ख्याति का अर्थ ( khyati kise kahte hai)
सरल शब्दों में ख्याति से हमारा आशय व्यवसाय की प्रसिद्धि के मूल्य से होता है। ख्याति एक संपत्ती हैं जिसे देखा नही जा सकता। ख्याति वह आकर्षण हैं जो ग्राहकों को अपनी और खीच लेती हैं।
ख्याति का वर्णन करना जितना आसान है उतना ही अधिक कठिन उसे परिभाषित करना है। व्यापारिक दृष्टिकोण से ख्याति को एक ऐसे तत्व के रूप में माना जा सकता है जिसके कारण अथवा जिसके द्वारा व्यवसाय में विनियोग की पूंजी पर सामान्य से अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
ख्याति की परिभाषा (khyati ki paribhasha)
लॉर्ड मेकटाटन के अनुसार, ‘‘ख्याति व्यापार के अच्छे नाम, अच्छे सम्बंध व सम्पर्क का लाभ है। यह वह आकर्षण शक्ति है जो ग्राहकों को लाती है। यह एक ऐसी चीज है जो कि पुराने सुस्थापित व्यापार को नये व्यापार से भिन्न करती है।"
जे.आर.बाटलीबॉय के अनुसार, ‘‘ख्याति किसी पूर्व संस्थापित व्यापार का कुछ परिस्थितियों के साथ सम्बद्ध एक अतिरिक्त विक्रय योग्य मूल्य है जो कि उसके सुप्रसिद्ध होने वाले संस्थापित संबंधों, निरन्तर रहने वाली समृद्धि और इस आशा से कि भविष्य में व्यापार की लाभार्जन शक्ति स्वामित्व में परिवर्तन होने पर भी ग्राहकों के विश्वास और अनुकम्पा के कारण पूर्ववत् बनी रहेगी, के कारण होती है।"
अतः कहा जा सकता है कि ख्याति किसी सुसंस्थापित व्यापार की एक ऐसी सम्पत्ति है जिसके कारण व्यापार को अधिक लाभ होता है। व्यापार की स्थिति, व्यापारी के सुमधुर व्यवहार व विक्रय कला, अच्छे माल की प्राप्ति आदि के कारणों से अधिक से अधिक ग्राहक उसकी ओर आकर्षित होते है जिसके फलस्वरूप व्यापार की बिक्री बढ़ जाती है और लाभ भी बढता है ऐसा होने पर व्यापार की साख या ख्याति में वृद्धि होती है।
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ख्याति के मूल्यांकन की विधियां (khyati mulyankan ki vidhiyan)
ख्याति व्यवसाय की एक अदृश्य सम्पत्ति है, इसलिये इसका वास्तविक मूल्यांकन असंभव है। इसके सम्बंध में सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है। ख्याति का मूल्यांकन करना कुछ परिस्थितियों में आवश्यक हो जाता है। ख्याति का मूल्यांकन दो आधार पर किया जा सकता हैं--
औसत लाभ तथा अधिलाभ
आशंसित लाभ से हमारा आशय उस लाभ से है जिसे भविष्य में कायम रखा जा सकता है तथा अधिलाभ से हमारा आशय उस लाभ से होता है जो आशंसित लाभ अथवा सामान्य लाभ पर आधिक्य होता है ।
उपरोक्त दोनों आधारों में से किसी एक को आधार मानकर निम्नलिखित विधियों में से किसी एक विधि से ख्याति का मूल्यांकन किया जा सकता है।
ख्याति के मूल्यांकन की प्रमुख विधियां निम्नलिखित हैं--
1. औसत लाभ विधि
इस विधि के अनुसार पिछले कुछ लाभों को जोड़कर औसत ज्ञात किया जाता है और इस औसत को कुल वर्षो के क्रय के बराबर करके ख्याति मूल्य ज्ञात किया जाता है। यह औसत दो प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है--
(अ) सरल औसत
इसके लिये जितने वर्षों के लाभ जोड़े गये हैं, उतने से भाग किया जाता है ।
(ब) भारित औसत
भारित औसत ज्ञात करने के लिये सर्वप्रथम भार तय किये जाते हैं। यह भार प्रथम वर्ष के लिये, द्वितीय वर्ष के लिये, तृतीय वर्ष के लिये और इसी प्रकार अगामी वर्ष के लिये मान लिये जाते हैं। इसके फाद सम्बन्धित वर्षो का इन भारों से गुणा किया जाता है। अन्त में गुणा किये हुये लाभों को जोड़कर भारों के योग से भाग करने पर भारित औसत ज्ञात कर लिया जाता है।
2. अधिलाभ विधि
इस विधि के अनुसार फर्म में जो पूंजी लगायी गयी है, उतनी ही पूंजी पर अन्य दूसरी फमर्म जिस दर से लाभ कमा रही हो, उस दर से यदि फर्म का लाभ अधिक है, (जिसकी ख्याति की गणना की जा रही है) तो यह अतिरिक्त लाभ कहलाता है तथा यह फर्म की विशेषता के कारण ही होता है । प्रायः लेखापाल इसकी गणना औसत लाभ के ब्याज की दर से करते हैं। औसत लाभ का ब्याज के ऊपर जितना आधिक्य होता है, उसे ही अधिलाभ कहते हैं। इस अधिलाभ को साझेदारी संलेख में निश्चित की गयी किसी संख्या से गुणा करते हैं। इस प्रकार से ख्याति का मूल्यांकन किया जा सकता है।
3. पूंजीकरण विधि
इस विधि से ख्याति के मूल्यांकन हेतु लाभों का पूंजीकरण किया जाता है तथा लाभों के पूंजीकरण हेतु ब्याज की सामान्य लाभ-दर का प्रयोग किया जाता है। पूंजीकरण से आशय यह है कि सामान्य ब्याज की दर से एक अमुक लाभ की रकम पाने के लियें कितनी पूंजी की आवश्यकता होगी? पूंजीकरण निर्धारित लाभ व अधिलाभ दोनों का ही किया जा सकता है। इस विधि द्वारा ख्याति का मूल्यांकन अधिलाभांश के आधार पर किया जाता है। इसमें औसत लाभों को 100 से गुणा करके तथा इसी प्रकार अन्य फर्मो की सामान्य लाभ-दर से भाग देकर उसमें में शुद्ध सम्पत्तियों को घटा दिया जाता है और इस प्रकार बची हुयी राशि ख्याति कहलाती है।
4. वार्षिकी विधि
इस विधि में एक उचित अवधि के लिये एक निर्धारित दर पर अधिलाभांश की राशि का वर्तमान मूल्य निकाला जाता है। यह मूल्य वार्षिकी सारणी से या सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। यही मूल्य ख्याति का मूल्य होता है। यदि औसत साधारण लाभ को अधिलाभ के स्थान पर वार्षिकी माना जाता है तो इस औसत साधारण लाभ का वार्षिकी सारणी या सूत्र द्वारा वर्तमान मूल्य निकाला जाता है। इस मूल्य में से शुद्ध सम्पत्तियों का मूल्य अथवा लगायी गयी पूंजी को घटाने के बाद ख्याति की राशि ज्ञात की जाती है।
ख्याति के मूल्यांकन की दशायें
1. कम्पनी की दशा में
(अ) जब दो कम्पनियें का एकीकरण हों ।
(ब) जब एक कम्पनी दूसरी कम्पनी का संविलयन करे।
(स) जब अंशों का मूल्यांकन करारोपण के उद्देश्य से किया जाये और स्कंध विपणि के द्वारा अंशों का मूल्य उपलब्ध न हो।
(द) जब कम्पनी ने पहले ख्याति को अपलिखित कर दिया हो और लाभ-हानि खाते की डेबिट बाकी को कम करने के लिए ख्याति का फिर से बनाया जाना आवश्यक हो।
(ई) कम्पनी पर नियंत्रण करने के लिए कम्पनी के अधिक अंश क्रय करने पर।
(फ) कम्पनी की बिक्री पर।
(ज) अन्य दशाओं के क्रय करने पर।
2. एक साझेदारी संस्था की दशा में
(अ) साझेदार के प्रवेश, अवकाश ग्रहण, मृत्यु की दशा में।
(ब) साझेदार के लाभ, अनुपात में परिवर्तन होने पर।
(स) साझेदारी व्यवसाय की बिक्री पर।
(द) साझेदारी को कम्पनी में परिवर्तित करने पर।
(ई) साझेदारी संस्थाओं के एकीकरण पर।
3. अन्य दशाओं में
(अ) व्यापारी की मृत्यु पर सम्पत्ति कर लगने पर।
(ब) किसी व्यापार को सरकार द्वारा अनिवार्य योजना के अन्तर्गत लेने पर।
(स) एक व्यवसाय की बिक्रि होने पर।
(द) व्यवसाय के पुनर्संगठित होने पर।
(ई) एकाकी व्यापारी द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को साझेदार बनाने पर ।
ख्याति के मूल्यांकन पर प्रभाव डालने वाले तथ्य
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि विक्रेता एवं क्रेता दोनो ही भविष्य के लाभों को ख्याति के मूल्यांकन का आधार बनाते हैं, परन्तु वास्तव में इसके अतिरिक्त अन्य बहुत-से तथ्य हैं जिनका विचार ख्याति के मूल्यांकन के समय किया जाता है। इनमें से प्रमुख तथ्यों का वर्णन आगे किया गया है--
(अ) आन्तरिक तथ्य
आन्तरिक तथ्यों के अन्तर्गत निम्नांकित आते है:-
1. ख्याति को बनाने में किये गये व्यय
लगातार ख्याति वृद्धि के लिए किये गये व्ययों द्वारा ख्याति बढ़ती है ।
2. प्रबन्ध पर किया गया व्यय
यदि प्रबन्ध पर विशेष प्रकार के व्यय किये गये हैं और व्यापार क्रय किये जाने के पश्चात् नये क्रेता की योग्यता एवं क्षमता के कारण इन व्ययों के कम होने की आशा है तो लाभ बढ़ेगें और अधिक लाभ होने पर ख्याति का अधिक मूल्य होगा । यदि क्रेता यह समझता है कि प्रबन्ध के वर्तमान व्ययों के अतिरिक्त कुछ अन्य व्यय भी उसे करने पड़ेंगे और उनकी तुलना में लाभ में कोई वृद्धि नहीं होगी तो लाभ कम हो जायेंगे, अतः ख्याति का मूल्य भी कम हो जायेगा। कुशल प्रबन्धक ख्याति बढ़ाते हैं।
3. पूंजी का प्रयोग
कितनी पूंजी की आवश्यकता पड़ेंगी यह तथ्य ख्याति के मूल्यांकन में एक विशेष महत्त्व रखता है । यदि अनुमानित लाभ प्राप्त करने के लिए लाभों की तुलना में अत्यधिक पूंजी लगानी पड़ेगी तो ख्याति का मूल्य कम होगा और यदि कम पूंजी लगाकर ही अधिक लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं तो ख्याति का मूल्य अधिक होता है ।
4. पेटेण्ट या ट्रेडमार्क का प्रयोग
यदि विक्रेता कम्पनी के पास कोई ऐसा ट्रेडमार्क या पेटेण्ट है जिसके आधार पर वह ख्याति का मूल्य निर्धारित करता है तो क्रेता को यह देखना पड़ता है कि इस पेटेंण्ट या ट्रेडमार्क का प्रयोग भविष्य में कितने वर्षो तक किया जा सकता है । जितने ही अधिक वर्षो तक इनके प्रयोग करने का अधिकार होगा ख्याति का मूल्य उतना ही अधिक होगा और जितने ही कम वर्षो के लिए इनके प्रयोग करने का अधिकार होगा ख्याति का मूल्य उतना ही कम होगा।
5. व्यवसाय में जोखिम
यदि व्यवसाय में जोखिम कम है तो ख्याति का मूल्य व्यवसायों की तुलना में अधिक होता है जिनमें जोखिम अधिक होती है।
6. अच्छी किस्म के माल का निर्माण
यदि अच्छी किस्म के माल के निर्माण प्रयत्न किया जाता है तो ख्याति बढ़ती है ।
7. लाभ
यदि व्यवसाय में अधिक लाभ उपार्जन होता है तो इसकी ख्याति अधिक होती है ।
8. नाम
व्यवसाय के एक विशेष प्रकार के नाम के कारण भी इसकी बिक्री बढ़ती है अतः नाम का निर्धारण अत्यन्त सतर्कता से किया जाता है और कुछ व्यवसायों की बिक्री इसलिए कम होती है क्योंकि उनके नाम किसी विशेष जाति या धर्म के आधार पर होते है ।
9. अवधि
कुछ दशाओं में व्यवसाय की आयु भी इसकी ख्याति वृद्धि में सहायक होती है।
10. नियोक्ता एवं कर्मचारी के सम्बंध
जिस व्यवसाय में नियोक्ता एवं कर्मचारी के सम्बंध अच्छे होते हैं उसमें ख्याति का मूल्य अधिक होता है।
(ब) बाहृा तथ्य
इनके अन्तर्गत निम्नलिखित तथ्य आते हैं--
1. ग्राहकों का दृष्टिकोण
यदि ग्राहकों का दृष्टिकोण व्यापार के प्रति ठीक है तो ख्याति बढ़ती रहती है लेकिन यह दृष्टिकोण व्यापार के स्वभाव एवं कार्यक्षमता पर आधारित होता है।
2. ठहराव
यदि व्यवसाय के बाहरी व्यक्तियों एवं संस्थाओं से जो ठहराव किये गये हैं वे अनुकूल हैं तथा उचित है और सबका ठीक प्रकार कार्यान्वयन हो रहा है तो ख्याति का मूल्य बढ़ता है ।
3. प्रतिस्पर्द्धा
यदि व्यवसाय के प्रतिस्पर्द्धा करने वाले बढ़ रहे हैं तो इसका ख्याति पर प्रभाव अवश्य पड़ता है । प्रतिस्पर्द्धा होने से सदैव ख्याति घटती नहीं है, कभी-कभी इससे ख्याति बढ़ती भी है क्योंकि प्रतिस्पर्द्धा रखने वालों के होने से आपके व्यवसाय की अच्छाइयों दूसरों के समक्ष जल्दी आती हैं ।
4. साख मिलने की सुविधा
साख मिलने की सुविधा होने पर ख्याति का मूल्य बढ़ सकता है।
5. जनता का दृष्टिकोण
व्यवसाय के प्रति आम जनता का दृष्टिकोण यदि अनुकूल होता है तो ख्याति बढ़ती है । यह दृष्टिकोण आन्तरिक एवं बाहृा दोनों कारकों पर निर्भर करता है ।
6. अमूर्त सम्पत्ति
ख्याति का मूल्यांकन अन्य सम्पत्तियों के मूल्यांकन की तरह नहीं किया जाता है क्योंकि अन्य सम्पत्तियों का उनके रूप एवं स्वभाव के कारण बाजार मूल्य होता है । इनके मूल्यों का ज्ञान विभिन्न बाजारों से ज्ञात किया जा सकता है, परन्तु ख्याति एक अमूर्त सम्पत्ति है जिसका न तो कोई स्वरूप है और न कोई बाजारू मूल्य। अतः इसका मूल्यांकन अधिकतर आपसी समझौते द्वारा किया जाता है। इसके मूल्यांकन के लिए कोई प्रमाप निर्धारित नहीं है जिसके आधार पर इसके मूल्यांकन की जांच करने में सहायता मिले। यद्यपि कुछ विधियों के द्वारा इसका मूल्यांकन किया जा सकता है।
7. राजनीतिक संरक्षण
यदि व्यापार ऐसा है जिसे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है या प्राप्त होने की आशा है तो व्यवसाय को निश्चित रूप से अधिक लाभ होगा और ख्याति मूल्य भी अधिक होगा।
9. सरकारी संरक्षण
उपर्युक्त वर्णित राजनीतिक संरक्षण और सरकारी संरक्षण का अन्तर समझना इस सम्बंध में आवश्यक प्रतीत होता है। राजनीतिक संरक्षण का आशय यहां राजनीतिक दलों का उस व्यवसाय के साथ एक विशेष प्रकार का सम्बंध है। यदि व्यवसाय एक ऐसे राजनीतिक दल द्वारा चलाया जा रहा है जिसका विरोध सरकार करती है तो भविष्य में इस व्यवसाय में कम लाभ प्राप्त होंगे तथा इसकी प्रगति की सम्भावनाएं भी कम होंगी।
10. हस्तान्तरण की आशा
यदि ख्याति के हस्तान्तरण किये जाने की आशा है तो इसका अधिक मूल्य होता है और यदि यह हस्तान्तरण नहीं किया जा सकता है तो इसका मूल्य कम होगा।
Acchi h bhot goodwill ki puri thiyori easy language me bhi h y bhot thank you sir
जवाब देंहटाएंThank you so much sir
हटाएंThank you sir for this easy format 😊
जवाब देंहटाएंबोहत ही सरल भाषा मे ओके द्वारा ख्याति को परिभाषित किया गया है ।
जवाब देंहटाएंसराहनीय कार्य आपके द्वारा निस्वार्थ भाव से किया जा रहा है।
ऐसे की आसान भाषा मे ओर भी टॉपिक्स को भी आप अपनी साइट पर अपलोड करें।
सदर धन्यवाद।
ख्याति की प्रकार
जवाब देंहटाएंThank you
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