2/21/2021

पूंजी संरचना निर्धारण

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पूंजी संरचना निर्धारण निर्णय 

punji sanrachna nirdharan;पूंजी सरंचना के अतंर्गत यह सुनिश्चित किया जाता है। कि कुल पूंजी का कितना भाग ऋणपत्रों के रूप में एंव कितना भाग अंशो के रूप में, अंशो का कितना भाग समता अंशों के रूप में तथा कितना भाग पूर्वाधिकार अंशो के रूप में हो। जहां एक तरफ पूर्वाधिकार अंशो पर एक निश्चित दर से लाभ का अंश देना पड़ता हैं वहीं समता अंशो पर लाभ का अंश देना अनिवार्य नही होता। वास्‍तव में समता अंशों एंव पूर्वाधिकार अंशो के बीच सही अनुपात और समन्‍वय की जरूरत होती है। ताकि पूंजी संरचना को मजबूत बनाया जा सके। 

पूंजी संरचना के अंतर्गत स्‍थायी या लम्‍बी अवधि तक पूंजी का समावेश किया जाता है। प्रबंधको के सामने सबसे बड़ी कठिनाई यह निर्णय लेने कि होती है कि स्‍थायी पूंजी का प्रबंध स्‍वामित्‍व साधनों से किया जाये अथवा ऋणगत साधनो से किया जाये। इस सम्‍बन्‍ध में निर्णय लेते समय निम्‍न तीन बातों का ध्‍यान रखा जाता है--

1. समता का व्‍यापार 

जब किसी संस्‍था की नीति समता पर व्‍यापार करने की होती है तब वह अपनी संस्‍था की पूंजी संरचना का निर्धारण इस हिसाब से करते है कि उसमें स्‍वामित्‍व पूंजी कम होती है तथा ऋणगत पूंजी अधिक होती है। ऋणगत पूंजी पूर्वाधिकार अंशो, ऋणपत्रों तथा बाण्‍ड द्वारा प्राप्‍त की जाती है। समता पर व्‍यापार करने का निर्णय किसी कम्‍पनी के प्रबन्‍धक तभी लेते है जब उन्‍हें यह विश्‍वास होता है कि ली गई ऋणपूंजी पर चुकाये जाने वाले ब्‍याज की राशि ऋणपुंजी पर होने वाली आय से कम होगी। 

2. पूंजी दन्‍तीकरण 

पूंजी दन्तिकरण वह अनुपात है जो समता अंशपूंजी तथा स्थिर ब्‍याज वाली पूंजी जैसे पूर्वाधिकार अंश, ऋणपत्र आदि के सम्‍बन्‍ध को प्रदर्शित करता है। पूंजी संरचना पर नियन्‍त्रण का कार्य पूंजी गियरिंग के द्वारा किया जाता है। 

3. पूंजी की लागत 

पूंजी संरचना का निर्णय लेते समय पूंजी की लागतों को भी ध्‍यान में रखना चाहिए। विशेष रूप से जब व्‍यवसाय में ज्‍यादा पूंजी का निर्गमन करना हो तो उस समय यह समस्‍या उत्‍पन्‍न होती है कि वह अतिरिक्‍त पूंजी किस माध्‍यम से प्राप्‍त करे , साधारण अंशो के द्वारा अथवा पूर्वाधिकार अंशो के द्वारा अथवा ऋणपत्रों द्वारा। पूंजी की लागत वह न्‍यूनतम प्रत्‍याय दर है जो एक फर्म को अपने विनियोग से अवश्‍य अर्जित करनी चाहिए जिससे फर्म उस विनियोग के लिये प्राप्‍त किये गये कोषों को लागतों का भुगतान कर सके। किसी समय विशेष पर एक फर्म कई स्‍त्रोतो से वित्त प्राप्‍त कर सकती है। विभिन्‍न स्‍त्रोतो में से किस स्‍त्रोत को चुना जाये,  इसका मूल्‍याकंन पूंजी की लागत के आधार पर किया जा सकता है।

पूंजी ढांचा और पूंजीकरण में अंतर 

कुछ विद्वान पूंजीकरण तथा पूंजी ढांचा को एक ही अर्थ में प्रयुक्‍त करते है लेकिन दोनों में बहुत अन्‍तर है। पूंजीकरण का अर्थ संस्‍था मे विनियोजित कुल पूंजी की मात्रा से है जिसमें, अंश पूंजी ऋणपूंजी तथा संचित कोष वे अधिकोष का भी शामिल किया जाता है। इसके विपरीत पूंजी ढांचे से तात्‍पर्य संस्‍था द्वारा निर्गमित विभिन्‍न ऐसी प्रतिभूतियों की प्रवृत्ति एवं पारस्‍परिक अनुपात से है, जिनके द्वारा संस्‍था के पूंजीकरण का निर्माण किया गया है। 

सामान्‍यत: पूंजीकरण की समस्‍या निम्‍न परिस्थितियों में उत्‍पन्‍न होती है--

1. जब एक नये संस्‍थान की स्‍थापना की जा रही हो। 

2. जब एक पहले से  स्‍थापित  संस्‍थान की और ज्‍यादा विस्‍तार किया जा रहा है।

3.जब एक संस्‍थान का पून:जीर्णोत्‍धान,समयोजन अथवा पूंजी का पूनर्गठन किया जा रहा; तथा 

4. जब देा संस्‍थाओ का संयोजन हो रहा हो ।

शायद यह जानकारी आपके काफी उपयोगी सिद्ध होंगी 

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