पर्वत किसे कहते हैं?
parvat arth vargikaran;पर्वत पृथ्वी के मुख्य स्थल स्वरूप है। इसका विस्तार धरातल के करीब 27% भाग पर है। पृथ्वी के धरातल पर ऊंचे उठे हुए स्थल के वे भू-भाग जिनका क्षेत्रफल चोटी के निकट कम और धरातल पर विस्तृत रूप मे पाया जाता है, पर्वत कहलाते है।
प्रो. फिंच महोदय के शब्दों मे," पर्वत सागर तल से 500 मीटर अथवा इससे अधिक ऊंचे उठे हुए वे भू-भाग है जो निकटवर्ती धरातल से प्रायः 26 डिग्री से 35 डिग्री का कोण बनाते है। सामान्यतया 600 मीटर से ज्यादा ऊंचे भू-भाग जिनका कम से कम आधा धरातल तीव्र ढाल वाला होता है, पर्वत कहलाते है।
सैलिसबरी के शब्दों मे," पर्वत वे उच्च स्थलीय भाग होते है जिनका शिखर क्षेत्र काफी संकुचित होकर चोटियों के रूप मे होता है।"
उच्च पर्वत शिखरों की पंक्ति को पर्वत कटक कहते है। जब कोई पर्वत कटक और घाटियां पास-पास होती है तो इस स्वरूप को पर्वत श्रेणी कहते है। जब कई पर्वत श्रेणियां एक क्रम मे हों और उनके बीच-बीच मे समतल भाग या पठार हों तो ऐसी रचना पर्वत श्रंखला कही जाती है। एक युग मे निर्मित पर्वत श्रेणियों के क्रम को पर्वत तंत्र और विभिन्न युगों मे भिन्न-भिन्न प्रकार निर्मित श्रेणियों को कार्डिलेरा कहा जाता है।
पर्वतों का वर्गीकरण अथवा पर्वत के प्रकार
भू-पृष्ठ पर मिलने वाले पर्वतों मे इतनी ज्यादा विभिन्नताएं होती है कि उनका निश्चित रूप से वर्गीकरण करना मुश्किल कार्य नही तो व्यापक प्रक्रिया तो जरूर है। पर्वतों को निम्न आधारों पर विभाजित किया जा सकता है--
(अ) ऊंचाई के आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण
ऊंचाई के आधार पर पर्वत चार प्रकार के होते है--
1. निम्न या निचले पर्वत
जिन पर्वतों की ऊंचाई 700 से 1000 मीटर तक होती है, उन्हें निम्न पर्वत कहते है।
2. रूक्ष अथवा कम ऊंचे पर्वत
इनकी ऊंचाई 1000 से 1500 मीटर तक होती है।
3. असम पर्वत
असम पर्वतों की ऊंचाई 1500 से 2000 मीटर तक होती है। जैसे-- आलेशियन, अरावली इत्यादि पर्वत।
4. ऊंचे पर्वत
2000 मीटर से ऊंचे पर्वतों को इस श्रेणी मे रखा जाता है। जैसे-- राकी, एंडिज, आल्पस, हिमालय इत्यादि पर्वत।
(ब) स्थिति के आधार पर पर्वतों का वर्गीकरण
स्थिति के आधार पर पर्वतों को दो वर्गों मे रखा जा सकता है--
1. स्थल-स्थित पर्वत
सागर तल से ऊंचाई के आधार पर ग्लोब के सर्वोच्च और सबसे बड़े पर्वतों की स्थिति महाद्वीपों मे ही पाई जाती है। जैसे-- राकी, एंडीज, आल्पस, हिमालय इत्यादि पर्वत।
2. सागर स्थिति पर्वत
स्थलीय पर्वतों के अतिरिक्त अनेक पर्वतों का विस्तार सागर द्रोणियों और महाद्वीप निमग्न तटों पर पाया जाता है। इनमें से ज्यादातर पर्वत जल के नीचे है, परन्तु कुछ सागर स्थित पर्वत जल के ऊपर भी विद्यमान है।
(स) निर्माण की प्रक्रिया के आधार पर वर्गीकरण
सभी पर्वतों का निर्माण समान रूप से नही होता है। पर्वतों के निर्माण और विकास मे प्रमुख रूप से संपीड़न की शक्ति खिंचाव की शक्ति, ज्वालामुखी उद्गार, अपरदन के प्रभाव-स्थल के उभार आदि का सहयोग होता है। इस आधार पर पर्वतों को निम्न रूप मे विभाजित किया जा सकता है--
1. मोड़दार अथवा वलित पर्वत
जब चट्टानों मे पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों द्वारा मोड़ या वलन पड़ते है तो उसे मोड़दार पर्वत कहा जाता है। मोड़दार पर्वत विश्व के सबसे ऊंचे तथा सबसे विस्तृत है, जिनका विस्तार सामान्यतः हर महाद्वीप मे है। ये पर्वत महाद्वीप किनारों पर अथवा उत्तर से दक्षिण या पश्चिम से पूर्व दिशा मे पाए जाते है। हिमालय, अल्पाइन पर्वत समूह, राकी एटलस इत्यादि मोड़दार पर्वतों के मुख्य उदाहरण है।
2. अवरोधी या ब्लाक पर्वत
अवरोधी पर्वतों का निर्माण तनाव अथवा खिंचाव की शक्तियों द्वारा होता है। खिंचाव से धरातलीय भागों मे दरारें या भ्रंश पड़ जाती है जिससे धरातल का कुछ भाग ऊपर उठ जाता है और कुछ भाग नीचे धंस जाता है। इस तरह दरारों के समीप ऊंचे उठे भाग को ब्लाक पर्वत कहा जाता है।
3. गुम्बदाकार पर्वत
जब पृथ्वी के धरातलीय भाग मे चाप के आकार मे उभार होने से धरातलीय भाग ऊपर उठ जाता है तो उसे गुम्बदनुमा पर्वत कहा जाता है। असल मे गुम्बद का ऊपरी भाग गोलाकार होता है। जब धरातलीय भाग मे उभार नग्णय होता है तो मैदान अथवा पठार का रूप होता है, लेकिन जब उभार ज्यादा होता है तो गुम्बदाकार पर्वत का आविर्भाव होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका का सिनसिनाती उभार एक लघु व निम्न गुम्बद का उदहारण है।
4. संग्रहित पर्वत
धरातल के ऊपर मिट्टी, मलबा, लावा आदि के लगातार जमा होते रहने से निर्मित पर्वतों को संग्रहित पर्वत कहते है। सर्वप्रथम धरातल पर इनका आकार छोटे टीले के समान होता है, लेकिन निरंतर जमाव होते रहने से इनका आकार बढ़ता जाता है। इस तरह से इन्हें ज्वालामुखी पर्वत भी कहा जाता है। कोटोपैक्सी विश्व का सबसे ऊंचा जाग्रत ज्वालामुखी पर्वत है।
5. मिश्रित या जटिल पर्वत
जब किसी पर्वत मे बनावट संबंधी कई जटिलताएं पाई जाती है तथा जब कई तरह की बनावट एक-दूसरे से मिलकर विविध रूप धारण कर लेती है तो उस पर्वत को जटिल पर्वत की संज्ञा प्रदान की जाती है।
6. अवशिष्ट पर्वत
अपरदन की शक्तियों द्वारा प्रारंभिक पर्वत कटकर नीचे हो जाता है और उसका अवशिष्ट भाग दृष्टिगोचर होता है। क्योंकि इनका निर्माण अन्य प्रकार के पर्वतों पर अत्यधिक अपरदन होने से होता है। इसलिए इन्हें घर्षित पर्वत कहा जाता है।
(द) पर्वत निर्माणकारी घटना के अनुसार पर्वतों का वर्गीकरण
भूपटल पर फैले हुए सभी तरह के पर्वतों का यदि विश्लेषण किया जाए और उनके भूगर्भिक इतिहास का पता लगाया जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि भूपटल के हर पर्वत का निर्माण काल एक नही है। यह अंतर कुछ वर्षों का ही नही बल्कि कई कल्पों तथा युगों का है। एक लंबी अवधि तक पर्वत निर्माण से भूपटल के वर्तमान विभिन्न प्रकार के पर्वतों का सृजन संभव हुआ है। मुख्य पर्वत निर्माणकारी घटनाओं के आधार पर भूपटल के पर्वतों को चार श्रेणियों मे रखा जा सकता है--
(अ) कैम्ब्रियन युग के पूर्व के पर्वत,
(ब) कैलिडोनियन पर्वत,
(स) हर्सीनियन पर्वत,
4. अल्पाइन पर्वत।
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