4/09/2022

लागत लेखांकन के उद्देश्‍य, लाभ, सीमाएं

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लागत लेखांकन के उद्देश्‍य (lagat lekhankan ke uddeshya)

लागत लेखांकन के उद्देश्‍य निम्नलिखित हैं-- 

1. लागत ज्ञात करना

विलियम बेल ने कहा है कि, ‘‘ लागत लेखों का उद्देश्‍य प्रधानता उत्‍पादित वस्‍तु की विस्‍तृत रूप से लागत ज्ञात करना है।"

एन.सरकार के अनुसार, ‘‘लागत लेखांकन का प्राथमिक उद्देश्‍य उत्‍पादन इकाई की लागत ज्ञात करना है।" 

वास्‍तव में लागत लेखों का प्रमुख उद्देश्‍य किसी इकाई की लागत ज्ञान करना है। लागत ज्ञात करने के लिए लागत लेखांकन में लागत पत्रक या लागत विवरण बनाया जाता है जिससे मूल लागत, कारखाना लागत, कार्यालय लागत तथा कुल लागत हो जाती है। इससे हमें प्रति इकाई लागत व्‍यवस्थित ढंग से ज्ञात हो जाती है। इस प्रकार किसी वस्‍तु या सेवा की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत क्‍या है, इस बात को जानना लागत लेखांकन का एक प्रमुख उद्देश्‍य है। 

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2. लागत का विश्‍लेषण करना

लागत का विश्‍लेषण करके उससे उचित निष्‍कर्ष निकालना भी लागत लेखांकन का उद्देश्‍य होता है। इसमें प्रत्‍येक कार्य अथवा क्रिया की मानक लागत निर्धारित की जाती है और फिर वास्‍तविक लागत से उसकी तुलना करके अन्‍तर के कारणों का पता लगाया जाता है और फिर सुधारात्‍मक कार्यवाही की जाती है। 

3. लागत का नियंत्रण करना 

जिस प्रकार लागत ज्ञात करना महत्त्वपूर्ण है उसी प्रकार लागत का नियंत्रण करना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। अगर वस्‍तुओं की उत्‍पादन लागत बढ़ जाती है तो उसे कम करना आवश्‍यक होता है। लागत लेखे उत्‍पादन लागत को नियंत्रित करने के लिए निर्माण कार्य में होने वाली विभिन्‍न अकुशलताओं की जानकारी देते है। अगर लागत पर नियंत्रण नहीं किया गया तो लागत लेखे का उद्देश्‍य अधूरा रह जाता है। लागत नियंत्रण के लिए सामग्री, श्रम एवं उपरिव्‍यय के अपव्‍यय की जानकारी विभिन्‍न विवरणों, सूत्रों आदि से प्राप्‍त की जाती है। 

4. विक्रय मूल्‍य का निर्धारण करना 

लागत लेखों का एक प्रमुख उद्देश्‍य वस्‍तु का विक्रय मूल्‍य निर्धारित करना भी होता है। विक्रय मूल्‍य निर्धारित करने से पूर्व लागत की जानकारी होना बहुत आवश्‍यक है। लागत लेखांकन के द्वारा किसी वस्‍तु की लागत ज्ञात करके उसमें उचित प्रतिशत से लाभ जोड़कर विक्रय मूल्‍य निर्धारित कर दिया जाता है। टेण्‍डर मूल्‍य निर्धारित करने से पूर्व अनुमानित लागत मूल्‍य निश्चित करना पड़ता है जो लागत लेखांकन के बिना संभव नहीं हो सकता। 

5. नीति निर्धारण हेतु आधार प्रदान करना 

विभिन्‍न नीतियों के निर्धारण में लागत लेखांकन की सीमांत लागत विधि बहुत सहायता करती है। नीति निर्धारण सम्‍बंधी मामलों के कुछ प्रमुख उदाहरण है-- 

(1) किसी नये उत्‍पाद को शुरू करना अथवा पुराने उत्‍पाद को समाप्‍त करना। 

(2) विदेशी बाजारों में माल कम मूल्‍य पर बेचना अथवा नहीं।

(3) किसी उत्‍पाद का निर्माण करना अथवा बाहर से खरीदना। (4) कारखाना पट्टे पर लेना अथवा खरीदना। 

(5) नया प्‍लाण्‍ट लगाना अथवा पुराने प्‍लाण्‍ट पर मरम्‍मत का भारी व्‍यय करके उसे ही चलाना। वस्‍तुओं के वितरण के लिए कौन सा माध्‍यम चुनना। 

6. विभिन्‍न क्रियाओं की लाभदायकता का निर्धारण करना

इस समय संस्‍था में जो क्रियाएं चलाई जा रही हैं, उनकी लाभदायकता ज्ञात करना भी लागत लेखांकन का उद्देश्‍य होता है। जहां किसी नई वस्‍तु के निर्माण का विचार किया जाता है वहां यह मालूम करना भी जरूरी होता है कि इस नई वस्‍तु के निर्माण से कितना लाभ होगा। नये उत्‍पाद के साथ-साथ वर्तमान में जो उत्‍पाद बनाये जा रहे है उनकी लाभदायकता की जानकारी होना बहुत जरूरी है। लाभ कमाने की क्षमता ज्ञात करने में लागत लेखांकन हमारी सहायता करता है। 

7. बजट बनाना

लागत लेखांकन का एक उद्देश्‍य विभिन्‍न प्रकार के बजट बनाना भी होता है। उत्‍पादन बजट तैयार करके उत्‍पादन व्‍ययों को निर्धारित स्‍तर तक रखने का प्रयास किया जाता है। लागत लेखा बजट विधि द्वारा व्‍ययो को नियंत्रित करने के लिए आवश्‍यक साधन व सूचनाए प्रदान करता है। 

लागत लेखांकन से लाभ (lagat lekhankan ke ladha)

लागत लेखांकन से उत्‍पादकों एवं प्रबन्‍धकों को निम्‍नलिखित लाभ प्राप्‍त होते हैं--

1. प्रबन्‍धकीय नियंत्रण में सहयोग 

वास्‍तविक लागतों तथा प्रमापित लागतों की तुलना करके अन्‍तर के कारणों को ज्ञात किया जा सकता है तथा यथासम्‍भव उन सभी कारणों को दूर करने का प्रयत्‍न किया जाता है जो हानिकारक  हैं। 

2. विश्‍लेषणात्‍मक एवं तुलनात्‍मक अध्‍ययन 

उत्‍पादन की कुल लागत को प्रत्‍यक्ष एवं अप्रत्‍यक्ष, स्थिर एवं परिवर्तनशील, उत्‍पादक कार्यालय एवं विक्रय व्‍ययों में विभाजित करके वस्‍तु के उत्‍पादन की इकाई लागत ज्ञात की जाती है। लागत का यह विश्‍लेषण, लागत में दो समयों के बीच होने वाले परिवर्तन और परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालता है। 

3. भावी नीति-निर्धारण व बजट निर्माण में उपयोग 

लागत लेखांकन दूरदर्शिता की पद्धति है, न कि उत्तरवर्ती परीक्षण। लागत लेखों की सहायता से भावी नीतियों का निर्धारण होता है, रोकड़ व पूंजी बजटों का निर्माण किया जाता है। 

4. सामग्री, श्रम व संयंत्र का सर्वोत्‍तम उपयोग

लागत लेखांकन में सामग्री, श्रम तथा यंत्र के विस्‍तृत लेखे रखे जाते हैं, जिनसे सरलतापूर्वक सामग्री व श्रम के दूरूपयोग व चोरी को रोका जा सकता है। संयंत्र की अधिकतम कार्यक्षमता तक उत्‍पादकता बढ़ाई जा सकती है। 

5. लाभकारी व अलाभकारी उत्‍पादों व विभागों का ज्ञान

लागत लेखांकन में प्रत्‍येक विभाग, प्रत्‍येक उत्‍पाद व सेवा का पृथक-पृथक लागत-विश्‍लेषण किया जाता है जिससे लाभकारी व अलाभकारी इकाईयां के उत्‍पादन को बन्‍द करके लाभ-दायकता बढ़ायी जा सकती है। 

6. प्रमाप के निर्धारण में सहयोग 

लागत लेखांकन की सहायता से प्रत्‍येक कार्य की प्रमाप लागत व प्रमाप व प्रत्‍येक साधन की प्रमाप-उत्‍पादक पूर्व निर्धारित हो सकती है। 

परिव्‍यय या लागत लेखांकन की सीमाएं 

लागत लेखांकन की सीमाएं निम्‍नलिखित हैं--

1. यह पद्धति उन व्‍यवसायों में ही लागू की जाती है जहां कि या तो उत्‍पादन का कार्य होता है अथवा जहां व्‍यवसाय का कार्य सेवा प्रदान करना है, जैसे कि यातायात, होटल विद्युत सप्‍लाई आदि। अतः यह पद्धति ऐसे अन्‍य व्‍यवसायों में जो कि केवल व्‍यापार का काम, करते हैं, लागू नहीं होती है। 

2. लागत लेखांकन में अप्रत्‍यक्ष व्‍ययों का लेखा वास्‍तविक नहीं होता बल्कि अनुमानित ही होता है। 

3. परिव्‍यय लेखांकन में शुद्ध वित्तीय प्रकार के लक्ष्‍य जिनका संबंध उत्‍पादन विक्रय व वितरण से नहीं होता, शामिल नहीं होते, पर उनका लेखा वित्तीय लेखांकन में होता है। 

4. ऊपर 2 व 3 में वर्णित कारणों से परिव्‍यय लेखों द्वारा दिखायें लाभध्हानि का समाधान वित्तीय लेखों से करना पड़ता है।

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