अंतर्राष्ट्रीय विपणन का महत्व अथवा लाभ
antarrashtriya vipran ka mahatva;वर्तमान मे वैश्वीकरण के युग मे अंतर्राष्ट्रीय विपणन का महत्व काफी बढ़ गया है। सम्पूर्ण विश्व एक परिवार बन गया है एवं विभिन्न देशों के मध्य बड़े पैमाने पर व्यापारिक एवं आर्थिक सहयोग समझौते हो रहे है। अंतर्राष्ट्रीय विपणन का महत्व या लाभ इस प्रकार है--
1. रोजगार के अवसरों मे वृद्धि
विदेशों मे निर्यात बढ़ाने के लिए एक तरफ निर्यात अभिमुखी इकाइयों की स्थापना की जाती है, दूसरी तरफ विद्यमान फर्में भी अपने उत्पादन के स्तर को बढ़ाती है। इससे देश मे रोजगार के अवसरों का सृजन होता है। निर्यात विपणन से विकासशील देशों की बेरोजगारी की समस्या को कुछ सीमा तक हल किया जा सकता है। निर्यात विपणन के नये-नये क्षेत्रों का पता लगाकर रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जा सकता है।
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2. जीवन स्तर मे सुधार
अंतर्राष्ट्रीय विपणन निर्यातक देशों के लोगो के जीवन मे सुधार लाता है। अनेक नई वस्तुओं का आयात होने से उनका उपयोग देश मे होने लगता है जो जीवन-स्तर के सुधार का घोतक है, क्योंकि यदि निर्यात नही होता है तो विदेशी मुद्रा के अभाव मे इन वस्तुओं का आयात नही हो सकता था।
3. तीव्र आर्थिक विकास
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के द्वारा विभिन्न देशों के आर्थिक विकास की दर ऊंची होती है। जो देश तीव्र गति से आर्थिक विकास करना चाहते है उन्हें अपने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा होगा। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से देश को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। इसका उपयोग प्राथमिकता के क्रम मे देश की अर्थव्यवस्था हेतु आवश्यक संयंत्र, मशीनें उपकरण मंगाने के लिए किया जा सकता है। खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मूल्यवान कृषि उपकरणों तथा उर्वरकों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कर कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। इससे कई औद्योगिक तथा उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन नये-नये उद्योग लगाकर किया जा सकता है। इससे उत्पादन को इस सीमा तक बढ़ाया जा सकता है, जिससे देशी मांग को पूरा करने के बाद अतिरिक्त बचा रहे। इससे कई बेकार पड़े साधनों का उपयोग भी कुशलता से किया जा सकता है। अतः तह बात पूर्णतः स्पष्ट है कि देश की अर्थव्यवस्था के विकास मे अंतर्राष्ट्रीय विपणन एक गतिशील घटक का कार्य करता है।
4. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की वृद्धि
अंतर्राष्ट्रीय विपणन विभिन्न देशों के नागरिकों को संपर्क मे लाता है जिससे विभिन्न देशों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक संबंधों मे दृढ़ता आती है और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना का विकास होता है।
5. सांस्कृतिक संबंधों मे निकटता
अंतर्राष्ट्रीय विपणन से विभिन्न देशों के मध्य व्यापारिक संबंध स्थापित होते है। विभिन्न देशों के सरकारी व गैर सरकारी प्रतिनिधि मण्डल एक-दूसरे देशों मे आवागमन करते है। इससे दूसरे देश के निवासियों की आदतों, रीति-रिवाजों व परम्पराओं का ज्ञान होता है। निर्यातक फर्में निर्यात विपणन के लिए अपने विक्रय केन्द्र विदेशों मे खोलती है, निर्यातक फर्म के कर्मचारियों को इससे निकट आने का अवसर मिलता है। इससे विभिन्न देशों के सांस्कृतिक संबंधों मे निकटता आती है।
6. राजनीतिक शान्ति की स्थापना मे सहयोग
विभिन्न देशों के बीच राजनितिक शांति बनाये रखने मे भी अंतर्राष्ट्रीय विपणन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। राजनैतिक विचारधार न मिलने के बाद भी एक देश दूसरे से आयात-निर्यात करते है। रूप व अमेरिका की राजनीतिक विचारधार सर्वथा विपरीत है, फिर भी रूस अमेरिका से अनाज का आयात करता है। इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय विपणन से राजनीतिक शांति की स्थापना मे मदद मिलती है।
7. प्रबंधकीय चातुर्य के विकास मे सहायता
देशी विपणन जितना सरल है उसकी तुलना मे अंतर्राष्ट्रीय विपणन अत्यंत ही चुनौतीपूर्ण है। अंतर्राष्ट्रीय विपणन मे एक फर्म को दो स्तरों पर कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधक तथा कर्मचारियों को नित्य नयी चुनौतियों, समस्याओं व परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। अपने अनुभवों का लाभ वे अपनी भविष्य की योजनाओं मे करते है। इससे फर्म के प्रबंधकीय चातुर्य के विकास हेतु बहुत अनुकूल होती है।
8. उपक्रम का विकास
नियोजित अर्थव्यवस्था वाले देशों की सरकारें अपने आयातों मे कमी लाने के लिए कई तरह के प्रतिबंध लगाती है। उपक्रम अगर विदेशी मुद्रा अर्जन निर्यातों से करता है तो उसके कुछ भाग को वह आवश्यक मशीनों आदि के आयात पर व्यय कर सकता है। इस कारण फर्म अपने निर्यात विक्रय को अधिकाधिक बढ़ाकर बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकती है। इसके एक भाग का उपयोग ये उपक्रम आवश्यक मशीनों, उपकरणों, कच्चा माल एवं तकनीकी जानकारी के आयात मे कर अपने उपक्रम का आधारभूत विस्तार करने मे सक्षम हो सकते है। इस विकास का देशी तथा अंतर्राष्ट्रीय विपणन मे नये सिरे से लाभ उठा सकते है।
9. प्रेरणाओं का लाभ
व्यक्तिगत फर्मों के लिए अंतर्राष्ट्रीय विपणन का महत्व प्रेरणाओं के दृष्टिकोण से भी है। प्रत्येक देश की सरकार अपने निर्यातों को बढ़ाने हेतु कई प्रकार की प्रेरणाओं व प्रोत्साहन योजनाओं की घोषणा करती है। निर्यात किये जाने वाले कई उत्पादों पर सरकार करों मे रियायत व नकद सहायता देती है। इससे उत्पादों के विक्रय मूल्यों मे कमी होती है। इसका लाभ उठाकर फर्म विश्व बाजारों मे विद्यमान कड़ी प्रतियोगिता का प्रभावी रूप से सामना कर सकती है।
10. लाभदायक विक्रय
अंतर्राष्ट्रीय विपणन निर्यातक फर्म को लाभदायक विक्रय करने मे सहायता करती है। इससे विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है तथा लाभों मे भी देशी व्यापार की उपेक्षा मे भारी वृद्धि होती है, क्योंकि वही माल यदि देश मे बेचा जाता है, तो उतना लाभ मिल पाता है जितना लाभ निर्यात से होता है।
11. एकानिकार पर रोक
अंतर्राष्ट्रीय विपणन के कारण देश के एकाधिकारी व्यवसाय पनप नही सकते, उन्हें सदैव विदेशी प्रतियोगिता का खतरा बना रहता है। इस प्रकार विदेशी व्यापार के फलस्वरूप एकाधिकार की प्रवृति को ठेस पहुँचती है।
12. उत्पादन रीतियों मे सुधार
अंतर्राष्ट्रीय विपणन के कारण देश के उद्योगपतियों को सदैव प्रतियोगिता का भय रहता है, अतः विदेशी प्रतियोगिता का मुकाबला करने के लिए वे सदैव वैज्ञानिक उत्पादन-विधियों की सहायता से उत्पादन लागतों की कमी का प्रयत्न करते रहते है, इससे देश की समूची अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।
13. प्राकृतिक संसाधनों का लाभदायक उपयोग
अंतर्राष्ट्रीय विपणन को बढ़ाकर एक देश अपने यहां विद्यमान प्राकृतिक साधनों का उपयोग कर सकता है। अंतर्राष्ट्रीय विपणन के द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जन कर अपने देश मे कई तरह के उद्योग स्थापित किये जा सकते है। इससे कई तरह के खनिजों एवं वनों से प्राप्त संपदाओं का कुशलता से उपयोग किया जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय विपणन के दोष अथवा दुष्प्रभाव
antarrashtriya vipran ke dosh;यदि कोई देश अपनी विदेशी आयात निति को पूर्णतः शिथिल करके निर्बाध रूप से अपने देश मे विदेशों से माल या सेवाएं आने देता है तथा किसी भी प्रकार के माल या सेवाएं निर्गमित होने देता है तो उसके कई प्रकार के दोष है या इस प्रकार के मुक्त व्यापार के कई दुष्प्रभाव होते है, जिनमे कुछ इस प्रकार है--
1. बेरोकटोक निर्यात से देश मे चीजों की कमी
यदि व्यापारियों को कोई भी माल बेरोकटोक बाहर भेजने की स्वतंत्रता दे दी जाये तो इससे देश मे आवश्यक वस्तुओं की कमी हो सकती है।
2. विदेशी उतार-चढ़ाव का दुष्प्रभाव
वर्तमान समय मे खुली अर्थवयवस्था का चलन है, ऐसे मे देश की अर्थव्यवस्था जितनी उदार होगी उस पर बाहरी उतार-चढ़ावों का उतना ही अधिक प्रभाव रहेगा। यदि भारत मे चीनी का मुक्त व्यापार लागू कर दिया जाये तो यहाँ चीनी के मुल्य अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन व अंतर्राष्ट्रीय मांग व पूर्ति पर निर्भर करने लगेंगे, न कि घरेलू तत्वों पर।
3. घरेलू उद्योगों का सफाया
किसी वस्तु के बेरोकटोक आयात से देश के नये उभरते हुए व कम कुशल उद्योगों का सफाया हो जायेगा।
4. डम्पिंग की आशंका
इसका अर्थ है-- अपने देश के फालतू माल को विदेशी बाजार मे लागत से भी कम मूल्य पर बेच देना। औद्योगिक रूप से विकसित देश विदेशी बाजारों मे अपना फालतू माल लागत से भी कम मूल्य पर बेच सकते है। यह बात अप्रचलित माल, हानिकारक दवाइयों व वातावरण को प्रदूषित करने वाले पदार्थों पर विशेष रूप से लागू होती है।
5. देश की प्राथमिक वस्तुओं का निर्यात बनकर रह जाना
यदि कोई देश उन्ही वस्तुओं के निर्यात पर केन्द्रित रहता है जिनमे उसे प्रारंभिक तुलनात्मक लाभ था, तो वह समय बदलने पर भी स्थायी रूप से उन प्राथमिक वस्तुओं का निर्यातक ही बना रहता है। उदाहरणार्थ-- भारत, जो आज बेहतरीन चमड़े के जूते व अन्य सामान बनाने की क्षमता रखता है, विदेशों मे आज भी कच्चा चमड़ा व खालों का निर्यातक ही समझा जाता है, जूतों और चमड़े की अन्य वस्तुओं का नही।
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