7/19/2022

नियंत्रण प्रक्रिया के तत्व/चरण, महत्व

By:   Last Updated: in: ,

नियंत्रण प्रक्रिया के तत्व अथवा चरण (niyantran prikirya ke charan)

नियंत्रण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया है जिसमें कार्य करने के लियें उपयुक्‍त निष्‍पादन के प्रमाप स्‍थापित किये जाते है, वास्‍तविक कार्य की प्रगति की तुलना निर्धारित निष्‍पादन के प्रमापों से की जाती है तथा उनमें यदि किसी प्रकार का कोई विचलन पाया जाता है तो उसे दूर करने के लिये सुधारात्‍मक कदम उठाये जाते है। 

नियंत्रण की प्रक्रिया के प्रमुख तत्‍व या चरण निम्‍नलिखित है-- 

1. लक्ष्‍यों एवं प्रमापों का निर्धारण करना

प्रभावशाली नियंत्रण की स्‍थापना के लिये इसका अधिक महत्‍व होता है कि सर्वप्रथम प्रमापों तथा लक्ष्‍यों का निर्धारण कर लिया जाये क्‍योंकि इसके बिना यह पता नही लगाया जा सकेगा कि कर्मचारियों द्वारा किया गया कार्य संतोषजनक है अथवा नही। प्रमापों और लक्ष्‍यों के निर्धारण में यह अवश्‍य ध्‍यान में रखना चाहियें कि प्रमाप न तो बहुत ऊंचे हों और न ही नीचे हों। प्रमापों की निर्धारण इस बात को ध्‍यान में रखकर किया जाना चाहिये कि एक सामान्‍य व्‍यक्ति, सामान्‍य दशाओं में, सामान्‍य दशाओं, सामान्‍य प्रयासों सें कितना कार्य कर सकता है जहॉ तक हो सके प्रमापों एवं लक्ष्‍यों को गणितात्‍मक रूप में प्रकट किया जाना चाहियें। 

यह भी पढ़े; नियंत्रण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

2. कार्यो का मूल्‍यांकन करना

यह नियंत्रण प्रक्रिया का दूसरा महत्‍वपूर्ण स्‍तर होता है। इसके अनुसार कर्मचारियों द्वारा किये गये कार्यो का मूल्‍यांकन किया जाता है तथा पूर्व निर्धारित प्रमापों से तुलना की जाती है। कार्यो का मूल्‍यांकन करके विचलनों को ज्ञात किया जाता है। कार्यो का मूल्‍यांकन सही करने के लिये उन बातों पर विशेष ध्‍यान देना चाहियें जिनसें विचलन की मात्रा बढ़ने की सम्‍भावना रहती है। 

3. विचलन के कार्यो को ज्ञात करना

वास्‍तविक कार्य की प्रमापों से तुलना करने पर यह स्‍पष्‍ट हो जाता है। कि कर्मचारियों का कार्य असन्‍तोषजनक रहा है तो प्रबन्‍ध का नियंत्रण की दशा में तीसरा महत्‍वपूर्ण कार्य यह होता है कि वह यह पता लगायें कि कौन-कौन से कारण मौजूद स्थिति के लिये उत्तरदायी हैं। अर्थात् विचलनों का प्रमुख कारण गलत योजना बनाना है अथवा क्रियान्‍वयन में कोई कमी रहना है। 

4. सुधारात्‍मक कार्य करना

नियंत्रण प्रविधि का यह अंतिम चरण होता है जब यह पता लग जाता है कि वास्‍तविक कार्य प्रमाप से कम हुआ है और ऐसा होने के लिये कुछ विशिष्‍ट कारण उत्तरदायी है तो प्रबन्‍धक वे सभी कार्य  करता है जिससे भविष्‍य में फिर से ऐसा न होने पाये। स्‍मरण रहे, ऐसे कार्यो में उद्देश्‍यों एवं योजनाओं में परिवर्तन, प्रेरणाओं का प्रावधान, अधीनस्‍थों को दिये गये निर्देशों का पुनरावलोकन आदि सम्मिलित हैं। 

नियंत्रण का महत्‍व (niyantran ka mahtva)

1. असफलताओं के विरूद्ध बीमा

नियंत्रण प्रक्रिया के माध्‍यम से बराबर इस बात की जॉच की जाती रहती है कि कार्य पूर्व निर्धारित योजनाओं के अनुसार चल रहा है। अथवा नहीं। इससे गलतियॅा पता लगती रहती हैं और इस कारण उन्‍हें तुरन्‍त दूर किया जाता है। कुछ लोग नियंत्रण को असफलताओं के विरूद्ध बीमा कहते हैं। नियंत्रण तकनीकों के कारण असफलताऍ रूक जाती है। 

2. योजनाओं की सफलता की जानकारी 

नियोजन या योजनाओं का प्रत्‍येक संस्‍था में अपना महत्‍व होता है। नियंत्रण के माध्‍यम से ही हमें योजनाओं की सफलता अथवा असफलता की जानकारी प्राप्‍त होती है। 

3. निरीक्षण के कार्य में आसानी 

सामान्‍यतः निरीक्षण का अर्थ यह लगाया जाता है कि कर्मचारियों के पास खड़े रहकर उनके कार्यो की देखरेख करना। लेकिन नियंत्रण तकनीको के कारण निरीक्षकों को हमेशा कर्मचारियों के पास नहीं खड़ा रहना पड़ता, बल्कि नियंत्रण से अपने आप पता लग जाता है कि कार्य ढंग से किया जा रहा है अथवा नहीं।

4. कुशल एवं अकुशल कर्मचारियों की पहचान 

यदि नियंत्रण की व्‍यवस्‍था प्रभावपूर्ण ढंग से लागू की गई हो तो कुशल एवं अकुशल कर्मचारियों की आसानी से पहचान की जा सकती है। पता लगने के बाद कुशल कर्मचारियों को और अभिप्रेरित किया जा सकता है तथा अकुशल कर्मचारियो को दाण्डित किया जा सकता है। वास्‍तव में नियंत्रण से कर्मचारियों का गुण मूल्‍यांकन किया जा सकता है। नियंत्रण कर्मचारियों की पदोन्‍नति, पदावनति तथा स्‍थानांतरण आदि नीतियों के निर्माण में बड़ा सहायक होता है। 

5. समन्‍वय में सहायक

नियंत्रण के माध्‍यम से विभिन्‍न विभागों की क्रियाओं में समन्‍वय रखा जा सकता है। इसके अतिरिक्‍त नियंत्रण के माध्‍यम से गतिरोध या संघर्ष की स्थिति को टाला जा सकता है।

6. भावी योजनाओं के निर्माण में सहायक 

जब वर्तमान की कोई भी योजना समाप्‍त होती है और उसके परिणाम सामने आते है तो प्राप्‍त सूचनाओं तथा तथ्‍यों के आधार पर नियंत्रण के माध्‍यम से भावी विकास की योजनाओं का निर्माण किया जा सकता है।

7. विभिन्‍न स्‍तरों पर अनुशासन की स्‍थापना

व्‍यावहारिक जीवन में हम देखते है कि जिन संस्‍थाओं में नियंत्रण की प्रभावपूर्ण व्‍यवस्‍था नहीं होती वहॉ कर्मचारियों में बेईमानी तथा भ्रष्‍टाचार पनपता है और महत्‍वपूर्ण व्‍यावसायिक भेद दूसरी संस्‍थाओं के पास चले जाते हैं। नियंत्रण के कारण कर्मचारी व्‍यावसायिक भेद दूसरी संस्‍थाओं के पास चले जाते हैं। नियंत्रण के कारण कर्मचारी ईमानदारी से अपने दायित्‍वों का निर्वाह करते है तथा अनुशासनपूर्वक कार्य करते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नियंत्रण से विभिन्‍न स्‍तरों पर अनुशासन का वातावरण पैदा होता है।

8. विभागीकरण, विकेन्‍द्रीकरण एवं प्रत्‍यायोजन में सहायक

नियंत्रण में विभागीकरण, विकेन्‍द्रीकरण एवं प्रत्‍यायोजन में भी सहायता मिलती है। प्रत्‍येक संस्‍था में विभिन्‍न स्‍तरों पर अधिकार एवं उत्‍तरदायित्‍व एक-दूसरे को सौंपे जाते है। नियंत्रण के माध्‍यम से हम कह देखते है कि कर्मचारी अपने अधिकार एवं उत्तरदायित्‍वों का बराबर निर्वाह कर रहे हैं। अथवा नहीं। नियंत्रण से विकेन्‍द्रीकरण में भी सहायता मिलती है।

1 टिप्पणी:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।