7/04/2022

शिक्षण के उद्देश्य, प्रभावित करने वाले कारक/तत्व

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शिक्षण के उद्देश्य (shikshan ke uddshya)

शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं--

1. शिक्षण का उद्देश्य एक संपूर्ण मानव का निर्माण करना हैं, जिसमें उसके अस्तित्व का प्रत्येक पक्ष पूर्णतः विकसित हो सके। 

2. विद्यार्थियों को अपने अहम् के परिपाक के संबंध में निर्णय लेने हेतु सुविधा प्रदान करना। 

3. शिक्षण द्वारा छात्र अपने आन्तरिक एवं बाह्य अनुभवों से सामंजस्य स्थापित करना। 

4. शिक्षण का उद्देश्य छात्रों को सहायता प्रदान करना हैं जिसके द्वारा वह उत्तम विचारक तथा उत्तम कार्यकर्ता बन सकें। 

5. छात्रों को स्व-अनुभूतियों एवं प्रत्यक्ष कारणों से समायोजन करते हुए वास्तविकता का बोध कराना। 

6. छात्रों में क्रियाशीलता, संगठन क्षमता एवं व्यावहारिक गुणों का विकास करना। 

शिक्षण उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए रायबर्न महोदय ने लिखा हैं," जब बालक का उत्तम शिक्षण हो चुकता है तो वह एक समयबद्ध विकसित व्यक्तित्व सहित विद्यालय छोड़ता हैं। वह आत्मविश्वासी होता हैं। उसमें उत्तम रूचियाँ होती हैं। वह समाज के जीवन में सृजनात्मक भाग लेने तत्पर रहता हैं। जीवन तथा उसकी समस्याओं के प्रति उसका एक साहसपूर्ण एवं सृजनात्मक दृष्टिकोण होता हैं। अपनी समस्त शक्तियों का प्रयोग करने की कामना उसके चित्त में उत्पन्न हो चुकी होती हैं।" 

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शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक या घटक (shikshan  ko prabhavit karne wale karak)

शिक्षण को प्रभावित करने मुख्य तत्वों या घटकों का वर्णन निम्नलिखित हैं--

1. छात्र या अधिगमकर्ता

वर्तमान बालकेन्द्रित शिक्षण-पद्धति में प्रमुख तत्व छात्र स्वयं हैं। अतः छात्र की आयु, उसके मूल्य, आकांक्षायें, वैयक्तिक विभिन्नतायें, आदतें, बुद्धि-लब्धि आदि शिक्षण को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। 

2. शिक्षण संबंधी उद्देश्यों का निर्धारण 

एक शिक्षक को शिक्षण कार्य एवं विषय से संबंधित शैक्षिक उद्देश्यों की जानकारी होनी चाहिए साथ ही शिक्षक में वह गुण होने चाहिए कि वह शैक्षिक उद्देश्यों का उचित रूप से निर्धारण कर सके ताकि अपेक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु वह पर्याप्त साधन एवं सुविधायें जुटा सके। 

3. शिक्षक का प्रभावशाली व्यक्तित्व 

शिक्षक का व्यक्तित्व शिक्षण कार्य को प्रभावशाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। जैसे-- विषय पर उसका स्वामित्व या अधिकार, छात्रों के प्रति मृदुल व्यवहार, स्पष्ट आवाज, निष्पक्षता, उच्च नैतिक चरित्र तथा उसकी शिक्षण योग्यता का प्रभाव बालक पर पड़े बिना नहीं रहता। 

4. पाठ्य-विषय-वस्तु का चयन 

शिक्षण को प्रभावपूर्ण बनाने हेतु छात्रों हेतु सरल पदों में क्रमबद्ध रूप से जुड़ा हुआ विषय, पठनीय एवं रोचक सामग्री आवश्यक हैं ताकि छात्र रूचिपूर्ण तरीके से विषय को समझ सके। इस प्रकार सीखने का वातावरण सृजित होता हैं। 

5. सुव्यवस्थित पाठ-योजना का निर्माण 

शिक्षक को पाठ-योजना का निर्माण इस प्रकार करना चाहिए कि उसमें शिक्षण उद्देश्यों की पूर्ति या प्राप्ति की जा सके। अतः सुव्यवस्थित पाठ-योजना का निर्माण किया जाना चाहिए। 

6. वैयक्तिक विभिन्नताओं का ध्यान

शिक्षण कार्य में बालकों की वैयक्तिक विभिन्नताओं को ध्यान में रखना आवश्यक है क्योंकि इन्हीं विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर प्रत्येक बालक को उचित एवं प्रभावी शिक्षण दिया जा सकता हैं। 

7. कक्षा का वातावरण 

कक्षा का वातावरण भी भौतिक एवं सामाजिक रूप से उपयुक्त होना चाहिए। जैसे प्रकाश, वायु उष्मा, सर्दी का उचित निकास तथा बालकों में परस्पर मित्रता व बन्धुत्व का भाव। 

8. उचित शिक्षण-विधि एवं सहायक सामग्री का प्रयोग 

एक कुशल शिक्षक हमेशा विषय, प्रकरण एवं कक्षा स्तर व छात्रों के मानसिक स्तर के अनुरूप शिक्षण विधि का प्रयोग करता हैं और शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु उचित सहायक सामग्री का निर्माण, संगठन व प्रबंध करता हैं। 

9. विषयों के सह-संबंध पर आधारित शिक्षण 

यदि शिक्षण में अन्य विषयों के साथ सह-संबंध जोड़ते हुये शिक्षण कार्य किया जाये तो प्रभावी होता हैं। क्योंकि सह-संबंध पर आधारित शिक्षण छात्रों को विषयों के साथ-साथ ज्ञान प्रदान करने में भी उपयोगी सिद्ध होता हैं। 

10. अभिप्रेरणा प्रदान करना 

विद्यार्थियों को सिखाने हेतु अभिप्रेरणा का होना बहुत आवश्यक हैं। अतः एक शिक्षक में अभिप्रेरणा जाग्रत करने की ऐसी पद्धति होनी चाहिए कि छात्र सरलतापूर्वक व रोचक ढंग से सीख सके। 

इस प्रकार का उद्देश्यपूर्ण शिक्षण रूचिकर एवं सीखने का होगा। अतः यदि उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखकर शिक्षण किया जाये तो शिक्षण प्रभावशाली हो सकता हैं।

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