कला की आवश्यकता
kala ki avashyakta;मनुष्य के जीवन में कला का एक विशेष स्थान होता है। अतः कला ही जीवन है। क्योंकि आदिकाल से आज तक कला जीवन का अभिन्न अंग रही है। आज मानव की शायद ही कोई ऐसी क्रिया होगी जिसमें कला का महत्व नहीं हो। जब मनुष्य को भाषाओं का ज्ञान नहीं था, उस समय वे कला के माध्यम से ही अपने मनोवेगों, भावनाओं और संवेगों को प्रकट करते थे। विभिन्न सभ्यताओं की खुदाई से प्राप्त चित्र उस समय कला की उपस्थिति का ज्ञान कराते हैं। इतिहास में कोई भी ऐसा युग नहीं रहा है जब विश्व के किसी भी भाग में कला का महत्व घटा हो। यदि गूढ़ता से विचार किया जाये तो ईश्वर स्वयं एक कलाकार है। उसने संसार की एक एक वस्तु को बड़े ही तरीके से इस प्रकार गढ़ा है कि संसार की सुन्दरता उत्पन्न हो गयी है। मनुष्य उसकी नकल मात्र कर रहा है। मानव जीवन में कला की आवश्यकता को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है---
1. भावात्मक अनुभूति
मानव एवं पशु में यही अन्तर है कि मनुष्य में भावनायें एवं उनका अनुभूति को समझ सकने की योग्यता होती है। मानव अपनी भावनाओं को कला के माध्यम से ही प्रकट करता है तथा इसी के माध्यम से ही दूसरे की भावनाओं को समझ पाता है।
2. सौन्दर्यानुभूति
प्रारम्भ से आज तक मनुष्य में एक गुण पाया जाता है कि वह सौन्दर्य के प्रति आकर्षित रहता है। सौन्दर्य उसके मनोभाव को परिवर्तित एवं परिमार्जित कर देते हैं। कला के द्वारा मानव को सौन्दर्य की अनुभूति होती है।
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3. सर्वव्यापकता
कला संसार के प्रत्येक भाग में देखने को मिलती है चाहे वह विकसित राष्ट्र का भाग हो अथवा विकासशील या अविकसित राष्ट्र का। चाहे वह क्षेत्र सुविकसित हो, चाहे आदिवासी कबीला। ऐसा सम्भव है कि भौगोलिक क्षेत्रों में कला के स्वरूप में अन्तर हो, लेकिन कला के विषय में यह सत्य है कि यह सर्वत्र व्यापी है।
4. कल्पनाशीलता
कला बालकों में सृजनशीलता का गुण उत्पन्न करती है। सृजनशीलता के लिये बालक में कल्पनाशीलता का विकास होता है। वैश्विक विकास भी कल्पनाशीलता के कारण ही हो पाता है। विश्व में कोई भी खोज होती है अथवा नया कार्य होता है, उसका बीज कल्पना द्वारा ही होता है।
5. व्यक्तित्व
कला के द्वारा बालक अपने व्यक्तित्व में वृद्धि करने में सफल रहता है। कला के द्वारा ही बालक के व्यक्तित्व को निखारा जा सकता है। इसी प्रकार कला के द्वारा ही किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान हो पाती है। इसी प्रकार एक बार व्यक्तित्व की पहचान हो जाने पर उस व्यक्तित्व को सृजनशीलता के लिये उपयोग में लाया जा सकता है।
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वास्तव में मददगार है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद