4/23/2021

पारिस्थितिकी तंत्र की अवधारणा

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पारिस्थितिकी तंत्र की अवधारणा 

paristhitik tantra ki avdharna;किसी भी समुदाय मे अनेक जातियों के प्राणी साथ-साथ रहते है। ये सभी परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते रहते है, साथ ही अपने आस-पास के वातावरण से भी प्रभावित रहते है। इस प्रकार रचना एवं कार्य की दृष्टि से समुदाय एवं वातावरण एक तंत्र की तरह कार्य करते है। इसे हम पारिस्थितिकी तंत्र या इको तंत्र कहते है। सर्वप्रथम टान्सले ने 1935 मे पारिस्थितिकी तंत्र शब्द प्रतिपादित किया था। इसे पारिस्थितिकीय तंत्र (Ecological system) भी कहा जाता है। पारिस्थितिक प्रणाली को हम सरलतम भाषा मे प्रकृति भी कह सकते है क्योंकि प्रकृति मे मुख्यरूप से जीवों तथा अजीवित वातावरण का समावेश होता है। पृथ्वी का वह भाग जिसमे पारस्थितिक प्रणाली कार्यरत रहती है अथवा भूमि के विभिन्न भाग, जल तथा वायु; जहां जीव मिलते है, जीवमंडल कहलाता है। इस प्रकार जीवमंडल मे अनेक पारिस्थितिक प्रणालियाँ हो सकती है; जैसे तालाब या झील, जंगल घास स्थल, खेत, मरूस्थल इत्यादि।

पारिस्थितिक तंत्र की अवधारणा का मुख्य आधार यह है कि प्रकृति के किसी भी क्षेत्र मे पाये जाने वाले जैव समुदाय और अजैव वातावरण के बीच पदार्थों का निरंतर निर्माण एवं विनियम होता रहता है। जीव पदार्थों को ग्रहण कर अपने शरीर की वृद्धि करते है और कार्बनिक पदार्थों का निर्माण करते है तथा पुनः इन कार्बनिक पदार्थों का विखंडन कर उन्हें अकार्बनिक पदार्थों मे रूपान्तरित कर देते है। इस प्रकार पदार्थों के तंत्र मे चक्रीकरण होता रहता है।

परिस्थतिक तंत्र शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1935 मे ए. जी. टान्सले ने इसकी परिभाषा देते हुए किया " पारिस्थितिक तंत्र जैविक और अजैविक पदार्थों की परस्पर प्राकृतिक क्रिया है जिसमे जैव पदार्थ, अजैव पदार्थ के साथ पर्यावरण के संपूर्ण कारक सम्मिलित है, जो एक अंत: क्रियात्मक संबंधो से जुड़े है।" 

पारिस्थितिकी तंत्र मे किसी भी क्षेत्र के जैविक समुदाय और अजैविक वातावरण के मध्य परस्पर पाये गये संबंधो से दोनों ही एक दूसरे के लिए उपयोगी पदार्यों का आदान-प्रदान करते है, जिससे जड़ और चेतन के मध्य संतुलन बना रहता है। ये परस्पर संबंधित होकर चक्रीयकरण की प्रक्रिया द्वारा संचालित होते है। तात्पर्य उस क्षेत्र के समस्त जीव जगत और भौतिक पर्यावरण के मध्य पदार्थों का निर्माण आपसी विनिमय एवं विनाश के रूप मे होता रहता है। जीव-प्रकृति से प्राकृतिक तत्वों को ग्रहण कर उद्भव, विकास, वृद्धि और जनन कर कार्बनिक पदार्थों का निर्माण करते है। कालान्तर मे उत्सर्जन और मृत्योपरान्त इन्ही पदार्थों को प्रकृति मे लौटा देते है जो रासायनिक क्रिया द्वारा अपघटित होकर अकार्बनिक पदार्थों मे परिवर्तित हो जाते है। इस प्रकार पदार्थ एक चक्रीय अवस्था मे निरंतर घूमते रहते है। 

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