहराता है इस कारण भविष्य की घटनायें वर्तमान से उत्पन्न होंगी। अर्थात् जो पहले हो चुका है वह पुनः होगा।
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