6/06/2021

भ्रंश किसे कहते हैं? प्रकार

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प्रश्न; भ्रंशों की निर्माण प्रक्रिया तथा प्रकारों का वर्णन कीजिए।

अथवा

भ्रंश किसे कहते है? भ्रंश के प्रकार बताइए।

अथवा 

भ्रंश के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए तथा भ्रंशन से सम्बंधित स्थलाकृतियों को समझाइयें।

भ्रंश किसे कहते हैं? (bhransh kya hai)

bhransh arth prakar;तनावमूलक संचलन की तीव्रता से जब भूपटल मे एक तल के सहारें चट्टानों का स्थानांतरण हो जाता है, तो पैदा संरचना को भ्रंश कहते है। जिस तल के सहारे भूपटल की चट्टानों मे खंडों का स्थानांतरण होता है, उसे विभंग तल अथवा भ्रंश तल कहते है। भ्रंश तल किसी भी दिशा मे एवं किसी भी कोण पर हो सकता है। भ्रंश असल मे, भूपटल के निर्बल क्षेत्र को प्रदर्शित करता है, जिसके सहारे लंबे समय तक संचलन होता रहता है। भ्रंश की उत्पत्ति तथा उसके प्रकारों को समझने हेतु भ्रंश से संबंधित पारिभाषिक शब्दों को जानान आवश्यक है--

1. भ्रंश-तल (Fault plane

भ्रंश-तल वह सतह है, जिसके सहारे संचालन होने से चट्टानों का स्थानांतरण होता है। यह लंबलत्, क्षैतिज, झुका हुआ, वक्राकार अथवा किसी भी तरह का हो सकता है।

2. भ्रंश-नति (Fault-dip)

भ्रंश और क्षैतिज तल के बीच के कोण को 'भ्रंश-तल की नति' कहते है।

3. उत्क्षेपित खंड (Upthrown side) 

इसे 'उर्ध्वपात पार्श्व' भी कहते है। भ्रंश-तल के दूसरी तरफ के खंड की अपेक्षा ऊंचे भाग को 'उर्त्क्षपित खंड' कहा जाता है।

4. अधः क्षेपित खंड (Downthrown Side) 

इसे अवपात पार्श्व भी कहते है ऊपर उठे खंड की बजाय निचले क्षंड को 'अधःक्षेपित खंड' कहते है। 

5. शीर्ष भित्त (Hanging Wall) 

भ्रंश की ऊपरी दीवाल को 'शीर्ष-भित्ति' अथवा 'ऊपरी भित्ति' कहते है।

6. पाद भित्ति (Foot wall) 

भ्रंश की निचली दीवाल को 'पाद-भित्ति' कहते है। 

7.भ्रंश-कगार (Fault Scarp) 

भ्रंश के कारण स्थलीय सतह पर निर्मित खड़े ढाल वाले किनारे को 'भ्रंश कगार' कहते है। अधिक खड़े ढाल के कारण कगार कभी-कभी क्लिफ के जैसे होते है। कगार का निर्माण कभी-कभी अपरदन द्वार भी होता है।

भ्रंश के प्रकार (bhransh ke prakar)

भ्रंशन मे भ्रंशन की दिशा और पार्श्वों की स्थिति के आधार पर भ्रंशन के निम्न 6 प्रकार वर्णित किये गये है--

1. सामान्य भ्रंश (Normal fault)

चट्टान मे दरार पड़ने के बाद जब तनाव के कारण दोनो खण्ड एक दूसरे से विपरीत दिशा मे अर्थात् दूर खिसक जाते है तो इसे सामान्य भ्रंश कहा जाता है। इस भ्रंशन मे सतह की लम्बाई मूल लम्बाई से बढ़ जाती है। वास्तव मे 'सामान्य' इस शब्द का प्रयोग उचित नही है क्योंकि प्रकृति मे मिलने वाले अधिकांश भ्रंश व्युत्क्रम या क्षेप भ्रंश है। तथ्य यह है कि जिस समय सामान्य इस शब्द का प्रयोग प्रारम्भ हुआ उस समय यह समझा जाता था कि तनाव द्वारा निर्मित भ्रंश ही अधिक सामान्य होते है।

2. व्युत्क्रम (Reverse fault) 

चट्टानों मे दरार पड़ने पर जब संपीडन की क्रिया द्वारा एक खंड दूसरे पर चढ़ जाता है तो इस भ्रंशन को 'व्युत्क्रम' भ्रंश कहते है। इस भ्रंशन मे सतह की लम्बाई मूल लम्बाई से कम हो जाती है। हिमालय मे वलन के साथ संपीडन के कारण अनेक स्थानों पर व्युत्क्रम भ्रंश मिलते है।

3. सोपान भ्रंश (Step-fault)  

जब कई समानांतर भ्रंश रेखाओं के सहारे एक ही दिशा मे अनेक सामान्य भ्रंश निर्मित होते है तो इससे कई बार एक सीढ़ीनुमा आकृति का जन्म होता है जिसे 'सोपान भ्रंश' कहते है।

4. क्षेप भ्रंश (Thrust fault) 

वलन की क्रिया मे जब संपीडन की तीव्रता इतनी अधिक होती है कि बनने वाले मोड़ बीच से टूट जाएँ, तब इस प्रकार के भ्रंश निर्मित होते है। जब शयान वलन बीच से टूट जाता है तो उसका एक पार्श्व क्षैतिज रूप से निचले पार्श्व पर चढ़ जाता है। इस भ्रंश को 'क्षेप भ्रंश' कहते है। इस भ्रंशन की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमे भ्रंशन तल भूसतह के लगभग समानांतर होता है।

5. तिर्यक या सर्पण भ्रंश (Oblique or slip fault) 

कई बार भ्रंशन के दौरान धँसाव सभी भागों मे एक सा नही होता वरन् अवपाती भाग का एक किनारा तो विभंग तल से जुड़ा रहता है, जबकि दूसरा सिरा नीचे फिसल जाता है। इस प्रकार के भ्रंश को 'तिर्यक या सर्पण भ्रंश' कहते है।

6. विदारण या ट्रांस करेंट भ्रंश (Tear or transcurrent facult) 

जब भ्रंशन के कारण दोनों पार्श्व ऊपर-नीचे न खिसक कर क्षैतिज रूप से आगे-पीछे की ओर खिसकते है तो इन्हें 'विदारण या ट्रांस करेन्ट भ्रंश' कहते है।

भ्रंशन से उत्पन्न स्थलाकृतियां 

भ्रंशन की क्रिया द्वारा स्थल खंड का कुछ भाग ऊपर उठ जाता है कुछ भाग नीचे चला जाता है। इस कारण कई प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण होता है। भ्रंशन से प्रमुखतः ब्लाक पर्वत, दरार घाटी एवं विशेष दशा मे भ्रंश कगार का विकास होता है--

1. ब्लाॅक या भ्रंशोन्थ पर्वत 

इसे जर्मन भाषा मे 'होर्स्ट' भी कहते है। जब भ्रंश की क्रिया से या तो दो दरारों के बीच का भाग ऊपर उठ जाए या मध्य का भाग स्थिर रहे एवं भ्रंश तल के सहारे दोनो तरफ की चट्टानें नीचे की ओर खिसक जाएं तो ब्लाॅक पर्वत बनता है। इस तरह के पर्वत के दोनों तरफ तेज ढाल एवं ऊपरी तल समतलप्राय होते है। यूरोप मे वासजेस, ब्लेक फारेस्ट तथा होर्स्ट ब्लाॅक इसके विशेष उदाहरण है।

2. भ्रंश या दरार घाटी 

किसी स्थान पर जब दो सामान्य भ्रंश कई किलोमीटर की लंबाई मे इस प्रकार पड़ते है कि उनके मध्य का भाग नीचे धंस जाता है तथा एक बेसिन या घाटी का निर्माण हो जाता है तो उसे ' भ्रंश घाटी' या 'ग्राबेन' कहते है। भ्रंश घाटी का निर्माण उस वक्त भी होता है जबकि बीच का भाग स्थिर रहे तथा अगल-बगल वाले भाग ऊपर उठ जाएं। प्रायः भ्रंश घाटी लंबी तथा संकरी लेकिन बहुत गहरी होती है। जैसे-राइन नदी की भ्रंश घाटी बसेल तथा बिन्जेन नगरों के बीच 320 किलोमीटर की लंबाई तथा 32 किलोमीटर की चौड़ाई मे विस्तृत है। भारत मे नर्मदा नदी की घाटी को भ्रंश घाटी का उदहारण बताया जाता है, लेकिन यह विषय विवादास्पद है।

भ्रंश या दरार घाटी की उत्पत्ति संबंधी परिकल्पनाएं 

भ्रंश घाटी उत्पत्ति से संबंधित परिकल्पनाओं को उत्पत्ति बल के आधार पर निम्न वर्गो मे बाँटा जाता है--

(अ) तनाव मूलक परिकल्पना 

इस परिकल्पना के अनुसार जिस तरह किसी भवन के मेहराब से बीच का पत्थर तनाव द्वारा हटाने से वहां रिक्त स्थान बन जाता है, उसी तरह पृथ्वी तल पर तनाव पड़ने से विशेष प्रभावित भाग मे दरारा पड़ने अथवा मध्यवर्ती भाग के नीचे धंसने से वहां दरार या भ्रंश घाटी बन जाती है। इस परिकल्पना को अब निराधार प्रमाणित कर दिया गया है। 

(ब) संपीडनात्मक परिकल्पना 

भ्रंश घाटी की रचना संपीडन से होती है। इस मत का प्रतिपादन करने वाले प्रमुख विद्वान वेलैंड, वेलीविलिस इत्यादि है। इन विद्वानों ने विभिन्न भ्रंश घाटियों का अध्ययन कर कहा है कि संपीडन से उत्क्रमण भ्रंश (Thrust Fault) के सहारे किनारे वाले खंड ऊपर की ओर सरक जाते है। इनको अधिक्षेपण-रिफ्ट-ब्लाॅक कहा जाता है। इस प्रकार ऊपर उठते हुए किनारों से पैदा दाब के फलस्वरूप बीच का भाग नीचे की ओर सरकता है। इसे रिफ्ट ब्लाॅक कहते है। यह रिफ्ट ब्लाॅक ऊपर की तरफ संकरा और नीचे की ओर क्रमशः चौड़ा होता जाता है।

(स) बलार्ड की परिकल्पना 

बलार्ड के मुताबित भ्रंश घाटी का निर्माण कई अवस्थाओं मे होता है। इसमे आमने-सामने से क्षैतिज संचलन से बीच का भाग नीचे धंस जाता है अर्थात् दो उत्क्षेपित खंड़ो के बीच एक अधःक्षेपित खंड का निर्माण हो जाता है, यही भ्रंश घाटी है।

3. भ्रंश कगार 

भ्रंश कगारों का निर्माण विशेष दशा मे ऊंचे धरातल मे एक ओर भ्रंश तथा धंसाव के कारण होता है। भारत के पश्चिमी घाट के किनारे का खड़ा ढाल भ्रंश कगार का ही हिस्सा है क्योंकि करोड़ो वर्ष पहले दक्षिण का पठार ज्यादा चौड़ाई मे दूर पश्चिम तक फैला था, पर महाद्वीपीय विस्थापन के समय पश्चिमवर्ती भाग एक विशाल दरार एवं भ्रंश तल के सहारे टूट गया। इसी से पश्चिमी घाट के समुद्र की ओर के खड़े ढालों को भ्रंश कगार भी कहते है।

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