2/10/2021

वित्तीय विवरण के कार्य व महत्व, प्रकृति

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वित्तीय विवरण के कार्य व महत्व/उपयोगिता 

vittiya vivaran karya mahatva prakriti;वित्तीय विवरणों मे विभिन्न व्यक्ति तथा संस्थाएं अपने व्यक्तिगत हित रखते है, इस कारण से वित्तीय विवरणों के कार्य एवं महत्व भी उन व्यक्तियों के लिये भिन्न-भिन्न हो जाते है, अतः हम इन मुख्य व्यक्तियों के लिए वित्तीय विवरणों के कार्य एवं महत्व को अलग-अलग रूप मे अध्ययन करते है--

1. प्रबंधकों के लिए 

वित्तीय विवरणों का प्रमुख कार्य व्यवसाय संचालकों को पूर्ण रूप से सहायता करना है। व्यवसाय के प्रबंधकों को सफल व्यवसाय संचालन हेतु सही एवं विश्वसनीय समंको एवं सूचनाओं की आवश्यकता होती है, यह सूचानाएं प्रबंधकों को वित्तीय विवरणों की सहायता से ही उपलब्ध होती है। इन्ही सूचनाओं के माध्यम से प्रबंध यह ज्ञात कर सकता है कि व्यवसाय मे लगी हुई पूंजी को किस प्रकार प्रयोग किया जावे ताकि व्यवसाय की वित्तीय स्थिति सदैव सुदृढ़ बनी रहे। प्रबंधकों को नीति-निर्धारण करने मे भी ये वित्तीय विवरण काफी सहायता देते है। अतः वित्तीय लेखे प्रबंधकीय नीतियों मे सुधार, संचालन मे कुशलता तथा लाभप्रद क्रियाओं के निष्पादन मे महत्वपूर्ण स्थान रखते है। 

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2. बैंक के लिए 

बैंक तथा ग्राहक का संबंध गोपनीय एवं महत्वपूर्ण संबंध होता है। चूंकि बैंक बहुत ही कम मार्जिन पर अपना व्यवसाय संचालित करती है, अतः विवरण उसके कार्यों को मूर्त रूप देने मे काफी सहायक होते है। बैंक चाहता है कि उसके द्वारा दिये गये ॠण की अदायगी भुगतान तथि पर पूर्ण रूप से हो जानी चाहिए, इसकै लिए बैंक ग्राहक के वित्तीय विवरण के माध्यम से जानकारी ले सकती है कि ग्राहक की आर्थिक स्थिति वास्तव मे किस तरह की है? इसी के आधार पर बैंक ग्राहकों को ऋण देने मे अपने को सुरक्षित मानती है। इस प्रकार विभिन्न वित्तीय विवरण बैंक को ग्राहक की भावी योजना तथा आर्थिक स्थिति को दिखाते हुए ऋण देने अथवा न देने के संबंध मे निर्णय लेने मे सहायक होते है।

3. कर्मचारी 

संस्था के कर्मचारी भी वित्तीय विवरण मे रूचि रखते है क्योंकि इन्ही के आधार पर कंपनी की लाभार्जन शक्ति एवं उत्पादकता की जानकारी मिलती है। बढ़ी हुई लाभार्जन शक्ति के आधार पर ही मजदूरी, कार्य करने की दशाएं तथा श्रम-कल्याण आदि सुविधाओं की मांग की जाती है।

4. ऋणदाता के लिए 

प्रबंधकों, बैंक तथा कर्मचारियों के साथ ही वित्तीय लेखे ऋणदाताओं के लिए भी अत्यधिक सहायक व महत्वपूर्ण होते है। ऋणदाता व्यवसाय के वित्तीय विवरणों के माध्यम से व्यवसायी की भावी योजना तथा आर्थिक परिस्थितियों की जानकारी लेकर उस व्यापारी को उधार माल बेच सकता है अथवा न बेचने का निर्णय ले सकता है। 

5. विनियोक्ता के लिए 

वित्तीय विवरण विनियोक्ताओं को भी सहायता देते है एवं इनके लिए विशेष महत्व रखते है। विनियोक्ता संस्था की लाभार्जन शक्ति तथा प्रबन्धकीय योग्यता की जानकारी चाहता है। उसे इन बातों की सही-सही जानकारी वित्तीय विवरणों के माध्यम से ही प्राप्त होती है, इसी जानकारी के आधार पर वह उस संस्था मे विनियोग करने अथवा न करने का निर्णय आसानी से ले सकता है।

6. सरकारी विभाग 

केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों के अनेक विभागों एवं कार्यालयों, जैसे-- आयकर विभाग, कंपनी पंजीयन कार्यालय आदि को अपना कार्य सम्पादन करने के लिये व्यावसायिक संस्थाओं के वित्तीय विवरणों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा पंचवर्षीय योजनाओं के अनुसार देश की संपूर्ण अर्थव्यवस्था को एक निश्चित दिशा प्रदान करने के लिए समय-समय पर समितियों या व्यावसायिक संस्थाओं को वित्तीय विवरणों की आवश्यकता होती है।

7. अन्य वर्ग 

जनसाधारण, शोधकर्ता, पत्रकार, राजनीतिज्ञ भी कंपनी के वित्तीय विवरणों से आशानुकूल सूचनाओं की अपेक्षा करते है। वित्तीय विवरणों मे ग्राहक, व्यावसायिक प्रतिद्वंदी, विक्रेता, वितरक आदि भी रूचि लेते है।

इस प्रकार हम देखते है कि विभिन्न व्यक्तियों को किसी भी संस्था के वित्तीय विवरणों द्वारा काफी सहायता मिलती है। अपने इन्ही कार्यों की वजह से वित्तीय विवरण काफी महत्वपूर्ण स्थान रखते है।

वित्तीय विवरण की प्रकृति (vittiya vivaran ki prakriti)

किसी भी व्यावसायिक उपक्रम के आर्थिक लेन-देनों से संबंधित लेखो की सहायता से वित्तीय विवरण निर्मित किये जाते है। यह वित्तीय विवरण एक निश्चित अवधि के संबंध मे बनाये जाते है, जो कि सामान्यतया एक वर्ष के लिये होते है। वित्तीय विवरण तैयार करने का उद्देश्य व्यावसायिक उपक्रम की गतिविधियों का समय-समय पर विश्लेषण करना होता है, जिससे वास्तविक वित्तीय परिणाम ज्ञात हो सके। वित्तीय विवरणों की प्रकृति को निम्न बिन्दुओं की सहायता से समझा जा सकता है--

1. लेखांकन सूचनाओं पर आधारित 

वित्तीय विवरण लेखांकन सूचनाओं पर आधारित होते है। विभिन्न खातों मे प्रदर्शित किये गये आँकड़ों को इन विवरणों मे प्रस्तुत किया जाता है। चूंकि व्यावसायिक उपक्रम के लेखों को ऐतिहासिक लागत अथवा प्रतिस्थापन लागत पर प्रदर्शित किया जाता है। इसलिए य विवरण वर्तमान आर्थिक स्थिति को प्रदर्शित नही करते है। 

2. लेखांकन अवधारणाओं पर आधारित 

लेखांकन अवधारणाओं से आशय उन सिद्धांतों से है, जिनका पालन वित्तीय विवरण बनाते समय किया जाता है। लेखापाल विभिन्न लेखांकन अवधारणाओं के आधार पर लेखा पुस्तकों मे लेखा करते है। पृथक अस्तित्व, मुद्रा, मापन, चालू व्यावसाय, लेखांकन अवधि आदि अवधारणाओं के आधार पर लिपिबद्ध किये गये व्यवहारों के आधार पर ही वित्तीय विवरण तैयार किये जाते है।

3. लेखांकन परम्पराओं पर आधारित 

लेखांकन व्यवसाय की भाषा है। लेखांकन की अपनी मान्य परम्परायें है। वित्तीय विवरण बनाते समय इन लेखांकन परम्पराओं का पालन किया जाता है। उदाहरण के लिये, अलग-अलग अवधियों मे समान रहेगा अथवा चालू व्यावसाय की मान्यता आदि। यह सभी परम्परायें वित्तीय विवरणों को तैयार करते समय आधार का कार्य करती है।

4. लेखापालक द्वारा लिये गये निर्णय पर आधारित 

लेखापालक द्वारा लेखा पुस्तकों का संधारण करते समय अनेक बार व्यक्तिगत निर्णय लेने पड़ते है। उदाहरण के लिये, अवक्षयण लगाने की किसी विधि को उपयोग मे लाया जाये, डूबत ऋण संचय बनाने का क्या आधार हो, स्कन्ध का मूल्यांकन किस विधि के अनुसार किया जाये। अतः यह स्पष्ट है, कि लेखापालक द्वारा किये गये व्यक्तिगत निर्णयों के आधार पर अनेक वित्तीय विवरण तैयार किये जाते है।

5. वास्तविक लागत पर आधारित 

लेखा पुस्तकों मे अनेक व्यवहारों का लेखा उनकी वास्तविक लागत के आधार पर ही किया जाता है। किसी व्यवहार के औचित्यपूर्ण होने अथवा न होने अथवा किसी व्यवहार मे गड़बड़ी होने पर वित्तीय विवरण इन्हें ठीक नही कर सकता है। इस प्रकार वित्तीय विवरण व्यवसायिक उपक्रम की वास्तविक स्थिति को न प्रदर्शित करते हुए वैसी स्थिति को ही प्रदर्शित करते है, जैसी लेखा पुस्तकों मे अंकित की गयी है।

शायद यह जानकारी आपके लिए काफी उपयोगी सिद्ध होंगी

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