2/13/2021

वित्तीय विश्लेषण प्रकार, लाभ/महत्व, सीमाएं

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वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के प्रकार (vittiya vishleshan ke prakar)

विभिन्न पक्षकार विभिन्न उद्देश्यों के लिए विभिन्न आधारों पर वित्तीय विवरणों का विश्लेषण कर सकते है। कुल मिलाकर वित्तीय विवरण विश्लेषण के निम्न प्रकार हो सकते है--

(अ) विश्लेषण की प्रकृति एवं प्रयुक्त सामग्री के आधार पर 

इस आधार पर वित्तीय विवरण विश्लेषण निम्न दो प्रकार का हो सकता है--

1. बाहरी विवरण 

यह विश्लेषण उन व्यक्तियों या पक्षकारों द्वारा किया जाता है, जो उपक्रम से जुड़े नही होते अर्थात् जिनकी उपक्रम के विस्तृत रिकार्ड तक पहुंच नही होती। इसका विश्लेषण मुख्यतः प्रकाशित लेखों, संचालक रिपोर्ट तथा अंकेक्षण रिपोर्ट पर आधारित होता है। विनियोक्ता, स्ख एजेन्सियों, सरकार एजेन्सियों तथा शोधकर्ता इसी प्रकार का विश्लेषण करते है। 

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2. आन्तरिक विश्लेषण 

यह विश्लेषण उन व्यक्तियों के द्वारा किया जाता है जिनकी उपक्रम की लेखा पुस्तकों तक पुहंच होती है। ये व्यक्ति संगठन/उपक्रम के सदस्य होते है। प्रबंध द्वारा उपक्रम की वित्तीय स्थिति तथा कार्यकुशलता के लिए किया जाने वाला विश्लेषण इसी वर्ग मे आता है।

सामान्यतः आन्तरिक विश्लेषण अधिक विस्तृत एवं विश्वसनीय होता है, क्योंकि इसमे विश्लेषक को सभी प्रकार की आवश्यक सूचनाएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती है।

(ब) विश्लेषण के उद्देश्य के आधार पर 

इस आधार पर भी वित्तीय विवरण विश्लेषण निम्न दो प्रकार का हो सकता है--

1. दीर्घकालीन विश्लेषण 

दीर्घकालीन वित्तीय नियोजन की दृष्टि से किया जाने वाला विश्लेषण दीर्घकालीन विश्लेषण कहलाता है। इसमे फर्म की दीर्घकालीन शोधनक्षमता, लाभदायकता तथा वित्तीय स्थायित्व से संबंध मे विश्लेषण किया जाता है।

2. अल्पकालीन विश्लेषण 

इसके अंतर्गत अल्पकाल मे शोधनक्षमता, तरलता, स्थायित्व तथा लाभदायकता, इत्यादि की दृष्टि से विश्लेषण किया जाता है।

(स) कार्यविधि के आधार पर 

कार्यविधि के आधार पर विश्लेषण के निम्न दो प्रकार होते है-- 

1. क्षैतिज या गतिशील विश्लेषण 

यह विश्लेषण एक ही फर्म के विभिन्न वर्षों के विवरणों के आधार पर किया जाता है अतः इसे " काल माला विश्लेषण " या अंतर फर्म विश्लेषण भी कहते है। दीर्घकालीन प्रवृत्ति विश्लेषण एवं नियोजन की दृष्टि से यह विश्लेषण काफी उपयोगी होता है। तुलनात्मक वित्तीय विवरण, प्रवृत्ति विश्लेषण, कोष प्रवाह विश्लेषण, रोकड़ प्रवाह विश्लेषण, इत्यादि इस प्रकार के विश्लेषण के ही उदाहरण है।

2. लम्बवत या स्थिति विश्लेषण 

इस विश्लेषण मे एक विशिष्ट वर्ष के वित्तीय विवरणों के आधार पर ही विश्लेषण किया जाता है।  इस प्रकार का विश्लेषण एक निश्चित तिथि पर वित्तीय समंकों का विश्लेषण करता है। अतः इसे स्थिति विश्लेषण भी कहते है। इस विश्लेषण के आधार पर एक वर्ष मे एक उपक्रम के विभिन्न विभागों या विभिन्न उपक्रमों का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। इस दृष्टि से इसे काॅस-सैक्शन विश्लेषण भी कहा जाता है।

वित्तीय विश्लेषण के लाभ या महत्व (vittiya vishleshan ka mahatva)

प्रकाशित लेखों का आशय एवं महत्व उस समय तक ज्ञात नही होता जब तक कि इनके उपयोगकर्ता अपने उद्देश्य विशेष के लिए इनका विश्लेषण एवं व्याख्या न कर लें। यही कारण है कि प्रकाशित लेखों के उपयोगकर्ताओं, जैसे-- प्रबन्धक, ऋणदाता, विनियोजक आदि के विभिन्न उद्देश्यों के अनुसर अलग-अलग दृष्टिकोण से विश्लेषण द्वारा इनका विश्लेषण एवं व्याख्या करना आवश्यक हो जाता है। वित्तीय विश्लेषण का महत्व वा लाभ इस अग्र प्रकार से है--

1. प्रबंधक वर्ग को लाभ 

प्रकाशित लेखों के विश्लेषण का लाभ सर्वप्रथम उन व्यक्तियों के लिए है जो व्यवसाय का संचालन तथा नियंत्रण करते है। प्रबंधक विश्लेषण से ऐसे सूचनाएं प्राप्त करते है जिनसे व्यवसाय की कुशलता तथा लाभार्जन शक्ति का माफ किया जा सकता है एवं व्यवसाय के सुचारू संचालन के लिए विवेकपूर्ण निर्णय लिये जा सकते है।

2. ऋण प्राप्ति मे सुविधा 

किसी भी कंपनी को ऋण तभी मिल सकता है जबकि ऋणदाता को कंपनी की आर्थिक स्थिति पर पूर्ण विश्वास हो जाए। वित्तीय विश्लेषण के द्वारा कंपनी की आर्थिक स्थिति की सही-सही जानकारी हो सकती है तथा इससे कंपनी को ऋण प्राप्त करने मे सुविधा होती है।

3. विभिन्न वर्षों के वित्तीय परिणामों की तुलना 

वित्तीय विवरण के विश्लेषण के कारण विभिन्न वर्षों के लाभ, लागत व्यय एवं अन्य वित्तीय परिणामों की आसानी से तुलना की जा सकती है। इसके अलावा संस्था के विभिन्न विभागों की तुलनात्मक स्थिति की भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

4. वैज्ञानिक प्रबंध मे सुविधा 

वित्तीय विश्लेषण मे हमे काफी उपयोगी सूचनाएं प्राप्त होती है, जिससे वैज्ञानिक प्रबंध मे काफी सुविधा होती है।

5. क्रय, विक्रय तथा व्यय के पूर्वानुमान लगाने मे सहायक 

वित्तीय विवरणों के विश्लेषण से जो पिछले वर्षों के क्रय-विक्रय तथा व्यय के आंकड़े प्राप्त होते है, उनके आधार पर क्रय-विक्रय और व्यय के संबंध मे भावी पूर्वानुमान आसानी से लगाये जा सकते है।

6. अपव्ययों पर नियंत्रण 

वित्तीय विश्लेषण से इस बात की भी जानकारी हो जाती है कि हमारे लाभ तथा लागत व्यय बढ़ रहे है या घट रहे है। लागत व्यय के बढ़ने की स्थिति अपव्ययों को रोकने के संबंध मे सोचा जा सकता है।

7. स्कंध विपणि 

जिन कंपनियों के अंशो का क्रय-विक्रय स्कन्ध विपणि के माध्यम से होता है, वे अपने प्रकाशित लेखे स्कंध विपणि को भेजती है जहां उनका विश्लेषण किया जाता है तथा अन्य सदस्यों को निरीक्षण के लिए उपलब्ध कराये जाते है। इस तरह इन संस्थाओं की वित्तीय तथा कार्यात्मक गतिविधियों का ज्ञान सर्वसाधारण को होता रहता है। 

8. बैंक तथा वित्तीय संस्थाएं

बैंक तथा वित्तीय संस्थाएं भी प्रकाशित लेखा के विश्लेषण द्वारा संस्था की ऋण भुगतान क्षमता की जानकारी प्राप्त करते है।

9. व्यापारिक लेनदार 

व्यापारिक लेनदारों का संबंध अल्पकाल हेतु होता है जिनका भुगतान अल्पकाल मे करना होता है। ये व्यक्ति कंपनी की तरलता एवं अल्पकालीन दायित्वों का भुगतान करने की क्षमता के बारे मे जानकारी चाहते है जो वित्तीय विवरणों के विश्लेषण से प्राप्त होती है।

वित्तीय विश्लेषण की सीमाएं (vittiya vishleshan ki simaye)

वित्तीय विवरणों का विश्लेषण किसी भी उपक्रम की वित्तीय कार्यकुशलता एवं वित्तीय स्थिति का महत्वपूर्ण मापदण्ड है, लेकिन व्यवहार मे इसकी कुछ सीमाएं भी है, जिन्हें इनके प्रयोगकर्ता को ध्यान मे रखनी चाहिए। वित्तीय विवरण विश्लेषण की मुख्य सीमाएं इस प्रकार से है--

1. वित्तीय विवरणों की ऐतिहासिक प्रकृति

वित्तीय विवरणों की मूल प्रकृति यह है कि यह बीती हुई अवधि के होते है। यह विवरण भविष्य के लिए संकेत तो बन सकते है, लेकिन यह नही कहा जा सकता कि आधार पर किए गए पूर्वानुमान शत-प्रतिशत सही होगें।

2. विश्लेषण रीतियों की सीमाएं 

वित्तीय विवरणों की विश्लेषण की अनेक विधियां है। किस परिस्थिति मे कौन-सी विधि प्रयोग की जाए, यह विश्लेषणकर्ता के अनुभव एवं योग्यता पर निर्भर करती है। यदि इनके चुनाव मे गलती हो जाए तो निष्कर्ष भ्रमपूर्ण हो सकते है।

3. विशेषज्ञ ज्ञान की आवश्यकता 

वित्तीय विश्लेषण मे विधियों के प्रयोग करने तथा उनसे उचित निष्कर्ष निकालने के लिए विशेषज्ञ ज्ञान की आवश्यकता होती है। विशेषज्ञ ज्ञान के अभाव मे अनुपयुक्त रीतियों का प्रयोग हो सकता है तथा दोषपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते है।

4. समंको की विश्वसनीयता

वित्तीय विवरणों के विश्लेषण की विश्वसनीयता उन विवरणों के समंको की विश्वसनीयता पर निर्भर करती है। यदि आय विवरण के समंको मे हेराफेरी की गयी है अथवा चिट्ठे के समंकों मे संपत्तियों के मूल्यांकन इत्यादि मे उचित नीतियों को नही अपनाया गया है तो विश्लेषण की विश्वसनीयता भि प्रभावित होगी।

5. विभिन्न निर्वाचन

वित्तीय विवरणों के विश्लेषण से प्राप्त परिणामों का विभिन्न प्रयोगकर्ता विभिन्न प्रकार से निर्वचन कर सकता है। उदाहरण के लिए चालू अनुपात का अधिक होना माल आपूर्तिकर्ता या बैंकर इत्यादि के लिए अच्छा हो सकता है, लेकिन प्रबन्धकीय कुशलता से इस बात का प्रतीत हो सकता है कि कोषों का समुचित प्रयोग नही किया जा रहा या स्टाॅक की मात्रा अनावश्यक रूप से अधिक है या देनदारों से वसूली कुशलता से नही हो रही।

6. लेखांकन विधियों मे परिवर्तन 

यदि विभिन्न वर्षों मे लेखांकन विधियों (स्टाॅक का मूल्यांकन, ह्रास की विधि इत्यादि) मे परिवर्तन होता है तो समंकों की तुलनीयता मे कमी आ जाती है और निष्कर्ष मर्यादित हो जाते है।

7. विभिन्न फर्मों से तुलना की सीमाएं

विभिन्न फर्मों के वित्तीय विवरणों की तुलना से उसी समय उचित निष्कर्ष निकल सकते है, जबकि फर्मों की कार्य प्रकृति, संगठन संरचना एवं लेखांकन पद्धति समान हो अन्यथा विश्वसनीय तुलना नही हो सकती।

8. मूल्य परिवर्तनों का प्रभाव 

यदि मूल्य परिवर्तनों के प्रभावों को उचित रूप से समायोजित नही किया जाता तो वित्तीय विवरण के विश्लेषण भ्रमपूर्ण निष्कर्ष दे सकते है उदाहरण के लिए, सन् 2003 मे बिक्री 2,00,000 रुपये की थी जो सन् 2004 मे 2,40,00 रूपये हो गयी तो निष्कर्ष निकल सकता है कि बिक्री मे 20% की वृद्धि हो गयी है, लेकिन यदि विक्रय की जाने वस्तुओं के मूल्यों  मे 25% की वृद्धि हो गयी हो तो 2,40,000 रूपये की बीक्री 2003 के मूल्यों के आधार पर 1,92,000 रुपये की बिक्री ही रह जायेगी।

यह उल्लेखनीय है कि उपर्युक्त सीमाएं वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के महत्व को कम नही करती है, वरन् इस बात पर जोर देती है कि विश्लेषण एवं नियोजन मे उचित सावधानियाँ रखी जानी चाहिए।

शायद यह जानकारी आपके लिए काफी उपयोगी सिद्ध होंगी

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