6/03/2022

प्रबंध का क्षेत्र, महत्व, कार्य

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प्रबंध का क्षेत्र (prabandh ka kshera)

प्रबन्‍ध एक ऐसी सार्वजनिक एवं व्‍यापक क्रिया है जो सभी क्षेत्रों में, जहां मनुष्‍य मिलकर कार्य करता है, महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका क्षेत्र इतना व्‍यापक है कि इसकी सीमा निर्धारित करना एक कठिन एवं विवादग्रस्‍त कार्य है। इसका प्रयोग सभी सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक संगठनों में किया जाता है। यहां तक कि घर की कुशल व्‍यवस्‍था के लिए भी प्रबन्‍ध की आवश्‍यकता पड़ती है। जहां तक व्‍यावसायिक संस्‍थाओं का प्रश्‍न है, प्रबन्‍ध सभी व्‍यावसायिक क्रियाओं के कुशल संचालन के लिए आवश्‍यक है। प्रबन्‍ध के क्षेत्र को निम्‍नलिखित भागो में बाँटा जा सकता है--

1. वित्तीय प्रबन्‍ध 

वित्त एक ऐसी धुरी है जिसके आसपास समस्‍त व्‍यावसायिक क्रियाएं चक्‍कर लगाती हैं। इसके सफल प्रबन्‍ध में समस्‍त वर्गो तथा पूरे उपक्रम का जीवन, विकास तथा कल्‍याण निर्भर है। इसका प्रबन्‍ध एक योग्‍य, कुशल, ईमानदार तथा अनुभवी व्‍यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए। वित्तीय प्रबन्‍ध में अनेक क्रियाओं, जैस- वित्तीय पूर्वानुमान, वित्तीय नियोजन, वित्त प्राप्ति तथा उसका विनियोग, आय प्रबन्‍ध, लागत नियंत्रण, बजट नियंत्रण आदि को सम्मिलित किया जाता है। 

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2. सेविवर्गीय प्रबन्‍ध

इसका महत्व इस बात से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि लगभग सभी वृहत संस्‍थाएं अपने यहां अलग से एक सेविवर्गीय विभाग का गठन करती है। सेविवर्गीय प्रबन्‍ध, प्रबन्‍ध का वह भाग है जो श्रमशक्ति के प्रभावी नियोजन, उपयोग और नियंत्रण से सम्‍बन्‍ध रखता है। सेविवर्गीय प्रबन्‍ध में अनेक क्रियाओं को शामिल किया जाता है, जैसे- वैज्ञानिक ढंग से कर्मचारियों की भर्ती, पदोन्‍नति, पदावनति, प्रशिक्षण, स्‍थानांतरण, पारिश्रमिक एवं प्रेरणाएं, मधुर औद्योगिक सम्‍बन्‍ध, श्रम कल्‍याण और औद्योगिक सुरक्षा आदि। इस विभाग पर सबसे अधिक ध्‍यान इसलिए दिया जाना चाहिए क्‍योकि कर्मचारी संस्‍था के प्राण हैं और व्‍यवसाय या उद्योग का सारा संचालन इन्‍ही लोगों की मदद से किया जाता है। 

3. उत्‍पादन प्रबन्‍ध 

यह प्रबंध का महत्‍वपूर्ण विभाग है। इसमें उत्‍पादन से संबंधित पहलुओं जैसे-नियोजन, नियंत्रण, कार्य विश्‍लेषण आदि कार्यो को शामिल करते हैं। 

4. विपणन प्रबन्‍ध

प्रतिस्‍पर्द्धा के इस युग में विपणन प्रबन्‍ध, व्‍यवसाय प्रबन्‍ध का अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण अंग है, क्‍योंकि व्‍यवसाय की समस्‍त क्रियाएं आज इस बात से प्रभावित होती हैं कि ग्राहक क्‍या चाहता है ? 

5. क्रय प्रबन्‍ध 

क्रय प्रबन्‍ध, प्रबन्‍ध का ही एक भाग है। वैसे क्रय प्रबन्‍ध सामग्री प्रबन्‍ध के अन्‍तर्गत शामिल किया जाता है। क्रय प्रबन्‍ध के अन्‍तर्गत पूर्तिकर्ताओं से टेण्‍डर मंगवाना, आदेश देना, क्रय करना, अनुबन्‍ध करना, सामग्री को रखना तथा सामग्री नियंत्रण को सम्मिलित किया जाता है। 

6. कार्यालय प्रबन्‍ध 

कार्यालय प्रबन्‍ध को प्रबन्‍ध का अन्तिम भाग माना जाता है। कार्यालय किसी संस्‍था का वह महत्‍वपूर्ण केन्‍द्र होता है, जहां से समस्‍त व्‍यावसायिक क्रियाएं संचालित की जाती है। 

7. औद्योगिक प्रबंध 

प्रबंध की यह शाखा ज्ञान-विज्ञान को प्रेरित करने वाली तकनीकी सेवाओं व क्रियाओं के विकास विस्‍तार को अपने क्षेत्र में शामिल करती है।

8. परिवहन प्रबंध 

आधुनिक युग में परिवहन व्‍यवस्‍था पर नियंत्रण एक प्रमुख कार्य है। इसमें माल की पैंकिंग, भंडारण की व्‍यवस्‍था आदि का निर्धारण सम्मिलित होता है। 

9. विकास प्रबंध 

संस्‍था के विकास से संबंधित समस्‍त बातों जैसे-प्रयोग व शोध, वस्‍तु विकास, उपभोक्‍ता-अनुसंधान आदि का समावेश किया जाता है। 

10. अन्‍य प्रबंध 

संस्‍थापन प्रबंध, आयात-निर्यात प्रबंध, प्रतिरक्षा प्रबंध, शिक्षा का प्रबंध, न्‍याय प्रबंध, पर्यावरण प्रबंध आदि अन्‍य प्रबंध के क्षेत्र हैं। 

इस प्रकार ‘प्रबंध‘ शब्‍द के अंतर्गत संगठन व प्रशासन के कार्यो का समावेश सामान्‍यतः किया जाता है। जहां भी एक से अधिक व्‍यक्ति सामान्‍य उद्देश्‍यों की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं वहां प्रबंध की प्रक्रिया प्रयुक्‍त होती है। प्रबंध की सर्वव्‍यापकता के उसके क्षेत्र को अंतर्राष्‍ट्रीय बना दिया है। यही कारण है कि प्रबंध का कार्य-क्षेत्र व्‍यक्तियों का परिवार, क्‍लब, गुरूद्वारा, स्‍कूल या कॉलेज, रंगमच, युद्ध-स्‍थल, व्‍यवसाय, उद्योग, निजी संस्‍थाएं, सरकारी संस्‍थाएं, खेल के मैदान आदि तक विस्‍तृत हो गया है।

आधुनिक अर्थव्‍यवस्‍था में प्रबंध का महत्त्व 

आज के वैज्ञानिक युग में प्रत्‍येक राष्‍ट्र के जीवन में प्रबन्‍ध का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। औद्योगिक जटिलताओं, श्रम-विभाजन तथा विशिष्‍टीकरण के कारण इसका महत्त्व और भी अधिक प्रतीत होने लगा है। सभी विकासशील देशों में विकास के मार्ग पर आगे बढ़ने, प्राकृतिक साधनों का दोहन करने, न्‍यूनतम लागत पर अधिकतम उत्‍पादन करने, प्रति व्‍यक्ति आय बढ़ाने, बेरोजगारी की समस्‍या का समाधान करने के सन्‍दर्भ में प्रबन्‍ध की उपयोगिता को स्‍वीकार किया गया है। हिन्‍दूस्‍तान लीवर्स लिमिटेड के भूतपूर्व अध्‍यक्ष पी.एल.टण्‍डन के शब्‍दों में, ‘‘हम देख चुके हैं कि श्रम, पूंजी एवं कच्‍चे माल से स्‍वतः आर्थिक विकास नहीं हो जाता है। इसके लिए प्रबन्‍धकीय ज्ञान की आवश्‍यकता पड़ती है जिससे अधिकाधिक परिणाम अच्छे ही प्राप्‍त होते है।‘‘ स्‍व.प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के शब्‍दों में, ‘‘हमारे जैसे विकासशील समाज के लिए प्रबन्‍ध को सदैव ही अधिकाधिक योगदान देना है।‘‘ 

वर्तमान युग में प्रबन्‍ध के बढ़ते हुये महत्त्व के प्रमुख कारण निम्‍नलिखित है--

1. औद्योगिक युग के एक प्रभावी समूह के रूप में 

आधुनिक औद्योगिक समाज में प्रबन्‍ध एक पृथक नेतृत्‍वकारी प्रभावी समूह के रूप में माना जाता है। एक व्‍यक्ति की तुलना में प्रबन्‍ध एक समूह के रूप में समस्‍त व्‍यक्तियों के सहकारी प्रयासों का नियोजन, निर्देशन, संगठन एवं नियंत्रण अधिक कुशलतापूर्वक कर सकता है। यह व्‍यावसायिक एवं उद्यो‍ग से सम्‍बन्धित सभी वर्गो के हितों का संरक्षण करते हुये नेतृत्‍वकारी प्रभावी समूह के रूप में सामान्‍य लक्ष्‍यों की पूर्ति को सम्‍भव बनाता है। 

2. गलाकाट प्रतियोगिता का सामना करने एवं अस्तित्‍व संरक्षण के लिये

आधुनिक व्‍यवसाय बड़ा जटिल एवं प्रतियोगिता-मूलक हो गया है। बाजार अन्‍तर्राष्‍ट्रीय हो गये हैं तथा उद्योग अस्तित्‍व संरक्षण के लिये आधुनिक व्‍यवसायी में कुछ विशिष्‍ट गुणों का होना आवश्‍यक है। जैसे-दूरदर्शिता, संगठन, नियंत्रण, समन्‍वय, नियोजन की क्षमता, निर्णय लेना, प्रतियोगिता तथा सरकारी नीतियों का ज्ञान आदि। इनका अध्‍ययन प्रबन्‍ध के महत्‍वपूर्ण अंगो के रूपों में किया जाता है। 

3. बड़े उत्‍पादन को सफलतापूर्वक चलाने के लिये

वृहत उत्‍पादन हेतु एक विशाल एवं सुदृढ़ संगठन की आवश्‍यकता पड़ती है। इसका कुशलतापूर्वक संचालन करने के लिये लाखों कर्मचारियों को एक कुशल संगठन सूत्र में बॉधकर विभिन्‍न विभागों, क्षेत्रों एवं कार्यो, से सम्‍बद्ध किया जाता है तथा उन्‍हें एक विशाल प्रशासनिक पद श्रेणी में संलग्‍न किया जाता है। इस विशाल जनसमूदाय के पथ प्रदर्शन, नेतृत्‍व तथा नियंत्रण के लिये एक सुयोग्‍य प्रबन्‍धक की आवश्‍यकता होती है। 

4. आधुनिक वैज्ञानिक एवं तकनीकी आविष्‍कारों का लाभ उठाने के लिये

ज्ञान एवं विज्ञान के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन नई खोजें, आविष्‍कार व नवीन पद्धतियों का विकास हो रहा है। प्रबन्‍धक ही इसका निर्णय करता है कि नवीन पद्धतियों को उपक्रम में किस सीमा तक अपनाया जाये ? कुशल प्रबन्‍धक नवीनतम आविष्‍कारों का उचित मात्रा में ही अपनाता है जिससे कि उपक्रम की गतिविधियां समयानुकुल बनी रहें। 

5. श्रम समस्‍याओं के सन्‍तोषजनक समाधान के लिये

आधुनिक प्रबन्‍धक ऐसे तरीकों की खोज करता है जिनके द्वारा श्रमिकों को अधिक प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये प्रेरित किया जा सके तथा श्रम एवं पूंजी के मध्‍य की खाई को कैसे पाटा जायें ? इसके लिये वह उनकों विभिन्‍न आर्थिक एवं अनार्थिक प्रेरणायें प्रदान करता है। जैसे - अधिकार सौंपना, प्रबन्‍ध में हिस्‍सा देना आदि। 

6. उत्‍पत्ति के विभिन्‍न साधनों में समन्‍वय स्‍थापित करने के लिये 

प्रबन्‍ध हमें यह सिखाता है कि किस प्रकार से उत्‍पादन में सहायता प्रदान करने वाली विभिन्‍न शक्तियों को एकत्रित किया जाये एवं उनमें प्रभावी समन्‍वय स्‍थापित किया जाये ? प्रबन्‍ध के द्वारा उत्‍पत्ति के विभिन्‍न तत्तों जैसे- भूमि, श्रम, पूंजी, सामग्री एवं कच्‍चा माल, कुशल चयन व्‍यवस्‍था तथा समन्‍वय करके श्रेष्‍ठ उत्‍पादन की प्राप्ति की जा सकती है। 

7. सामाजिक उत्तरदायित्‍वों को पूरा करने के लिये

आज प्रबन्‍ध का कार्य केवल व्‍यवसाय अथवा उद्योग की स्‍थापना करने, संचालन करने एवं उसके लाभ कमाने तक ही सीमित नहीं है, अपितु प्रबन्‍ध को अनेक सामाजिक उत्तरदायित्‍वों को भी निभाना पड़ता है। समाज के परस्‍पर विरोधी तत्त्वों में प्रभावपूर्ण समन्‍वय स्‍थापित करके प्रबन्‍धक परिवर्तनों के होते हुये भी समाज में स्‍थायित्‍व बनाये रख सकते है। 

8. शोध एवं अनुसन्‍धान की आवश्‍यकता 

अमेरिका में स्‍टेनफोर्ड रिसर्च इन्‍सटीट्यूट ने खोज द्वारा यह पता लगाया कि जो कम्‍पनियां शोध-कार्य, नये उत्‍पादन का विकास और नये व्‍यापारों की खोज कर रही थीं उन्‍ही का विकास तेज गति से हुआ अर्थात् जिनके प्रबन्‍धक योग्‍य थे, जो कि नयी खोजों और नये आविष्‍कारों को महत्‍व देते थे, उनकी प्रगति अन्‍य कम्‍पनियों से तीव्र गति से हुई है। 

9. न्‍यूनतम प्रयत्‍नों से अधिकतम परिणामों की प्राप्ति के लिये 

प्रबन्‍ध का महत्त्व एक समन्‍वयकारी शक्ति के रूप में दिनों-दिन निरन्‍तर बढ़ता चला जा रहा है। प्रबन्‍ध एक समन्‍वयकारी शक्ति के रूप में कार्य समूहों को नये विचार, नई प्रेरणायें, नई कल्‍पनायें व नई दृष्टियां प्रदान करता है और उनके कार्य को इस प्रकार समन्वित करता है कि न्‍यूनतम लागत पर अधिकतम सर्वोच्‍च परिणामों की उपलब्धि सुलभ हो जाती है। 

10. संस्‍था के बाहरी तथा आन्‍तरिक पक्षों में समन्‍वय स्‍थापित करने के लिये 

समन्‍वय, प्रशासन एवं प्रबन्‍ध का सार है। इसके अभाव में सभी क्रियायें चाहे वे बाहरी हों अथवा आन्‍तरिक, व्‍यर्थ हो जाती हैं। आन्‍तरिक पक्षों से आशय उन कर्मचारियों एवं अधिधारियों से है जो संस्‍था के विभिन्‍न पदों पर आसीन हैं तथा बाहरी पक्षों से आशय अंशधारियों, सरकार, श्रम संघों एवं समाज आदि से है। इनमें समन्‍वय भी प्रबन्‍ध द्वारा ही स्‍थापित किया जा सकता है।

11. उत्‍पादन के साधनों का अधिकतम उपयोग करने के लिये

उत्‍पादन के विभिन्‍न साधनों अर्थात् श्रम, पूंजी, यन्‍त्र एवं सामग्री आदि का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। प्रबन्‍ध अपने क्षेत्र में प्रतिस्‍पर्धा का सामना, संस्‍था का विकास करने में तभी सफल हो सकता है जबकि वह उत्‍पादन के विभिन्‍न साधनों का अधिकतम व कुशलतम उपयोग करनें में समर्थ हो। 

प्रबन्‍ध का महत्त्व इस कथन से स्‍पष्‍ट है कि, ‘प्रबन्‍ध व्‍यवसाय, उद्योग, व्‍यापार में सफलता की कुंजी है।"

प्रबन्‍ध संस्‍था के विभिन्‍न पदों का उत्तरदायित्‍व संभालने के लिए विभिन्‍न अधिकारियों के चुनाव एवं प्रशिक्षण की व्‍यवस्‍था करता है, ताकि निश्चित योजनाओं को कार्यान्वित किया जा सके। योग्‍य, कुशल एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों के बिना किसी भी संस्‍था का प्रबन्‍ध निष्क्रिय हो जाता है। यदि संस्‍था में कुशल कर्मचारी हों तो न केवल इससे संस्‍था को अनेक लाभ प्राप्‍त होते हैं, वरन् कर्मचारी भी लाभान्वित होते है। 

प्रबंध के प्रमुख सहायक कार्य 

प्रबन्‍ध के कार्यो का प्रतिपादन सबसे पहले हेनरी फेयोल से सन् 1916 में किया था। उनके शब्‍दों में, ‘‘प्रबन्‍ध करने से आशय पूर्वानुमान एवं आयोजन करना, संगठन बनाना, आदेश देना, समन्‍वय करना और नियंत्रण करने से है।‘‘

प्रबन्‍ध के विभिन्‍न कार्य

प्रबंध के विभिन्न कार्य निम्‍नलिखित हैं-- 

1. नियोजन 

जार्ज आर. टेरी के शब्‍दों में, ‘‘व्‍यावसायिक नियोजन के अन्‍तर्गत व्‍यवसाय की भावी आवश्‍यकताओं का रचनात्‍मक सिंहावलोकन किया जाता है।‘‘ नियोजन का आशय संस्‍था के उद्देश्‍यों, नीतियों एवं कार्यक्रमों को निश्चित करने और उनकी पूर्ति के लिए कार्यविधियों का चुनाव करने से है। यदि किसी कार्य की पूर्व योजना बना ली जाये तो अनिश्चितता एवं असफलता की सम्‍भावना में कमी आती है। प्रत्‍येक संस्‍था में उत्‍पादन प्रारम्‍भ करने से पहले यह विचार करना पड़ता है कि आवश्‍यक कच्‍चा माल, श्रम आदि की मात्रा क्‍या है एवं वह कहां से प्राप्‍त होगा। नियोजन में विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के तरीकों पर भी विचार किया जाता है। बिना योजना बनाये कार्य प्रारम्‍भ करना अनिश्चितता तथा असफलताओं को न्‍यौता देना होता है। किसी भी व्‍यवसाय में चाहे वह छोटा हो या बड़ा, योजना बनाना आवश्‍यक है। प्रबन्‍धकों के लिए व्‍यवसाय के संचालन की योजना बनाना उनके प्रबन्‍ध कार्यो का सबसे महत्‍वपूर्ण भाग है, क्‍योंकि इसी के आधार पर अन्‍य कार्य कुशलतापूर्वक पूरे किये जा सकते है।

2. पूर्वानुमान 

औद्योगिक एवं व्‍यापारिक उपक्रमों में भविष्‍य की क्रियाओं के सम्‍बन्‍ध में अनुमान लगाना अत्‍यावश्‍यक है क्‍योंकि इन्‍हीं अनुमानों के आधार पर ही भविष्‍य की क्रियाओं के सम्‍बन्‍ध में योजना बनायी जाती है तथा उपलब्‍ध विकल्‍पों में से सर्वाधिक मितव्‍ययी एवं लाभदायक विकल्‍प का चुनाव किया जाता है। इस प्रकार प्रबंध का सर्वप्रमुख कार्य अनुमान लगाना है कि भविष्‍य में क्‍या किया जायेगा और किस प्रकार किया जायेगा? 

3. संगठन 

नियोजन के पश्‍चात् प्रशासन द्वारा निर्धारित नीतियों को कार्योन्वित करके लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने के लि प्रबन्‍ध वर्ग संगठन की व्‍यवस्‍था करता है, बिना स्‍वस्‍थ संगठन के योजनाओं को अच्‍छी तरह से कार्यान्वित नहीं किया जा सकता है। प्रबन्‍ध, संस्‍था के उद्देश्‍यों की पूर्ति के लिए विभिन्‍न क्रियाओं का निर्धारण एवं वर्गीकरण करके उन्‍हें करने हेतु योग्‍य अधिकारियों को सौंप देता है। इन कार्यो को अच्‍छे ढंग से सम्‍पादित करने के लिए प्रबन्‍ध द्वारा विभिन्‍न अधिकारियों को अधिकार भी सौंपे जाते है।

उर्विक ने कहा कि, ‘‘यह निर्धारित करना कि किसी उद्देश्‍य या योजना को प्राप्‍त करने के लिए क्‍या-क्‍या क्रियाएं करनी आवश्‍यक है तथा इनको ऐसे वर्गो में बांटना, जिन्‍हें अलग-अलग व्‍यक्तियों को सौंपा जा सके - सही संगठन है।‘‘ संगठन में श्रमिकों की रूचि के अनुरूप कार्य वितरण, कर्तव्‍य एवं अधिकारों का वर्गीकरण कर उनके हस्‍तांतरण आदि को शामिल किया जाता है। 

4. संचालन 

प्रबन्‍ध मूलतः दूसरों से काम कराने की एक कला है। संगठन की क्रियाशील करने तथा निरन्‍तर रखने के लिए कुशल संचालन अति आवश्‍यक होता है। संस्‍था के निर्धारित उद्देश्‍यों को प्राप्‍त करने के लिए संगठन में कार्यरत प्रत्‍येक व्‍यक्ति को आवश्‍यक निर्देशन प्रबंध ही देता है। संचालक के निर्देशन द्वारा समय, श्रम एवं पूंजी के अपव्‍यय को रोका जाता है। एक प्रबन्‍धक को अपने कर्मचारियों के संचालन एवं निर्देशन के लिए यह कार्य करने पड़ते है--

1. संस्‍था के उद्देश्‍य एवं नीतियों के प्रति कर्मचारियों में विश्‍वास व सम्‍मान पैदा करना। 

2. कर्मचारियों को आवश्‍यक निर्देश देकर उनके कार्यो की देखरेख करना।

3. कर्मचारियों में सहयोग की भावना बनाये रखना।

4. कर्मचारियों को प्रभावपूर्ण नेतृत्‍व प्रदान करके कार्य करने की प्रेरणा देना।

5. अधीनस्‍थ कर्मचारियों को कर्तव्‍यों एंव अधिकारों के प्रति सदैव जागरूक रखना।

5. योग्‍य नियुक्तियां 

प्रबंध का महत्‍वपूर्ण कार्य है कर्मचारियों की नियुक्तियॉ करना, जो प्रबंध का प्रशासनिक कार्य है। किसी भी उपक्रम में कार्य योजनानुसार तब ही सम्पन्‍न हो सकता है जबकि उसे योग्‍य एवं कुशल कर्मचारियों द्वारा सम्‍पादित किया जाये। जिस उपक्रम के कर्मचारी जितने अधिक योग्‍य, प्रशिक्षित एवं अनुभवी होंगे, उस उपक्रम का प्रबंध उतना ही अधिक योग्‍य, प्रशिक्षित एवं अनुभवी होंगे, उस उपक्रम का प्रबंध उतना ही अधिक प्रभावी एवं कुशल होगा। इसके अभाव में प्रबंध में निष्क्रियता का आना स्‍वाभाविक है। यही कारण है कि संगठन में कर्मचारियों का योग्‍य, प्रशिक्षित एवं अनुभवी होना अत्‍यन्‍त आवश्‍यक है जिनकी नियुक्ति प्रबंध द्वारा की जाती है। प्रबंध इस कार्य को निम्‍नानुसार सम्‍पन्‍न करता है--

1.व्‍यवसाय की आवश्‍यकतानुसार कर्मचारियों की संख्‍या का अनुमान लगाना। 

2.कार्य की प्रकृति के अनुसार योग्‍य व कुशल व्‍यक्तियों का चयन करना। 

3.चयन किये गये कर्मचारियों हेतु आवश्‍यक प्रशिक्षण सुविधायें उपलब्‍ध कराना। 

6. समन्‍वय 

किसी भी संस्‍था के निर्धारित लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने तथा नीतियों को कार्योन्वित करने के लिए विभिन्‍न विभागों तथा विभिन्‍न कर्मचारियों के कार्यो में समन्‍वय होना चाहिए। समन्‍वय प्रबन्‍ध कला का सार है। समन्‍वय के माध्‍यम से विभिन्‍न व्‍यक्तियों के कार्यो को इस ढंग से व्‍यवस्थित किया जाता है कि ये एक-दूसरे से मेल खायें। समन्‍वय से ही संस्‍था के उद्देश्‍यों को प्राप्‍त किया जा सकता है। प्रबन्‍ध का कोई भी कार्य क्‍यों न हो - चाहे नियोजन हो, संगठन हो, नियुक्ति करना हो, आदेश देना हो- सभी में समन्‍वय की आवश्‍यकता होती है। वास्‍तव में समन्‍वय का उद्देश्‍य आपसी विरोध को दूर करना तथा सहयोगपूर्ण प्रयासों को अधिकतम बनाना है।

7. प्रेरणा या कार्य में प्रवृत्त करना

किसी भी संस्‍था को सुचारू से चलाने के लिए प्रबन्‍ध को कर्मचारियों के मन में कार्य के प्रति रूचि उत्‍पन्‍न करके उसे बढ़ाने का कार्य करना पड़ता है, इसी को प्रेरणा कहा जाता है। वास्‍तव में श्रम शक्ति का किसी भी उपक्रम में महत्‍वपूर्ण स्‍थान होता है, अतः उसके मनोबल को बढ़ाने पर पूर्ण ध्‍यान दिया जाना चाहिए। प्रबन्‍ध का यह कार्य है कि वह श्रमिकों को उत्‍पादन बढ़ाने की प्रेरणा दे। वास्‍तव में प्रेरणा के आधार पर ही किसी निर्धारित लक्ष्‍य तक पहुँचा जा सकता है। यदि कर्मचारियों को प्रेरणा नहीं दी जाए तो वे साधनों का अपव्‍यय करते हैं। प्रेरणाएं दो प्रकार की होती हैं - मौद्रिक एवं अमौद्रिक। मौद्रिक एवं अमौद्रिक दोनों प्रेरणाओं से कर्मचारियों की निराशा एवं उदासीनता दूर होती है तथा उनमें आत्‍मविश्‍वास की भावना उत्‍पन्‍न होती है। प्रेरणा के अन्‍तर्गत कर्मचारियों के वैज्ञानिक चयन, कार्य सिखाने, मैत्रीपूर्ण, सहयोगी एवं गतिशील वातावरण उत्‍पन्‍न करने तथा व्‍यक्ति को आत्‍म-विकास के लिए प्रोत्‍साहन देने पर बल दिया जाता है। 

8. नियंत्रण

मनुष्‍य से गलती होना स्‍वाभाविक है, किन्‍तु गलतियों को उचित नियंत्रण के माध्‍यम से न्‍यूनतम किया जा सकता है। नियंत्रण प्रबंध का अन्तिम शस्‍त्र है। बिना नियंत्रण के प्रबन्‍धक को यह पता नहीं चलता कि सारा संगठन किस दिशा में जा रहा है। हेनरी फैयाल के अनुसार, ‘‘नियंत्रण के अन्‍तर्गत इस बात की जॉच-पड़ताल करने का प्रयास किया जाता है कि समस्‍त कार्य योजना अनुसार चल रहा है अथवा नही। इसके अतिरिक्‍त दुर्बलताओं का पता लगाकर सुधारात्‍मक सुझाव देना भी इसका कार्य है।‘‘ सरल शब्‍दों में, नियंत्रण का अर्थ है ऐसे उपाय करना जिससे संस्‍था के व्‍यवसाय को योजनाओं के अनुसार चलाया जा सके और यदि उसमें कही कोई अन्‍तर आ जाये तो सुधारात्‍मक कदम उठाकर उसे योजना की दिशा में मोड़ दिया जा सके। 

9. निर्णय लेना 

निर्णय लेना तथा नेतृत्‍व करना भी प्रबन्‍ध का कार्य है। ड्रकर ने इस सम्‍बन्‍ध में कहा है कि ‘प्रबन्‍धक जो कुछ करता है, वह निर्णय लेकर करता है।‘ व्‍यवसाय की स्‍थापना से लेकर उसके समापन तक प्रबन्‍धकों को अनेक निर्णय लेने पड़ते हैं। सामान्‍यतः प्रबन्‍धक जो भी कार्य करते हैं, वह निर्णय पर आधारित रहते हैं। संस्‍था के उद्देश्‍यों को कुशलतापूर्वक प्राप्‍त करने के लिए विभिन्‍न वैकल्पिक उपायों में से सर्वोत्‍तम उपाय का चुनाव करना ही निर्णय लेना कहलाता है। प्रबन्‍ध के प्रत्‍येक स्‍तर पर अधिकारियों द्वारा निर्णय लिये जाते हैं। प्रत्‍येक अधिकारी का निर्णय क्षेत्र क्‍या है, इसकी परिभाषा पहले से स्‍पष्‍ट कर देना चाहिए। भविष्‍य में निर्णय सही लिये जावें, इसके लिए जरूरी है कि समय≤ पर चालू निर्णयों की सफलता की नियमित समीक्षा की जावें। प्रबन्‍धकों की सफलता अथवा असफलता का मूल्‍यांकन सही निर्णयों के आधार पर ही किया जाता है।

10. नवप्रवर्तन 

आधुनिक प्रबन्‍ध विशेषज्ञ नवप्रवर्तन को भी प्रबन्‍ध का कार्य मनाते हैं। नवीन विचारों का सृजन ही वास्‍तव में नवप्रवर्तन है। हिक्‍स ने नवप्रवर्तन को सृजनशीलता का नाम दिया है। उनके अनुसार, ‘‘सृजनशीलता में एक व्‍यक्ति की मानसिक योग्‍यता तथा जिज्ञासा का प्रयोग करना शामिल है, जिसके परिणामस्‍वरूप किसी नये तत्‍व की खोज या उसका सृजन हो सकें।‘‘

11. सन्‍देशवाहन 

सूचनाओं का आदान-प्रदान ही सन्‍देशवाहन कहलाता है। सन्‍देशवाहन को हम प्रबन्‍ध का सहायक कार्य कह सकते हैं। इसके माध्‍यम से ही प्रबन्‍धक अपने विचारों से अधीनस्‍थों को अवगत कराता है, उन्‍हें आदेश देता है, कार्य के आबंटन की सूचना देता है। सन्‍देशवाहन प्रबन्‍ध को क्रियाशील रखता है। अगर सन्‍देशवाहन की व्‍यवस्‍था अच्‍छी न हो तो कार्य पूरा होने में अनावश्‍यक देरी लगती है, लोगों में मनमुटाव होता है तथा शंकाओं को जन्‍म मिलता है। 

12. कर्मचारियों की नियुक्ति

प्रबन्‍ध संस्‍था के विभिन्‍न पदों का उत्तरदायित्‍व संभालने के लिए विभिन्‍न अधिकारियों के चुनाव एवं प्रशिक्षण की व्‍यवस्‍था करता है, ताकि निश्चित योजनाओं को कार्यान्वित किया जा सके। योग्‍य, कुशल एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों के बिना किसी भी संस्‍था का प्रबन्‍ध निष्क्रिय हो जाता है। यदि संस्‍था में कुशल कर्मचारी हों तो न केवल इससे संस्‍था को अनेक लाभ प्राप्‍त होते हैं, वरन् कर्मचारी भी लाभान्वित होते है।

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