4/25/2022

बैंकों में प्रबंध के सिद्धांत

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बैंकों में प्रबंध के सिद्धांत 

बैंकों के प्रबन्‍धकीय कार्यो को हम सामान्‍य रूप से दो भागों में बांट सकते है--

(अ) उदारीकरण के पूर्व बैंकों में प्रबन्‍धकीय कार्य, 

(ब) उदारीकरण के पश्‍चात् शुरू हुए प्रबन्‍धकीय कार्य। 

(अ) उदारीकरण से पूर्व बैंकों में प्रबन्‍धकीय कार्य

जैसा की हम अच्‍छी तरह से वाखिब है कि बैंक एक सेवा प्रदान करने वाली संस्‍था होती है। यह जनता को अनेक प्रकार की सेवायें प्रदान करती है। इन सेवाओं में प्रमुख हैंः जनता से निक्षेप प्राप्‍त करना, ऋण देना तथा कुछ एजेन्‍सी सम्‍बन्‍धी कार्य करना। जनता एक यह सेवायें पहुंचाने के लिए बैंक को अपने प्रधान कार्यालय से लेकर शाखा स्‍तर तक अनेक व्‍यवस्‍थायें एवं कार्य करने पड़ते है, इन्‍हीं कार्यो को हम बैंकों के प्रबन्‍धकीय कार्य के नाम से जानते है। इन प्रबन्‍धकीय कार्यो का संक्षेप में नीचे वर्णन किया जा रहा है--

1. शाखा स्‍तर से लेकर प्रमुख कार्यालय तथा मण्‍डल कार्यालय के लिए विभिन्‍न कर्मचारियों, प्रबन्‍धकों तथा अधिकारियों की नियुक्ति करना। 

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2. बैंकिंग सेवाओं के विस्‍तार हेतु आवश्‍यक कार्य करना। 

3. शाखा विस्‍तार हेतु कार्यक्रम तैयार करना, उन्‍हें रिजर्व बैंक से स्‍वीकृत करवाना तथा कार्यक्रमानुसार शाखायें खोलना। 

4. बैंकिंग विधि एवं व्‍यवहार का पालन करना तथा जो अनियमितताएं पता चली हों उनकी ओर संचालक मण्‍डल का ध्‍यान आकर्षित करना। 

5. बैंकिंग कर्मचारियों से संबंधित सभी सेविवर्गीय कार्य करना जैसे- उनकी पद स्‍थापना, पदोन्‍नति, प्रशिक्षण तथा स्‍थानान्‍तरण से सम्‍बन्धित नीतियों का निर्माण करना। 

6. जनता से प्राप्‍त धन एवं बैंक के कोषों का उचित विनियोजन करना। 

7. रिजर्व बैंक द्वारा समय≤ पर घोषित बैंक नीति, साख नीति तथा विनियोग नीति के संदर्भ में बैंक की नीतियों में आवश्‍यक संशोधन करना। 

8. समय पर अंशधारियों की सभायें बुलाना तथा उनकी समस्‍याएं मालूम करना। 

9. बैंक के अन्तिम खातों को तैयार करना, उनका अकेंक्षण करवाना और उन्‍हें प्रकाशित करवाना। 

10. सभा में जो विशेष प्रस्‍ताव पारित किये जायें उन्‍हें रजिस्‍ट्रार के पास भेजना। 

11. समय पर विभिन्‍न रिपोर्ट्स तैयार करना और उन्‍हें रिजर्व बैंक तथा केन्‍द्र सरकार के पास पहुंचाना। 

12. ग्राहकों, कर्मचारियों तथा अन्‍य व्‍यक्तियों से प्राप्‍त सुझावों व शिकायतों पर विचार करना तथा उचित सुझावों को कार्यन्वित करना। 

13. रिजर्व बैंक के निरीक्षण के दौरान मांगी गई सभी सूचनायें एवं पूस्‍तकें उपलब्‍ध करवाना। 

(ब) उदारीकरण के बाद शुरू किये गये प्रबन्‍धकीय कार्य

1991 के बाद भारत में जो उदारीकरण तथा वैश्‍वीकरण का दौर शुरू हुआ, उससे देश की अर्थव्‍यवस्‍था में अनेक मूलभूत परिवर्तन देखने को‍ मिले। देश में बैंकों का परिदृश्‍य भी बदल गया। विदेशी पूंजी भारत में आने लगी, बहुराष्‍ट्रीय निगमों ने अपनी सहायक भारतीय कम्‍पनियां शुरू की। विदेशी बैंक भारम में आये। बैंक अपने परम्‍परागत कार्यो के अलावा अनेक नवीन कार्य करने लगे। ई-बैंकिंग की शुरूआत हुई, ए.टी.एम. मशीनें आज एक आम बात हो गई। इन सभी कारणों से बैंकों ने अनेक नयें कार्य शुरू किये। 

ऊपर दिये गये कार्यो के कारण बैंकों को निम्‍न प्रबन्‍धकीय कार्य करने पड़ रहे है--

1. मर्चेन्‍ट बैंकिंग 

अब बैंक मर्चेन्‍ट बैंकिंग के भी कार्य करने लगे है। अब व्‍यापारिक बैंक औद्योगिक कम्‍पनियों को वित्तीय साधन जुटाने, ऋण प्राप्‍त करने, वित्तीय प्रबन्‍धन आदि क्षेत्रों में परामर्श देते है।

2. म्‍यूच्‍युअल फण्‍डों की शुरूआत 

अनेक बैंकों ने अपने म्‍यूच्‍युअल फण्‍ड शुरू किये। 

3. पोर्टफोलियों प्रबन्‍धन 

यह शुल्‍क आधारित सेवा है, जो बैंकों द्वारा प्रदान की जाती है। अनेक व्‍यापारिक बैंकों ने अपने ग्राहकों के निवेशों की उचित व्‍यवस्‍था के लिए पोर्टफोलियों प्रबन्‍ध कार्यक्रम शुरू किये है। 

4. उद्यमी पूंजी 

इसे साहस पूंजी भी कहा जाता है। इसके अन्‍तर्गत बैंक औद्योगिक इकाइयों को प्रारंभिक पूंजी प्रदान करते है। 

5. आढ़तिया सेवा 

इसके अन्‍तर्गत व्‍यापारिक बैंक माल के विक्रेताओं को प्राप्‍त होने वाली राशियों का संग्रह करते है। इससे विक्रेताओं को नगदी प्राप्‍त करने तथा कम जोखिम पर अधिक माल बेचने की सुविधा मिलती है। 

6. आवास वित्त व्‍यवस्‍था 

आजकल लगभग सभी बैंक आवास वित्त व्‍यवस्‍था का कार्य भी करते है। 

7. बीमा व्‍यवसाय 

वर्तमान में भारतीय व्‍यापारिक बैंक विदेशी बीमा कंपनियों से हाथ मिलाकर सभी प्रकार के बीमा व्‍यवसाय भी कर रही है। 

8. किराया क्रय एवं पट्टा वित्त कार्य 

व्‍यापारिक बैंक किराया क्रय एवं पट्टा वित्त कार्य भी कर रहे है।

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