6/06/2021

वलन किसे कहते हैं? प्रकार

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वलन किसे कहते है? (valan kya hai)

valan arth paribhasha prakar;धरातल पर अवसादी शैली की रचना होते हुए समय इसके स्तर समतल होते है, पर पृथ्वी मे संपीडन गति के कारण जब उन पर दूसरी (विपरीत) दिशा से दबाव पड़ता है तो उनमें सिकुड़न उत्तन्न हो जाती है और वे मुड़ जाती है। इस तरह की रचना को वलन (Folding) कहा जाता है।

फिन्च महोदय के अनुसार," शैल स्तरों के इस प्रकार बहुत अधिक मुड़ जाने को ही बलन कहा जाता है। 

बारसेस्टर के शब्दों मे," चट्टानों के स्तरों के मुड़ने के परिणामस्वरूप बनने वाले छोटे आकार के लिये सामान्यतः वलन शब्द का प्रयोग किया जाता है।" 

जब धरातल पर मोड़ पड़ते है तो उसके दो भाग होते है--

1. ऊपर उठा भाग, 

2. नीचे धँसा भाग।

ऊँचा उठा हुआ भाग अपनति (Anticline) तथा नीचे धँसा हुआ भाग अभिनति (Syncline) कहलाता है। अपनति मे शैल स्तर मोड़ शीर्ष से विपरीत दिशा की ओर मुड़े रहते है, जबकि अपनति मे शैल स्तर की भुजाओं का झुकाव एक-दूसरे के सामने रहता है। समतल धरातल के समय वलन के कारण बनने वाले ढाल के कोण को नमन (Dip) कहते है। नमन की दिशा की समतल रेखा से समकोण बनाने वाली दिशा को अनुदैर्ध्य (Strike) कहते है।

वलन के प्रकार (valan ke prakar)

संचलनों (सम्पीडन) की तीव्रता-शक्ति तथा शैलों की संरचना के अनुसार कई प्रकार के वलन निर्मित हो जाते है। वलन के मुख्य प्रकार (रूप) निम्न है--

1. एकनति वलन (Monycline fold) 

अगर वलन के कारण एक भुजा भू-पृष्ठ पर समकोण बनाती है तथा दूसरी भुजा सिर्फ साधारण रूप मे झुकी होती है तो ऐसे वलन को एकनति वलन कहते है।

2. संमित वलन (Symmetril fold) 

इस तरह के वलन की दोनों भुजाओं का झुकाव एक-सा होता है। इसकी भुजायें सुडौल, अक्ष रेखा लम्बवत् होती है। ये वलन सीधे खुले हुए होते है।

3. समनत वलन (Isoclinal fold) 

वे वलन जिनकी भुजाएँ एक ही दिशा मे झुकी हों एवं वे एक दूसरे के समानान्तर प्रतीत होती हों ऐसे वलनों को समनत वलन कहते है।

4. दुहरी तहों वाले वलन (Inverted fold or over fold) 

जिन वलनों मे मोड़ों की तहें दुहरी मुड़ जाती है उन्हें दुहरी तहों वाले वलन कहते है।

5. परिवलन या शयन वलन (Recum-bert fold) 

इस तरह के वलनों की भुजाएं अर्थात् मुड़े हुये भाग क्षितिज के समानान्तर होते है। ऐसा तब होता है जब अपनति ऊँचा एवं बहुत अधिक वलित हो जाता है और निचले वलन पर झुका हुआ हो जाता है। इस प्रकार पूर्ण वलन की भू-पृष्ठ के समानान्तर आकृति ग्रहण कर लेता है।

6. पंखाकार वलन (Fan Folding) 

जब किसी क्षेत्र मे दोनों तरफ से सम्पीडन का दीर्घकाल तक प्रभाव होता रहता है तो उसका मध्यवर्ती भाग मेहराब के रूप मे ऊपर उठ जाता है तथा उसके दायें-बायें मोड़ो का प्रसार हो जाता है। शिलाओं मे मोड़ो की इस तरह रचना हो जाने से उसका रूप पंखाकार हो जाता है। अतः ऐसे वलन पंखाकार वलन कहलाते है।

7. अधिक्षिप्त वलन (Over thrust fold) 

जब धरातल की चट्टानों मे संपीडन अधिक तीव्र गति से होने लगता है तो परिवलन मोड़ अपनी धुरी पर टूट जाता है तथा उसका एक बड़ा शिलाखण्ड खिसककर दूसरे खण्ड पर चढ़ जाता है। इस प्रकार चट्टानों मे उलट-पुलट को उत्क्रम (Thrust) कहते है। वलन का ऊपर उठा हुआ हिस्सा अधिक्षिप्त वलन कहलाता है।

8. ग्रीवा खण्ड (Nappes) 

फ्रांसीसी भाषा मे 'नापे' का अर्थ मेजपोश से होता है, जिस प्रकार मेजपोश अपनी मेज से भिन्न होता है, उसी तरह 'नापे' (ग्रीवा खंड) की चट्टानें अपनी नीचे की चट्टानों से भिन्न होती है। जब कभी सम्पीडन के अधिक बढ़ जाने से परिवलित मोड़ का शिलाखण्ड समूह टूटकर अपने मूल स्थान से बहुत दूर पहुंच जाते है तो उसे नापे अर्थात् ग्रीवा खण्ड या प्रच्छेड कहा जाता है। आल्पस तथा हिमालय पर्वतों मे ऐसे अनेक ग्रीवाखण्ड पाये जाते है।

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