वेश्यावृत्ति के प्रकार (veshyavritti ke prakar)
वेश्यओं के प्रकार का शास्त्र बड़ा विशाल है। विभिन्न आधारों पर इनका वर्गीकरण किया जा सकता है। जाति, प्रजाति, जनजाति, आयु, धर्म, शिक्षा और वेश्या व्यापार के कलाओं के आधार पर विभिन्न वेश्याएँ हो सकती है। आधुनिक युग में वेश्याओं का वर्गीकरण विभिन्न श्रेणियों मे किया जा सकता है जो निम्न प्रकार है--
1. परम्परागत वेश्याएँ
परम्परागत वेश्याओं मे उन वेश्याओं को सम्मानित किया जाता है जिनका मुख्य व्यवसाय ही यही है तथा यह व्यवसाय पीढ़ि-दर-पीढ़ि चला आ रहा है। दादी वेश्या थी, माँ वेश्या है और पुत्री भी वेश्या है क्योंकि माता के कदमों के पीछे-पीछे ही पुत्रियां चलती है।
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2. आधुनिक वेश्याएँ
वेश्याओं का दूसरा प्रकार नयी बनी वेश्याओं का है। ये वे वेश्याएँ है जिन्होंने इस व्यवस्था को आर्थिक या सामाजिक कारण से अपनाया है। घरों से भगाई गयी लड़कियाँ, कुँआरी माताएँ जिन्हें समाज ने बहिष्कृत कर दिया है और गरीब परिवार की स्त्रियां और विधवाएँ जिनके पास कोई आय के साधन न होने के कारण उन मजबूरी मे यह व्यवसाय करना पड़ा, इसी श्रेणी के अंतर्गत आती है। आर्थिक कष्ट के कारण अनेक स्त्रियां परिवार मे रहते हुए भी यह व्यवसाय करती है और यदि गहराई मे जायें तो ज्ञात होता है कि ऐसी वेश्याओं की संख्या भी अधिक है।
3. सामुदायिकता के अधार पर वेश्याओं के प्रकार
भारत में वेश्याओं का वर्गीकरण इस प्रकार से भी किया जा सकता है--
1. खानदानी मुस्लिम तवायफें (वेश्याएँ)
2. मुस्लिम तवायफों की पुत्रियां
3. हिन्दू नर्तकियाँ--
(अ) खानदानी हिन्दू विधवाएं
(ब) पहाड़ी क्षेत्र से आयी हुई लड़कियाँ (वेश्याएँ)
(स) परिवार मे रहने वाली वेश्याएँ
4. बेड़नायाँ, कंजर, सासी एवं अन्य जनजातीय वेश्याएँ।
4. विदेशी वेश्याए
ये विशिष्ट प्रकार की विदेशी वेश्याएँ है जो समुद्र तट के औद्योगिक क्षेत्रों मे और फौजी छावनियों के निकट पायी जाती है। ये बड़े गर्व के साथ अपने आपको 'उच्च श्रेणी' की कहती है और अपने संबंध उच्च श्रेणी के लोगों और फौजी अफसरों के साथ जोड़ना पसंद करती है।
5. जनजातीय वेश्याएँ
इनको बेड़नायाँ कहते है। कंजरों के समान ही यह एक जनजाति है। इसका व्यवसाय भी वेश्यावृत्ति है। इन वेश्याओं का सम्पर्क ग्रामीण जन-जीवन से भी बहुत रहता है क्योंकि ये लोग अपना सामान घोड़ो पर लादे एक स्थान से दूसरे स्थान पर फिरते रहते है और शहर या गाँव से कुछ अपने तम्बू खड़े कर देते है। ये वेश्याएँ निम्न कोटि की समझी जाती है क्योंकि शहरी सभ्यता से थोड़ा अलग रहने के कारण उनमें थोड़ी अशिष्तता भी होती है। यद्यपि इनमें से अधिकतर वेश्याएँ अन्य परिवार के साथ ही शहरों में या उनके आसपास बस गयी है परन्तु फिर भी ये लोग उसी स्थिति मे जीवन व्यतीत करने से नही हिचकिचाते। राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, उत्तरप्रदेश और तराई के कुछ क्षेत्रों में इनकी बहुत बड़ी संख्या पायी जाती है।
6. सभ्य पारिवारिक वेश्याएँ
पारिवारिक वेश्याएँ वे होती है जो परिवार मे रहते हुए भी इस वृत्ति को आर्थिक कारण से अपनाये हुए है। यह वह श्रेणी है जिसे कि अपने शरीर के आयाम का सबसे कम मूल्य लेती है। खुले आम शरीर विक्रय की अपेक्षा वे चोरी छिपे इस व्यापार को करती है, क्योंकि वे परिवार के सम्मान का भी ध्यान रखती है और इसी कारण दलालों द्वारा संबंध स्थापित होने के कारण आय का अधिक अंश दलालों की जेब मे चला जाता है। ये उच्च और मध्यम श्रेणी के परिवारों की स्त्रियां होती है जो अपने बच्चों के लिये अथवा यौन क्षुधा की पूर्ति के लिये इस घृणित कार्य को करने में लज्जा का अनुभव नही करती।
वेश्यावृत्ति के कारण (veshyavritti ke karan)
वेश्यावृत्ति समाज के लिए एक गंभीर समस्या है। वेश्यावृत्ति के मुख्य कारण निम्न प्रकार से है--
1. अज्ञानता
ग्रामीण तथा नगर की सीधी-साधी लड़कियाँ कुछ व्यक्तियों के चंगुल में फँस जाती है। ये व्यक्ति इन युवतियों को जाने कितने प्रकार के प्रकार के प्रलोभन देतूहे है जिन्हें समझ नही पाती है। जब ये लड़कियाँ घर से भाग निकलती है तो ये व्यक्ति इन्हें ले जाकर अन्य व्यक्तियों के साथ अवैध यौन संबंध स्थापित करने के लिए विवश करते है, उनके द्वारा धन अर्जित करते है।
2. विभिन्न यौन संबंधों की इच्छा
वेश्यावृत्ति के विकास का एक प्रमुख कारण अनंद लेने की इच्छा है। यह आनंद ऐसे पुरूषों को सरलता से वेश्यावृत्ति में प्राप्त हो जाता है। इसलिए वे अपनी तृष्णा घर से बाहर संतुष्ट करने की इच्छा रखते है। इस प्रवृत्ति के कारण भी वेश्यावृत्ति की मांग मे वृद्धि होती है।
3. नगरों मे वेश्याओं की अधिक माँग
वेश्यावृत्ति का प्रमुख कारण उसकी मांग है। कुछ लोगों का कहना है कि इसका संतुलन माँग और पूर्ति के सिद्धांत पर आधारित है। जब मांग अधिक होती है तो वेश्याओं की संख्या बढ़ जाती है और जब मांग कम होती है तो वेश्याओं की संख्या घट जाती है।
4. नारी का आकर्षण
नारी का आकर्षण वेश्यावृत्ति के विकास का प्रमुख कारण है। यह वृत्ति युवकों मे अधिक पाई जाती है। युवक नित्य नई नारी का अनुभव करना चाहते है। इसके फलस्वरूप भी वेश्यावृत्ति की मांग मे वृद्धि होती है।
5. आर्थिक आकर्षण
आर्थिक परिस्थितियों ने ही स्त्रियों को इस अनैतिक व्यापार के लिये उकसाया है क्योंकि उनके पास कोई भी ऐसा साधन नही है जिससे रूपया कमाया जा सके। शारीरिक बनावट और क्षमता भी स्त्रियों के लिये कठिन कार्य करने में सहायक नही होती है। वेश्यावृत्ति प्रत्यक्ष रूप से केवल एक दूसरा अवसर है। अपने लिये धनोपार्जन करने का उनके लिये जिनकी कि योग्यताएँ, साधन और अवसर बहुत निम्न है।
6. बाल विवाह
बाल विवाह में अगर दुर्भाग्यवश पति का देहान्त हो जाता है तो एक कम आयु की युवती किस प्रकार सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करे, यह एक गंभीर समस्या उसके लिये बन जाती है। विशेष तौर से वे युवतियां जिन्हें यौन संबंधी ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी हो। ये एक बार अपने यौन संबंधी धर्म से गिरती है तो गिरती ही जाती है।
7. स्वार्थ की सिद्धि
आधुनिक युग में यह एक आ बात हो गयी है कि व्यक्ति अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति के लिए लड़कियों को ऊंचे स्तर के व्यक्तियों के सम्मुख प्रस्तुत करते है और अपना उल्लू सीधा करते है। इस प्रकार की लड़कियाँ एक निश्चित समय के बाद काल गर्ल बन जाती है।
8. यौन जिज्ञासा
कुछ युवा लोग वेश्यावृत्ति को केवल जिज्ञासा के कारण प्रोत्साहन देते है। वे यहां पर इसलिए जाते है कि देखें क्या होता है। फिर उनमें वह लत पड़ जाती है। इस तरह वे वेश्यावृत्ति को बढ़ावा देते है।
9. बदसूरत पुरुष
कुछ व्यक्ति इतने बदसूरत होते है कि उनकी ओर स्त्रियां आकर्षित नही होती तथा उनको विवाह करना कठिन हो जाता है। ऐसे पुरूषों के पास अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति का अन्य कोई साधन नही होता इसलिए उनका झुकाव वेश्यावृत्ति की ओर हो जाता है।
10. पारिवारिक विघटन
पारिवारिक विघटन वेश्यावृत्ति का मूल सामाजिक कारक है। परिवार के सदस्यों मे सामंजस्य का अभाव होने के कारण परिवार के सदस्य बाहर भागने का प्रयत्न करते है। प्रायः जिन लड़कियों को सदा-प्रेम और सहानुभूति का परिवार में अभाव रहा वे शीघ्र ही उन व्यक्तियों के प्रेम पाश में बंध जाती है जिन्होंने उन्हें थोड़ी सी भी सहानुभूति दिखायी और यहीं लड़कियों का अंधःपतन प्रारंभ होता है।
11. अनैतिकता का वातावरण
आज समाज मे अनैतिकता का वातावरण अधिक है। अनैतिक परिवारों में बच्चों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। माता-पिता यदि शराबी और वेश्यागामी है तो उनकी पुत्रियां भी नैतिक दृष्टि से हीन कार्य करने लगेगी। यौन संबंधों की नैतिकता का मूल्य उनके समक्ष कुछ भी नही रहेगा। अनैतिक वातावरण मे भरण पोषित की गई कन्याएं शीघ्र ही इस व्यवसाय को अपना लेती है।
12. प्रजनन यौनियों का दोष
यद्यपि स्त्रियों मे शारीरिक बनावट के आधार पर कम स्त्रियां वेश्यावृत्ति अपनाती है। फिर भी यह कुछ वेश्याओं में दोष अवश्य होता है। ऐसी दोषी स्त्रियों की शारीरिक बनावट के कारण उनमें यौन संबंधों की तरफ अत्यधिक आकर्षण होता है। ये अपने पति से पूर्णतया यौन तृप्ति नही कर पाती इसलिए इन्हें घर से बाहर निकलने पर मजबूर होना पड़ता है।
13. स्त्रियों का व्यवसायी होना
वे स्त्रियां जो निम्न उद्योगों मे कार्य करती है शीघ्र ही चरित्रहीन होकर वेश्यावृत्ति मे लग जाती है। इस छीटी आय वालें पदों पर उन्हें नैतिक दृष्टि से हीन व्यक्तियों के संपर्क मे आना पड़ता है और इसका प्रभाव उन पर शीघ्र ही पड़ता है। होटलों में कार्य करने वाली लड़कियाँ, आफिसों में क्लर्क, घरों मे नौकरियां करने वाली इस अभिशाप की शीघ्र ही शिकार हो जाती है।
वेश्यावृत्ति को रोकने/उन्मूलन के उपाय अथवा सुझाव
वेश्यावृत्ति को रोकने उपाय निम्न प्रकार है--
1. युवक और युवतियों को यौन शिक्षा देनी चाहिए जिससे वे अज्ञानतावश वेश्यावृत्ति न अपनायें।
2. प्राणिशास्त्रीय कारक (शरीरिक बनावट) से छूटकारा पाने के लिये शादी के पहले डाक्टरी जाँच करवा लेनी चाहिए जिससे शादी के बाद विषम परिस्थिति पैदा न होने पाये।
3. समाज द्वारा उन वेश्याओं को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए जो कि स्वयं ही वेश्यावृत्ति के बंधन मे नही रहना चाहतीं।
4. यौन शिक्षा तथा आत्म-संचय के लिये उत्साहित करना चाहिए।
5. वेश्याओं की भावी संतानों को सुधार गृहों मे रखना चाहिए।
6. वेश्याओं के पुनर्वास के लिये हर सहायता करनी चाहिए।
7. वेश्यावृत्ति की ओर उकसाने वाले व्यक्तियों का अन्य समुचित प्रबंधन करना चाहिए जिससे वे इस बुरे कर्म को त्याग दें।
8. परम्परागत वेश्यावृत्ति के उन्मूलन हेतु लड़कियों को शिक्षा देना चाहिए।
9. स्त्रियों एवं लड़कियों में नैतिक शिक्षा का प्रचार करना चाहिए।
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उनकी हालत बहुत दयनीय है सरकारी इस पर काम करना चाहिए
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