अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली का अर्थ (apratyaksh nirvachan ka arth)
विशाल राज्यों तथा जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण शासकों का प्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित के अनुसार तो चुनाव नही हो सकता। अतः अधिनिक युग में जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासक या व्यवस्थापिका के सदस्यों का चुनाव करती हैं। जब कार्यपालिका या व्यवस्थापिका का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से न होकर परोक्ष रूप से हो, अर्थात् जब इनका निर्वाचन जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि करें, तब उस प्रणाली को अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली कहा जाता हैं।
अप्रत्यक्ष निर्वाचन का तात्पर्य ऐसे निर्वाचन से हैं, जिसमें मतदाता अन्तिम पदाधिकारी या प्रत्याशी का चुनाव करने के लिए पहले एक निर्वाचक मण्डल का चुनाव करते हैं और यह निर्वाचक मण्डल बाद में उन पदाधिकारियों का चुनाव करता हैं। इस प्रकार इस पद्धित में जनता सीधे-सीधे कार्यपालिका या व्यवस्थापिका का चुनाव नहीं करती। अप्रत्यक्ष निर्वाचन दो सोपान में होता हैं। पहले जनता कुछ प्रतिनिधियों को चुनती हैं और फिर ये प्रतिनिधि अन्तिम प्रतिनिधि का निर्वाचन करते हैं।
भारत में राष्ट्रपति तथा राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष पद्धित द्वारा ही किया जाता हैं। जनता पहले राज्यों की विधानसभा के सदस्यों का निर्वाचन करती है, फिर ये निर्वाचित सदस्य राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव करते है। इसी प्रकार राष्ट्रपति का निर्वाचन भी विधानसभा तथा संसद के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता हैं। अमेरिका मे भी राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित को अपनाया गया है। वहाँ जनता पहले निर्वाचक मण्डल का चुनाव करती है और फिर यह निर्वाचक मण्डल राष्ट्रपति का निर्वाचन करता है।
अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के गुण (apratyaksh nirvachan ke gun)
अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित के कुछ गुण हैं। इन्हीं के कारण आधुनिक युग में अधिकांश प्रजातांत्रिक देश इसे अपना रहे हैं। अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के मुख्य गुण इस प्रकार हैं--
1. योग्य व्यक्तियों का चुनाव
अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित का प्रमुख लाभ यह है कि इसमे जनता की भावुकता से बचा जाता हैं और विवेकपूर्ण ढंग से निर्वाचन किया जा सकता हैं। इसमें व्यवस्थापिका के सदस्यों तथा कार्यपालिका का निर्वाचन चुने हुए व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, जो अपने अनुभव के आधार पर योग्य व्यक्ति को चुनते हैं।
2. दूषित वातावरण की आशंका नहीं
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र में जिस प्रकार चुनाव अभियान या प्रचार किया जाता हैं, उससे वातावरण दूषित हो जाता हैं। किन्तु अप्रत्यक्ष पद्धति में ऐसी कोई आशंका नहीं रहती हैं, क्योंकि उसमें इस प्रकार के प्रचार की आवश्यकता नहीं रहती हैं।
3. सभी को उचित प्रतिनिधित्व
अप्रत्यक्ष निर्वाचन होने के कारण सभी वर्गों तथा क्षेत्रों को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त होता हैं। अल्पसंख्यक वर्ग तथा विभिन्न इकाइयों को भी शासन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त होता हैं।
4. विशाल राज्यों में उपयुक्त
ऐसे विशाल राज्यों में जहाँ प्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित द्वारा प्रतिनिधियों का निर्वाचन करना संभव नही होता हैं, वहाँ के लिए अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित सर्वथा उपयुक्त रहती हैं।
5. योग्य तथा अनुभवी व्यक्तियों को प्रोत्साहन
अप्रत्यक्ष निर्वाचन में प्रत्यक्ष पद्धित की तरह वातावरण अधिक दूषित नही होता हैं तथा प्रत्याशियों को कुछ निर्वाचित सदस्यों से ही संपर्क करना होता हैं। इससे इस क्षेत्र में आने के लिये योग्य, विद्वान तथा अनुभवी व्यक्ति भी प्रोत्साहित होते हैं और उनकी सेवाओं का लाभ समाज को मिलता है।
6. धन के अपव्यय मे कमी
अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित में थोड़े से प्रतिनिधि ही निर्वाचन में भाग लेते हैं। अतः विशाल पैमाने पर चुनाव प्रचार की आवश्यकता नहीं रहती, इससे धन की बचत होती हैं। इस प्रकार प्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित की अपेक्षा यह अधिक मितव्ययी पद्धित हैं।
7. दल पद्धित के दोषों से मुक्ति
इस प्रणाली में दल पद्धित के दोष, यथा दल की तानाशाही, भ्रष्टाचार आदि से मुक्ति मिल जाती हैं। विभिन्न दल जनता को गुमराह भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि अन्तिम प्रतिनिधि का चुनाव जनता नहीं करती, बल्कि निर्वाचक मण्डल द्वारा किया जाता हैं। इन्हें आसानी से गुमराह नही किया जा सकता हैं।
अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के दोष (apratyaksh nirvachan ke dosh)
अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित में निम्नलिखित दोष देखने को मिलते हैं--
1. अप्रजातान्त्रिक पद्धित
प्रजातंत्र से तात्पर्य उस शासन से होता हैं, जिसमें जनता स्वयं शासक का चुनाव करे। किन्तु अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित में व्यवस्थापिका के सदस्यों तथा कार्यपालिका का निर्वाचन जनता द्वारा न होकर, उसके प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता हैं। अतः यह एक अप्रजातान्त्रिक प्रणाली हैं।
2. अन्ततः प्रत्यक्ष निर्वाचन
प्रत्यक्ष निर्वाचन के दोषों से बचने के लिए अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित को अपनाया जाता हैं, किन्तु अन्ततः यह प्रत्यक्ष निर्वाचन का रूप धारण कर लेता हैं। जैसे-- अमेरिका में मतदाता निर्वाचक मण्डल के सदस्यों को चुनते हुए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को ही मत देते हैं। वे ऐसे निर्वाचक मण्डल को ही चुनते हैं, जो उनकी पसंद के प्रतिनिधि को मत दे। इस प्रकार व्यवहार में निर्वाचन अन्ततः प्रत्यक्ष रूप से ही होता हैं।
3. राजनीतिक उदासीनता
अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित में चूँकि जनता प्रत्यक्ष रूप से अपना प्रतिनिधि नहीं चुनती हैं, अतः उसे न तो राजनीतिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता है और न ही राजनीतिक गतिविधियों में उसकी रूचि उत्पन्न होती है। उसमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता का भी अभाव पाया जाता हैं।
4. जनसंपर्क का अभाव
अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित में प्रतिनिधियों का संपर्क जनता से नही हो पाता हैं। वे निर्वाचक मण्डल के प्रति उत्तरदायी होते हैं, अतः जन-इच्छा की उपेक्षा करते हुए शासन का संचालन भी ठीक से नहीं करते हैं। जनसंपर्क न होने के कारण वे जनता की भावनाओं, इच्छाओं तथा आवश्यकताओं को भी नहीं जान पाते हैं।
5. जनप्रतिनिधि नहीं
अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धित द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि वास्तव में जनता के प्रतिनिधि नहीं होते है। चूँकि जनता स्वयं उनका चुनाव नहीं करती हैं, अतः जनता का शासन में विश्वास भी नहीं रहता हैं।
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