10/28/2021

कला का वर्गीकरण/प्रकार

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कला का वर्गीकरण अथवा प्रकार 

kalaa ka vargikaran;कला का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। उसकी व्यापकता के आधार पर इसके वर्गीकरण पर अनेक मत हैं तथा इसका अध्ययन अलग-अलग करना संभव नही हैं, अतः अध्ययन में सरलता के लिये कला को वर्गीकृत करना आवश्यक हो जाता हैं। कला का वर्गीकरण निम्न प्रकार से दो श्रेणियों मे किया सकता हैं-- 

(अ) ललित कला 

सौंदर्य या लालित्य के आश्रय से व्यक्त होने वाली कलाएँ ललित कला कहलाती हैं। ललित कलाएँ एक विशेष, विभाजन मात्र है जिसके अन्तर्गत कुछ चुनी हुई शिल्प या कलाएँ रखी गई हैं, जैसी-- चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, काव्य या नृत्य आदि। इसमें मुख्य रूप से ये कलाएँ सम्मिलित की जाती है, जिनका काम कोई जीवनोपयोगी सामान बनाना नही हैं वरन्  जिनका प्रयोजन मात्रा देखकर, सुनकर या पढ़कर मन को आनन्द प्रदान करना होता हैं। ललित कला के वर्ग के अंतर्गत वे सभी कलायें आती हैं जिनका संबंध मानव के सौंदर्यात्मक बोध से होता हैं। संक्षिप्त मे ललित कलाओं के अंतर्गत आने वाली कलाओं का वर्णन निम्नलिखित हैं--

1. वास्तुकला 

त्रुटिकला, वास्तुकला अथवा इन दोनों के लिए स्थूल आधारों की अनिवार्य आवश्यकता होती है। एक अन्य विद्वान ने केवल संगीत को सबसे अधिक महत्व दिया है क्योंकि संगीत ही एक ऐसी विधा है, जिसके लिए केवल मात्र स्वर की आवश्यकता होती है। यह वही भाग्यशाली कला विधा है जिसे स्थूल पाठ्यसाधन अथवा माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए यह कला कलाकार की भावनाओं, उसकी अभिव्यक्ति को जन मानस तक पहुँचा सकती है। यह सुविधा किसी भी अन्य कला को प्राप्त नहीं है और यही विशिष्टता उसे अन्य कलाओं से अलग करती है। वास्तु कलाकार स्वयं निर्मित भवनों, प्रासादों के माध्यम से अपने को अभिव्यक्त करता है और इन सबके लिए अधिक स्थूल माध्यम की आवश्यकता होती है। 

2. मूर्तिकला 

मूर्तिकला में चित्रकार उत्कृष्टतम मूर्तियों का निर्माण करता है और अपनी कला से निपुणता प्राप्त कर ऐसी रचना तैयार कर लेता है कि वह स्वयं सृष्टा होने का दावा करने लगता है परन्तु इसे भी अपने को अभिव्यक्त करने के लिए मूर्ति का आधार लेना पड़ता है। 

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3. चित्रकला 

चित्रकला में चित्रकार भी स्थूल वस्तुओं का जैसे-- रंग, ब्रश के सहारों से ऐसे चित्र बनाता है जिन्हें हम देख सकते हैं और अपने पास रख सकते हैं। चित्रों को देखकर आनन्द की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है एवं किसी अंश तक उसको उपयोग में भी ला सकते हैं।

4. काव्य कला 

काव्य कला में काव्यकार केवल शब्दों से ही उपर्युक्त कलाओं की अभिव्यक्ति कर देता है। इसी उपयोगिता के आधार पर काव्य अन्य कलाओं से उत्कृष्ट कला सिद्ध होती जाती है परन्तु यह उत्कृष्टता अन्य कलाओं की निकृष्टता को सिद्ध नहीं करती। रूप, गुण आदि की दृष्टि से विभिन्न कलाओं में चाहे जितने भेद हों, प्रत्येक का उद्देश्य एक ही है। आनन्द की इसी सृष्टि के लिए कलाकार अपनी कला के सहारे भावों के स्थूल रूपों को निर्मित करता है। ये रूप अनिवार्यतः सुन्दर होते हैं क्योंकि बिना सुन्दर हुए वे आनन्द की अनुभूति नहीं कर सकते। इस वर्तमान समय में दो प्रकार की विचारधाराएँ कला के सम्बन्ध में प्रचलित हैं। 

पहली प्रकार की विचारधारा के लोग इस पर बल देते हैं कि कला का उद्देश्य समय और मानव का कल्याण है तथा कला की रचना कलाकार को स्वयं और मानव समाज को अपने सौन्दर्य से आनन्द की अनुभूति कराती है। 

दूसरे प्रकार की विचारधारा के वे लोग हैं जो कि बीसवीं शताब्दी की आधुनिक कला पर बल देते हैं। उनका वक्तव्य है कि कला का उद्देश्य न तो सौन्दर्य की अनुभूति और न ही आनन्द है और न ही मानव का कल्याण है, कला का उद्देश्य प्रारम्भिक और अन्तिम है। 

दोनों बातें ही कलाकार की स्वतन्त्र कलाकृति से किसी अभिव्यंजना को व्यक्त करती है, उनको इस बात की कोई चिन्ता नहीं कि उनकी कलाकृति से किसी को आनन्द सुख मिलता है अथवा नही। 

(ब) उपयोगी कला 

कोई कला या ललित कला जब जीवन के किसी भौतिक काल में उपयोग होती है तो वह उपयोगी कला कही जा सकती है। जब कोई उपयोगी सामान बनाता है तो कोई भी कला या ललित कला उपयोगी कला बन जाती है। साधारण शिल्प और क्राफ्ट के काम को कौशल कहकर भी सम्बोधित किया जाता है जो कला-कौशल आदि प्रत्येक कार्य करने की एक तकनीकी होती है। सभी कलाओं, जैसे- ललित कलाओं, शिल्प कलाओं, क्रॉफ्ट, उपयोगी कला के कार्यों में अलग तकनीकी या कौशल की आवश्यकता होती है--

1.  इन्होंने काव्य कला को उच्च माना है क्योंकि इसमें बौद्धिक तत्व अधिक सूक्ष्मता से अभिव्यक्त होते हैं और इसका आधार है शब्द एवं अर्थ।

2. चित्रकला का आधार रंग व ब्रश है। 

3. मूर्तिकला सामग्री का आधार पाषाण व पत्थर औजार।  

4. वास्तुकला का आधार चूना, मिट्टी आदि हैं। 

वस्तुतः यह कलाओं का वर्गीकरण न होकर श्रेणी कोटि का दर्शाना युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता हैं क्योंकि प्रत्येक ललित कला का अपना स्थान अपनी ही जगह पर हैं, जिसकी तुलना दूसरी जगह से नही की जा सकती।

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