4/04/2021

कृषक समाज की विशेषताएं

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कृषक समाज का अर्थ (krishat samaj kya hai)

krishak samaj ka arth paribhasha visheshtayen;कृषक समाज का अर्थ समझने से पहले हमें कृषक का अर्थ समझना चाहिए। ग्रामीण समाजशास्त्र के विद्वानों के अनुसार कृषक वह व्यक्ति है, जो भूमि को जोतता है और उसमें बीज डालकर उपज पैदा करता है। किन्तु वह यह सब कुछ कार्य अपनी आजीविका चलाने के लिए करता है। उसका विचार या उद्देश्य अपनी उपज से व्यापार करके धन प्राप्त करना नही होता है। वह केवल अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिये ही खेती का कार्य करता है। इस तरह कृषक वह व्यक्ति है, जो व्यापार का उद्देश्य छोड़कर केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के उद्देश्य से खेती करता है, जमीन जोतता है और उसमें बीज डालकर उपज करता है।

इसी आधार पर कृषक समाज का अर्थ भी स्पष्ट रूप से यह समझा जाता है कि," कृषक समाज एक ऐसे सामाजिक वर्ग का नाम है, जिसका मुख्य उद्देश्य खेती करके अपने परिवार का पालन-पोषण करना होता है। यह वर्ग कृषि की उपज से व्यापार करके धन एकत्रित करना नही चाहता है। इस वर्ग का धन खेती है और उसका प्रेम तथा उसकी भक्ति उसकी भूमि तक ही सीमित है। इस दृष्टि से कृषक समाज उन लोगों का सामाजिक वर्ग है, जिनका मुख्य पेशा खेती करना है।"

कृषक समाज की परिभाषा (krishak samaj ki paribhasha)

नोर्वेक के अनुसार," कृषक समाज एक बड़े स्तरीकृत समाज का वह उप-समाज है, जो या तो पूर्ण औद्योगिक अथवा अंशतः औद्योगिकृत है।"
रेमण्ड फर्थ के शब्दों मे," लघु उत्पादकों का वह समाज जो कि केवल अपने निर्वाह के लिये ही खेती करता है, कृषक समाज कहा जा सकता है।"
राबर्ट रेडफील्ड के अनुसार," वे ग्रामीण लोग जो जीवन निर्वाह के लिए अपनी भूमि पर नियंत्रण बनाये रखते है और उसे जोतते है तथा कृषि जिनके जीवन के परम्परागत तरीके का एक भाग है और जो कुलीन वर्ग या नगरीय लोगों की ओर देखते है और उनसे प्रभावित होते है, जिनके जीवन का ढंग उनसे कुछ सभ्य होता है, कृषक समाज कहलाता है।" 

राॅबर्ड रेडफील्ड द्वारा दी गई गई उक्त परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि कृषक समाज की आवधारणा मे दो महत्वपूर्ण तत्व होते है--

1. ग्रामीणों के जीवन निर्वाह का ढंग,

2. अन्य स्तर के लोगो के साथ उनके संबंधो की प्रकृति।

रेडफील्ड के विचारो से स्पष्ट होता है कि कृषक समाज (Peasant society) के अंतर्गत केवल उन्ही छोटे उत्पादनकर्ताओं को सम्मिलित किया जा सकता है जो अपनी आजीविका के लिए उत्पादन करते है। रेडफील्ड ने उन व्यक्तियों को किसान कहा है जो बाजार के लिए उत्पादन करते है।

कृषक समाज की विशेषताएं (krishak samaj ki visheshta)

भिविन्न विद्वानों द्वारा कृषक समाज की जो परिभाषाएं दी गई है, उनके आधार पर कृषक समाज की सामान्य विशेषताएं निम्न प्रकार है--
1. कृषक समाज, ग्रामीण समाज या ग्रामीण समुदाय का पर्यायवाची शब्द है।
2. कृषक समाज के सदस्य केवल अपने जीवन निर्वाह के लिए खेती करते है और भूमि पर नियंत्रण बनाये रखते है तथा उसे जोतते है। 
3. कृषक समाज के व्यक्तियों मे पाये जाने वाले पारस्परिक संबंध व्यक्तिगत तथा प्रगाढ़ होते है। 
4. कृषक समाज एक स्थिर समाज है। इसके व्यक्तियों का जीवन प्राकृतिक जीवन है, क्योंकि प्रकृति से उनका प्रत्यक्ष संबंध है। 
5. कृषक समाज के सदस्य अपने जीवन के अनेक क्षेत्रों मे कस्बे या नगर के अभिजात वर्ग से प्रभावित होते है।
6. कृषक समाज के कृषकों के पास भूमि का होना अनिवार्य नही है।
7. कृषक समाज मे ऐसे लोग भी पाये जाते है जिनके पास अपनी स्वयं की भूमि नही होती है। परन्तु वे एक आसानी या किराएदार के रूप मे किसी दूसरे भू-स्वामी की भूमि पर कृषि करते है।
8. अविभेदीकृत तथा उपस्तरीकृत समाज ही एक आदर्श कृषक समाज होता है।
9. एक कृषक समाज की अपनी परम्परागत संस्कृति होती है, जिसके प्रति कृषक समाज के सभी सदस्यों की अटूट भक्ति होती है।
10. कृषक समाज अपने परम्परागत तरीकों से अपना जीवन व्यतीत करता है और अपने परम्परागत तरीकों से ही खेती का कार्य करता है।
11. खेती कृषक समाज की आजीविका का साधन है और वही उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन है।
12. कृषक समाज के सभी व्यक्तियों में सांस्कृतिक और सामाजिक आधार पर अनेक विभिन्नताएं पायी जाती है।

रेडफील्ड ने कृषक समाज की निन्म विशेषताएं बताइए है--

1. कृषक समाज तुलनात्मक रूप से एक समरूप समाज है।

2. कृषक समाज के सदस्यों की आजीविका का मुख्य साधन भूमि पर नियंत्रण रखना तथा भूमि को जोतना है।

3. कृषक समाज एक अविभेदीकत और अस्तरीकृत समुदाय है।

4. कृषक समाज नगरों अथवा कस्बों के कुलीन वर्ग से भिन्न होता है। यद्यपि यह उसने अनेक क्षेत्रों मे प्रभावित होता है।

5. कृषक समाज को आर्थिक आधार पर अन्य समाजों से स्पष्ट रूप से पृथक किया जा सकता है।

थियोडोर शनीन के द्वारा कृषक समाज की निम्न विशेषताएं बताइए गई है--

1. कृषक परिवार का खेत बहुआयामी संगठन की मौलिक इकाई है अर्थात एक कृषक परिवार उपभोग एवं उत्पादन की इकाई के रूप मे कार्य करता है और इसी आधार पर कृषक के जीवन का ढंग औद्योगिक जीवन ढंग से अलग हो जाता है। एक कृषक का खेत ही उसकी सम्पत्ति, समाजीकरण, मित्रता तथा कल्याणकारी कार्यों की मौलिक इकाई होता है।

2. भूमि की आजीविका का प्रमुख साधन है, जो एक कृषक की उपभोग की आवश्यकताओं की अधिकतम भाग की पूर्ति करती है।

3. कृषक समाज की अपनी एक परम्परागत विशिष्ट संस्कृति होती है, यह संस्कृति लघु समुदाय के जीवन के ढंग से विशेष संबंधित होती है। (यहां पर यह उल्लेखनीय है कि "लघुसमुदाय" की अवधारणा राॅबर्ड रेडफील्ड ने अपनी पुस्तक "लिटिल कम्युनिटी" मे प्रस्तुत की है। जिसमे लघु समुदाय की चार मौलिक विशेषताओं, विशिष्टता, लघुता, समरूपता, आत्मनिर्भरता का उल्लेख किया है) 

4. कृषक समाज की आर्थिक स्थिति निम्न होती है तथा इन पर बाहरी समूहों का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।

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