अति पूंजीकरण क्या है? (ati punjikaran kya hai)
ati punjikaran arth paribhasha;जब कोई कम्पनी अपनी कुल विनियोजित पूँजी पर उचित मात्रा में लाभांश नही दे पाती अथवा पर्याप्त आय अर्जित नही कर पाती तो इसे अति पूंजीकरण कहते है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि कम्पनी की उपार्जन क्षमता उसकी कुल पूँजी के अनुपात से कम होती है तो इसे अति पूंजीकरण कहते है। ऐसी स्थिति में इसका प्रभाव यह होता है कि व्यवसाय के सम्पत्तियो के ढांचे को संतुलित रखा जा सकता है। ऐसी स्थिति में निर्गमित प्रतिभूतियों का मूल्य कम हो जाता है। तथा प्रतिभूतियो को बाजार मूल्य से कम मूल्य पर बेचना पड़ता है। अति पूँजीकरण की स्थिति में कम्पनी की ओसत आय की तुलना में उसकी विनियोजित पूँजी अधिक होती है।
अति पूंजीकरण की परिभाषा (ati punjikaran ki paribhasha)
हागलैण्ड के अनूसार,'' जब निगम में स्थायी सम्पत्तियों का वास्तविक मूल्य अंश तथा ऋणापत्रों द्वारा प्राप्त पूँजी के सम मूल्य से कम होता है। तो ऐसी दशा में यह कहा जा सकता है कि संस्था में अति पूंजीकरण है।''
एच.गिलबर्ट के अनुसार,''जब कोई कम्पनी अपनी देय प्रतिभूतियेा पर (उसी उद्योग मे वैसी ही कंपनियों के अर्जन एवं निहित जोखिम की मात्रा को ध्यान में रखते हुए) बाजार में वर्तमान प्रत्याय दर से प्रत्याय अर्जिन करने में लगातार असमर्थ रहती है, तो उसे अति पूंजीकरण कहा जाता है।''
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