3/28/2022

नगरीय प्रबंध क्या हैं? नगरीय प्रबंधन की समस्याएं

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प्रश्न; नगरीय प्रबंध क्या हैं? स्पष्ट कीजिए। 

अथवा" नगरीय प्रबंधन की अवधारणा को समझाइए।

अथवा" नगरीय प्रबंध किसे कहते हैं? नगरीय प्रबंध संबंधी समस्याओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर--

नगरीकरण की प्रक्रिया से जुड़ी तथा आज के तीव्र गति से बढ़ते नगरीकरण अथवा शहरीकरण की एक अनिवार्य आवश्यकता 'नगरीय प्रबंध' की अवधारणा है। यह नगरीय प्रबंध देखने में तो सरल कार्य लगता है, पर व्यावहारिक रूप में नगरीय प्रबंध एक समस्यामूलक अवधारणा हैं, जिसके मार्ग में कई अवरोधक अथवा समस्याएँ आती हैं। इन समस्याओं पर विचार करने से पहले आवश्यक हैं कि हम पहले नगरीय प्रबंध को जान लें। 

प्रबंध को परिभाषित करते हुए विलियम एवं न्यूमैन ने लिखा हैं," प्रबंध किसी उद्यम की क्रियाओं का नियोजन तथा नियमन करने की प्रक्रिया हैं।" 

लारेन्स ने इसे एक अन्य रूप में परिभाषित किया हैं," प्रबंध मनुष्यों का विकास हैं, न कि वस्तुओं का।" 

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते है कि, प्रबंध एक कला है जिसके माध्यम से किसी भी क्षेत्र में इच्छित लक्ष्य को नियोजित, नियंत्रित तरीके से न्यूनतम साधनों में कुशलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता हैं। 

नगरीय प्रबंधन क्या है? (nagariya prabandh ka arth)

नगरीय प्रबंध, नगर नियोजन से जुड़ी हुई एवं एक अनिवार्य होती अवधारणा हैं। नगर जहाँ नगर निवासियों की सुविधा, नगर के सौंदर्य एवं नागरिकों को स्वस्थ वातावरण प्रदान करने की एक सुनियोजित प्रक्रिया होती हैं, वहीं नगरीय प्रबंध इस प्रक्रिया के सुनियोजित संचालन, नागरिकों की सुविधाओं को व्यवस्थित स्वरूप में बनाये रखने और इसके मार्ग में आने वाली बाधाओं को यथोचित माध्यम से दूर करना हैं। 

भारतवर्ष में जैसे-जैसे नगरों का विकास होता गया, नगरीयकरण तथा औद्योगीकरण की प्रक्रिया तीव्र होती गई, वैसे-वैसे नगरीय प्रबंध की आवश्यकता महसूस की गई। नगरीय प्रबंध का प्रमुख उद्देश्य जहाँ एक नगर नियोजन की प्रक्रिया के सफल संचालन को आगे बढ़ाना होता हैं, वहीं वर्तमान में मौजूदा समस्याओं का निराकरण करना भी होता हैं। ऐसे में नगरीय प्रबंध नगर नियोजन से भी जटिल तथा दोहरे दायित्व वाली कार्य-व्यवस्था बन जाती हैं। 

नगरीय प्रबंध संबंधी समस्याएं 

भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में जिसे अतीत में कई विदेशी आक्रान्ताओं ने लूटा-खसोटा एवं जो सैकड़ों वर्ष ब्रिटेन के अधीन रहा, वहाँ इन सबका परिणाम व्यापक निर्धनता के रूप में सामने आया। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने अपनी परिस्थितियों को देखते हुए एवं दृढ़ संकल्प की अवधारणा के साथ देश के विकास-पथ की तरह कदम बढ़ाना शुरू किया। इसी के अंतर्गत नगरीय विकास एवं नगरीय प्रबंध के क्षेत्र में भी कार्य किया जाने लगा। पर नगरीय प्रबंध करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं, जिससे नगरीय प्रबंध के मार्ग में विघ्न खड़े होते हैं। नगरीय प्रबंध की निम्नलिखित समस्याएँ हैं-- 

1. जनसंख्या में होती तीव्र वृद्धि 

हमारे देश की तीव्र गति से होती जनसंख्या वृद्धि कई समस्याओं का एक मुख्य कारण हैं। प्रतिवर्ष नगरों में बढ़ती प्रवासीय जनता के कारण यहाँ जनसंख्या में आशातीत वृद्धि हो रही हैं। नगरों की तात्कालिक परिस्थितियों हेतु की जाने वाली प्रबंध व्यवस्था की रूपरेखा लागू होते-होते भविष्य के नगर के विकास के अनुरूप सफल नहीं हो पाती। इसलिए जनसंख्या वृद्धि नगरीय प्रबन्ध तथा नियोजन में समस्याजनित एक प्रमुख कारण हैं। 

2. लक्ष्यों एवं साधनों में असन्तुलन 

नियोजित नगरीय प्रबंध के जिन लक्ष्यों को तय कर, उन्हें प्राप्त करने का संकल्प लिया जाता है, उसके अनुरूप आवश्यक साधनों की यथोचित उपलब्धता नहीं होने से नगरीय प्रबन्ध व्यवस्था में बाधा पैदा होती हैं। 

3. समुचित पूँजी का अभाव 

नगरीय विकास तथा नगरीय प्रबंध खर्चीला आवश्यकताएँ हैं। भारत जैसे विकासशील देश में, जहाँ समुचित बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति भी नही हो पाती, वहाँ नगरीय प्रबंध जैसे कार्य हेतु बड़ी धनराशि की व्यवस्था करना बड़ा जटिल कार्य हैं। फिर जब किसी योजना हेतु कोई बड़ी राशि स्वीकृत कर दी जाती हैं, तो उसे प्राप्त करने एवं उसे व्यवहार में लिये जाने तक योजना का व्यय बढ़ जाने की आशंका रहती हैं। ऐसे में पुनः नई राशि स्वीकृत होना टेढ़ी खीर होता है। इसलिए कह सकते है कि पूँजी का अभाव भी नगरीय प्रबंध की एक मुख्य समस्या है। 

4. प्रबन्धकीय कुशलता का अभाव 

हमारे यहाँ नगरीय प्रबंध तथा नियोजन से संबंधित सारी योजनाओं का संचालन प्रशासकीय स्तर पर किया जाता है। कई प्रशासकीय अधिकारियों में प्रबंधकीय कौशल का अभाव पाया जाता है। जिसके कारण वे अपने दायित्वों का निर्वाह समुचित ढंग से नही कर पाते। जिसका दुष्परिणाम समुचित व्यवस्था को भुगतना पड़ता हैं एवं नगरीय प्रबंध में बाधा पैदा होती हैं। 

5. अतिक्रमण की प्रवृत्ति 

हमारे यहाँ अतिक्रमण अथवा असंवैधानिक तरीके से भूमि पर कब्जा करने की प्रवृत्ति देखी जा सकती हैं। निम्न तबकों के लोगों तथा अब तो बड़े-बड़े पूँजीपति भी शासकीय भूमि पर बगैर किसी अनुमति के अवैध कब्जा कर निर्माण कार्य कर लेते हैं। इन अतिक्रमणकर्ताओं पर कई राजनेताओं अथवा बड़े-बड़े अपराधियों का वरदहस्त रहता हैं। ये अतिक्रमण भी नगरीय विकास तथा प्रबंध में एक समस्या बन जाते हैं। 

6. जनसहभागिता का अभाव

विकास एवं प्रबंध से संबंधित सभी जनहितकारी कार्य बगैर आम लोगों की सहभागिता और सहयोग के संभव नहीं हैं। हमारे यहाँ आम जनमानस में यह प्रवृत्ति घर कर गई हैं कि नगरीय प्रबन्ध तथा इस प्रकार के सभी कार्यों का दायित्व शासन-प्रशासन का हैं, उनकी स्वयं की कोई जानकारी नही हैं। ऐसे में वे प्रशासन के साथ कोई सहयोग नहीं करते। परिणामस्वरूप नगरीय प्रबंध का कार्य तय रूपरेखा के अनुसार नहीं हो पाता। 

सहयोग करना तो दूर, कई बार जनता शासन की नगरीय प्रबंध की योजना में बाधा खड़ी कर देती है। अतिक्रमण हटाने पर उसका विरोध किया जाता हैं, आंदोलन तक चलाया जाता हैं। शासन द्वारा लागू करों का समय पर भुगतान नहीं किया जाता। ये सारी बातें शासन-प्रशासन द्वारा किये गये कार्यों में बाधक बन जाती हैं। 

7. राजनीतिक हस्तक्षेप 

भारत की आंतरिक राजनीति किसी व्यवस्थित सिद्धांत पर आधारित न होकर व्यक्तिगत स्वार्थ एवं दलबन्दी अथवा गुटबन्दी पर आधारित होती जा रही हैं। इस कारण नगरीय प्रबंध की योजनाओं को दो विभिन्न दल अपने-अपने चश्मे से देखते हैं। एक दल किसी योजना का समर्थन करता है तो दूसरा उसका विरोध। ऐसे में यह दलगत राजनीति भी नगरीय प्रबंध में एक समस्या बन जाती हैं।

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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