पूंजी का दंतिकरण या पूंजी का मिलान क्या होता है? (punji ka dantikaran kya hai)
पूंजी का मिलान की गणना एक अनुपात की गणना एक अनुपात के रूप मे की जाती है। यह अनुपात समता अंशपूंजी तथा स्थिर लागत वाली पूंजी के बीच मे सम्बन्ध को परिलाक्षित करता है। स्थिर लागत वाली पूंजी में पूर्वाधिकार अंशपूंजी, ऋणपत्र आदि को सम्मिलित किया जाता है।
वास्तव में पूंजी दन्तीकरण में कुल पूंजीकरण में विभिन्न स्त्रोतो से प्राप्त की जाने वाली पूंजी के अनुपात के बारे मे निर्णय लिया जाता है।
पूंजी का दंतिकरण का महत्व (punji ka dantikaran ka mahatva)
यह कहा जाता है कि एक व्यावसायिक संस्था को चलाने में पूंजी गियंरिग का वही स्थान है जो कि एक कार को चलाने में गियर का होता है। जिस प्रकार कार गति को नियन्त्रित करने के लिये गियर काम में लाये जाते है, उसी प्रकार व्यवसाय की पूंजी संरचना में दन्तीकरण अनुपात काम में आता है। हम इस अनुपात की सहायता से विभिन्न साधनो से प्राप्त धन मे पारस्परिक अनुपात सही रूप में निर्धारित कर सकते है तथा प्राप्त धन का अच्छी तरह से प्रयोग किया जा सकता है। इस अनुपात के अध्ययन के माध्यम से ऋण एंव स्वामित्व पूंजी मे सही सन्तुलन रखा जा सकता है एंव विभिन्न साधनों से प्राप्त धन की वांधनीयता पर विचार किया जा सकता है। इससे संस्था के प्रबन्धक व्यावसायिक उतार-चढा़वो से संस्था को सुरक्षित रख सकते है। मुद्रा प्रसार के समय स्थिर लागत वाली प्रतिभूतियां लाभदायक होती है क्योकि उन पर निश्चित दर से ब्याज व लाभ के अंश देकर बढी हुई शेष भाग समता अंशधारियो में बांटा जा सकता है। इस समय उच्च मिलान उपयुक्त होता है। मन्दी काल में चूंकि संस्था की आय गिर जाती है, अत: ऐसे समय निम्न मिलान अपना कर समता अंशो के द्वारा वित्त की व्यवस्था करना चाहिए। वास्तव में किसी भी संस्था की सफलता व्यावसायिक परिस्थितियों में अनुकुल पूंजी मिलान पर निर्भर करती है।
पूंजी का दन्तीकरण की कार्यविधि
पूंजी दन्तीकरण की तुलना बाइक के गियर बॉक्स से की जाती है। जिस प्रकार बाइक की गति पर नियन्त्रण करने के लिए सही गियर का प्रयोग करना अनिवार्य है ठीक उसी प्रकार संस्था की वित्तीय स्थिति को सदृढ़ रखने के लिए पूंजी का उचित मिलान आवश्यक है।
पूंजी मिलान या पूंजी का दन्तीकरण को समझने के लिए हम पूंजी को निम्न तारिके से विभाजित कर सकते है--
1. स्थायी लागत पूंजी
इसमें स्थिर दर से ब्याज एंव लाभ का अंश देने वाली पूंजी को सम्मिलित किया जाता है, जैसे ऋणपत्र और पूर्वाधिकार अंश।
2. परिवर्तनशील लागत पूंजी
जिस पूंजी की लागत परिवर्तनशील होती है उसे परिवर्तनशील लागत पूंजी कहते है, जैस- साधारण ब्याज।
3. बिना लागत पूंजी
इसमें वह सभी राशि को शामिल किया जाता है जिसका प्रयोग व्यवसाय में संस्था द्वारा किया जाता है लेकिन जिस पर कोई प्रतिफल नही देना पड़ता, जैस व्यापार कि साख, अदत्त व्यय, संचित कोषों आदि।
हम जिस प्रकार किसी बाइक को स्टार्ट करते समय प्रारंभिक गति प्रदान करने के लिए निम्न गियर लगाते है और बाइक जैसे-जैसे गति पकड़ती जाती है वैसे-वैसे उच्च गियर मे ले जाते है, उसी प्रकार प्रारम्भ मे जब उपक्रम की स्थापना होती है तो हमे निम्न पूंजी गियरिंग रखना चाहिए अर्थात् वित्तीय आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए परिवर्तनशील लागत वाली प्रतिभूतियो का निर्गमन किया जाना चाहिए। जैसे-जैसे व्यवसाय के विकास के साथ उसकी आय में नियमितता व वृद्धि होने लगे वैसे-वैसे उच्च पूंजी गियरिंग करते जाना चाहिए। अर्थात स्थायी लागत वाली प्रतिभूतियों द्वारा वित्त पोषण किया जाना चाहिए। यही पूंजी का मिलान कहा जाता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
Write commentआपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।