उद्देश्यों का वर्गीकरण अथवा प्रकार (uddeshy ke prakar)
उद्देश्यों को मोटे रूप में निम्न भागों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं--
1. प्राथमिक उद्देश्य
ये उद्देश्य संस्था के प्राथमिक लाभभोगियों एवं ग्राहकों की आवश्यकताओं की पूर्ति से सीधा संबंध रखते हैं। प्रत्येक संस्था किसी न किसी विशेष तरह के ग्राहक समूह की आवश्यकता की सन्तुष्टि हेतु स्थापित की जाती हैं। अतः ऐसे ग्राहकों की सन्तुष्टि ही संस्था का प्राथमिक लक्ष्य होता हैं।
2. गौण या सहायक उद्देश्य
कर्मचारी, सरकार, स्थानीय समुदाय, आपूर्तिकर्ता, पेशेवर संघ, संस्था के विभाग आदि सभी गौण समूह हैं जिनकी सन्तुष्टि के लिए संस्था गौण उद्देश्य निर्धारित करती हैं। इन उद्देश्यों को वैयक्तिक उद्देश्य भी कहा जाता है। व्यावसायिक संगठन अपने कर्मचारियों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए इन्हें अच्छा वेतन, भत्ते, सम्मानजनक कार्यदशाएँ आदि प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित करते हैं।
इसी तरह प्रत्येक संगठन को विनियोजक, ॠणदाता, स्थानीय नगर निकाय, व्यावसायिक संघ, दबाव समूह तथा कमजोर वर्ग के संघ, श्रम संघ, सामाजिक सेवा संस्थाओं आदि की अपेक्षाओं की पूर्ति को भी अपने गौण उद्देश्यों में सम्मिलित करना होता हैं।
3. अल्पकालीन उद्देश्य
अल्पकाल अर्थात् सामान्यतः एक वर्ष की अवधि में पूरे किये जाने वाले उद्देश्यों को अल्पकालीन उद्देश्य कहा जाता है। उदाहरण के लिए, चालू वर्ष में पिछले वर्ष की तुलना में 5% अधिक बिक्री करने का लक्ष्य रखना एक अल्पकालीन उद्देश्य हैं। अल्पकालीन उद्देश्य दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, तिमाही या छः माही अवधि के भी हो सकते है। ये दीर्घकालीन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर ही निर्धारित किये जाते हैं।
4. दीर्घकालीन उद्देश्य
सामान्यतः एक से पाँच वर्ष की अवधि में पूरे किये जाने वाले उद्देश्यों को दीर्घकालीन माना जाता हैं। आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से बहुत लम्बी अवधि के बारे में भी अनुमान लगाना संभव हो गया हैं, अतः 20 वर्ष तक की अवधि को भी दीर्घकाल माना जाता है, पर व्यावसायिक वातावरण में तेजी से हो रहे परिवर्तनों के कारण लम्बी अवधि के सही-सही पूर्वानुमान करने में अत्यंत कठिनाई आती है। अतः व्यवहार में अधिकांश व्यावसायिक संस्थाएं 5 वर्ष तक के ही दीर्घकालीन उद्देश्य निर्धारित करती हैं।
5. साम्य या सन्तुलन उद्देश्य
प्रत्येक संस्था को साम्य उद्देश्यों का निर्धारण करना पड़ता है। इस तरह, साम्य उद्देश्यों से अभिप्राय ऐसे उद्देश्यों से है जिनके द्वारा एक संस्था अपने बाह्य वातावरण में हो रहे परिवर्तनों के साथ एक साम्य अर्थात् सन्तुलन बनाये रखती है। साम्य उद्देश्यों के निर्धारण से संस्था के लिए आगे विद्यमान बाजार को बनाये रखना एवं उनका विस्तार करना सुगम हो जाता हैं।
6. सुधारात्मक उद्देश्य
प्रत्येक व्यावसायिक संस्था अपनी क्रियाओं, उत्पादन तकनीकों, प्रबन्ध संचालन, ऊर्जा संरक्षण, सामग्री आदि में निरंतर सुधार चाहती हैं। अतः इनमें सुधार लाने के लिए निर्धारित किये जाने वाले उद्देश्यों को सुधारात्मक उद्देश्य कहा जाता है। इन उद्देश्यों के द्वारा न सिर्फ कार्यक्षमता में वृद्धि की जा सकती हैं, बल्कि संसाधनों का सदुपयोग भी किया जा सकता है।
7. वैयक्तिक उद्देश्य
ये उद्देश्य संगठन के वैयक्तिक सदस्यों के संदर्भ में निर्धारित किये जाते हैं। ये उद्देश्य आर्थिक-मुद्रा, भौतिक वस्तुएं आदि या मनोवैज्ञानिक-पद, स्तर, मान्यता, सहभागिता, अमौद्रिक पुरस्कार आदि प्रकार के हो सकते हैं।
8. सामाजिक उद्देश्य
ये उद्देश्य संपूर्ण समाज के लाभ के लिए निर्धारित किये जाते है। ये समाज के विभिन्न वर्गों की आकांक्षाओं की सन्तुष्टि करने, समाज की विभिन्न समस्याओं, जैसे-- बेरोजगारी, निर्धनता, प्रदूषण, आर्थिक विषमता आदि को दूर करने एवं समाज का विकास करने के लिए निर्धारित किये जाते हैं।
9. निष्पादन उद्देश्य
निष्पादन उद्देश्यों का संबंध व्यक्ति के कार्य दायित्वों से होता हैं। जाॅर्ज ऑडिओन ने निष्पादन उद्देश्यों को पुनः तीन श्रेणियों में बाँटा हैं--
(अ) नैत्यक उद्देश्य
ये उद्देश्य कर्मचारी के उन कार्यों के संबंध में होते है जो पुनरावर्तक एवं अपरिवर्तनशील होते है। कई बार इन्हें 'निष्पादन प्रमाप' भी कहा जाता हैं।
(ब) समस्या समाधान उद्देश्य
ये संगठन के सामान्य संचालन को पुनः स्थापित करने के लिए आवश्यक होते है। ये अपेक्षित निष्पादन से होने वाले विचलन का प्रत्युत्तर होते हैं।
(स) नवप्रवर्तक उद्देश्य
ये संगठन में सृजनात्मकता, नवप्रवर्तन, नये परिवर्तन आदि लेने के संबंध में बनाये जाते है। नयी उत्पादन प्रणाली या नये उत्पाद का विकास करना नवप्रवर्तन उद्देश्य हैं।
10. कार्यालयीन उद्देश्य
ये संगठन के सामान्य उद्देश्य है जो इसकी संगठनात्मक पुस्तिका, वार्षिक प्रतिवेदन, प्रविवरण, जन-प्रपत्रों में व्यक्त किये जाते हैं।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रत्येक संस्था को सभी तरह के उद्देश्यों का निर्धारण करना पड़ता है। किसी भी तरह के उद्देश्य के अभाव में संस्था को कठिनाई का सामान करना पड़ सकता हैं।
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