7/03/2022

शिक्षण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

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शिक्षण का अर्थ (shikshan kya hai)

विद्यालयों में सीखने-सिखाने व पढ़ने-पढाने की प्रक्रिया सामान्यतः शिक्षक द्वारा ही सम्पन्न की जाती है और इसे ही शिक्षण कहा जाता है। शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक सामाजिक परिवेश में पारस्परिक सहभागिता से अपने छात्रों तक अपने ज्ञान, कौशल, व्यवहार व दक्षताओं को पहुंचाने का कार्य करता है।

शिक्षण का सर्वमान्य अर्थ बताना अत्यन्त कठिन है। शिक्षा की तरह शिक्षण के भी दो अर्थ हैं व्यापक अर्थ व संकुचित अर्थ।

शिक्षण का व्यापक अर्थ 

व्यापक अर्थ में 'शिक्षण' मनुष्य के जीवन में निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत सभी व्यक्ति, वस्तुएं, वातावरण, साधन, माध्यम व घटनाएं व्यक्ति को जन्म से मृत्यु तक कुछ न कुछ सिखाती हैं। परिवार, विद्यालय, समाज, वातावरण, उद्योग, सिनेमा, राजनीति कला व साहित्य प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को कुछ न कुछ शिक्षण प्रदान करते हैं। इस प्रकार के शिक्षण में औपचारिक व अनौपचारिक दोनों प्रकार के साधनों से व्यक्ति जीवन भर सीखता रहता है। 

शिक्षण का संकुचित अर्थ 

संकुचित अर्थ में बालकों को ज्ञान, सूचना, जानकारी व परामर्श देना ही शिक्षण है। यह शिक्षण पूर्व नियोजित व नियन्त्रित होता है तथा बालक को कुछ निश्चित वर्षों तक ही दिया जाता है और इसमें केवल औपचारिक साधनों का प्रयोग होता है। उदाहरणार्थ-- विद्यालय व कक्षा-कक्ष में शिक्षार्थियों को प्रदान किया जाने वाला शिक्षण।

शिक्षण की परिभाषा (shikshan ki paribhasha)

एन.एल. गेज के अनुसार," शिक्षण पारस्परिक प्रभावों का वह रूप है जिसका कि लक्ष्य दूरसे व्यक्ति की व्यवहार क्षमताओं में परिवर्तन करना हैं।" 

जाॅन ब्रूवेकर के अनुसार," शिक्षण उन स्थितियों की व्यवस्था एवं निर्माण हैं, जिनमें कुछ अन्तराल तथा बाधायें हैं जिनका किसी व्यक्ति को सामना करना पड़ता हैं, उसके करने से वह कुछ सीखेगा।" 

एडमंड-एमीडन के अनुसार," शिक्षण एक अन्तःक्रियात्मक प्रक्रिया है जो कक्षागत परिस्थितियों में वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षक तथा विद्यार्थियों के मध्य होती हैं।" 

रायबर्न के अनुसार," शिक्षा में तीन केन्द्र बिन्दु होते हैं-- शिक्षक, बालक एवं पाठ्यवस्तु। शिक्षण इन तीनों में स्थापित किया जाने वाला संबंध हैं।" 

डाॅ. स्मिथ के अनुसार," शिक्षण कार्यों की एक ऐसी प्रणाली हैं, जो अन्तः पारस्परिक संबंधों के माध्यम से अधिगम लाती हैं।" 

क्लाॅर्क के शब्दों में," छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिये प्रक्रिया के प्रारूप एवं परिचालन की व्यवस्था ही शिक्षण हैं।" 

ह्यू एवं डंकन के अनुसार," शिक्षण एक ऐसी विशिष्ट व्यावसायिक, विवेकपूर्ण तथा मानवीय क्रिया हैं जिसमें व्यक्ति सृजनात्मक एवं कल्पनात्मक रूप से स्वयं तथा स्वयं के ज्ञान का उपयोग अधिगम एवं दूसरों के कल्याण के समर्थन हेतु करता हैं।" 

बर्टन के अनुसार," शिक्षण सीखने के लिए प्रेरणा, पथ प्रदर्शन, पथ निर्देशन एवं प्रोत्साहन हैं।" 

डॉ. माथुर के अनुसार," शिक्षण का अर्थ शिक्षार्थी को ऐसे अवसर प्रदान करना है जिनसे शिक्षार्थी अपनी अवस्था एवं प्रकृति के अनुरूप समस्याओं को हल करने की क्षमता प्राप्त कर सकें। वह स्वयं योजना बना सकें, शैक्षिक सामग्री इकट्ठी कर उसे सुसंगठित रूप में प्रयोग कर सकें तथा लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।" 

योकम व सिम्पसन के अनुसार," शिक्षण वह साधन है जिसके द्वारा समूह के अनुभवी सदस्य अपरिपक्व व छोटे सदस्य का जीवन से अनुकूलन करने में पथ प्रदर्शन करते हैं।" 

जेम्स एम. थाइमन के अनुसार," समस्त शिक्षण का अर्थ सीखने में वृद्धि करना है।"

इस प्रकार कहा जा सकता है कि," शिक्षण प्रक्रियाओं की एक व्यवस्था हैं, जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को ज्ञान प्रदान करता हैं।"

शिक्षण की विशेषताएं (shikshan ki visheshta)

शिक्षण निम्नलिखित विशेषताएं हैं-- 

1. सीखने में सहायक 

शिक्षण के द्वारा विद्यार्थी विभिन्न विषयों के ज्ञान से सीखते हैं। विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षण की महत्वपूर्ण आवश्‍यकता होती हैं। शिक्षण ही वह माध्यम है जिसके जरिए शिक्षार्थियों को विभिन्न विषयों की जानकारी प्रदान की जाती हैं। 

2. सूचना संप्रेषण 

शिक्षण ज्ञानार्जन का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जो किसी भी परिवेश में हो सकती है तथा जिसके द्वारा विभिन्न प्रकार की सूचनाओं का संप्रेषण किया जाता हैं। 

3. कौशल क्षमता का विकास 

शिक्षार्थी में कौशल क्षमता को विकसित करने में शिक्षण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। 

4. छात्रों का व्यवहार परिवर्तन करने में सहायक

शिक्षण शिक्षार्थियों के व्यवहार को परिवर्तित करने में सहायक होता हैं। शिक्षण के मध्य से शिक्षक-विद्यार्थियों को विभिन्न प्राचीन एवं सामयिक सूचनाएँ देता हैं। शिक्षार्थियों को जैसी सूचनाएँ दी जाती हैं वे वैसा ही व्यवहार करने की ओर प्रेरित होते हैं। अतः शिक्षण व्यवहार परिवर्तन की एक प्रक्रिया हैं। 

5. बेहतर संबंधों का निर्माण

शिक्षण का तात्पर्य शिक्षक-शिक्षार्थी यथा पाठ्यचर्या के मध्य एक अच्छा संबंध स्थापित करना हैं। शिक्षण शिक्षक शिक्षार्थी तथा विषय में संबंध स्थापित करता है। शिक्षण शिक्षक एवं शिक्षार्थी के मध्य सामाजिक व जनतांत्रिक संबंधों का निर्माण करता है तथा अतःक्रिया द्वारा ज्ञान का आदान-प्रदान करता हैं। जाॅन डी.वी तथा रायबर्न ने शिक्षण को एक त्रिमुखी प्रक्रिया बताया हैं। ये त्रिमुखी हैं-- शिक्षक, शिक्षार्थी एवं विषय। 

6. उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति 

उचित शिक्षण के द्वारा उद्देश्यों अथवा लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती हैं। शिक्षण एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया हैं। 

7. सामाजिक विकास 

शिक्षण शिक्षार्थी के सामाजिक विकास में सहायक होती हैं। शिक्षण शिक्षक व छात्रों के बीच में ही सम्पादित होती है। उत्तम शिक्षण के द्वारा व्यक्ति व समाज दोनों ही उन्नति करते हैं। उत्तम शिक्षण सहानुभूतिपूर्वक होता हैं। 

8. अनुकूलन में सहायक

शिक्षण अनुकूलन करने मे भी सहायक होता हैं। शिक्षण विद्यार्थी को वातावरण के अनुकूलन बनाता हैं। यह छात्र को संवेगात्मक स्थायित्व देने के साथ-साथ उसे वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने के योग्य बनाता हैं। 

9. व्यावसायिक प्रक्रिया 

शिक्षण एक व्यावसायिक प्रक्रिया हैं। इसको बहुत से व्यक्ति जीविकोपार्जन का साधन मानते हैं। यह छात्र में विभिन्न कौशल विकसित करते हुए उसे व्यवसाय विशेष के लिए निपुण बनाता हैं।

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