लागत लेखांकन का अर्थ ( lagat lekhankan kya hai)
लागत लेखांकन वित्तीय लेखांकन के विकास में अगला कदम है। वित्तीय लेखांकन द्वारा प्राप्त ऑकड़ों की अपूर्णता को दूर करने के उद्देश्य से कुल लागत के विभिन्न तत्वों को वर्गीकृत तथा विश्लेषित करके प्रति इकाई, प्रति प्राविधि - प्रति विभाग तथा प्रति जॉब लागत निर्धारित करने की कला को लागत लेखांकन कहते हैं।
लागत लेखांकन की परिभाषा (lagat lekhankan ki paribhasha)
लागत लेखांकन की कुछ प्रमुख परिभाषाएं इस प्रकार है -
सी. आई. एम. ए. लंदन के अनुसार, ‘‘लागत लेखांकन का आशय व्ययों के खर्च किये जाने से लेकर उन्हें लागत केन्द्रों एवं लागत इकाइयों से सम्बन्धित करने तथा लागत का लेखा करने की प्रक्रिया से हैं।"
एल.बी.डिक्सी के अनुसार, ‘‘लागत लेखे वित्तीय लेखों के पूरक अथवा सहायक लेखे हैं जो किसी उपक्रम या उसके किसी विशेष विभाग की क्रिया की विस्तृत लागत से सम्बन्धित अतिरिक्त सूचनाएं प्रदान करने के लियें तैयार किये जाते है।"
आर.एन. कार्टर के शब्दों में, ‘‘ लागत लेखांकन लेखा करने की वह विधि है जिसके अन्तर्गत किसी वस्तु को बनाने या किसी कार्य को करने में कितनी सामग्री तथा श्रम लगा है, इसका हिसाब लिखा जाता है।"
हैराल्ड जे. व्हेल्डन के अनुसार, ‘‘लागत लेखे का अर्थ व्ययों का वर्गीकरण, लेखा तथा उपयुक्त रूप से बंटवारा करने से है, जिससे उत्पादित वस्तुओं अथवा सेवाओं की उत्पादन-लागत ज्ञात हो सके। समुचित एवं व्यवस्थित आंकड़े इस प्रकार प्रस्तुत किये जाते हैं कि प्रशासकों का मार्ग-दर्शन एवं उनके प्रबन्ध कार्य में सुविधा हों। यह प्रत्येक कार्य, ठेका, विधि, सेवा या इकाई की लागत निर्धारित करता है तथा उत्पादन, बिक्री एवं वितरण की लागतें बताता हैं।"
अतः इस प्रकार की परिभाषायों के अध्ययन करके यह कहां जा सकता है कि लागत-लेखा वह लेखा-व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत लागत का विश्लेषण किया जाता है और उत्पादन के विभिन्न चरणों में लागत का अध्ययन किया जाता है। लागत-लेखे का उद्देश्य तब तक अपूर्ण रहता है, जब तक कि यह लागत को नियन्त्रित करने में विभिन्न कार्यो की लाभदायकता जानने में सहायता न दे। लागत-लेखा लागत को नियंत्रित कर लाभार्जन क्षमता में वृद्धि करने, भावी नीतियों को निर्धारित करने तथा नियोजन करने में भी सहायता प्रदान करता है।
लागत, लागत अंकन, लागत लेखांकन तथा लागत लेखाशास्त्र
लागत लेखांकन की धारणा के सन्दर्भ में लागत, लागत अंकन, लागत लेखांकन एवं लागत लेखाशास्त्र की धारणाओं को समझना आवश्यक है, जो निम्न प्रकार है--
1. लागत
लागत एक विस्तृत धारणा है, जिसका अध्ययन इसके उद्देश्यों तथा दशाओं सन्दर्भ में किया जाता है। वास्तविकता यह है कि अर्थशास्त्रियों, लेखापालों एवं अन्य द्वारा उनकी आवश्यकता के अनूकूल लागत की धारणा विकसित की गई है, पर कुछ सामान्य परिभाषाएं निम्न प्रकार है -ः
आई.सी.एम.ए के अनुसार, ‘‘लागत व्यय की वह राशि है जो कि एक दी हुई वस्तु पर किया गया हो अथवा आरोग्य हो‘‘
आई.सी.एम.ए की उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार लागत में निम्न व्यय शामिल होते--
(अ) एक दी हुई वस्तु पर किया गया वास्तविक व्यय, एवं
(ब) एक दी हुई वस्तु पर आरोप्त व वैचारिक व्यय।
उपर्युक्त के सम्बंध में, वैचारिक व्यय वह है जो कि किया गया माना जाता है अथवा आरोपित होता है। उदाहरण के लिए, स्वामित्वयुक्त कारखाना भवन का किराया, जहां कि किराया वास्तव में भुगतान नहीं किया जाता है लेकिन किराए पर चल रहे कारखानों की उत्पादन लागत से तुलना करने के उद्देश्य से यह किराया लागत में शामिल किया जाता है स्वयं की पूंजी पर ब्याज, जहां कि ब्याज वास्तव में अदा नहीं किया जाता लेकिन नीतिस्वरूप ब्याज को लागत में शामिल किया जाता है।
लागत धारणाओं एवं मानकों पर समिति की रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘लागत का आशय किसी ऐसे त्याग या छोड़ने से है, जिसे मुद्रा में मापा जा सकता हो तथा जिसे विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिए व्यय किया गया हो या किया जा सकता हो।‘‘
इस परिभाषा में लागत की धारणा की तीन आधारभूत विशेषताएं शामिल हैं--
(अ) त्याग
लागत त्याग अथवा छोड़ देने का मापन है जो वर्तमान या भविष्य में रोकड़ या अन्य सम्पत्तियों की कभी या वर्तमान या भावी दायित्वों में वृद्धि के रूप में होता है।
(ब) मौद्रिक मूल्य
लागत के तत्व के रूप में जो घटक सम्मिलित होते हैं, उनमें सामग्री, श्रम एवं अन्य सेवाएं होती हैं जिन्हें सामान्यतः विभिन्न इकाइयों में व्यक्त किया जाता हैं, जैसे सामग्री किग्रा में, श्रम घण्टों में तथा अन्य सेवाएं कुछ अन्य इकाइयों में लेकिन लागत के उद्देश्य से इन सभी को मौद्रिक मूल्य में परिवर्तित कर लिया जाता है।
(स) विशिष्ट उद्देश्य
क्योंकि त्याग किसी विशिष्ट उद्देश्य अथवा लाभ की प्राप्ति हेतु किया जाता है, इसलिए लागत मापन भी उसी सन्दर्भ में होना चाहिए।
2. लागत अंकन या लागत निर्धारण
आई.सी.एम.ए के अनुसार, ‘‘लागत अंकन अथवा लागत निर्धारण का आशय लागत निर्धारित करने की तकनीक तथा प्रक्रिया से है।‘‘
लागत अंकन का सम्बंध किसी वस्तु अथवा सेवा का लागत का ज्ञान करने से है। लागत ज्ञात करने के लिए उस वस्तु या सेवा पर किये गये समूहें व्ययों का संग्रह करना उन व्ययों का वर्गीकरण एवं विश्लेषण करना तथा उन व्ययों को विभागों तथा उनमें उत्पादित वस्तुओं पर वितरित करना जरूरी होता है। लागत अंकन की अनेक तकनीकें हैं जिनमें ऐतिहासिक लागत अंकन, मानक लागत अंकन एवं सीमान्त लागत अंकन प्रमुख हैं।
लागत ज्ञात करने की तकनीकें उन सिद्धांतों तथा नियमों को लेकर चलती हैं, जो न सिर्फ कार्य के पूरा होने पर ही, वरन् अधूरे कार्य की अवस्था में भी किसी उत्पाद व सेवा की लागत ज्ञात कराने के कार्यक्रम का निर्धारण करते हैं।
3. लागत लेखांकन
आई.सी.एम.ए. लन्दन के अनुसार, ‘‘उस बिन्दू से, जहां पर व्यय किया गया है अथवा किया गया माना गया है, लागत केन्द्रों एवं लागत इकाइयों से अन्तिम सम्बंध स्थापित करने तक की लागत हेतु लेखा करने की प्रक्रिया को लागत लेखांकन कहते हैं। इसके विस्तृत प्रयोग में, सांख्यिकीय समंकों की तैयारी, लागत नियंत्रण की पद्धतियों का प्रयोग तथा कार्यान्वित या नियोजित क्रियाओं की लाभकारिता शामिल हो जाती है।‘‘
लागत लेखांकन लागत हेतु लेखा करने की एक पद्धति है। लागत के तीन तत्व होते हैः- (1) सामग्री, (2) श्रम तथा (3) व्यय। लागत के इन तीनों तत्वों से सम्बन्धित लेखा रखने का कार्य लागत लेखांकन का है ।
वे सभी लागतें जो कि उत्पादन क्रिया को शुरू करने से शुरू हो जाती हैं एवं माल की बिक्री तथा वितरण की अन्तिम क्रिया तक होती रहती हैं, लागत लेखांकन में स्थान पाती है। लागत लेखांकन के अन्तर्गत वैज्ञानिक तरह से वस्तु की सही उत्पादन लागत या प्रति इकाई लागत ज्ञात की जाती है ताकि लागत पर नियंत्रण किया जा सके।
4. लागत लेखाशास्त्र
आई.सी.एम.ए इंग्लैण्ड़ के अनुसार, ‘‘लागत अंकन एवं लागत लेखांकन के सिद्धान्तों, पद्धतियों तथा तकनीकों को लागत नियंत्रण एवं लाभकारिता के निर्धारण के विज्ञान कला, व अभ्यास पर लागू करना लागत लेखाशास्त्र कहलाता है। इसमें प्रबन्धकों के निर्णय लेने के उद्देश्य के लिए क्रिया से प्राप्त सूचना का प्रस्तुतीकरण सम्मिलित है‘‘
अतः लागत लेखाशास्त्र में निम्नलिखित विषय सम्मिलित हैं--
(1) लागत अंकन, (2) लागत लेखांकन, (3) लागत नियंत्रण तथा (4) लाभकारिता दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि लागत लेखाशास्त्र निम्न बातों से सम्बन्धित हैंः-
1.लागत ज्ञात करना तथा लेखा करना।
2.लागत का नियंत्रण तथा।
3.लाभकारिता का ज्ञान।
लागत का नियंत्रण करना लागत लेखा का एक उद्देश्य हैं परन्तु लागत नियंत्रण की पद्धतियों का प्रयोग लागत लेखांकन का क्षेत्र है।
लागत नियंत्रण की पद्धतियां हैं--
(1)बजटरी नियंत्रण,
(2) मानक लागत लेखांकन एवं
(3) उत्तरदायित्व लेखांकन।
लागत लेखांकन की विशेषताएं (lagat lekhankan ki visheshta)
लागत लेखांकन की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. लेखांकन की विशिष्ट शाखा
लागत लेखांकन, लेखांकन की एक विशिष्ट शाखा है जो लागत के एकत्रण, वर्गीकरण, अभिलेखन, निर्धारण एवं नियंत्रण से सम्बन्धित है। यद्यपि यह दोहरा लेखा पद्धति पर ही आधारित है, पर इसकी अपनी धारणाएं तथा परम्पराएं हैं।
2. कला एवं विज्ञान दोनों
लागत लेखांकन कला एवं विज्ञान दोनों हैं। विज्ञान इसलिए है क्योंकि इसके अपने सिद्धांत तथा नियम हैं जो व्यवस्थित रूप से नियमित आधार पर अपनायें जाते हैं। यह कला इस आधार पर है कि इसके सिद्धांत तथा तकनीक लागत समंकों के आधार पर व्यावसायिक समस्याओं के हल करने में प्रयोग किये जाते हैं।
3. पेशे के रूप में मान्यता
लागत लेखांकन को एक पृथक पेशे के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। इन्स्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट एण्ड वर्क्स एकाउन्टेन्ट्स ऑफ इंडिया लागत लेखाकारों को पेशेवर सहायता प्रदान करता है एवं उनके पेशेवर कार्य तथा दृष्टिकोण हेतु नियमों की रचना करता है।
4. कुल लागत के विभिन्न संघटकों का निर्धारण
यह व्ययों के संग्रह, वर्गीकरण तथा अभिलेखन द्वारा उत्पादों एवं सेवाओं की लागत निर्धारित करता है और उन्हें विभिन्न संघटकों, सामग्री, श्रम तथा व्यय में व्यवस्थित करता है। लागत लेखांकन में केवल पूर्ण हो गये उत्पाद की ही कुल और प्रति इकाई लागत ज्ञात नहीं की जाती, वरन् अपूर्ण कार्य अथवा उत्पाद की लागत का निर्धारण भी किया जाता है।
5. लाभ तथा लागत की गणना में सांख्यिकी समंको का प्रयोग
इस व्यवस्था के व्यापक प्रयोग में सांख्यिकीय समंकों का प्रयोग, लागत नियंत्रण पद्धतियों को लागू करना तथा लाभकारिता का निर्धारण सम्मिलित है। सांख्यिकीय समंक लागत पत्र, लागत विवरण एवं विभिन्न लागत लेखों की तैयारी और लागत की तुलना में प्रयोग किये जाते हैं।
6. प्रबन्ध को सहायक
लागत लेखांकन पद्धति प्रबन्ध के विभिन्न स्तरों पर निर्णय तथा नियंत्रण के लिए समंक एवं सूचनाएं प्रदान करती है तथा प्रबन्ध के लिए एक उपयोगी मार्ग निर्देशक सिद्ध होती हैं।
यह भी पढ़े; लागत लेखांकन के उद्देश्य, लाभ/महत्व, सीमाएं
Iske laabh nhi h
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