2/21/2024

क्षेत्रवाद के कारण, दुष्परिणाम या दुष्प्रभाव

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क्षेत्रवाद के कारण 

सामाजिक जीवन मे कुछ लोगो के साथ अपनापन और निकटता एवं अन्य लोगों के प्रति उदासीनता या दूरी कोई अस्वाभाविक बात नही है किन्तु अपनेपन के पीछे भी कोई न कोई आधार होता है। अपनेपन की धारणा के पीछे जो भी आधार (कन्सिडेरेशन्स) काम करते है, उनमे एक क्षेत्रीयता अर्थात् एक विशेष भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिवेश मे रहवास है।

पढ़ना न भूलें;क्षेत्रवाद का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

पढ़ना न भूलें; क्षेत्रवाद के कारण, दुष्परिणाम या दुष्प्रभाव

इस लेख मे हम आगे क्षेत्रवाद के कारण और दुष्परिणाम के साथ साथ क्षेत्रवाद की समस्या को हल करने या क्षेत्रवाद को रोकने के उपाय या सुझावों को भी जानेंगे।

वास्तव मे क्षेत्रवाद के कारणों की कोई निश्चित सूची नही बनाई जा सकती है। इसका कारण यह है कि क्षेत्रीय भिन्नताएं कारणों मे भिन्नताओं को जन्म देती है। फिर भी कुछ कारण है जिनको क्षेत्रवाद के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। क्षेत्रवाद के लिए उत्तरदायी कारण इस प्रकार है--

1. भौगोलिक दशाएं 

क्षेत्रवाद के लिए सबसे प्रमुख कारण भौगोलिक दशाएं है। जब किसी भी देश के व्यक्ति अलग-अलग क्षेत्रों मे निवास करते है, तो उनके आवास, भोजन, पहनावा, संस्कार, आचार-विचार आदि मे भिन्नताएं आ जाती है। ये भौतिक भिन्नताएं व्यक्तियों मे मानसिक भिन्नताओं को विकसित करती है। मानसिक भिन्नताओं के कारण एक क्षेत्र मे निवास करने वाले व्यक्ति दूसरे क्षेत्र मे निवास करने वाले व्यक्तियों को अविश्वाश और घृणा की दृष्टि से देखते है। इनके कारण भी क्षेत्रवाद की भावना का विकास होता है। 

2. भाषाई लगाव 

भाषाई लगाव भी क्षेत्रवाद के लिए उत्तरदायी है। राज्यों के पुनर्गठन के लिये स्वतंत्रता के पश्चात दर आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन न किये जाने का विचार व्यक्त किया था। परन्तु निहित राजनैतिक स्वार्थों के चलते 1956 मे भाषाई आधार पर पुनर्गठन हो ही गया। इसके परिणाम आज तक भुगतने पड़े है। बेलगाँव का प्रश्न आज भी जीवित है। यह भाषाई आधार पर क्षेत्रवाद का ही परिणाम है।

3. असंतुलित आर्थिक विकास 

क्षेत्रवाद के लिए असंतुलित आर्थिक विकास भी जिम्मेदार है। एक राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों का असंतुलित आर्थिक विकास ने क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। तेलंगाना आन्दोलन (आन्ध्रप्रदेश मे), मराठावाड़ या विदर्भ आन्दोलन (महाराष्ट्र मे), असम मे, "आसू" (all assam student union) तथा असम गणसंग्राम परिषद् द्वारा चलाये गये आंदोलन के पीछे यही मुख्य कारण है।

4. भाषा सम्बन्धी समस्या 

भारत मे अनेक भाषाएँ और बोलिएं बोली जाती है। भाषा विवादो ने क्षेत्रवाद को प्रोत्साहित किया है। भाषा को लेकर भी भारत मे अनेक आंदोलन एवं संघर्ष हुए है। भाषा सम्बन्धी विविधता के कारण व्यक्ति अपनी भाषा को सर्वोच्च महत्व प्रदान करते है और दूसरे की भाषा को घृणा की दृष्टि से देखते है। भाषाओं के कारण पृथक्करण की भावना का विकास होता है। पृथक्करण की इस भावना के विकसित हो जाने के कारण भी क्षेत्रवाद की भावना पनपती है। 

5. राजनैतिक कारण 

क्षेत्रवाद स्वतंत्रता के बाद की समस्या है। यदि ध्यान से देखा जाये, तो ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता है कि क्षेत्रवाद वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों की देन है। भारत मे अनेक राजनैतिक दल है। इन राजनैतिक दलो के अलग-अलग स्वार्थ है। इन्ही राजनैतिक स्वार्थों से प्रेरित होकर ये दल जनता मे क्षेत्रीयता की भावना को जागृत करके उनका मत प्राप्त करने का प्रयास करते है।

6. ऐतिहासिक कारण 

ऐतिहासिक कारण और परिस्थितियां भी क्षेत्रवाद की भावना को विकसित करने मे महत्वपूर्ण कार्य करती है। भारत मे आर्यों के समय से ही उत्तर और दक्षिण का भेद पाया जाता है। प्रजातीय कारण भी इस भेद को बढ़ाने मे उत्तरदायी रहे है। उत्तर भारत के अनेक राजाओं ने दक्षिण भारत तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। इसके अतिरिक्त किसी दक्षिण भारत के राजा ने अपने साम्राज्य का विस्तार नही किया। इस प्रकार का इतिहास विजयी और विजित का इतिहास रहा। इन ऐतिहासिक परिस्थितियों के कारण भी भारत मे क्षेत्रवाद की भावना का विकास हुआ है।

7. मनोवैज्ञानिक कारण

मानसिक परिस्थितियां भी क्षेत्रवाद की भावना के विकास मे महत्वपूर्ण है। हर व्यक्ति मे अपने क्षेत्र के प्रति कुछ अधिक लगाव होता है। यह स्वाभाविक है और इसमे कोई बुराई नही है लेकिन जब व्यक्ति दूसरे क्षेत्र के प्रति द्वेष की भावना को विकसित कर लेते है, तो बुराई प्रारंभ हो जाती है। अनेक अवसरों मे क्षेत्रवाद की भावना इतनी उग्र हो जाती है, कि राष्ट्र  और राष्ट्रीय हितों तक की उपेक्षा कर दी जाती है। इसके साथ ही विद्वेष मानव की मूलभूत प्रवृत्ति है। वह ईर्ष्यालु होता है। उसमे भय, घृणा और क्रोध की प्रवृत्तियाँ भी पाई जाती है। इन प्रवृत्तियों के कारण भी क्षेत्रवाद की भावना का विकास होता है।

8. सामाजिक दशाएं 

सामाजिक दशाओ मे भिन्नता के कारण भी क्षेत्रवाद की भावना का विकास होता है। संस्कृति और रहन-सहन मे भिन्नताओं के कारण भी क्षेत्रवाद की भावना का विकास होता है। उत्तर भारतीयों का विचार है कि वैदिक सभ्यताओं का उद्गम स्थान उनका क्षेत्र रहा है। दक्षिण भारत आज भी संस्कृति को बनाए हुए है, जबकि उत्तर भारत मे उसके विघटन की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। प्रथाओं, संस्कारों, परिवार और विवाह के प्रतिमानों मे भिन्नता के कारण भी क्षेत्रवाद की भावना का जन्म और विकास होता है।

क्षेत्रवाद के दुष्परिणाम या दुष्प्रभाव 

क्षेत्रवाद व्यक्ति की संकीर्ण प्रवृत्ति का घोतक है। संकीर्णता एक प्रकार का मनोरोग है, चाहे वह जातीय आधार पर हो अथवा क्षेत्रीय या सांप्रदायिक आधार पर। यह स्वस्थ व्यक्तित्व के विकास मे बाधक है। जब यह संकीर्णता बड़े पैमाने पर लोगों के मस्तिष्क को ग्रसित कर लेती है तो सामाजिक समस्या बन जाती है और वृहद समाज के हितों को क्षति पहुँचाती है।

क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता के विकास मे बाधक है। यह राष्ट्रीय हितों की जगह क्षेत्रीय हितों के संवर्धन पर बल देता है। यह क्षेत्रीय संस्कृति व समाज की उन्नती को प्राथमिकता प्रदान करता है। यदि पंजाब के लोग पंजाबी के रूप मे, बंगाल के लोग बंगाली के रूप मे, बिहार के लोग बिहारी के रूप मे और तमिलनाडु के लोग तमिल के रूप मे अपनी पहचान बनायें, वे अपने को पहले पंजाबी, बंगाली, बिहारी और तमिल माने और भारतीय बाद मे तथा अपने अपने क्षेत्रों की उन्नती की बात करे और राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करे तो इससे राष्ट्रीय व सामाजिक एकता खतरे मे पड़ जाती है और देश कमजोर हो जाता है। इसी प्रकार सिंधी बोलने वाले सिंधी भाषा और सिंधी लोगो की उन्नती पर ही जोर दे, गुजराती, मराठी या भोजपुरी बोलने वाले गुजराती, मराठी व भोजपुरी बोलने वालो की ही प्रगति की बात करे तो इससे देश मे भाषायी विवाद बढ़ेगा और राष्ट्र की एकता व अखण्डता खतरे मे पड़ जायेगी।

क्षेत्रीयता पृथक्करण को बढ़ावा देती है। राजनीति मे क्षेत्रवाद पर अतिशय बल कई अवसरो पर पृथक राज्य अथवा स्वायत्तता की माँग को लेकर जन आन्दोलन का स्वरूप ग्रहण कर लेता है जिसके चलते राज्यव्यापी बन्द की आवाज उठाई जाती है, आवागमन के साधनो मे बाधा पहुँचाई जाती है और कार्यालयों मे कामकाज ठप्प कर दिया जाता है। कभी-कभी ये आंदोलन हिंसक रूप ग्रहण कर लेते है और धन जन की भारी क्षति होती है।

क्षेत्रवाद देश के आर्थिक विकास मे भी बाधा पहुँचाती है क्योंकि इसके चलते लोग आमतौर पर अपने क्षेत्र के आर्थिक विकास की ही बात करते है और अन्य क्षेत्रों व देश के विकास की उपेक्षा करते है। आर्थिक विकास सम्बन्धी योजनाओं के निर्माण, नीतियों के निर्धारण और विकास कार्यों मे प्राथमिकता के निर्धारण आदि विषयो पर निर्णय लेते समय राजनेता व अधिकारी यदि क्षेत्रीयता की भावना से काम करते है तो इससे राष्ट्रीय हित को क्षति पहुंचाती है। यदि सार्वजनिक क्षेत्र मे बड़े उद्योग ऐसे स्थानों पर लगाये जायें जहाँ आवश्यक कच्चा माल आसानी से मिल जाये, ऊर्जा सरलतापूर्वक उपलब्ध हो और आवागमन की सुविधा हो तो उत्पादन व्यय कम होगा, किन्तु क्षेत्रीय भावना से प्रेरित होकर यदि उन्हें अन्य स्थानों पर ले जाया जाता है तो इसमे अपव्यय अधिक होता है, जिससे देश को भारी क्षति उठानी पड़ती है। इसी प्रकार नदियों पर बांध बनाने, उसकी ऊँचाई  कम या अधिक रखने तथा जल एवं विद्युत के बँटवारे आदि को लेकर राज्यों के बीच विवाद के चलते योजनायें दीर्घकाल तक लम्बित रहती है। कभी-कभी जनता भी विस्थापन व विस्थापितों के पुनर्वास संबंधी विषयों को लेकर आन्दोलन करती है जिससे बाँध व नहरों के निर्माण का काम कठिनाई मे पड़ जाता है। इस प्रकार के क्षेत्रीय विवादों के चलते आर्थिक विकास कार्यो मे व्यतिक्रम उत्पन्न होता है। कभी-कभी क्षेत्रीत हितों को लेकर आंदोलन किये जाते है जिसमे गैस व तेल प्रदान करने वाली पाइप लाइनों को क्षति पहुँचाई जाती है, यातायात व आवागमन के साधनों मे वयवधान डाला जाता है, कारखाने, कार्यालय व बाजार बन्द कराये जाते है, जिससे देश को भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है और आर्थिक विकास की गति मन्द पड़ जाती है। 

क्षेत्रवाद के निवारण या क्षेत्रवाद की समस्या को हल करने हेतु सुझाव या उपाय 

आधुनिक भारत मे क्षेत्रवाद एक जटिल सामाजिक समस्या के रूप मे विकसित हुआ है। इससे देश मे अलगादवाद को बढ़ावा मिला है, सामाजिक एकता को क्षति पहुँची है और राष्ट्रीय एकता कमज़ोर हुई है। अतः राष्ट्र की एकता व प्रगति को मजबूत करने की दृष्टि से क्षेत्रवाद को दूर किये जाने की बहुत आवश्यकता है। क्षेत्रवाद की समस्या को हल करने के सुझाव या उपाय इस प्रकार है--

1. राष्ट्रीय भावना का विकास 

क्षेत्रीवाद को दूर करने के लिए यह जरूरी है कि क्षेत्र के स्थान पर राष्ट्र को लोगों के मन मे प्रतिष्ठित किया जाये। विभिन्न प्रकार के संचार साधनो के माध्यमो से राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया जाना चाहिए। विभिन्न संगोष्ठियों, सम्मेलन आदि आयोजित कर लोगो मे इस बात का प्रचार किया जाये कि राष्ट्र हित मे ही सबका हित है।

2. क्षेत्रीय दलों पर प्रतिबंध 

अधिकांश क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय राजनीति करते है। ये दल क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काते है। अतः इन क्षेत्रीय दलों पर रोक लगाई जानी चाहिए।

3. सभी क्षेत्रों को समान आर्थिक सुविधाएं 

क्षेत्रवाद पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को सभी क्षेत्रों के लोगो को समान सुविधाएं प्रदान करना चाहिए, जिससे कि अनावश्यक प्रतिस्पर्धा व ईर्ष्या की भावना न पनप सके।

4. भाषा संबंधी झगड़ों का हल 

क्षेत्रवाद की समस्या को हल करने के लिए जरूरी है कि भाषा संबंधी झगड़ों को हल किया जाए। 

5. दबाव की राजनीति पर रोक लगाई जाए 

क्षेत्रवाद के आधार पर दवाब की राजनीति की जाती है। यदि इस प्रकार की घटनाओं को सख्ती से दबाया जायेगा तो क्षेत्रवाद पर कुठाराघात होगा।

6. अंतक्षेत्रीय संपर्क 

क्षेत्रवेद के उन्मूलन के लिए यह आवश्यक है कि पृथक-पृथक क्षेत्रों के लोगो मे निकट संपर्क की स्थापना हो। संचार और आवागमन के साधनों का विकास करके विभिन्न क्षेत्रों के निवासियों की परस्पर मिलने-जुलने और एक-दूसरे के रीति-रिवाजों को जानने का प्रयत्न किया जाये।

7. शिक्षा संस्थानओं मे क्षेत्रवाद पर प्रतिबंध 

देश की अधिकांश शिक्षा संस्थाएं, विशेष रूप से तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण देने वाली संस्थाएं क्षेत्रीय आधार पर विद्यार्थियों का चयन करती है। उनमे क्षेत्रीय निवास को प्राथमिकता प्रदान की जाती है। इससे क्षेत्रवाद को प्रोत्साहन मिलता है। शिक्षा संस्थाओं को अखिल भारतीय आधार पर प्रवेश का नियम अपनाना चाहिए।

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