नियंत्रण का अर्थ (niyantran kya hai)
मनुष्य से गलती होना स्वाभाविक है, किन्तु गलतियों को उचित नियंत्रण के माध्यम से न्यूनतम किया जा सकता है। नियंत्रण, प्रबंध का अंतिम शस्त्र है। बिना नियंत्रण के प्रबंधक को यह पता नहीं चलता कि सारा संगठन किस दिशा में जा रहा है। नियंत्रण वास्तव में वह शस्त्र है जिससे यह पता लगाया जाता है कि कार्य पहले से बनाई गई योजनाओं के अनुरूप चल रहे हैं अथवा नही।
नियंत्रण की परिभाषा (niyantran ki paribhasha)
हेनरी फेयाल के अनुसार, ‘‘नियंत्रण के अंतर्गत इस बात का जॉच-पड़ताल करने का प्रयास किया जाता है कि समस्त कार्य योजना के अनुसार चल रहा है अथवा नही। इसके अतिरिक्त दुर्बलताओं का पता लगाकर सुधारात्मक सुझाव देना भी इसका कार्य है।‘‘
कूण्ट्ज एवं ओ‘ डोनेल के अनुसार, ‘‘नियंत्रण का प्रबन्धकीय कार्य अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा किये गये कार्य का माप एवं उनमें आवश्यक सुधार करना होता है। जिसमें कि इस बात का निश्चय हो सके कि उपक्रम के उद्देश्यों तथा उनके करने के लिये निर्धारित योजनाओ को कार्यन्वित किया जा रहा है या नहीं।‘‘
ऊपर दिये गयी परिभाषायों के आधार पर कहा जा सकता है कि नियंत्रण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी सहायता से प्रबन्धक निर्धारित प्रमापों के अनुसार अपने अधीनस्थों से कार्य का निष्पादन कराता है और यदि प्रभावित तथा वास्तविक कार्य में कोई अन्तर दिखाई दे तो उनके कारण खोज कर भविष्य में उसके सुधार के लिये व्यवस्था करता है।
नियंत्रण प्रक्रिया की विशेषताएं (niyantran ki visheshta)
नियंत्रण प्रक्रिया की विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. अनिवार्य प्रक्रिया
सभी स्तर के प्रबंधकों के लिए यह एक अनिवार्य प्रक्रिया है। निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नियंत्रण प्रक्रिया को अपनाना बहुत जरूरी रहता है। नियंत्रण के बिना नियोजन, संगठन एवं निर्देशन अधूरे एवं प्रभावहीन सिद्ध होगी।
2. हमेशा जारी रहने वाली प्रक्रिया
नियंत्रण प्रक्रिया का महत्व हमेशा बना रहता है। यह वास्तव में हमेशा जारी रहने वाली प्रक्रिया है। इसका महत्व हमेशा बना रहता है।
3. वर्तमान एवं भविष्य की क्रियाओं का ही नियंत्रण
जो हो चुका है या बीत चुका है, उसका किसी भी प्रकार से नियंत्रण नहीं हो सकता। नियंत्रण हमेशा वर्तमान एवं भविष्य की क्रियाओं का ही होता है।
4. पूर्व निर्धारित योजनाएं प्रमाप एवं अनिवार्य निर्देश
नियंत्रण के लिए यह भी जरूरी है कि पहले से योजनाऍ बना ली जाऍ, प्रमाप निर्धारित कर लिये जाऍ तथा निर्देश तैयार कर लिये जाऍ। नियंत्रण प्रक्रिया में इनका काफी महत्व होता है।
5. सभी कार्य नियंत्रण क्षेत्र के अन्तर्गत
किसी भी संस्था के सभी कार्य नियंत्रण की परिधि के अन्दर होते है। यह कहना पूर्णतः गलत है कि संस्था के अमुक कार्य का नियंत्रण नहीं हो सकता है।
6. एक व्यक्तिगत क्रिया
प्रत्येक गलती के लिए कोई न कोई व्यक्ति उत्तरदायी होता है। यद्यपि नियंत्रण वस्तुओं, व्यक्तियों तथा क्रियाओ सभी पर लागू होता है फिर भी यह एक व्यक्तिगत क्रिया होती है।
7. नियंत्रण के उद्देश्य गलतियों को सुधारना है
नियंत्रण का उद्देश्य कर्मचारियों को भय दिखाना, डॉटना, फटकारना तथा कर्मचारियों के अधिकारों का हनन करना नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य प्रत्येक स्तर पर गलतियों तथा अन्तरों का पता लगाकर सुधारात्मक कार्यवाही करना है।
8. ठोस तथ्यों पर आधारित
नियंत्रण का कार्य कभी भी व्यक्तिगत मान्यताओं पर आधारित नहीं होता, बल्कि ठोस तथ्यों पर आधारित रहता है। नियंत्रण की प्रक्रिया अनेक तकनीकों एवं उपकरणों के माध्यम से पूरी होती है।
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